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महाराजा जयसिंह जी

महाराजा जयसिंह का इतिहास (प्रथम) आमेर

महासिंह जी के बाद महाराजा जयसिंह जी आमेर के सिंहासन पर बिराजे। इन्होंने आमेर के लुप्त गौरव को फिर प्रकाशमान किया। जिस प्रकार महाराजा मानसिंह जी ने अकबर के शासन-काल में राज्य का विस्तार, सामर्थ्य और सम्मान बढ़ाया था, ठीक उसी प्रकार राजा जयसिंहजी ने दुर्दान्त औरंगजेब के शासन में अपने अपूर्व बाहुबल और अद्वितीय राजनीतिज्ञता का परिचय दिया। हाँ, यहाँ यह बात अवश्य…

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राजा मानसिंह जी

राजा मानसिंह का इतिहास – आमेर के राजा का इतिहास

राजा मानसिंह आमेर के कच्छवाहा राजपूत राजा थे। उन्हें 'मानसिंह प्रथम' के नाम से भी जाना जाता है। राजा भगवन्तदास इनके पिता थे। वह अकबर की सेना के प्रधान सेनापति थे। उन्होने आमेर के मुख्य महल का निर्माण कराया। राजा मानसिंह का जन्म 21 दिसंबर 1550 को आमेर में हुआ था। बिहारीमल जी के बाद उनके पुत्र भगवान दास जी आमेर की गद्दी पर बिराजे।…

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महाराणा फतह सिंह जी

महाराणा फतह सिंह जी का परिचय

महाराणा सज्जन सिंह जी के बाद महाराणा फतह सिंह जी सन 1885 में उदयपुर राज्य के राजसिहासन पर बिराजे। आपका जन्म 16 दिसंबर सन् 1849 को हुआ था। इस्वी सन्‌ 1887 में जी० सी० एस० आई० की उपाधि से विभूषित किये गये। इसी साल आपने अफीम को छोड़ कर तमाम जावक माल का महसूल माफ कर दिया। आपके समय में चित्तौड़ से लगा कर उदयपुर…

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महाराणा प्रताप सिंह

महाराणा प्रताप सिंह का इतिहास – महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई

सन्‌ 1572 में महाराणा प्रताप सिंह जी मेवाड़ के महाराणा हुए। इस समय महाराणा के पास न तो पुरानी राजधानी ही थी न पुराना सैन्य दल और न कोष ही था। महाराणा प्रताप सिंह रात दिन इसी चिन्ता में रहने लगे कि चितौड़ का उद्धार किस तरह किया जाय। ये इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि सम्राट अकबर की सेना और शक्ति…

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महाराणा उदय सिंह द्वितीय

महाराणा उदय सिंह द्वितीय का इतिहास

महाराणा उदय सिंह जी ईस्वी सन्‌ 1440 में मेवाड़ के राज्य सिंहासन पर बिराजे। यहाँ यह बात स्मरण रखना चाहिये कि जिस साल महाराणा उदय सिंह जी मेवाड़ के राज्य-सिंहासन पर बेठे, उसी साल सुप्रख्यात महान मुग़ल सम्राट अकबर ने अमरकोट में जन्म लिया था। इतिहास के पाठक जानते हैं कि अकबर का पिता हुमायूं दिल्‍ली छोड़कर भागा था, और पीछे उपयुक्त अवसर देखकर दिल्‍ली…

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महाराणा विक्रमादित्य

महाराणा विक्रमादित्य का इतिहास

महाराणा विक्रमादित्य महाराणा सांगा के पुत्र थे, और महाराणा रतन सिंह द्वितीय के भाई थे, महाराणा रतन सिंह द्वितीय की मृत्यु के पश्चात और अपने पुत्र को फांसी पर चढ़ाने के बाद महाराणा रतन सिंह द्वितीय के अब कोई पुत्र न बचा था, अतएवं उनके भाई महाराणा विक्रमादित्य सन् 1531 में राज्य सिंहासन पर बैठे। इस समय इनकी उम्र 14 वर्ष थी। इनके शासन-काल…

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महाराणा रतन सिंह द्वितीय

महाराणा रतन सिंह द्वितीय का इतिहास

महाराणा संग्रामसिंह (सांगा) के बाद उनके पुत्र महाराणा रतन सिंह द्वितीय राज्य-सिंहासन पर बैठे। आपमें अपने पराक्रमी पिता की तरह वीरोचित गुण भरे पड़े थे। रणक्षेत्र ही को आप अपनी प्रिय वस्तु समझते थे। आपने चित्तौड़गढ़ के दरवाजे खुले रखकर लड़ने का प्रण किया था। इन्होंने आमेर के राजा पृथ्वीराज की पुत्री के साथ गुप्त विवाह किया था। स्वयं पृथ्वीराज को यह बात मालूम…

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महाराणा सांगा

महाराणा सांगा का इतिहास – राणा सांगा का जीवन परिचय

महाराणा सांगा का इतिहास जानने से पहले तत्कालीन परिस्थिति जान ले जरूरी है:-- अजमेर के चौहानों, कन्नौज के गहरवालों और गुजरात के सोलंकियों का पतन होते ही मेवाड़ में गुहिलोत और मारवाड़ में राठोड़ हिन्दुस्तान के राजनैतिक गगन पर चमकने लगे। इनके चमकने से सारी राजपूत जाति में पुनः नवजीवन का संचार होने लगा। इधर दिल्ली में अफगानों की शक्ति दिन प्रति दिन घटने…

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महाराणा कुम्भा

महाराणा कुम्भा का इतिहास और जीवन परिचय

राणा मोकल के बाद उनके पुत्र महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ के गौरवशाली राज्य-सिंहासन को सुशोभित किया। मेवाड़ के जिन महापराक्रमी राणाओं ने अपने अपूर्व वीरत्व, अद्वितीय स्वार्थत्याग आदि दिव्यगुणों से भारतवर्ष के इतिहास को उज्ज्वल किया है, उनमें महाराणा कुम्भाका आसन सर्वोपरि है। उन्होंने जो जो महान विजय प्राप्त की हैं, उनका न केवल मेवाड़ के इतिहास में, वरन भारतवर्ष के इतिहास में बड़ा…

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रावल जैत्रसिंह

रावल जैत्रसिंह का इतिहास और जीवन परिचय

रावल जैत्रसिंह मेवाड़ के राजा मंथनसिंह के पौत्र और पद्मसिंह के पुत्र थे। प्राचीन शिलालेखों में जैत्रसिंह के स्थान पर जयतल, जयसल, जयसिंह और जयतसिंह आदि इनके नाम भी मिलते हैं। भाटों की ख्यातों में उनका नाम जैतसी या जैतसिंह मिलता है। वे बड़े प्रतापी राजा हुए। उन्होंने अपने आस-पास के हिन्दू राजाओं तथा मुसलमानों से कई युद्ध किये। उनके समय के वि० सं०…

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