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1971 भारत पाकिस्तान युद्ध

1971 भारत पाकिस्तान युद्ध – 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के कारण और परिणाम

भारत1947 में ब्रिटिश उपनिषेशवादी दासता से मुक्त हुआ किन्तु इसके पूर्वी तथा पश्चिमी सीमांत प्रदेशों में मुस्लिम बहुमत वाले क्षेत्रों को इससे अलग करके एक इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान का गठन कर दिया गया। जबसे पाकिस्तान बना है, दोनों देशों के बीच निरंतर तनाव की स्थिति बनी रही है और कई युद्ध लड़े गये जिनमें तीन बड़े युद्ध लड़े गये है: 1947, 1965 और 1971 में। 1971 का युद्ध सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसकी समाप्ति के साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में एफ नये राष्ट्र का उदय हुआ ओर यह राष्ट्र है- बंगलादेश। आज का यही बंगलादेश 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले तक पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा था। अपने इस लेख में हम इसी 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—-

1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध की कहानी? 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के कारण क्या थे? 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध के परिणाम क्या थे? 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध क्यों हुआ? 1971 भारत पाकिस्तान की लड़ाई में किसकी जीत हुई? 1971 में कितने जवान शहीद हुए थे? 1971 के युद्ध में कितने भारतीय सैनिक मारें गये थे? भारत-पाक युद्ध 1971 के दौरान सेना प्रमुख कौन थे?

1971 भारत पाकिस्तान युद्ध का कारण

भारत के टुकड़े करके जिस तरह पाकिस्तान का निर्माण हुआ था, उसमे कई असंगतिया थी। पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से केवल धर्म में जुदा था अथवा राजनीतिक पन्‍नों पर पाकिस्तान का हिस्सा था, जबकि दोनो में बहुत क्रम समानताएं थी। भोगौलिक दृष्टि से परस्पर 1,000 मील की दूरी पर स्थित दोनो हिस्सो में भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज तथा रहन-सहन, आदि में भी अनेक विसंगतिया तथा असमानताएं थी। इसके अलावा पूर्वी भूखंड़ पश्चिमी पाकिस्तान के उपेक्षापूर्ण रवैये से परेशान था। सरकारी नौकरियों में भी उसे उपेक्षित रखा जाता था। कुल मिलाकर उसकी स्थिति एक उपनिवेश जैसी थीं।

फलत अपने अस्तित्व के लिए पूर्वी भूखंड के निवासियों के भीतर विद्रोह और असंतोष पनपने लगा। ‘अवामी लीग’ का गठन इस और एक कदम साबित हुआ। दिसम्बर, 1970 के आम चुनावों में पाकिस्तान की राष्ट्रीय संसद की कुल 313 सीटों में 196 सीटे पूर्वी पाकिस्तान के लिए आरक्षित रखी गयी, जिनमें से 167 सीटों पर अवामी लीग ने शेख मुजीबुर्रहमान के नेतत्व में विजय प्राप्त की। स्पष्ट बहुमत होने के कारण मुजीबुर्रहमान ने सरकार बनाने का प्रस्ताव पेश किया। उधर, पश्चिमी पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो की पीपुल्स पार्टी को भारी बहुमत मिला, इसलिए उसने अवामी लीग द्वारा सरकार बनाये जाने के प्रस्ताव का विरोध किया। फलत चुनाव के बाद के संसदीय आधिवेशन को स्थगित कर दिया गया। कालांतर मे पश्चिमी पाकिस्तान ने संविधान में संशोधन करने की भी योजना बनायी ताकि पूर्वी भूखंड॒ सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत न कर सके किन्तु यह योजना कार्यान्वित न हो सकी।

तब 26 मार्च, 1971 को शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता (Autonomy) की घोषणा करते हुए अपने आधिकारों के लिए पहले से ही जूझ रही वहा की जनता से संघर्ष तेज करने का आह्वान किया। उन्होंने लोगो को टेक्स देने से भी मना कर दिया। मार्च के अंतिम सप्ताह मे पश्चिमी पाकिस्तान ने इसे गेर कानूनी’ घोषित करके अमानुषिक फौजी अत्याचार शुरू कर दिये। दमनकारी फोजों से तंग लोग जान बचाकर सीमावर्ती भारतीय प्रदेशों मे शरण लेने लगे। अक्तुबर, 1971 तक इन शरणार्थियों की संख्या एक करोड से भी आधिक हो गयी। इन शरणार्थियों पर दो करोड रुपये प्रातिदिन से अधिक के खर्च से भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होने लगी। इस समस्या के समाधान के लिए तत्कालीन भारतीय प्रधानमत्री स्व श्रीमती इन्दिरा गाधीं ने अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, इत्यादि देशों का दौर किया किन्तु किसी भी देश की ओर से संतोषजनक उत्तर न मिला और भारत के लिए स्थितिया असह्य होती गयी।

दूसरी ओर, पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक प्रशासक जनरल याहया खान इन बिगडती परिस्थितियों से निबटने मे समर्थ नही हो पा रहे थे और सारादोष भारत पर मढ़ने की कोशिश मे लगे थे। जनरल याह्या मन ही मन देश की सत्ता की बागडोर खुद अपने हाथों में सम्भाले रखने के इच्छुक थे किन्तु जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनों के कारण नागरिक प्रशासन की बात भी कर रहे थे। पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह को कुचलने के लिए जनरल याह्या ने लगभग एक लाख सैनिक वहां भेज दिये। अमरीका और चीन से उन्हें हथियारों के रूप में लगातार सैनिक सहायता मिल रही थी। इसलिए हथियारों की कमी भी नही थी। देश की जनता का ध्यान आंतरिक समस्याओं से हटाने के लिए जनरल याहया खान को भारत के साथ युद्ध छेड़ देना ही श्रेयस्कर लगा। उन्होने 3 दिसम्बर, 1971 को भारत पर पहले इसकी पश्चिमी सीमाओ से और बाद मे पूर्वी सीमाओ से हमला बोल दिया।

1971 भारत पाकिस्तान युद्ध
1971 भारत पाकिस्तान युद्ध

पश्चिमी मोर्चा

3 दिसम्बर को जब पाकिस्तान के बमवर्षक विमानों ने भारत के बारह हवाई अड्डों पर अचानक आक्रमण किया तो इससे पहले ही उसकी थल सेनाएं छम्ब क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर) से लगे भिम्बर मोर्चे पर पहुंच चुकी थीं। उसी दिन रात के पहले पहर मे पाकिस्तान ने दो जबरदस्त हमले किये किन्तु दोनों ही बार उसके 6 टैंक नष्ट कर दिये गये। पाकिस्तानी सेना के आक्रमणों का जब पहला प्रयास विफल हो गया तो उन्होने अपने घुसपैठिये भेजने शुरू किये परन्तु उनका यह प्रयास भी नाकाम कर दिया गया।

9-10 दिसम्बर की रात को’ पुनः संगठित पाकिस्तानी सेना ने पुंछ
(जम्मू-कश्मीर) के उत्तर की ओर कूच किया परन्तु हमला बोलने से पहले ही भारतीय बम वर्षकों ने उनकी कमर तोड दी। हाजीपीर के निकट वाले कस्बे कहटा की सप्लाई पर बमबारी करके उनकी रसद व्यवस्था भी छिन्न-भिन्‍न कर दी गयी। हजीरा-कोटली मार्ग की तमाम चौकियों पर कब्जा कर लिया गया और पुंछ के आसपास के सभी क्षेत्रो पर भारतीय सेनाओं ने अपना अधिकार कर लिया।

इससे पूर्व 5 दिसम्बर को मुनव्वर तवी नदी के पश्चिमी किनारे पर हुई मुठभेड़ मे भारतीय सेना को कुछ पीछे हटना पड़ा था। हालांकि पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान हुआ था, फिर भी उसने लगातार दबाव बनाये रखा और भारतीय सेना को पहले देवा मडेलिया, फिर छम्ब खाली करना पडा किन्तु 10-11 दिसम्बर की रात को भारत ने दुश्मन को तवी के दूसरे किनारे पर धकेल दिया। इसमें करीब 3000 पाक सैनिक हताहत हुए और 50 से अधिक टैंक ध्वस्त कर दिये गये। इस सफल! हमले के बाद भारतीय सेना का दबाव बराबर बढ़ता रहा। छम्ब, पुंछ और उडी (Uri) के अलावा कश्मीर की बाकी पूरी सीमा छुटपुट लड़ाई के अतिरिक्त लगभग शांत रही।

कश्मीर की जमा देने वाली ठंड, हिमपात के बावजूद सैनिक रातों मे लडते रहे। इसी ठिठुरन की सबसे भयानक और व्यापक लडाई थी-शंकरगढ की टैंक-लडाई। इस मोर्चे पर दुश्मन के टैंको की संख्या सबसे अधिक थी परन्तु भारतीय सेना ने अपने थोडे से टैंको के कुशल संचालन से 15-16 दिसम्बर की रात को दुश्मन के 45 से अधिक टैंको को ध्वस्त कर दिया जबकि उनके अपने 15 टैक ही ध्वस्त हुए। पाकिस्तानी सेना मे खलबली मच गयी। इस प्रकार पश्चिमी मोर्चे पर छम्ब, शंकरगढ तथा राजस्थान के मोर्चो के अलावा थार के मरुस्थल से लेकर पंजाब के गुरदासपुर जिले तक की लगभग 700 कि.मी. लम्बी सीमा पर युद्ध के छोटे-बडे मुकाबले होते रहे। वस्तृत इस सीमा पर भारतीय सेना ने शत्रुपक्ष को मुस्तैदी से बांधे रखा।

पूर्वी मोर्चा

इस मोर्चे पर भारतीय तथा बंगलादेश की मुक्तिवाहिनी सेनाओ के संयुक्त प्रयासों ने पाकिस्तानी सैन्य-बल को इस कदर हतोत्साहित कर दिया कि उनके सामने आत्मसमर्पण के अतिरिक्त कोई रास्ता न बचा। 8 दिसम्बर को भारत के तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष जनरल मानेकशॉ ने शत्रु पक्ष को आत्मसमर्पण को कहा किन्तु उधर से कोई उत्तर न आया। अगले दिन 9 दिसम्बर को भारत मे सरकारी तौर पर घोषणा की गयी कि पाकिस्तान की अमरीका निर्मित गाजी (Ghazi) पनडुब्बी डुबो दी गयी है।

12 दिसम्बर की सुबह भारतीय सेनाओ ने जमालपुर से ढाका की ओर कूच किया। टगाइल के पास जमालपुर और मैमनसिह से भागे पाकिस्तानी सैनिक सगठित होकर भारतीय आक्रमण का मुकाबला करने की तैयारी कर रहे थे परन्तु भारतीय सेना ने उन्हे मौका नही दिया और घेर लिया। मुकाबले मे लगभग तीन सौ पाकिस्तानी सैनिक मारे गये। 13 दिसम्बर को भारतीय सेना ने फिर तेजी से आगे बढना शुरू किया। एक स्थान पर पडी पाकिस्तानी फौज को भारतीयों ने अचानक घेर कर सकते मे डाल दिया। उनके पास आत्मसमर्पण के अलावा कोई रास्ता न बचा। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना मे दहशत फैलाने और उन्हें आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने के इरादे से ढाका की छावनी, हवाई अड्डे और गवर्नर हाउस पर बमबारी करनी शुरू की। हवाई हमलों से घबराकर सचमुच पाकिस्तानी सेना में दहशत फैल गयी। वहा के गवर्नर डॉ. मलिक ने इस्तीफा दे दिया। पाकिस्तानी सैनिक अफसर भी समझ गये कि भारतीयों से इस समय युद्ध करने का अर्थ होगा– बर्बादी। अतः वे शांत बने रहे। उनके खेमों मे चुप्पी छा गयी। गाजी के नष्ट होने व कराची में ईंधन के अड्डों पर बमबारी के समाचारों से पाक सेना का मनोबल टूट गया।

अन्ततः भारतीय जनरल मानेकशां ने पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल अब्बास नियाजी को 16 दिसम्बर की प्रातः 9 बजे तक अपनी फौजों के साथ आत्मसमर्पण करने का आदेश भेजा। जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव मान लिया। उसके बाद भारतीय सैनिक अधिकारी पाकिस्तानी हैडक्वार्टर पहुंचे जहां लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी बंकर में छिपे थे। 11 बजकर 5 मिनट पर नियाजी बाहर निकले और मेजर जनरल नागरा से गले मिले। इसी बीच 36वें पाक डिवीजन के जी.ओ.सी. मेजर जनरल जमशेद ने अपने अधीनस्थ सैनिकों के साथ पूरी तरह आत्मसमर्पण कर दिया। दोपहर लगभग एक बजे लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल जैकब आत्मसमर्पण का मसौदा लेकर हेलीकॉप्टर से ढाका पहुंचे। ढाका के रेसकोर्स मे तीसरे पहर 4:31 बजे जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों सहित आत्मसमर्पण प्रलेख पर हस्ताक्षर किये। इस तरह एक नये राष्ट्र का जन्म हुआ। बंगलादेश के नागरिक स्वतंत्रता की खुशी में अमानुषिक नरसंहार की
घटनाओं को भूलकर नाच उठे।

1971 भारत पाक युद्ध का परिणाम

पूर्वी भूखंड को पश्चिमी पाकिस्तान के अमानुषिक अत्याचारों से मुक्ति मिली और ‘बंगलादेश’ स्वतंत्र रूप से एक नया राष्ट्र बना। बंगलावासियों ने शेख मुजीबुर्रहमान को अपने लोकतंत्र का प्रथम प्रधानमंत्री चुना और उनके नेतृत्व के प्रीति विश्वास प्रकट किया। पाकिस्तान में याहया खान का सैनिक शासन समाप्त हुआ और भुट्टो प्रधानमंत्री बने। युद्ध मे भारत तथा पाकिस्तान द्वारा कब्जा लिये गये क्षेत्र परस्पर लौटा दिये गये। 2 जुलाई, है 1972 को श्रीमती इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भूट्टो के बीच ‘शिमला समझौता“ हुआ। दोनो नेताओं ने निरस्त्रीकरण का समर्थन करते हुए समस्याओं को युद्ध की बजाय वार्ताओ से सुलझाना श्रेष्ठ समझा।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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