1947 की क्रांति इन हिन्दी – 1947 भारत की आजादी के नेता Naeem Ahmad, May 17, 2022March 24, 2024 19 वीं शताब्दी के मध्य से भारत मे “स्वदेशी” की भावना पनपने लगी थी। कांग्रेस की स्थापना, गोखले और तिलक की राजनीति, भगत सिह और चंद्रशेखर आजाद की क्रांतिकारी कार्यवाहियां, गांधी जी का सत्याग्रह और आखिर में 1942 के “भारत छोडों आदोलन” ने इस भावना को एक विचारधारा का रूप देते हुए क्रमशः पूर्ण आजादी की मंजिल तक पहुचाया। असंख्य लोगो ने कुर्बानियां दी, जेलों की यातनाएं सही पर अंग्रेजों के सामने सिर न झुकाया। शायद ही किसी अन्य देश ने अपनी आजादी के लिए सौ साल जितना लंबा स्वतंत्रता-सग्राम लड़ा हो। सन् 1857 से शुरू हुई आजादी की यह जंग सन् 1947 मे जाकर खत्म हुई। 1947 की क्रांति के बाद भारत एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया। यह आजादी तो मिली बस एक ही कसक रह गयी- आजादी मिली पर देश का विभाजन हो गया। अपने इस लेख में हम 1947 की इसी क्रांति का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:— 1947 ki kranti in hindi? 1947 की क्रांति के नेता कौन थे? 1947 भारत की आजादी की लड़ाई की कहानी? 1947 स्वतंत्रता सेनानी कौन कौन थे? 1947 की क्रांति में सुभाषचंद्र बोस का योगदान 1947 क्रांति और डांडी मार्च 1947 आंदोलन और नमक आंदोलन 1947 की लड़ाई में गांधीजी 1947 के स्वतंत्रता संग्राम में नेहरू जी 1947 स्वतंत्रता संग्राम और चंद्रशेखर आजाद 1947 की क्रांति इन हिन्दी सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतत्रता संग्राम के कुचल दिये जाने के बावजूद भारतीय जनता ने अंग्रेज अत्याचारों के डर से अपना मुंह नही छिपाया। हां आजादी की लड़ाई ने अपना रूप और रास्ता थोड़ा बदल जरूर दिया। 19वीं शताब्दी के मध्य से ही विदेशी माल के खिलाफ स्वदेशी की भावना एक विचार के रूप मे उभरने लगी। धीरे-धीरे लोगों की समझ में आने लगा कि अंग्रेंज मैनचेस्टर की अपनी कपडा मिल चलाने के लिए भारत के कपडा उद्योग को नष्ट कर देने पर आमादा है। दादा भाई नौराजी, तिलक, मदन मोहन मालवीय और सुरद्रनाथ बैनर्जी जैसे गणमान्य नेताओं ने विदेशी के विरोध में स्वदेशी की आवाज बुलंदलद की। सन् 1896 तक आत-आते स्वदेशी आंदोलन जोर पकडने की स्थिति में आ गया था। कांग्रेस का जन्म कभी का हो चुका था। सन् 1905 मे लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन कर दिया गया। इससे अंग्रेज विरोधी भावना का रुका हुआ सैलाब फिर से फूट पडा। देखते-देखते आर्थिक स्वदेशी आंदोलन ने राजनीतिक तेवर अख्तियार कर लिये। दरअसल सन् 1857 के संग्राम के बाद अंग्रेजों के पहली बार संगठित रूप में भारतीय आजादी की मांग विभाजन विरोधी और स्वदेशी आंदोलन के रूप में दिखायी और सुनायी दी। अपने पैसे का इंवेस्टमेंट सही जगह पर करे राष्टीय आंदोलन की तह में तीन तरह की अंतर्धाराएं प्रवाहित हो रही थी। पहली धारा का संबंध उन लोगो से था जो जनता की ओर से सरकार को तर्क पूर्ण अर्जियां और ज्ञापन देकर कुछ विशेष प्रकार की रियायत हासिल कर लेना चाहते थे। ये लोग बर्तानवी हकुमत की इंसाफ पसंदी के कायल थे। इनके अगुआ थे गोपाल कृष्ण गोखले। दूसरी तरह के लोग चाहते थे कि लोगों में देशभक्ति स्वाधीनता के लिए प्यार व गुलामी से नफरत की भावनाएं पैदा की जाये। साथ ही प्रचार सभाओ और जलसों प्रदर्शनों और सत्ता की अवहेलना के जरिए जनता को प्रतिरोध स्वाबलंबन त्याग और कष्ट-सहिष्णुता के लिए तैयार किया जाये। इन लोगों का नारा था ‘स्वाराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर ही रहेंगे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय इस विचारधारा के प्रमुख नेता थे। कांग्रेस नरम और गरम दल में विभाजित थी। तीसरी धारा उन लोगों की भी जो हथियार बंद कार्यवाहियों अर्थात फौजी तरीके से अंग्रेजों का तख्ता पलट देना चाहते थे। ये वे जाबाज क्रांतिकारी थे जो हर क्षण मात्रभूमि को अपने प्राणों का बलिदान देने को तैयार थे। बंगाल की अनुशीलन समिति इनका प्रमुख सगठन था। अरविंद घोष, बारीद्र कुमार घोष, भृपेद्र नाथ दत्त और ब्रह्म माधव उपाध्याय इस आंतकवादी आदोलन के प्रमुख सूत्रधार थे। 1947 की क्रांतिबहरहाल स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन ने अंग्रेजों पर कडी चोट की। हर तरह के लोगो ने इसमे भाग लिया–नरम दलों ने थोडी हिचक के साथ और गरम दलों ने पूरे जोश के साथ। इसके फलस्वरूप इंग्लैंड से भारत में कपडे के आयात में कमी हो गयी। भारतीय कपड़ा ज्यादा बिका। जुलाहों की आमदनी बढी। भारत में देसी पूंजीपतियों ने मिल खोली। भारतीय बैंक खुले पर अंग्रेजों ने इस आंदोलन की एक बात का जमकर फायदा उठाया, स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन काफी कुछ हिन्दू धर्म की मान्यता और रीति-रिवाजों पर आधारित था। मुसलमान उससे अभी उतने जोश-खरोश से नही जुड पाये थे। अवसर का फायदा उठाने में माहिर अंग्रेजों ने दंगे भडका दिये। सन् 1906 में मैमन सिंह जिले में फसाद होने लगा। सरकार की तरफ से इसे और हवा दी गयी।काली हवेली कालपी – क्रांतिकारी मीर कादिर की हवेलीउधर भारत मंत्री और वायसराय की मार्ले-मिटों जोडी ने घोषणा कर दी कि उनका इरादा प्रशासनिक पुनर्गठन करने का है। नरम दलीय नेता इस चारे को लील गये और नतीजतन कांग्रेस में फूट पड गयी। इससे आंदोलन कमजोर पड गया। दंगा और राजनैतिक अनिर्णय की स्थिति ने आंदोलन को लगभग ठप्प कर दिया। अंग्रेजों ने नरम दल वालों को छोडकर गरम दल के नेताओं और क्रांतिकारियों पर जमकर गुस्सा उतारा। सन् 1907-1908 तक तथाकथित राजद्रोहात्मक सभाएं रोकने का कानून विस्फोटक पदार्थ कानून, भारतीय दंड विधान संशोधन कानून, समाचार पत्र (उत्तेजन तथा अपराध) कानून और प्रेस एक्ट बना दिय गये ताकि राष्ट्रवादी आकाक्षाओं की घेराबंदी करके उन्हें उग्र होने से रोका जा सके। 1947 का स्वतंत्रता संग्राममार्ले मिंटों के प्रशासनिक सुधार धोखे की पट्टी साबित हुए। वे पूर्ण आजादी पाने की भारतीय इच्छा वो कहा शांत कर सकते थे? इसलिए इसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए सन् 1916 में ‘होम रूल आंदोलन’ शरू हुआ। लखनऊ समझौते के तहत स्वशासन की मांग की गयी। कांग्रेस ने स्पष्ट कहा “समय आ गया है कि महामहिम सम्राट यह घोषणा करे कि ब्रिटिश सरकार की नीति भारत को निकट भविष्य में ही स्वराज देने की है।” क्रांतिकारियों ने धमाके जारी रखें। सन् 1906 से सन् 1917 के बीच 60 हत्याएं या उनकी कोशिशें व 110 डकैतियां व लूटमार इसी सिलसिले में हुई। बंगाल में अनुशीलन वालों ने और महाराष्ट्र में विनायक दामोदर सावरकर के “अभिनव भारत ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। मुजफ्फरपुर, अमदाबाद नासिक, मद्रास के पास तिन्नेवेली, दिल्ली इत्यादि लार्ड मिटों और लार्ड हार्डिंग जैसे बडे अंग्रेज प्रशासकों की हत्या की कोशिश की गयी।लखनऊ के क्रांतिकारी और 1857 की क्रांति में अवधआजादी के दीवाने देश की सीमाएं पार करके ब्रिटेन में भी गरजे। सावरकर ने लदन में ‘इडिया हाउस” के जरिए भारत की आवाज बुलंद की और सन् 1909 में मदन लाल धींगरा ने राजनेतिक ए डी सी कर्जन वायली को गोली मार दी। इस सिलसिले में श्याम जी कृष्ण वर्मा और लाला हरदयाल के क्रांतिकारी कामों को भी नहीं भुलाया जा सकता। हरदयाल ने अमेरीका में गदर पार्टी की स्थापना की जो घोर ब्रिटिश विरोधी पार्टी थी। प्रथम विश्व-युद्ध के दौरान इन क्रांतिकारियों ने भारत की आजादी के लिए विदेशों से सहायता पाने और षड्यंत्र करने के कड़े प्रयास किये। उन्हें आखिरी सफलता नही मिली। प्रवासी सिखों ने ‘कामागाटामारू की घटना में बडी बहादुरी का प्रदर्शन किया। कांग्रेस की कोशिशों से ब्रिटिश साम्राज्य की नैतिक बुनियाद खोखली होती जा रही थी। उधर उधर क्रांतिकारियों ने साबित कर दिया था कि ब्रिटेन की ताकत को चुनौती दी जा सकती है। ब्रिटिश हकुमत के लिए यह काफी चिंता की बात थी।वियतनाम की क्रांति कब हुई थी – वियतनाम क्रांति के कारण और परिणामहोम रूल आंदोलन की बागडोर तिलक और एनी बेसेंट के हाथ में थी। इस आंदोलन ने फूट की शिकार कांग्रेस में भी एकता करा दी। एनी बेसेंटस की नजरबंदी का पूरे देश में कड़ा विरोध किया गया। बाल गंगाधर तिलक पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाये गये पर ये दोनों नेता और भी लोकप्रिय होते चले गये। प्रथम विश्व-युद्ध में ब्रिटन की मदद करने के बदले कुछ हासिल होने की उम्मीद लगाये बैठे लोगों को भी निराशा ही हाथ लगी। ब्रिटेन ने सारी मांग एक कान में सुनी ओर निविकार भाव से दूसरे कान से निकाल दी। आंदोलन के बदले जो मिला वह था– माटग्यू चम्सफार्ड सुधार यानी अत्यंत सीमित मात्रा में भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण।क्यूबा की क्रांति कब हुई थी – क्यूबा की क्रांति के नेता कौन थेसन् 1919 में दूसरा आंदोलन फूट पडा। मुसलमान तुर्की के खलीफा से युरोपियनो की बदसलूकी से दुखी थे और हिन्दू डोमीनियन राज्यो (जैसे दक्षिण अफ्रीका) में भारतीयों के प्रति अंग्रेजी रवेये से बेहद नाराज थे। असहयोग और खिलाफत आंदोलन के दौर ने मोहन दास करमचंद गांधी के व्यक्तित्व को राष्ट्रीय मंच पर उभारा। गांधीजी 25 वर्ष तक दक्षिण अफ्रीका में रहकर सन् 1915 में भारत आय थे। वे पहले समझते थे की ब्रिटिश साम्राज्य कुल मिलाकर एक भलाई करने वाली ताकत है। वे खुद को गर्व से राजभक्त कहते और जोश के साथ गॉड सेव द किंग गाते। तर रौलट समिति की सिफारिशों के दमनकारी सुझावों ने उनका दिमाग बदल दिया। वे अंग्रेजी साम्राज्य के विरोधी बन गये। उन्होंने इसे शैतानियत का प्रतीक करार दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन यानी सत्याग्रह होने लगा सरकार ने इसका कसकर दमन किया। दंगे भड़काए ग्रे पर राष्ट्रीय आंदोलन की धार इस सान पर चढ़कर और तेज हो गयी।चीन की क्रांति किस वर्ष हुई थी – चीन की क्रांति के कारण और परिणामरोलट एक्ट के खिलाफ 13 अप्रेल को पंजाब के जलियांवाला बाग में सभा करने के लिए 15 से 25 हजार तक लोग जमा हुए। ब्रिग्रेडियर जनरल डायर ने बिना चेतावनी दिए उन पर अंधाधुंध गोलिया चलवायी। सरकार ने कहा 379 मरे पर गैर सरकारी आंकड़े हजारों तक पहुच गये थे। इसके अलावा और भी कई जगह गोलियां चलायी गयी। दमन हुआ। पर जलियांवाला बाग में बहे खून को सारे देश ने अपने दामन पर टपकता हुआ महसूस किया। रवींद्रनाथ टैगोर ने सरकारी खिताब त्याग दिया। गांधी जी न हिंसा की घटना के कारण सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करने की घोषणा कर दी। चौरी-चौरा की घटना ने उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुचाया था। चौरी -चौरा (गोरखपुर) में उग्र भीड ने एक थाने में आग लगा दी थी जिससे वहा तैनात सिपाही इत्यादि जलकर मर गये थे। केरल में हुए मापला विद्रोह के कारण उत्तर भारत में साम्प्रदायिक घटनाएं भी भड़क उठी थी। सरकार ने आंदोलन में आयी रुकावट का फायदा उठाकर गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया और छः साल की सजा दी।अमेरिकी क्रांति कब हुई थी – अमेरिकी क्रांति के कारण एवं परिणाममाटेग्यू -चेम्सफार्ड सुधारों के तहत बनी विधान-सभाओं में काम करने के लिए 1 जनवरी, 1923 को स्वराज पार्टी बनी थी। कांग्रेस ने इन विधान सभाओं का बॉयकाट कर दिया था इसलिए स्वराज पार्टी ने चुनाव लडा और भारी सफलता प्राप्त की। स्वराज पार्टी में मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास की बडी भूमिका थी। ये लोग विधानसभाओं में ब्रिटिश हकुमत से संघर्ष कर रहे थे। पर चितरंजन दास का निधन होने से महाराष्ट्र के कुछ सदस्यों द्वारा अनुशासन तोडने पर स्वराज पार्टी में फूट पड गयी।क्यूबा की क्रांति कब हुई थी – क्यूबा की क्रांति के नेता कौन थेसन् 1924 तक आते आते कांग्रेस के अंदर विभिन्न विचारों की अभिव्यक्ति मिलने लगी थी। इनमें एक कम्युनिस्ट गुट भी था जिसकी अगुवाई श्रीमान अमित डाग, मुजफ्फर अहमद, शौकत उस्मानी और नलिन गुप्ता के हाथ में थी। असहयोग आंदोलन की वापसी और स्वराज पार्टी की विधान सभाओं में असफलता ने पंजाब और बंगाल में हिंसक युवकों का यह तर्क प्रदान किया कि गांधी इत्यादि के तरीकों से कुछ हासिलनही होने वाला। बंगाल और पंजाब में हिंसावादी तर्ज पर कांतिकारी आंदोलन फनफना कर खडा हो गया। बम फेंके गये, सरकारी ट्रेन डकैती हुई, लाहोर के डीएसपी साडस को गोली से उड़ा दिया गया और विधान सभा में बम फेंका गया। ये कारनामे हिदुस्तान समाजवादी प्रजातांतिक सेना के क्रांतिकारियों ने किये। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव व राजगुरु के नाम बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गये। चाफकर बंधुवा, सुदीराम बोस व मदनलाल धींगरा के बाद ये नौजवान आग के शोले बनकर हर भारतवासी की आत्मा में दहकने लगे। डाग वगेरह पर राजद्रोह का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया गया जो मेरठ षड्यंत्र केस के नाम से जाना गया। साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय ने अपनी कुर्बानी दी।पेरिस कम्यून इन हिन्दी – पेरिस कम्यून क्रांति के बारे मेंसन् 1930 के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस नेपूर्ण स्वतंत्रता का ध्येय घोषित कर दिया। रावी के तट पर आजाद भारत का झंडा लहराया गया। यह डोमीनियन की हैसियत की मांग से बहुत आगे का कदम था। 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस घोषित हुआ। देश के हजारों गांवों और शहरों में बडी बडी सभाएं करके स्वतन्त्रता का संकल्प दोहराया गया। 12 मार्च 1930 को सुबह छः बजे साबरमती आश्रम में 78 लोगों के साथ गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए एतिहासिक डांडी मार्च शुरू किया। 241 मील की यात्रा के बाद तीन अप्रेल की शाम को गांधी जी और उनके साथी डांडी पहुंचे। अगले दिन गांधीजी ने समुंद्र के जल में स्नान किया और वापस आकर नमक ढला उठाया और नमक कानून टूट गया। कानून तोड़ने वालो का सारे देश में कठोरता से दमन किया गया। जवाहर लाल नेहरू और खान अब्दुल गफ्फार खां गिरफ्तार कर लिये गये। पेशावर में गढ़वाल राइफल के नायक चंद्र सिंह गढ़वाली ने मुसलमानों की भीड़ पर गोलियां चलाने से इंकार कर दिया। सेना में राष्ट्रीय भावनाओं की यह पहली और अत्यन्त प्रबल अभिव्यक्ति थी। अंग्रेजों ने 67 अखबार और 55 छापसान बंद कर दिये। एक लाख लोग जेलों में पहुंच गए। बंबई में कपड़े की 16 मील बंद हो गई जिनके मालिक अंग्रेज थे। गांधी जी के जेल जाने के बाद भी आंदोलन नहीं थमा। नमक सत्याग्रह ने सारी दुनिया का ध्यान भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ खींच लिया। अंग्रेजों ने ध्यान बंटाने के लिए लंदन में गोलमेज सम्मेलन किया। गांधी जी इविन समझौते के तहत कांग्रेस के लोग भी गांधी जी के नेतृत्व में दूसरी गोलमेज बैठक में शामिल हुए पर उनके हाथ कुछ नहीं लगा।फ्रांसीसी क्रांति कब हुई थी – फ्रांसीसी क्रांति के कारण और परिणामइस बीच में एक ऐसी घटना हुई जिसने सारे देश की भावनाओं को ठेस लगाई। यह घटना थी सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी। लोगों को उम्मीद थी कि गांधी जी इविन समझौते के जरिए भगत सिंह को फांसी से बचा लेंगे, लेकिन इस समझोते मे हिसंक कारवाइयों के चल रहे मुकदमों को वापस लेने का प्रावधान नहीं था। तीनों क्रांतिकारियों ने बेमिसाल बहादुरी के साथ बलिदान दिया। सारे देश ने आंसू बहाये। तीनों का नाम आजादी के आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया।तुर्की की क्रांति कब हुआ – तुर्की की क्रांति के कारण और परिणामसन् 1935 तक स्वतंत्रता आंदोलन ने सफलता की दिशा में कई कदम उठाये। सन्1937 में कांग्रेस ने सात प्रांतों में शासन संभाला। उसकी सारी सुधार योजनाएं आर्थिक अभाव की दीवार से टकराकर चूर चूर हो गयी। दरअसल आमदनी का ज्यादातर हिस्सा केन्द्र सरकार ले लेती थी। द्वितीय विश्व-यद्ध की शुरुआत तक भारतीयों को अंग्रेजों की हर चाल समय में आ गयी और उनका मोह पूरी तरह भंग हो गया। प्रथम विश्व-युद्ध की तरह अब काई भी अंग्रेजों की मदद करने को तैयार न था। सन् 1942 तक आते-आते धुरी राष्ट्र जीत पर जीत हासिल करने लगे थे। लग रहा था कि जर्मन जापानी और इतालवी सैनिक ब्रिटेन को उधेड कर रख देगें। अगस्त में कांग्रेस ने करो या मरो का नारा देकर क्रांति का बिगुल बजा दिया। 9 अगस्त को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। सरकार ने आंदोलनकारियों का दमन किया। इससे जनता गुस्से में आ गयी। डाकघर, तारघर, टेलीफोन, रेल आदि उसके कोप के मुख्य निशाना बने। पुलिस और अदालतों के प्रति भी लोगों में काफी नफरत थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल मध्य प्रांत इत्यादि में बकायदा बगावत हो गयी। जयप्रकाश नारायण ने हजारी बाग जेल से भाग कर भूमिगत होकर आंदोलन चलाया और एक योद्धा की ख्याति अर्जित कर ली।इंग्लैंड की क्रांति कब हुई थी – इंग्लैंड की क्रांति के कारण और परिणामबंगाल की राजनीति की देन सुभाष चंद्र बोस अपने रडीकल विचारों के कारण सन् 1939 में गांधीजी की अनिच्छा के बावजूद कांग्रेस के नेता चुने गये थे। उनका ख्याल था कि अंग्रेजों को छः महीने के भीतर आजादी दे देने का अल्टीमेटम दे देना चाहिए। कांग्रेस ने यह प्रस्ताव नही माना। सुभाष चंद्र बोस गांधी जी के अंहिसा वाले विचारों और नेहरू के धुरी राष्ट्र विरोधी विचारों से सहमत नही थे। गांधी जी से तीव्र मतभेदों के चलते उन्होंने कांग्रेस छोड दी और फारवर्ड ब्लॉक बनाया। सुभाष चंद्र बोस को सन् 1940 में बिना मुकदमा चलाये ही जेल में ठूस दिया गया। अंग्रेज उन्हें काफी खतरनाक समझते थे। 17 जनवरी, 1941 को व अपने घर की कडी नजरबंदी से भाग निकले और भेस बदलकर यात्रा करते हुए काबुल, मास्को और वहा से बर्लिन पहुंच गये। उनकी हिटलर से बाचीत हुई। पर हिटलर ने स्वतंत्र भारत की उनकी योजना को नही माना। बोस ने जापान जाने की योजना बनायी। एशिया मे जापान की जीतों और युरापीय ताकतों की पराजय ने रास बिहारी बोस को काफी उत्तेजित किया। उन्होने 28 30 मार्च 1942 को टोक्यो में मम्मेलन किया बैंकाक में दूसरी सभा हुई जिसमें इंडिया इंडिपेंडेंटस लीग बनी। उसका नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस को मिला। मलोया में जापानी सेना के सामने हथियार डालने वाले ब्रिटिश सैनिक भारतीय जवानों और अफसरों की मदद से आजाद हिंद फौज बनी। उतम 40001 युद्ध बंदी शामिल होने के लिए तैयार हो गये। टोक्यो में सुभाषचंद्र बोस जापानी प्रधानमंत्री से मिले। आजाद हिंद फौज को शुरू में थोडी सफलता भी मिली पर उसकी ताकत पूरी तरह जापान की मोहताज थी। जापानियों के पतन के साथ ही उसका मनोबल भी टूट गया। 18 अगस्त को फारमासो से उडे सुभाष चंद्र बोस का विमान दुर्घटना में रहस्यमय परिस्थितियों में निधन हो गया। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद भारत की एक काम चलाऊ सरकार भी बनाई थी।गुलाम विद्रोह जन क्रांति – स्पार्टाकस की वीरता की कहानीद्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज और उसके मित्र राष्ट्र जीते जरूर पर ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया। उसकी सैनिक और औद्योगिक क्षमता को भारी नुक़सान उठाना पड़ा। देश भर में उमड़ रही राष्ट्रीयता की भावना को देखते हुए उसने भारत को आजादी देने में ही अपनी भलाई समझी। अंग्रेज सन् 1916 से ही बड़ी चालाकी से परिस्थितियों को जटिल बनाने के लिए हिन्दू मुसलमानों को आपस में लड़ाने की नीति अपनाते रहे थे। कांग्रेस ने पहले इसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सर सय्यद अहमद खां और मुहम्मद अली जिन्ना जैसे लोगों को महत्व नहीं दिया गया। अंग्रेज भी कूटनीति में आखिर मंजे हुए खिलाड़ी थे। उन्होंने हिन्दू मुस्लिम कार्ड खेलकर भारत विभाजन की परिस्थितियां तैयार कर दी। लॉर्ड माउंटबेटन ने वायसराय के रूप में वह कूटनीति खेली कि कांग्रेस को आखिर विभाजन मानना पड़ा। और इस तरह भारत के दो टुकड़े कर एक अलग नया राष्ट्र पाकिस्तान बन गया। लेकिन भारत को राजनैतिक आजादी भी मिल गई। 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा झंडा लहराया। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8940″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध जन क्रांति विश्व की प्रमुख क्रांतियां