हैदराबाद का इतिहास और दर्शनीय स्थल Naeem Ahmad, February 14, 2023March 24, 2024 तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद मूसी नदी पर स्थित है, यह शहर एक ऐतिहासिक और प्रचीन शहर है। हैदराबाद मौर्य काल से भी पुराना शहर है। चंद्रगुप्त मौर्य ने 305 ई०पू० के शीघ्र बाद इस पर विजय प्राप्त की थी। सातवाहन राजा शातकर्णी ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसके बाद उसके वंशजों गौतमी पुत्र शातकर्णी (106-30 ई०), वशिष्ठपुत्र (130-45 ई०), यज्ञश्री शातकर्णी (165-95 ई०) और अन्यों ने 225 ई० तक यहाँ से राज्य किया। राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम (758-73) के लड़के गोविंद ने वेंगी के चालुक्य राजा विष्णुवर्धन चतुर्थ को हराकर हैदराबाद राज्य के सारे क्षेत्रों को अपने राज्य में मिला लिया था। हैदराबाद का इतिहास हिन्दी में औरंगजेब की सेनाओं ने इसे 1685 ई० में अपने कब्जे में कर लिया और यहाँ लूट-पाट मचाई। मुगल शासक मुहम्मद शाह ने निजाम-उल-मुल्क मीर कमरुददीन को 1713 में यहाँ छह सूबों का सूबेदार बनाया था। 1715 में उसे दिल्ली वापस बुला लिया गया। उसके बाद उसे मुरादाबाद, पटना और उज्जैन का सूबेदार बनाया गया। 1719 में उसे फिर वापस बुला लिया गया और उसे अकबराबाद, इलाहाबाद, मुल्तान तथा बुरहानपुर में से किसी एक सूबे की सूबेदारी स्वीकार करने को कहा गया, परंतु उसने इन्कार कर दिया और दक्षिण जाकर मई, 1720 में असीरगढ़ तथा बुरहानपुर के किलों पर कब्जा कर लिया। उसने अपने विरुद्ध भेजी गई सेना को खंडवा और बालापुर में क्रमशः जून और जुलाई, 1720 ई० में हटा दिया। इसके बाद मुगल शासक ने उसे ही अपना दक्कन का वायसराय बना दिया। सन् 1722 ई० में उसे साम्राज्य का वजीर बना दिया गया। परंतु सम्राट से मतभेद होने के कारण उसने 1724 ई० में दिल्ली छोड़ दी और मुगल सेना को शक्करखेड़ा में हटाकर 1725 ई० में हैदराबाद में निजामशाही शासन की स्थापना कर ली। 1731 में उसे पेशवा बाजीराव ने हरा दिया और उसे मूँगी शिवगाँव की संधि करनी पड़ी, जिसके अनुपालन में उसने पेशवा को चौथ और सरदेशमुखी देने स्वीकार किए। 1737 में मुगल सम्राट ने उसे अपना मुख्य मंत्री नियुक्त करके उसे आसफ जाह की पदवी दी। यह पदवी सम्मान में राजा सोलोमन के मंत्री आसफ को प्राप्त सम्मान के बराबर थी। बाजीराव ने उसे 1738 में भोपाल के निकट फिर हराकर उसे दुरई सराय की संधि करने के लिए विवश किया, जिसके द्वारा उसे बाजीराव को मालवा के अतिरिक्त चंबल तथा नर्मदा के बीच का क्षेत्र देना पड़ा। हैदराबादसन् 1739 में नादिरशाह के आक्रमण के समय वह दिल्ली में ही था। 1748 में उसकी मृत्यु हैदराबाद में ही हुई। उसके बाद1750 में मीर मुहम्मद नसीरजंग और 1751 में मुजफ्फरजंग वजीर बने। उनकी तथा 1752 में गाजीउद्दीन खान की मृत्यु भी यहीं हुई। मुजफ्फरजंग फ्रांसीसी सेनापति बूसी के संरक्षण में ही नवाब बन सका था। उसके बाद बूसी ने मीर आसफ-उद्-दौला सलाबतजंग को निजाम बनाया। सलाबतजंग के राज्य पर निगरानी रखने के लिए वह स्वयं भी 7 वर्ष तक हैदराबाद में ही रहा।हैदराबाद रियासत का इतिहास सन् 1758 में उसे वापस बुला लिया गया।तब 1759 में पेशवा बालाजी बाजीराव ने उस पर चढ़ाई कर दी और उसे उदयगिरि के युद्ध में हटाकर उससे असीरगढ़, अहमदनगर, बुरहानपुर,बीजापुर और दौलताबाद के किले तथा 62 लाख रुपए वार्षिक आय की भूमि छीन ली। इस युद्ध के बाद निजाम की शक्ति क्षीण हो गई और मराठों का प्रभाव बढ़ गया। सलाबतजंग के बाद निजाम अली (1762-1803) ने शासन संभाला। 1795 में मराठों ने उसे हराकर यहाँ अपना प्रभुत्व फिर स्थापित कर लिया। 1 सितंबर, 1798 को निजाम ने लार्ड वेल्जली की सहायक संधि पर सबसे पहले हस्ताक्षर किए।निजाम अली के बाद मीर अकबर अली खाँ, सिकंदर जाह (1802-29), नासिरुद्दौला फरखुदाह अली खाँ (1829-57), अफजल-उद्- दौला (1857-69), मीर महबूब अली खाँ (1869-1911), नवाब मीर उसमान अली खां बहादुर फतेहजंग (1911) तथा कासिम रिजवी नवाब बने। चारमीनार का इतिहास देश की स्वतंत्रता के बाद यहां के निजाम कासिम रिजवी ने हैदराबाद को स्वतंत्र राज्य के रूप में रखने का निर्णय लिया। यह राज्य चारों ओर से भारत से घिरा हुआ था तथा इसकी अधिकांश जनता हिंदू थी। लार्ड माउंटबेटन ने इसे भारत में मिलाने के लिए निजाम के साथ एक समझौता किया, परंतु निजाम ने समझौते की शर्तें पूरी करने की बजाय हैदराबाद को स्वतंत्र राज्य के रूप में रखने के दबाव को बढ़ाने के लिए मुस्लिम रजाकारों को भड़का दिया, जिस कारण हैदराबाद में हिंदू-मुस्लिमों के झगड़े हो गए। निजाम ने दिल्ली को जीतने की धमकी तक दे डाली। जून, 1948 में लार्ड माउंटबेटन के इंग्लैंड चले जाने के बाद यह समस्या और भी बढ़ गई। तब भारतीय सेना ने 13 सितंबर, 1948 को हैदराबाद पर आक्रमण करके इसे भारत में मिला लिया। मेजर जनरल जे. ऐन, चौधरी को यहाँ का राज्यपाल बना दिया गया। इस व्यवस्था को निजाम ने भी स्वीकार कर लिया। हैदराबाद के दर्शनीय स्थलहैदराबाद में अनेक दर्शनीय स्थल हैं। यहां बहमनी राज्य के दौरान मो. अली कुतुबशाह द्वारा 1591 में बनवाई गई 180 फूट ऊँची चार मीनार के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। यह मीनार भारतीय, तुर्की और फारसी शैली में बनाई गई है। चार मीनार के पास ही इस शहर की प्रसिद्ध मस्जिद मक्का मस्जिद है। इसे गोलकुंडा के नवाब ने 1614 में बनवाना शुरु किया था, परंतु इसे औरंगजेब ने 1692 में पूरा करवाया। हैदराबाद में फलकनुमा पैलेस, उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हाई कोर्ट, नौबत पहाड़, हुसैन सागर झील, लुंबिनि पार्क, बिड़ला तारामंडल, बाग-ए-आम, विज्ञान चार मीनार, हैदराबाद संग्रहालय, वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर, उस्मान सागर झील, सिटी कालेज, चिड़ियाघर, पुरातात्विक संग्रहालय, अजंता पैलेस, येल्लेश्वरम् पैलेस, बिड़ला मंदिर आदि अन्य दर्शनीय स्थल हैं। यहीं पर प्रसिद्ध सालारजंग म्यूजम है, जिसमें ब्रिटिश काल की संगमरमर और अन्य पत्थरों से बनी अनूठी कलाकृतियाँ, चित्रकारियाँ, पांडुलिपियाँ, हथियार और परिधान आदि देखने को मिलते हैं। इस संग्रहालय का निर्माण हैदराबाद रियासत के प्रधान मंत्री सालारजंग बहादुर तृतीय ने करवाया था। हैदराबाद के 10 किमी पश्चिम में गोलकुंडा का विशाल किला है, जहाँ कुतुबशाही सुल्तानों के मकबरे भी हैं। माधापुर में शिल्पराम (शिल्पग्राम) और 27 किमी दूर शमीरपेट पिकनिक स्थल है। हैदराबाद में उपलब्ध सुविधाएं हैदराबाद देश के अन्य शहरों से वायु, रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। ठहरने के लिए यहाँ अनेक होटल और धर्मशालाएं हैं। स्थानीय यातायात के लिए सिटी बसें, रिक्शे, ऑटो तथा टैक्सियाँ हैं। गर्मियों के मौसम को छोड़कर पूरा साल यहाँ के भ्रमण के लिए उपयुक्त है। एपीटीडीसी तथा आईटीडीसी नगर दर्शन के लिए टूर आयोजित करते हैं। राज्य सरकार के पर्यटन सूचना कार्यालय मुकर्रमजाही रोड पर गगन विहार में, सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन तथा हवाई अड्डे पर हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=’16290′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new 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