हरतालिका तीज व्रत कथा – हरतालिका तीज का व्रत कैसे करते है तथा व्रत क्यो करते है Naeem Ahmad, September 19, 2021March 10, 2023 भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तीज हस्ति नक्षत्र-युक्त होती है। उस दिन व्रत करने से सम्पूर्ण फलों की प्राप्ति होती है। इस व्रत को हरतालिका तीज व्रत कहते है। हरतालिका तीज व्रत के बारे में कहा जाता है कि एक बार।महादेव जी ने पार्वतीजी से कहा था–हे देवी ! सुनो। पूर्व-जन्म में जिस प्रकार इस हरतालिका व्रत को तुमने किया, सो सब कथा में तुम्हारे सामने कहता हूँ। तब पार्वतीजी बोलीं–“अवश्य ही हे प्रभु ! मुझे वह कथा सुनाइये। हरतालिका तीज व्रत की कथा तब शिवजी बोले — उत्तर दिशा में हिमालय नाम का प पर्वत है। वहाँ गंगाजी के किनारे बाल्यावस्था में तुमने बड़ी कठिन तपस्या की थी। तुमने बारह वर्ष पर्यन्त अर्ध-मुखी ( उलटे ) टंगकर केवल धूम्रपान पर रहीं। चौबीस वर्ष तक सूखे पत्ते खाकर रहीं। माघ के महीने में जल में वास किया और वैशाख मास मे पन्ण्चधूनी तपीं। श्रावण के महीने में निराहार रहकर बाहर वास कियां। तुमको इस प्रकार कष्ट सहते देखकर तुम्हारे पिता को बड़ा दुःख हुआ। उसी समय नारद मुनी तुम्हारे दशनों के लिए वहाँ गये। तुम्हारे पिता हिमालय ने अर्ध-पाद्यादि द्वारा विधिवत् पूजन करके नारद से हाथ जोड़कर प्रार्थना की— हे मुनिवर ! किस प्रयोजन से आपका शुभागमन हुआ है, सो कृपाकर आज्ञा कीजिये। तब नारदजी बोले— हे हिमवान! में श्री विष्णु भगवान का भेजा हुआ आया हूँ। वे आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते है। यह सुनकर हिमालय ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया— यदि विष्णु भगवान स्वयं मेरी कन्या के साथ विवाह करना चाहते हैं, तो इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यह सुनकर नारदजी विष्णु-लोक में गये और विष्णु भगवान से बोले— मैंने हिमालय की पुत्री पाती के साथ आपका विवाह निश्चय किया है। आशा है कि आप भी उसे स्वीकार करेंगे। इधर नारदजी के चले जाने पर हिमालय ने पार्वती से कहा— हे पुत्री! मैने श्री विष्णु भगवान के साथ तुम्हारा विवाह करने का निश्चय किया है। पार्वती को पिता का यह वचन बाण के समान लगा। उस समय तो वह चुप रहीं। परन्तु पिता के पीठ फेरते ही अति दुखी होकर विलाप करने लगी। पार्वती को अत्यन्त व्याकुल और विलाप करते हुए देखकर एक सखी ने कहा— आप क्यों इतनी दुःखी हो रही हैं? अपने दुःख का कारण मुझसे कहिये। में उसे दूर करने का उपाय करूँगी। तब पार्वती बोलीं— मेरे पिता ने विष्णु के साथ मेरा विवाह करने का निश्चय किया है, परन्तु मे महादेवजी के साथ विवाह करना चाहती हूँ, इसलिये अब मे प्राण त्यागने के लिये उद्यत हूँ। तू कोई उचित सहायता दे। तब सखी बोली— प्राण त्यागने की कोई आवश्यकता नही। मे तुमको ऐसे गहन वन मे ले चलती हूँ कि जहाँ पिताजी को पता भी न मिलेगा। ऐसी सलाह करके सखी श्री पार्वती जी को घोर सघन वन में लिवा ले गई। जब हिमालय ने पार्वती को घर मे न पाया ते वह इधर- उधर खोज करने लगे, पर कहीं कुछ पता न चला। तब तो हिमालय बड़ा सोच में पड़ गया कि नारदजी से में इस लड़की के विवाह का वचन दे चुका हूँ। यदि विष्णु भगवान ब्याहने आ गये, तो में क्या जवाब दूँगा । इसी चिन्ता और दुख से व्याकुल होकर वह मूर्छित हो भूमि पर गिर पडे। अपने राजा की यह दशा देखकर सब पर्वतों ने कारण पूछा। तब हिमालय राजा ने कहा–मेरी कन्या को न जाने कौन चुरा ले गया है। यह सुनते ही समस्त पर्वतगण जहाँ-तहाँ जंगलों में राजकन्या पाती की खोज करने लगे। इधर पार्वती जी सखी समेत नदी-किनारे एक गुफा में प्रवेश करके शिवजी का भजन पूजन करने लगीं। भादों सुदी तीज को हस्ति नक्षत्र मे पार्वतीजी ने बालू (रेत) का शिवलिंग स्थापित करके, निराहार हरतालिका व्रत करते हुए पूजन आरम्भ किया। रात्रि को गीत-वाद्य ( गाने-बजाने ) सहित जागरण किया। महादेव जी बोले —हे प्रिये ! तुम्हारे हरतालिका तीज व्रत के प्रभाव से मेरा आसन डोल उठा। जिस जगह तुम व्रत-पूजन कर रही थीं, उसी जगह में गया और मैंने तुमसे कहा कि में प्रसन्न हूँ, वरदान मांगे। तब पार्वती (तुम) ने कहा— यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझको अपनी अर्धांगिनी बनाना स्वीकार करें। इस पर महादेवजी वरदान देकर केलाश को चले गये। हरतालिका तीज व्रत सवेरा होते ही पार्वती ने पूजन की सामग्री नदी में विसर्जन की, स्नान किया और सखी-समेत पारण किया। हिमालय स्वयं कन्या को खाजते हुए उसी जगह जा पहुँचे। उन्होंने नदी के किनारे पर दो सुन्दर बालिकाओं के देखा और पार्वती के पास जाकर रुद्रन करते हुए पूछा— तुम इस घोर वन में केसे आ पहुँचीं? तब पाती ने उत्तर दिया— तुमने मुझको विष्णु के साथ विवाहने की बात कही थी, इसी कारण में घर से भागकर यहाँ चली आई हूँ। यदि तुम श्रीशिवजी के साथ मेरा विवाह करने का वचन दो तो में घर को चलूँ , अन्यथा में इसी जगह पर रहूंगी। इस पर हिमालय कन्या को सब प्रकार से सन्तुष्ट करके घर लिवा लाये और फिर कालान्तर में उन्होने विधिपू्र्वक पार्वती का विवाह शिवजी के साथ कर दिया। हरतालिका तीज व्रत क्यों करते है – हरतालिका तीज व्रत करने की विधि शिवजी बोले–“हे देवी! जिस व्रत को करने से तुमको यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है, सो में कथा कह चुका। अब यह भी जान लो कि इस व्रत को हरतालिका तीज व्रत क्यों कहते है। पार्वतीजी ने कहा— हाँ प्रभु! अवश्य कहिये और साथ ही कृपा करके यह बतलाइये कि इस हरतालिका तीज व्रत का क्या फल है, हरतालिका तीज व्रत को करने से क्या पुण्य मिलता है, और हरतालिका व्रत करने की विधि है?। यह सुनकर शिवजी बोले— तुम ( पार्वती ) को सखी हरण कर के बन मे लिवा ले गई, तब तुमने यह व्रत किया इसका (हरत-आलिका) हरतालिका नाम पड़ा। और इसका फल जो पूछा, सो सौभाग्य को चाहने वाली स्त्री इस व्रत को करे। हरतालिका तीज व्रत की विधि यह है कि प्रथम घर को लोप-पोत कर स्वच्छ कर, सुगन्ध छिड़के, केले के पत्रादि को खम्भ आरोपित कर के तोरण पताकाओं से मण्डप को सजाये, मण्डप की छत पर सुन्दर वस्त्र लगाये। शंख, भेरी, मृदंग आदि बाजे बजाये और सुन्दर मंगल गीत गाये। उक्त मण्डप में पार्वती समेत बालुका (रेत ) का शिवलिंग स्थापित करे। उसका षोड़शोपचार से पूजन करे। चन्दन, अद्यत, धूप, दीप से पूजन करके ऋतु के अनुकूल फल-मूल का नेवेद्य अर्पण करे। रात्रि भर जागरण करे। पूजा करके और कथा सुनकर यथाशक्ति ब्राह्मणों को दक्षिणा देवे। वस्त्र, स्वर्ण, गौ, जो कुछ बन पड़े दान करे। यदि हो सके तो सौभाग्यवती स्त्रियों को सौभाग्यसूचक वस्तुएँ भी दान करें। हे देवी! इस विधि से किया हुआ यह हरतालिका व्रत स्त्रियो को सौभाग्य देने और उसकी रक्षा करने वाला है। परन्तु जो स्त्री व्रत रखकर फिर मोह के वश हो भेाजन कर लेवे, वह सात जन्म पर्यन्त बांझ रहती है और जन्म-जन्मान्तर विधवा होती रहती है। जो स्त्री उपवास नहीं करती। कुछ दिन व्रत रहकर छोड़ देती है, वह घोर नर्क में पड़ती है। पूजन के बाद सोने, चांदी या बाँस के बर्तन में उत्तम भोज्य पदार्थ रख कर ब्राह्मण को दान करे, तब आप पारण करे। हे देवि! जो स्त्री इस विधि से हरतालिका व्रत को करती है वह तुम्हारे समान अटल सौभाग्य और सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होकर अन्त में मोक्ष पद लाभ करती है। यदि हरतालिका तीज व्रत न कर सके तो हरतालिका तीज व्रत की कथा को सुनने मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:———– [post_grid id=”6671″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख त्यौहार हमारे प्रमुख व्रतहिन्दू धर्म के प्रमुख व्रत