सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में Naeem Ahmad, July 7, 2021February 19, 2023 सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में यह दुर्ग चन्देल शासकों के अधिकार में था। किन्तु जब पृथ्वीराज चौहान ने महोबा क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर ली उस समय सिरसागढ़ पृथ्वीराज चौहान के हाथो में चला गया। इस दुर्ग की रक्षा के लिये मलखान सिंह नाम का एक बहादुर सैनिक रहा करता था। तथा वही दुर्ग की रक्षा करता था। मलखान राजा -परमाल देव का विश्वास पात्र सैनिक था। तथा उसका वर्णन विस्तार सहित आल्हाखण्ड में उपलब्ध होता है। यह दुर्ग आज भी स्थित है तथा तदयुगीन घटनाओं का साक्षी है। इस दुर्ग के स्मारक व भग्नावशेष आज भी मिलते होते है। सिरसागढ़ का किला में स्थल दर्शनीय किले की प्राचीरयह दुर्ग प्राचीर में स्थित है तथा कही-कहीं पर यह प्राचीर भग्न हो गयी है। इस दुर्ग की प्राचीर से यह पता लगता है कि दुर्ग का निर्माण दसवी शताब्दी से लेकर 42 वीं शताब्दी तक हुआ था। दुर्ग के प्राचीर के बाहर एक गहरी खाई थी जिसमें सदैव जल भरा रहता था। किले का प्रवेशद्वारदुर्ग में प्रवेश करने के लिए प्रमुख द्वार है तथा अनेक दरवाजे और भी जो विभिन्न दिशाओं में है सुरक्षा की दृष्टि से इन प्रवेश द्वारों पर सुरक्षा सैनिक रहा करते थे। सिरसागढ़ का किला आवासीय स्थलसिरसागढ़ किले के अंदर कई भवनों और महलों के भग्नावशेष मिलते है। जिससे तदयुगीन निवासियों की अवस्था का बोध होता है। जलाशयसिरसागढ़ दुर्ग के अन्दर जल की आपूर्ति के लिए अनेक सरोवर, बीहड, और कप, मौजूद है। धार्मिक स्थलसिरसागढ़ दुर्ग के अन्दर हिन्दू और मुसलमानों के धार्मिक स्थल उपलब्ध होते है। जो तदयुगीन धर्म व्यवस्था को उजागर करते है। यह दुर्ग एक ऐतिहासिक स्थल है जिसके सन्दर्भ में विस्तृत विवरण आल्हाखण्ड में उपलब्ध होता है। सिरसागढ़ का इतिहासमलखान सिंह के जीवित रहते परमाल द्वारा सिरसागढ़ में पृथ्वीराज पर आक्रमण करना औचित्य नही रखता और यदि यह माने कि मलखान सिंह इसके पहले ही मारा जा चुका था। तो सिरसागढ़ और उसके आस-पास का भूभाग पृथ्वीराज चौहान के अधिकार में था। सिरसागढ़ के दूसरे युद्ध में परमाल ने मलखान सिंह को सैनिक सहायता नहीं दी थी। इससे भी पहले युद्ध की पुष्टि होती है। हो कसता है कि चौहानों से विरोध का दोषी मलखान सिंह को ठहराकर ही परमाल ने उसे बाण और कमान भेजकर अपनी रक्षा स्वयं करने को कहा हो। कजली के अवसर पर मलखान जीवित था ऐसा रासो (एक) मानता है। भविष्य पुराण का मत है कि कजली उत्सव के पहले ही पृथ्वीराज से युद्ध करते हुये मलखान सिंह मारा गया था। तब फिर भविष्य पुराण का ही यह तथ्य कि पृथ्वीराज ने परमार्दिदेव के आक्रमण से खिन्न होकर उसे अपना परम शत्रु माना था। कहाँ खडा होता है। इस प्रकार मलखान सिंह को मारकर तो पृथ्वीराज स्वयं शत्रुता मोल लेता है। वास्तुतः मलखान सिंह बेतवा के युद्ध के पूर्व मारा जाता है। तभी तो परमाल को आल्हा ऊदल और जयचन्द्र की सहायता की आवश्यकता होती है। जगनिक इसी युद्ध कही प्रस्तवना में आल्हा-ऊदल को मनाने के लिए कन्नौज जाता है और मलखान की मृत्यु का समाचार सुनाता है। आल्हा उदल आते है फिर युद्ध होता है रासो मे यही कथा प्रमुख थी। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—— [post_grid id=”8089″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किले