सावित्री सत्यवान की कथा – सावित्री यमराज की कहानी Naeem Ahmad, April 13, 2020March 23, 2024 मद्रदेश के धर्मनिष्ठ राजा अश्वपति पर उनकी प्रजा बहुत प्रेम रखती थी। अश्वपति भी सत्यवादी और प्रजापालक राजा थे। उनके राज्य में हर प्रकार का अमन चैन था। सभी प्रकार की सुख सुविधा होने के बावजूद भी अश्वपति के कोई संतान नहीं थी। इस बात का उन्हें बडा दुख था। इस दुख की निवृत्ति और संतान प्राप्ति हेतु राजा अश्वपति ने अठारह वर्ष तक कठोर तपस्या की। इस कठोर तपस्या के परिणाम स्वरूप उनकी रानी के गर्भ से एक तेजस्वी कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम सावित्री रखा गया। जो आगे चलकर एक पतिव्रता नारी कहलाई। अपने इस लेख में हम इसी सावित्री सती की कथा, सावित्री सत्यवान की कहानी, सावित्री यमराज की कहानी के बारें विस्तार पूर्वक जानेंगे।शकुंतला दुष्यंत की प्रेम कथा – शकुंतला दुष्यंत की अमर प्रेम कहानीराजा अश्वपति ने बडे ही लाड़ प्यार के साथ पुत्री का पालन पोषण किया। और जब यह पुत्री सयानी हुई तो उसके पिता राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री से स्वयं ही अपने लिए योग्य वर खोजने को कहा।बड़े संकोच भाव से उसने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य कर इस प्रयोजन हेतु कई वृद्ध मंत्रियों व राज्य कर्मचारियों के साथ यात्रा के लिए निकली। विभिन्न देशों, स्थानों व नगरों में घूम-घाम कर जब वह पुनः अपने पितृगृह लौटी तो पिता ने अपनी लाडली पुत्री की पसंद जाननी चाही। राजकुमारी ने अपनी पसंद से जो पति चुना उसके संबंध में जानकारी देते हुए पिता को उत्तर दिया कि — शाल्वदेश के रहने वाले सत्यवान नामक युवक को जो सर्वगुण सम्पन्न है, उसे मैने अपने मन से पति रूप में चुना है।सावित्री सत्यवान की कहानी इन हिन्दीउन्हीं दिनों नारद ऋषि राजा अश्वपति की राज्य सभा में आये, तब राजा ने अपनी कन्या द्वारा सत्यवान को वर चुने जाने की सुचना देते हुए इस संबंध में ऋषि श्रेष्ठ के विचार जानने चाहे। नारद ऋषि ने सत्यवान के संबंध में कहा कि — द्युभत्सेन का वह वीर पुत्र बड़ा तेजस्वी, बुद्धिमान, क्षमाशील, दानी, उदार, सत्यवादी, रूपवान, विनयी, पराक्रमी, जितेंद्रिय इत्यादि समस्त गुणों की खान है। किंतु………….”! कहते कहते नारद जी रूक गए।अश्वपति ने कहा — कहिये कहिये ऋषि श्रेष्ठ रूक क्यो गए ? अपनी पूरी बात बताकर हमें कृतार्थ करिये।नारद जी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा — “हे राजन”! सत्यवान में सर्वगुण होते हुए भी एक दोष है, उसकी आयु थोड़ी है। एक वर्ष बाद ही वह मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा।सावित्री सत्यवानयह सुनकर राजा बड़ा दुखी हुआ, और सोचने लगा कि जिस पुत्री को इतनी कठोर आराधना के पश्चात प्राप्त किया, वही सुंदर कन्या एक वर्ष की अल्प अवधि के बाद ही वैधव्य प्राप्त कर लेगी। राजा अश्वपति ने राजकुमारी को सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए समझाने का बहुत प्रयास किया, परंतु सब विफल रहा।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं सावित्री दृढ़ प्रतिज्ञ थी। अपने निश्चय पर अटल रहने की बात दोहराते हुए उसने कहा — पिताजी पहले मन में निश्चय करके फिर उसे वाणी से प्रकट किया जाता है। और वाणी से प्रकट किए गए निश्चय को फिर क्रिया द्वारा पूर्ण किया जाता है। मैने मन और वाणी से सत्यवान को पति रूप में एक बार चुन लिया है। अब वे दीर्घायु हो या अल्प आयु, गुणवान हो या गुणहीन, रूपवान हो या कुरूप जैसे भी है मेरे है। और स्वयं मैने उन्हें पति रूप में स्वीकार कर लिया है। और एक बार क्षत्रिय बाला जिसे पति रूप में वरण कर लेती है। फिर किसी भी स्थिति में अन्य पुरूष को पति रूप में वरण नहीं कर सकती, मेरा निश्चय अटल है।तारामती की कथा – तारामती की कहानी, राजा हरिश्चंद्र की कहानीआखिर में पुत्री के दृढ़ निश्चय की ही विजय हुई। राजा अश्वपति को सत्यवान के साथ उसकी शादी करानी पड़ी। सत्यवान शाल्वदेश का राजकुमार था, किंतु जिस समय अश्वपति ने अपनी कन्या का उससे संबंध किया उस समय उसके पिता से राज्य छिन चुका था। और वे अपने पुत्र व परिवार के साथ एक तपोवन में तपस्वी का सा जीवन व्यतीत कर रहे थे। राजा अश्वपति की राजकुमारी को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करने में पहले तो संकोच किया, किंतु अश्वपति के पुनः अनुरोध करने पर उन्होंने इस संबंध को सहर्ष स्वीकार कर लिया। सावित्रि मनवांछित पति प्राप्त कर प्रसन्न हुई।देवहूति महर्षि कर्दम की पत्नी, व महाराज मनु की पुत्री – देवहूति की कथा।ऐश्वर्य मे पली राजकुमारी ने पतिगृह में एक साधारण गृहिणी की भांति रहना प्रारंभ किया। राजसी ठाटबाट वाले सारे वस्त्राभूषणों का परित्याग कर वह गेरूए तथा वल्कल वस्त्रों को धारण कर विनम्र भाव से सास ससुर व पति की सेवा मे जुट गई। प्रिय वचनों व शांतभाव से जिस कुशलता के साथ उसने सेवा का परिचय दिया, उससे सब पूर्णतया संतुष्ट थे। सावित्री जैसी पत्नी व बहू पाकर वे अपने आप को भाग्यशाली अनुभव कर रहे थे।संत तुलसीदास का जीवन परिचय, वाणी और कहानीसमय बीतते देर नहीं लगती। एक वर्ष की अवधि के जब तीन दिन शेष रहे तो सावित्री ने निराहार व्रत प्रारंभ किया। सत्यवान के जीवन के आखरी दिन जब शेष रहा तो उस दिन यज्ञ की समिधा हेतु जंगल से लकड़ी लाने सत्यवान रवाना हुआ तो, उसकी पत्नी ने निवेदन किया — स्वामी ! आज आपको अकेले नहीं जाने दूंगी, मै भी साथ चलूंगी। जंगल के कष्टपूर्ण रास्तों पर तुम चल नहीं पाओगी सत्यवान ने उसे मना करते हुए कहा। परंतु पत्नी की अत्यधिक उत्कंठा व आग्रह को अन्ततः उसे स्वीकार करना पड़ा, और दोनों जंगल की ओर चले गये। अभी जंगल में पहुंचकर सत्यवान ने कुछ ही लकडियां काटी थी कि उसे शारिरिक पीड़ा का अनुभव हुआ और यह बात उसने अपनी पत्नी से कही। सावित्री सत्यवान का सिर अपनी गोद में लेकर सहलाने लगी।टेसू और झेंझी की कहानी – टेसू और झेंझी का इतिहासपति का सिर गोद में लिए पृथ्वी पर बैठी सावित्रि ने एक भयंकर आकृति वाले पुरूष को जो हाथ में पाश लिए सत्यवान के शरीर के पास आ खड़ा हुआ उसे प्रणाम करते हुए सावित्रि ने पूछा — आप कौन है और क्या चाहते है। विकराल पुरूष आकृति ने अपना परिचय देते हुए मंतव्य स्पष्ट किया — मै यमराज हूँ ! और तेरे पति की आयु समाप्त हो गई है। इसे लेने आया हूँ। इतना कह यमराज ने सत्यवान के शरीर से प्राणों को निकालकर अपने पाश में बांध लिया और यमलोक की ओर रवाना हुए। सावित्री ने यमराज का अनुसरण किया और उनके पिछे पिछे चल दी। यमराज ने उसे समझाया — जहां तक तुम्हें आना चाहिए था, आ चुकी, अब तू पति सेवा से मुक्त हुई अब लौट जा। सावित्रि ने कहा — पति का अनुसरण करना ही नारी का सनातन धर्म है। पति जहां जाये, जहां रहे, वहीं पत्नी को जाना और रहना चाहिए।भक्त नरसी मेहता की कथा – नरसी मेहता की कहानीसावित्रि ने धर्मनिष्ठ, युक्तिसंगत विनम्र निवेदन करते हुए यमराज से वार्तालाप करने के दौरान अपने ससुर की नेत्र ज्योति, छिने हुए राज्य की प्राप्ति और कुलवृद्धि हेतु सौ पूत्रों की प्राप्ति का वर स्वयं ने भी प्राप्त कर लिया।यमराज ने कहा — तेरी सभी अभिलाषा पूर्ण होगी, अब तू यहां से लौट जा। सावित्री ने यमराज को उनके द्वारा प्रदत्त सौ औरस पूत्रों के वरदान का स्मरण दिलाते हुए निवेदन किया कि यह सत्यवान के बिना संभव नहीं अतः आप सत्यवान के जीवन का वरदान दीजिए, इससे आपके वचन और धर्म की रक्षा होगी। यमराज जो वचनबद्ध हो चुके थे, उन्होंने सत्यवान को यम पाश से मुक्त कर चार सौ वर्षों की नवीन आयु प्रदान की। इस प्रकार सावित्रि ने यमलोक से अपने पति सत्यवान को पुनः प्राप्त करने में सफलता हासिल की।मीराबाई का जीवन परिचय और कहानीनारी जिसे हमारे यहां के अधिकांश लोग मुक्ति मार्ग का बंधन मान बैठे है। और इस विचार धारा के अनुयायी प्रायः शास्त्रों, संतों व धर्म गुरूओं की उक्तियों द्वारा इस बात को पुष्ट करने का प्रयास करते आये है। परंतु वे यह भूल जाते है कि यहां की नारी ने ही अपने पतियों को पतिव्रत्य के प्रभाव से मृत्यु पाश तक से मुक्त कराया है। जिसका उदाहरण सावित्री सत्यवान की कहानी में हमें देखने को मिलता है। नारी बंधंनदायनि कैसे हुई? नारी तो सदैव मुक्तिदायिनी रही है। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:–[post_grid id=”9109″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... प्राचीन काल की नारी प्राचीन देवियां