शौरीपुर बटेश्वर श्री दिगंबर जैन मंदिर – शौरीपुर का इतिहास Naeem Ahmad, April 17, 2020March 16, 2024 शौरीपुर नेमिनाथ जैन मंदिर जैन धर्म का एक पवित्र सिद्ध पीठ तीर्थ है। और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की जन्म स्थली है। शौरीपुर बटेश्वरनाथ से 4किमी की दूरी पर जंगलों में स्थित है। बटेश्वरनाथ हिन्दू धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ होने के साथ ही अतिशय क्षेत्र भी है। बटेश्वरनाथ में भगवान शिव के 108 मंदिर है। लेकिन अपने इस लेख में हम जैन तीर्थ शौरीपुर के बारे में जानेंगे। शौरीपुर भगवान नेमिनाथ का दिगंबर जैन मंदिर है। जैन समुदाय में इस स्थान का बहुत बड़ा महत्व है। बडी संख्या में यहां जैन श्रृद्धालु वर्ष भर आते रहते है। शौरीपुर जैन तीर्थ का महत्वराजा समुद्रविजय की रानी शिवा के गर्भ से श्रावण सुदी 6 को इस शौरीपुर (प्राचीन नाम शौर्यपुर ) की इस पवित्र धरा पर भगवान नेमिनाथ जिनेन्द्र 22वें तीर्थंकर का जन्म हुआ था। उनके जन्म के समय इंद्र ने रत्नों की वर्षा की थी। भगवान नेमिनाथ बचपन से ही संसार से विरक्त प्रकृति के थे। जूनागढ़ सौराष्ट्र के राजा उग्रसेन की पुत्री से उनका विवाह निश्चित हुआ था। विवाह के लिए जाते समय अनेक मूक पशुओं की करूणा क्रदंन से दुखी होकर नेमिनाथ जी ने कंकण आदि बंधन तोड़ फेके और वही गिरनार पर्वत पर जिन दीक्षा ग्रहण कर दिगंबर साधु हो गये। तत्पश्चात घोर तपस्या कर आपने केवलज्ञान प्राप्त किया और अनेक देशों की यात्रा कर अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। अंत में गिरनार पर्वत पर ही आपने निर्वाण प्राप्त किया। इस प्रकार यह पुण्य भूमि भगवान नेमिनाथ की गर्भ जन्म भूमि है। यहां विमलासुत, धन्य एवं यम नामक मुनियों का निर्वाण और सुप्रतिष्ठ आदि मुनियों को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। यह स्थान कर्ण का जन्म स्थान और मूल संधी भट्टारकों का पट्ट स्थान होने से परम पवित्र एवमं ऐतिहासिक भव्य स्थान है। बटेश्वर का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ शौर्यपुर बटेश्वरनाथबाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के तीर्थ में हरिवंश में एक प्रतापी राजा हुआ जिसका नाम यदु था। इसी यदु से यादव वंश चला। यदु का पुत्र नरपति हुआ। नरपति के दो पुत्र हुए, शूर और सुवीर। सुवीर को मथुरा का राज्य मिला और शूर ने शौर्यपुर (वर्तमान नाम शौरीपुर) बसाया। शूर से आन्धकवृष्णि हुए और सुवीर से भोजखवृष्णि। शौर्यपुर कुशद्य देश की राजधानी और सर्वाधिक समृद्ध नगरी थी, यह नगरी शूरसेन जनपद से जिसकी राजधानी मथुरा थी, कौशांबी, श्रावस्ती जाने वाले मार्ग पर अवस्थित थी। कुशद्य छोटा सा ही जनपद था। यही बाद में भदावर कहलाने लगा।उज्जैन का इतिहास और उज्जैन के दर्शनीय स्थलउस काल में यदुवंशियों के दो राज्य थे। एक शूरसेन जनपद जिसकी राजधानी मथुरा थी और दूसरा कुशद्य जनपद जिसकी राजधानी शौर्यपुर थी। शौर्यपुर के नरेश आन्धकवृष्णि की महारानी सुभद्रा से दस पुत्र और दो पुत्रियां हुई। इसी प्रकार मथुरा के राजा भोजखवृष्णि की पदमावती नामक रानी से तीन पुत्र हुए। बाद में दोनों चचेरे भाईयों ने सुप्रसिद्ध केवली के पास जाकर मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली।अहिच्छत्र जैन मंदिर – जैन तीर्थ अहिच्छत्र का इतिहासआन्धकवृष्णि और भोजखवृष्णि द्वारा मुनि दीक्षा धारण करने के पश्चात मथुरा का शासन भोजखवृष्णि के पुत्र उग्रसेन ने और शौर्यपुर का शासन आन्धकवृष्णि के पुत्र समुद्रविजय ने संभाला। उसके बाद उग्रसेन के कंस नामक पुत्र तथा देवकी और राजमती पुत्रियां हुई। और समुद्रविजय की महारानी शिवा देवी से नेमिनाथ हुए, और समुद्रविजय के सबसे छोटे भाई वासुदेव के बलराम और कृष्ण हुए। (इसीलिए भगवान नेमिनाथ और भगवान श्रीकृष्ण चचेरे भाई हुए) नेमिनाथ बाइसवें तीर्थंकर हुए, बलराम और कृष्ण क्रमशः अंतिम बलभद्र और नारायण थे। इन महापुरुषों के उत्पन्न होने के पूर्व में ही शौर्यपुर का प्रभाव, वैभव आदि बढ़ने लगा था।श्री दिगंबर जैन मंदिर सिद्ध क्षेत्र शौरीपुरकंस ने अपने पिता को नगर के मुख्यद्वार के ऊपर कारागार में डाल दिया। उस युग में सबसे प्रभावशाली नरेश जरासंध था। जो राजगृह का अधिपति था। जरासंध ने अपनी पुत्री जीवद्याशा का विवाह वासुदेव के कहने से कंस के साथ कर दिया। कंस वासुदेव के इस अभार से दबा हुआ था। अतः उसने अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव के साथ कर दिया। और अत्यंत आगृह करके वासुदेव और देवकी को मथुरा रहने के लिए राजी कर लिया। इस समय तक वस्तुतः मथुरा और शौर्यपुर राजगृह नरेश जरासंध के मांडलिक राज्य थे।सैयद हसन इमाम का जीवन परिचय हिन्दी मेंनिर्मित्त ज्ञान से यह जानकर कि कृष्ण द्वारा मेरा वध होगा, कंस ने कृष्ण को मारने के लिए कई बार प्रयास किये, किंतु वह सफल नहीं हो सका। तब उसने कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। मथुरा में कृष्ण ने कंस को युद्ध में हरा समाप्त कर दिया। अब यादवों का राज्य एक प्रचंड शक्ति के रूप में भारत के राजनीतिक मानचित्र पर उभरा। मथुरा उसका शक्ति केंद्र बन गया था। उस समय भी महाराज समुद्रविजय शौर्यपुर में रहकर राज्य शासन चला रहे थे।मरसलगंज प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर आतिशय क्षेत्र तीर्थअब जरासंध की ओर से यादवों पर आक्रमण होने लगे। एक बार जरासंध विशाल सेना लेकर स्वयं युद्ध करने चला साथ में अनेक राजा थे। उस समय वृष्णिवंश और भोजवंश के प्रमुख पुरुषों ने रणनीति पर विचार किया और निश्चय किया कि इस समय हम लोगों के लिए पश्चिम दिशा की ओर जाकर कुछ दिनों तक चुप बैठे रहना ही उचित है। ऐसा करने से कार्य की सिद्धि अवश्य होगी। यह निश्चय होते ही वृष्णिवंश और भोजवंशी लोगों ने मथुरा और शौर्यपुर से प्रस्थान कर दिया। मथुरा और शौर्यपुर की प्रजा ने भी स्वामी के प्रति अनुराग वश उनके साथ ही प्रस्थान कर दिया। उस समय अपरिमित धन से युक्त अठारह कोटि यादव से बाहर चले गये थे।आगरा जैन मंदिर – आगरा के टॉप 3 जैन मंदिर की जानकारी इन हिन्दीइस निष्कासन के समय नेमिनाथ भगवान बालक ही थें। यादवों ने पश्चिम समुद्रतट पर जाकर द्वारका नगरी बसायी। भोजवंश उग्रसेन को गिरनार का राज्य दे दिया। गये हुए यादव पुनः शौर्यपुर या मथुरा नहीं लौटे। महाभारत के पश्चात ये नगर पांडवों के ताबे में आ गये। पश्चात कालीन इतिहास में मथुरा समय समय पर इतिहास पर अपना प्रभाव अंकित करता रहा। किन्तु शौरीपुर संम्भवतः इतिहास की कोई निर्णायक भूमिका अदा करने की स्थिति में नहीं रह गया था। प्राचीन श्री दिगंबर जैन मंदिर सिद्ध क्षेत्रप्राचीन शौरीपुर नगर धीरे धीरे उजड़ गया और केवल उसके ध्वंसावशेष ही बचे हुए है। इस क्षेत्र की प्राचीनता के स्मारक केवल जैन मंदिर ही रह गये है। इनमें सर्व प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर है। इसका जीर्णोद्धार समय समय पर होता रहा है। एक मंदिर जिसे आदि मंदिर कहते है। उसका निर्माण सन् 1667 में हुआ था। दिगंबर जैन मंदिर के भीतर की दीवार पर एक शिलालेख है। जिसके अनुसार मंदिर का निर्माण संवत् 1724 वैशाख वदी 13 को भट्टारक विश्वभूषण के उपदेश से हुआ।देवगढ़ का इतिहास – दशावतार मंदिर, जैन मंदिर, किला कि जानकारी हिन्दी मेंबरूवा मठ :- यह मंदिर कुछ सीढियां चढ़कर है। एक बड़ा चबुतरा है। उसके आगे यह मंदिर है। यहाँ का सबसे प्राचीन मंदिर कहलाता है। यहां की कुछ प्रतिमाएं चोरी हो गयी और कुछ मध्य मंदिर में विराजमान कर दी गई। तब आगरा के स्वर्गीय सेठ सुमेरचंद जी वरोल्या के पुत्र सेठ प्रताप चंद्र जी ने भगवान नेमिनाथ की अत्यंत भव्य प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई। यह काले पाषाण की कायोत्सर्गासन में है। इसकी आवगाहना पीठासन सहित आठ फुट है। इसके सिर पर पाषाण का छत्र है। चरणपीठ पर आमने सामने दो सिंह बने हुए है। बीच में शरवका लाछन है।त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव – बड़ा गांव जैन मंदिर खेडका का इतिहासशंख ध्वज मंदिर:– यह मंदिर दूसरी मंजिल पर है। सामने वाले गर्म गृह मे चार वेदियां है। मूलनायक भगवान नेमिनाथ मध्यकी वेदी में विराजमान है। उसके पिछे बायीं ओर की वेदी में एक खडगासन प्रतिमा बलुआ पाषाण की है। आवगाहना 3 फुट है। चरणो के दोनो ओर चमरवाहक खडे है। सिर के दोनों ओर देवियां हाथो में परिजात पुष्पों की माला लिए हुए खडी है। इस मूर्ति पर कोई लाछन या लेख नहीं है। बटेश्वर अतिशय क्षेत्र – अजितनाथ दिगंबर जैन मंदिरबटेश्वर के दिगंबर जैन मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि जब शौरीपुर यमुना नदी के तट से अधिक कटने लगा और बीहड़ हो गया तब उक्त भटटारक जी ने बटेश्वर में विशाल मंदिर और धर्मशाला बनवाई। यह मंदिर महाराज बदन सिंह द्वारा निर्मापित घाट के ऊपर व.स. 1737 में तीन मंजील का बनवाया गया था। उसकी दो मंजिलें जमीन के नीचे है। इस मंदिर में महोबा से लायी हुई भगवान अजितनाथ की पांच फुट ऊंची कृष्ण पाषाण की सातिशय पदमासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा परिमाल राज्य के आल्हा ऊदल के पिता जव्हड ने करायी थी।लोद्रवा जैन मंदिर का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ लोद्रवा जैन टेंपलइस मंदिर के संबंध में एक किवदंती बहुत प्रचलित है। एक बार भदावर नरेश ने भटटारक जिनेन्द्र भूषण जी से तिथि पूछी तो भूल से अमावस्या को पूर्णिमा कह गये। किंतु जब उन्हें अपनी भूल प्रतीत हुई तो भूल को सत्य सिद्ध करने के लिए मंत्र बल से एक कांसे की थाली आकाश में चढा दी जो बारह कोस तक चंद्रमा की तरह चमकती थी। इस बात का पता ब्राह्मणों को लग गया और उन्होंने महाराज को यह बात बता दी। इससे वे अप्रसन्न नही हुए बल्कि उलटे प्रसन्न ही हुए और उन्होंने भटटारक जी से सहर्ष कुछ मांगने का आग्रह किया तब भटटारक जी ने मंदिर बनाने की आज्ञा मांगी। महाराज ने स्वकृति तो दे दी किंतु ब्राह्मणों द्वारा उसमें बाधा डाल दु गई। फलतः यह आज्ञा संशोधित रूप में इस प्रकार आयी कि मंदिर यमुना की बीच धारा में बनाया जाये। भटटारक जी ने इस आज्ञा को स्वीकार कर लिया और यमुना की धारा में ही स्वयं खडे होकर मंदिर बनवाया। यद्दपि अब यमुना वहां से कुछ दूर हट गई है। किंतु वर्षा ऋतु में अब भी मंदिर यमुना में डूब जाता है। जैन धार्मिक स्थलों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=”7632″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश तीर्थ स्थलउत्तर प्रदेश पर्यटनजैन तीर्थ स्थलतीर्थतीर्थ स्थल