शकुंतला दुष्यंत की प्रेम कथा – शकुंतला दुष्यंत की अमर प्रेम कहानी Naeem Ahmad, April 14, 2020March 23, 2024 शकुंतला दुष्यंत की प्रेम कहानी की शुरुआत– एक बार राजा दुष्यन्त शिकार को निकले। मृग का पिछा करते हुए वे बहुत दूर निकल गए। मृगया के उद्देश्य से वह एक आश्रम में प्रविष्ट हुए। राजा दुष्यंत का एक आश्रम वासी ब्रह्मचारी ने अभिवादन करते हुए निवेदन किया — राजन ! यह महात्मा कण्व का आश्रम है। मृगया यहां वर्जित है। इस तपोभूमि में सभी प्राणी अभय है। आइए आप ऋषि का आतिथ्य स्वीकार करें। राजा दुष्यन्त ने ब्रह्मचारी का आमन्त्रण स्वीकार कर लिया।शकुंतला दुष्यंत की कहानीमहर्षि कण्व आश्रम में नहीं थे, वे सोम तीर्थ गये हुए थे। आश्रम पर उनकी पालित पुत्री शकुंतला ने अतिथि राजा दुष्यन्त का स्वागत किया और मधुर कन्द तथा फल आहार हेतु प्रस्तुत किये। मृगया की थकान से थका हारा राजा दुष्यंत, शकुन्तला के मधुर अतिथि सत्कार से संतुष्ट और प्रभावित हुआ, साथ ही शकुन्तला के सौंदर्य पर मुग्ध भी। इसलिए आतिथ्य ग्रहण के उपरांत दुष्यन्त ने शकुन्तला का परिचय पूछते हुए कहा — भद्रे ! तुम कौन हो ? तुम मुनि कन्या तो नहीं जान पड़ती। शकुंतला के माता पिता कौन थेशकुन्तला ने अपना परिचय देते हुए कहा — मै राजर्षि विश्वामित्र की पुत्री हूँ। मेरा जन्म होते ही मेरी माता मेनका ने परित्याग कर दिया था। जंगल में नदी के किनारे शकुन्त पक्षियों द्वारा छाया किये हुए, मुझे महर्षि कण्व ने देखा और दयावश उठाकर आश्रम में ले आये। महर्षि ने मुझे सर्वप्रथम शकुन्त पक्षियों से घिरी हुई पाया था, उसी की स्मृति में मेरा नाम शकुंतला रखा। महर्षि कण्व ने एक पिता की भांति पुत्रीवत् मुझे बड़े स्नेह और प्रेम से पाला है।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं शकुंतला दुष्यंत का विवाह कैसे हुआशकुंतला का परिचय प्राप्त कर और यह जानकर कि वह एक राजर्षि के कुल में उत्पन्न हुई है। राजा उसकी ओर और अधिक आकर्षित हुए और अपना प्रणय निवेदन करते हुए अपनी महारानी बनाने का प्रस्ताव शकुन्तला के सम्मुख रखा। शकुन्तला ने महात्मा कण्व के आने तक प्रतिक्षा करने की की बात कही, पर राजा दुष्यंत प्रतिक्षा करने के इच्छुक न थे। उन्होंने शकुन्तला को समझाया कि महात्मा कण्व तुम्हारे निर्णय से असंतुष्ट नहीं होगें, और फिर राज कन्याएँ तो स्वयं ही अपने पति को चुना करती है। यह कोई अनुचित कार्य नहीं है। शकुन्तला ने जो स्वयं राजा दुष्यन्त के प्रति आकर्षित हो चुकी थी, अधिक प्रतिवाद नहीं किया और राजा दुष्यन्त का प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया। गंधर्व विधि से शकुंतला दुष्यंत ने विवाह कर लिया। राजा दुष्यंत कुछ काल तक आश्रम में रहकर पुनः राजधानी को लौटा। जाते समय दुष्यंत ने शकुंतला को यादगार स्वरूप अपनी अंगूठी प्रदान की और वहां जाते ही शीघ्र उसे बुलाने का आश्वासन भी दिया। शकुंतला दुष्यंत का चित्रणएकांत और खाली समय में अपने प्रिय का अनायास स्मरण होना स्वाभाविक ही है। शकुंतला की भी अब यही स्थिति थी। यदाकदा उसे अपने प्रीति प्राण दुष्यंत की स्मृति हो आती तब वह अपने पति के ध्यान में पूरी तरह खो जाती थी। उसे कही की सुध नहीं रहती थी। एक दिन वह दुष्यन्त के ध्यान में निमग्न हुई बैठी थी, कि आश्रम में दुर्वासा ऋषि आये। शकुंतला ने उनका यथेष्ट सत्कार नहीं किया वह अपने ध्यान में मग्न रही। जिसके फलस्वरूप ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए। क्रोधवश उन्होने उसे शाप दे दिया कि जिसके ध्यान में निमग्न होकर तू बैठी है। और तूने मेरा स्वागत नहीं किया है। वह तुझे भी भूल जायेगा। बाद में ध्यान भंग होने पर शकुन्तला द्वारा क्षमा याचना तथा आश्रमवासियों के निवेदन पर शाप के परिहार हेतु उन्होंने बताया कि किसी यादगार चिन्ह के दिखलाने से उसे पुनः तेरा स्मरण हो जायेगा।शकुंतला को दुर्वासा ऋषि ने श्राप क्यो दियामहर्षि कण्व जब पुनः अपने आश्रम लौटे तो उन्हें शकुंतला के गंधर्व विवाह का सारा हाल ज्ञात हुआ। महर्षि ने विवाहिता शकुन्तला को अपने आश्रम में रखना उचित नहीं समझा, और यह सोचकर कि राजा राजकाज में अधिक व्यस्त होने के कारण इसका ध्यान भूल गये है। अतः अपने शिष्यों के साथ शकुन्तला को राजा दुष्यन्त के पास भेजा। राजा दुष्यन्त के सम्मुख राजसभा में कण्व मुनि के शिष्य उपस्थित हुए और शकुन्तला के आगमन की सूचना दी। दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण राजा दुष्यन्त सब कुछ भूल गया था। शकुन्तला के देखकर उसे पहचानने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, दुष्यन्त ने भरी सभा में शकुन्तला का यह कहकर अपमान किया कि महारानी बनने के लोभ में तुम यह सब जो कर रही हो वह व्यर्थ है। मैने तुम्हें कभी देखा भी नहीं फिर व्यर्थ ही तुम मुझे कलंकित क्यो कर रही हो।अक्षरा देवी सिद्ध पीठ कहां है – अक्षरा सिद्ध पीठ का इतिहासशकुन्तला ने बहुत याद दिलाने कि कोशिश की और यह भी कहा कि आपने प्रेम के चिन्ह के स्वरूप मुझे अपनी मुद्रिका भी दी थी। अपनी प्रेम की यादगार की निशानी शकुन्तला ने दिखानी चाही पर देखा कि हाथ में वह अंगूठी नहीं है। (वह तो मार्ग में शचीतीर्थ में आमचन करते समय गिर गई थी) महाराज मुद्रिका तो कहीं गिर गई पर आपको अपने शब्द तो याद होगें। शकुन्तला ने कई प्रसंगों का उल्लेख किया परंतु दुष्यन्त पर उसका कुछ प्रभाव नहीं पड़ा। दुष्यंत ने कहा — मुद्रिका यदि तुम दिखाओ तो तुम्हारा विश्वास किया जा सकता है। वरना अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कुलटा स्त्रियें ऐसी बाते प्रायः गढ़ा ही करती है।राव मालदेव का इतिहास और जीवन परिचयअपने पति द्वारा अपमानित और परित्यक्त शकुन्तला पुनः वन को लौट चली। उसने आत्मदाह करने की सोची किन्तु गर्भास्थ शिशु का ध्यान कर इस विचार का त्याग किया। अपनी पुत्री को दुखी देख मेनका उसे स्वर्ग में ले गई।शकुंतला की अंगूठी कैसे मिलीशचीतीर्थ में शकुंतला की अंगूठी जो आमचन करते समय अंगुली से निकल गई थी। उसे एक मछली ने निगल लिया था। यह मछली जब मछुआरे द्वारा पकड़ी गई और उसने उसे काटा तो उसके पेट में शकुंतला की अंगूठी प्राप्त हुई। अंगूठी लेकर मछुआरा जौहरी के पास गया। जौहरी ने अंगूठी पर राजा दुष्यंत का नाम देखा तो अंगूठी सहित मछुआरे को कोतवाल के हवाले कर दिया। कोतवाल ने अंगूठी सहित मछुआरे को राजा के सामने प्रस्तुत किया। मछुआरे ने अंगूठी मिलने का सारा वृत्तांत राजा को सुनाया। अंगूठी देखते ही राजा के ऊपर से ऋषि के शाप का प्रभाव अब समाप्त हो चुका था। यह अंगूठी देखते ही उसे शकुन्तला का स्मरण हो आया और उसका जो भरी सभा सभा में अपमान किया था, उससे राजा के मन में बड़ा पश्चाताप हुआ।शकुंतला दुष्यंत का मिलन कैसे हुआदेवासुर संग्राम के समय इंद्र ने राजा दुष्यन्त की सहायता मांगी। स्वर्ग में जाकर दुष्यंत ने असुरों को परास्त किया। वहां से पुनः अपनी राजधानी लौट रहा था, उस समय हेमकूट पर्वत पर कश्यप ऋषि के दर्शनार्थ हेतु रूका। वहां सिंह शावकों के साथ खेलते एक बालक को देखा। राजा को बड़ा विस्मय हुआ। राजा ने बालक का नाम परिचय पूछा। बालक सर्वदमन ने अपना तथा अपनी माता शकुन्तला का नाम बताया। इस तरह शकुंतला दुष्यंत पुनः मिले। राजा दुष्यंत अपने पुत्र और पत्नी को लेकर राजधानी लौटा। यही सर्वदमन शकुंतला पुत्र आगे चलकर पराक्रमी और यशस्वी नरेश भरत के नाम से विख्यात हुआ। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:—[post_grid id=”6671″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... प्राचीन काल की नारी प्राचीन देवियां