वेंकटरमन रामकृष्णन का जीवन परिचय – वेंकटरमन रामकृष्णन महिती इन हिन्दी Naeem Ahmad, May 4, 2020March 15, 2024 एक बार फिर अरबों भारतवासियों के होठों पर आत्म स्वाभिमान की मुस्कराहट खिल उठी। एक बार फिर सारा देश अपनी माटी के एक सपूत की असाधारण ऊपब्धि पर झूम उठा एक बार फिर तिरंगा आसमान में गर्व और उत्साह से लहराकर सारी दुनिया के लोगों की नजरों का तारा बन गया। यह सुहावना अवसर था यह जानने का कि वर्ष 2009 के रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार भारतीय मूल के वैज्ञानिक वेंकटरमन रामकृष्णन को प्रदान किया जायेगा। यू तो भारत भूमि शुरु से ही महान एवं प्रतिभाशाली व्यक्तियों की जननी रही है। जहां अतीत में आचार्य कौटिल्य, आर्यभट्ट, वाराहमिहिर आदि ने भारत के ज्ञान विज्ञान की प्रतिभा को सम्पूर्ण संसार के सामने प्रमाणित किया। वहीं गुलामी के अंधेरे युग में भी गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर और सर चन्द्रशेखर वेंकटरमन ने नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर सम्पूर्ण संसार के सामने यह प्रमाणित कर दिया कि भारत की धरती से विषम परिस्थितियों में भी प्रतिभा का अंकुर फूट सकता है। आधुनिक काल में डॉक्टर हरगोविंद खुराना, सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर, वी.एस नॉयपाल और मदर टेरेसा ने भी इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को प्राप्त कर भारत के गर्व को चार चांद लगाएं है। इसी क्रम में वेंकटरमन रामकृष्णन एक ताजा नाम है। जिन्होंने भारत के कीर्तिध्वज को एक बार फिर सारी दुनिया के सामने ऊंचा कर दिया है। वर्षों से चली आ रही भारत की इस गौरव गाथा को आगे बढ़ाने वाले इस महान भारतीय सपूत वेंकटरमन रामकृष्णन की उपलब्धियां, वेंकटरमन रामकृष्णन की जीवनी, वेंकटरमन रामकृष्णन का जीवन परिचय, जीवन गाथा और अपरिमित धैर्य निश्चित रूप से किसी मनुष्य के दृढ़ निश्चय, अथक परिश्रम और सतत् संघर्षों की ऐसी गाथा है, जो किसी भी मनुष्य के लिए प्रेरणादायक साबित हो सकती है।चक्रवर्ती विजयराघवाचार्य का जीवन परिचय हिन्दी मेंवेंकटरमन रामकृष्णन की महिती गाथा संसार के उस हर प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के सामने जो अपने जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखता है। उस हर युवक के सामने जो अपनी आंखों में भविष्य के सपने सजाए हुए है। यह उदाहरण रखती है कि अगर मनुष्य चाहे तो बड़ी आसानी से हर मुश्किल को पार कर मंजिल तक पहुंच सकता है। वेंकटरमन रामकृष्णन का जन्म एवं परिवारवेंकटरमन रामकृष्णन का जन्म 1952 में एक दक्षिण भारतीय परिवार में हुआ था। तमिलनाडु के कुडडालूर जिले के चिदंबरम नामक स्थान पर जन्मे वेंकटरमन रामकृष्णन के पिता श्री सी.वी रमन वडोदरा विश्वविद्यालय में शिक्षक है तथा माता राजलक्ष्मी गृहिणी है। बचपन से ही इनकी प्रतिभा की झलक साफ तौर पर मिलने लगी थी। अत्यंत कुशाग्र बुद्धि एवं जिज्ञासु प्रवृत्ति के स्वामी रामकृष्णन खेलों में भी अपनी इस बुद्धि का प्रयोग करके अपने साथियों को चमत्कृत कर देते थे। खेलों में भी बालक रमन बालसुलभ खेलों की बजाय बुद्धि और ज्ञान विज्ञान पर आधारित खेलों को ही अधिक महत्व देते थे। कुल मिलाकर यदि कहा जाये कि बचपन से ही उनके अंदर एक वैज्ञानिक बनने का गुण प्रकट होने लगा था तो निःसंदेह यह गलत नहीं होगा। प्रारंभिक व उच्च शिक्षानौ साल की उम्र में रमन अपने पिता के पास वडोदरा आ गये थे। वहां से उनके पिता ने उन्हें प्रारंभिक विज्ञान के अध्ययन के लिए 1960-61 में एडीलायड ऑस्ट्रेलिया भेज दिया। परंतु रमन का मन ऑस्ट्रेलिया में नहीं लगा और मात्र एक साल के अंदर ही वे भारत वापस लौट आए। इस उम्र में भी रामकृष्णन यह बात बहुत अच्छी तरह से समझ रहे थे कि अगर उन्हें एक लंबे और महत्वपूर्ण जीवन संघर्ष का हिस्सा बनना है तो उन्हें थोडा बहुत ही सही अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा। अपने इन विचारों के क्रियान्वयन के लिए रामकृष्णन ने अपनी अंडर ग्रेजुएट की पढ़ाई के लिए नेशनल साइंस टेलेंट स्कॉलरशिप प्राप्त की। अन्नामलाई विश्वविद्यालय से पढ़ाई शुरू करने वाले रामकृष्णन ने 1971 में वडोदरा के महाराजा महाराज सियाजीराव विश्वविद्यालय से फिजिक्स विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली। स्नातक होने के तत्काल बाद ही वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। अमेरिका में ओहियो यूनिवर्सिटी से उन्होंने फिजिक्स में पी.एच.डी की। 1976 में अपनी पी.एच.डी पूरी हो जाने के बाद रामकृष्णन ने कुल दो वर्षों तक कैलिफोर्निया तथा सैन डियोगो यूनिवर्सिटी से जीव विज्ञान की पढ़ाई की। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि भौतिक विज्ञान से पी.एच.डी करने वाले रामकृष्णन का रूख सैद्धांतिक भौतिकी से जीव विज्ञान की तरफ मुड़ा और उन्होंने जीव विज्ञान का अध्ययन किया और अंततः उन्हें विश्व का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार रसायन विज्ञान में प्राप्त हुआ।लाला लाजपत राय का जीवन परिचय हिन्दी मेंरामकृष्णन के नोबेल पुरस्कार तक का यह सफर अत्यंत ही रोमांचक और बिल्कुल किसी ऐसे सफर की भांति है जिसके राही को यह पता हो कि अंततः उसे अपनी मंजिल किस रूप में और कहाँ तक पानी है। रामकृष्णन शुरुआत में भौतिक विज्ञान के छात्र थे। भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों और तथ्यों का आंकलन करते करते वे जीवन जगत के सूक्ष्म रहस्यों को समझने और उसके मौलिक रूप तक पहुंचने के लिए जो जिज्ञासु हो उठे। जीव विज्ञान का अध्ययन करते हुए उन्हें जीवन के मौलिक रहस्यों और उनमें होने वाले रासायनिक परिवर्तनों को ज्ञात करने की जिज्ञासा हुई और वे जैविक रसायन विज्ञान के अध्ययन के प्रति तत्पर हुए। भले ही देखने में हमें तीनों विज्ञानों में पारस्परिक अंतर का बोध होता हो परंतु मूल रूप से ये तीनों ही विज्ञान किसी तरह से एक दूसरे से सम्बद्ध है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण रामकृष्णन का अध्ययन है। उन्होंने अपने इस क्रमबद्ध अध्ययन से यह प्रमाणित कर दिया कि वास्तव में एक वैज्ञानिक के लिए विज्ञान का प्रत्येक क्षेत्र आपस में पूर्ण रूप से सम्बद्ध है।वैवाहिक जीवन व विवाहजब रामकृष्णन जीव विज्ञान का अध्ययन कर रहे थे। तभी उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ले ली थी। इसी दौरान उनका मन बेरा रोजनबेरी जो बच्चों की प्रसिद्ध कहानीकार है से जुड़ने लगा था। रोजनबेरी रामकृष्णन की भावनाओं को भलिभांति महसूस करती थी, तो रामकृष्णन को भी रोजनबेरी की अद्भुत कल्पनाशीलता एवं उनकी भावनाओं से बेहद लगाव था। एक दूसरे की भावनाओं को भलिभांति समझने और उन्हें अनुभूत करने के बाद अंततः दोनों ने वैवाहिक बंधन में बंधकर जीवनभर साथ रहने का निश्चय किया। अपने इस निश्चय के बाद अंततः दोनों ने विवाह कर लिया। उनका बेटा रमन और बहू मेलिसा रियरडान संगीत के क्षेत्र में काम कर रहे है और अच्छा नाम कमा रहे है। रामकृष्णन की खोज की शुरुआतअपने दोस्तों में प्यार से वेंकी कहे जाने वाले रामकृष्णन ने अपने कैरियर की शुरूआत राइबोसोम्स की संरचना एवं कार्य प्रणाली के अध्ययन से शुरू की। वे येल यूनिवर्सिटी में अपने एक परममित्र पीटर मूर के साथ राइबोसोम्स के अध्ययन में पूरी तरह जुट गए।वेंकटरमन रामकृष्णनराइबोसोम मूल रूप से प्रत्येक कोशिका में निहित एक बहुत छोटा कण है जिसकी लम्बाई कोशिका में कुल 20 नैनो मीटर के बराबर होता है। यह DNA में आनुवंशिक गुणों के संवाहक प्रोटीन के रूप में कार्य करता है। यह शरीर में रासायनिक परिवर्तनों को नियंत्रित करता है तथा ऐसे रासायनिक तत्वों का निर्माण कर्ता है जो इस नियंत्रण में सहायता करते है। राइबोसोम कई अलग तरह के रूपों में तथा कई तरह के अलग कार्यों में निरत भी पाया जाता है।मदनमोहन मालवीय का जीवन परिचय हिन्दी मेंशरीर के सारे तत्व इन्हीं रासायनिक परिवर्तनों पर निर्भर करते है। जैसे कि हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का संवहन करके उसे शरीर में स्थित प्रोटीन तक पहुंचाता है। किसी भी प्रकार के इंफेक्शन के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता का विकास करने में हीमोग्लोबिन की यही प्रक्रिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमारे शरीर में विद्यमान सभी प्रकार के हार्मोन्स जैसे कि इन्सुलिन इसी रासायनिक प्रक्रिया से जुड़े होते है। एंजाइमों के माध्यम से शरीर भोजन से इन सभी प्रकार के प्रोटीनों का निर्माण करता है।विलियम वेडरबर्न का जीवन परिचय हिन्दी मेंहमेशा से एक वैज्ञानिक के लिए यह खोज अत्यंत रहस्यमय रही है कि किस प्रकार वास्तव में एक कोशिका के अंदर इस प्रकार के प्रोटीन का निर्माण होता है। DNA एवं RNA ( डिआक्सी न्यूक्लिक एसिड एवं राइबोन्यूक्लिक एसिड ) की खोज होने के बाद यह तो सिद्ध हो चुका था कि राइबोसोम इनके नाभिक में एक छोटा प्रोटीन कण है, परंतु इसकी कार्य पद्धति क्या है और यह किस प्रकार आणविक संकेतों को भौतिक अणुओं में तब्दील कर देता यह हमेशा से अस्पष्ट रहा था।कवि भालण का जन्म कब हुआ और समय कालरामकृष्णन ने एक स्टाफ साइंटिस्ट के तौर पर ब्रूकहैवन नेशनल लैबोरेट्री में राइबोसोम की इस धुंधली तस्वीर को स्पष्ट करने का काम शुरू कर दिया। 1995 में वे ब्रूकहैवन को छोड़कर उटाह यूनिवर्सिटी में एक बायोकेमिक प्रोफेसर बनकर आए। इस दौरान उन्होंने राइबोसोम की इस प्रक्रिया को पूरी तरह से समझने के लिए अपना समय लगाना शुरू कर दिया। उटाह यूनिवर्सिटी में लगभग चार साल काम करने के बाद वे मेडिकल रिसर्च कांउसिल लैबोरेट्री ऑफ मालिक्यूलर बायोलॉजी कैंम्बिज यूनिवर्सिटी इंग्लैंड आ गए।नाथ पंथ, सम्प्रदाय की विशेषता, परिचय और इतिहास1999 में वेंकटरमन रामकृष्णन की प्रयोगशाला ने राइबोसोम के 305 उप इकाइयों के 5.5 एंगस्ट्रोम के परिक्षण की रिपोर्ट प्रकाशित की। 26 अगस्त सन् 2000 को उनकी प्रयोगशाला ने राइबोसोम्स के 305 उप इकाई ( Sub Unit ) की सम्पूर्ण परमाणुविक बनावट का खुलासा पहली बार नेचर पत्रिका में किया। अपने इस प्रयोग में उन्होंने प्रतिरोधात्मक ( एंटीबायोटिक ) मिश्रणों का राइबोसोम्स के ऊपर पड़ने वाले प्रभावों का जिक्र भी किया।निम्बार्क सम्प्रदाय के संस्थापक, प्रधान पीठ, गुरु परंपरा व इतिहासउनके इस अध्ययन के परिणामस्वरूप राइबोसोम्स की सम्पूर्ण आंतरिक संरचना का ज्ञान उपलब्ध हुआ। जिसने प्रोटीन बायोसिन्थेसिस के पुनर्उत्पादन को पूरी तरह से विस्वस्त किया। जीवन की इस रहस्यमय कुंजी की तलाश में रामकृष्णन ने एक्सरे क्रिस्टोग्राफी तकनीक का प्रयोग कर पहले राइबोसोम्स का एक त्रिआयामी चित्र लिया और पुनः उसे सम्पूर्ण रूप से प्रतिपादित कर दिया। हाल ही में उनकी प्रयोगशाला द्वारा सम्पूर्ण राइबोसोम्स का परमाणुविक माडल एवं उसके RNA और mRNA की जटिल प्रक्रियाओं का भी खुलासा किया है। रामकृष्णन हिस्टोन और क्रीमोटिन पर किए गए अपने पूर्व के कार्यों के लिए भी जाने जाते है। समाजिक जीवन पर खोज का प्रभावराइबोसोम्स जीवन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। शरीर में होने वाले कई प्रकार के रोगों एवं हार्मोन्स विचलन के लिए राइबोसोम्स जिम्मेदार है। शरीर में उत्पन्न होने वाले रोग कारक विशाणु सर्वप्रथम राइबोसोम्स को ही अपना निशाना बनाते है। राइबोसोम्स के उन विषाणुओं द्वारा प्रभावित होते शरीर अपने आप उस रोग से प्रभावित हो जाता है। राइबोसोम्स विषयक यह ज्ञान प्राप्त हो जाने के बाद मानव शरीर में उत्पन्न होने वाले इन रोगाणुओं के वह विरुद्ध कारगर प्रतिरोधक का विकास सम्भव हो गया है। अभी तक इस संबंध में जो प्रतिरोधात्मक दवाइयां विकसित की गई थी, वह उतना कारगर इसलिए नहीं होती थी कि राइबोसोम्स का सम्मपूर्ण रूप से ज्ञान न होने के कारण दवाओं का सही चयन मुश्किल होता था। रामकृष्णन के इस प्रयोग के बाद अब यह पूरी तरह से आसान हो जाएगा। इस खोज के बाद बड़ी ही आसानी से विषाणुओं की राइबोसोम्स में क्रिया बंद करके उन्हें निष्क्रिय बनाया जा सकेगा? जिसका परिणाम होगा कि यह विषाणु स्वयं मर जाएंगे। पुरस्कार व सम्मानवेंकटरमन रामकृष्णन प्रतिष्ठित रायल सोसायटी के फेलो है। EMBO के सदस्य है। यू.एस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज और ट्रिनिटी कॉलेज कैमिस्ट के फैलो है। 2007 में उन्हें लुईस जीनटेट प्राइस फॉर मेडिसिन प्राप्त हुआ। 2009 में राल्फ सैमेट प्रोफेसरशिप, गोथे यूनिवर्सिटी फैंकफुर्त। 9 सितंबर 2009 में राइबोसोम्स की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रसायन विज्ञान में थामस ई. स्टीटस और एड़ा ई. योनथ के साथ। 2010 में उन्है पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। सन् 2012 में मोलेक्यूलर बायोलॉजी में सेवा के लिए नया साल सम्मान दिया गया। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=”7717″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष जीवनीबायोग्राफीभारत के नोबेल पुरस्कार विजेता