वीर दुर्गादास राठौड़ का परिचय और वीरता की कहानी Naeem Ahmad, October 26, 2022February 22, 2023 वीर दुर्गादास राठौड़ कोई बादशाह या महाराजा पद पर आसीन नहीं थे। वे तो मारवाड़ के एक साधारण जागीरदार थे। वे अपनी वीरता, त्याग और कुशलता के बल पर इतिहास में प्रसिद्ध हो गये तथा यवन शासकों पर अमिट छाप छोड़ दी। उन दिनों महाराज यशवन्त सिंह मारवाड़ के शासक थे। वीर दुर्गादास इन्हीं महाराजा के कुशल सेनापति थे। महाराज की सेवा में रहकर इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किए जो इतिहास में प्रसिद्ध हैं। इस समय दिल्ली के बादशाह औरंगजेब था। वो महाराजा यशवन्त सिंह और उनके पुत्र को मरवाना चाहते था। उन्होंने कूटनीति से काम लिया और महाराज को काबुल पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया इधर राज दरबार में उनके पुत्र पृथ्वीसिंह को धोखे से मान-सम्मान की आड़ में विष भरी खिलअत पहनाई। इस जहरीले वस्त्र से पृथ्वी सिंह मारे गये। इन समाचारों ने महाराज यशवन्त सिंह को शोक विह्वल कर दिया और पुत्र शोक में मारे गये। वीर दुर्गादास का परिचय और वीरता की कहानी राजकुमार और महाराज की मृत्यु से वीर दुर्गादास तथा अन्य राठौड़ साथी अत्यन्त दुःखी हुए। सभी लोग बहुत उदास थे। मारवाड़ की आंखों में आंसू थे। इधर महारानी भी गर्भवती थी, अतः सती होने में बाधा थी। इस समाचार से वीर सरदारों में आशा का संचार हुआ। डूबते को तिनके का सहारा मिला। रानी ने पुत्र प्रसव किया। उसका नाम अजीत सिंह रखा गय। घोर अन्धकार में प्रकाश की रेखायें दिखने लगीं। रानी इस समय लाहौर में थी। राठौर सामन्त, महारानी और उनके नवजात शिशु के साथ दिल्ली पहुंचे। इन मुसीबत के दिनों में औरंगजेब से अच्छे व्यवहार की आशा थी परन्तु रंगढंग कुछ उल्टे ही निकले। वीर दुर्गादास ने बादशाह से निवेदन किया,-“जहांपनाहु, महारानी जी मारवाड़ लौट जाना चाहती हैं, आपकी आज्ञा हो तो पहुंचा दिया जाये।” औरंगजेब ने कहा, “दुर्गादास, मैं राजकुमार अजीतसिंह को अपने पास रखना चाहता हूं, मुझे उससे बहुत प्रेम है। तुम मेरे सुपुर्दे कर दो। मारवाड़ का शासक तो अब कोई है नहीं। मैं वहां का राज्य आप लोगों को सौंप दूंगा।” राठौर वीर दुर्गादास बादशाह की चाल समझ गये, परन्तु वो सच्चे स्वामी भक्त यह सब कब मानने वाले थे। सबने मिलकर सारी परिस्थिति पर विचार किया तथा अन्त में म॒कुन्दरास सेपेरे के रूप में राजकुमार अजीत सिंह को सुरक्षित रूप में दिल्ली से लेकर चल दिए। वीर दुर्गादास राठौड़ वीर दुर्गादास ने अपने वीर साथियों को एकत्रित किया और उनसे कहा, “आप सब लोग बादशाह औरंगजेब को कूटनीति से पूरी तरह परिचित हैं, उसके इरादे बिल्कुल नापाक हैं। ऐसी स्थिति में हमारा क्या कर्तव्य है, सोचने का विषय है। हमें मारवाड़ के शान की रक्षा करनी है, उसके प्रलोभनों में फंसकर अपने कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होना है। यह हमारी कठिन परीक्षा का समय है। मैं प्रतिज्ञा पूृर्वक अपना सर्वस्व जन्मभूमि और स्वामी की रक्षा के लिए अर्पित करता हूं । मुझे पूरा विश्वास है कि आप सब लोग मेरा जी-जान से साथ देंगे। महाराज की जय-जयकार और मारवाड़ की जय से सारा वातावरण गूंज उठा। सैनिकों ने अपने उत्साह का प्रदर्शन किया। सभी ने तन, मन और धन से मारवाड़ की पावन भूमि की सेवा करने को प्रतिज्ञा की। राजस्थान मे पुरुषों की भांति स्त्रियां भी मातृभूमि की विपत्ति अवस्था में सदैव सेवा करने में आगे रही हैं। वीर दुर्गादास ने उनको भी आमन्नित किया और उत्साहवर्धक संदेश भी दिया- माताओं और बहिनों, आज हमारी कठिन परीक्षा का समय आ गया है। आपको भी इसके लिये तैयार रहना है। यद्यपि आपकी रक्षा का भार, हमारे पर है लेकिन इस कठिन परिस्थिति में अगर हम आपकी रक्षा न कर सके तो राठौड़ वंश के गौरव की रक्षा का भार आपके ऊपर ही आयेगा। मुझे विश्वास है कि आप राठौड़ वंश के पवित्र वंश पर कलंक न लगने देंगीं।” वीर स्त्रियों ने दृढ़ता के साथ उत्तर दिया,- ‘सेनापति जी आप निश्चिन्त होकर मारवाड़ की रक्षा में, सैन्य संगठन में लगे रहिये। हमारी तरफ से विश्वास दिलाती हैं कि हम कभी अपने कर्तव्य-पथ से विचलित न होंगे। उधर बादशाह औरंगजेब वीर दुर्गादास और उनके साथियों पर ऋद्ध हो रहा था क्योंकि उन्होंने बादशाह की बात न मानी। इसलिए उसने एक बड़ी सेना मारवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। मुगल सेना ने मारवाड़ की भूमि में प्रवेश किया और वीर राठौड़ों पर आक्रमण करने की तैयारियां करने लगी। इधर वीर दुर्गादास को यवन सेना के पास आने का संदेश मिलते ही भूखे बाघ की भांति दुश्मन की सेना पर टूट पड़े। तलवारें बिजली की भांति चमक उठीं। वीर राजपुतों ने यवनो को गाजर-मूली की तरह काटना शुरू किया। कई यवन वीरों को धराशायी कर दिया। मुगल सेना में हल चल मच गई मुट्ठी भर राजपूतों ने भयंकर युद्ध किया। वे तूफान के भांति यवन सेना को चीर कर आगे बढ़ रहे थे । देखते ही, देखते उन्होंने कई मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और सेना को चीर कर पार हो गये। राजपूतों की छोटी सी सेना ने अपार मुगल सेना के दाँत खट्टे किये। इस युद्ध में मुगलों को काफी क्षति हुई। राठौड़ों के भी कुछ वीर काम आये। औरंगजेब को जब यह समाचार मालूम हुआ तो क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने विशाल सेना का संगठन किया और र खुद सेना लेकर मारवाड़ पहुंचा। बादशाह की इस अपार सेना का मुकाबला राजपूत वीर नहीं कर सके। मुगलों का मारवाड़ पर अधिकार हो गया। उसने जनता को लूटा, मन्दिरों को तोड़ा तथा जगह-जगह आग लगा दी। लोगों पर मनमाना अत्याचार किया गया। हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया। इस तरह चारों तरफ नादिरशाही का नंगा नाच शुरू कर दिया। उधर वीर दुर्गादास मेवाड़ के महाराणा की सेवा में पहुंचे और स्थिति से परिचित करवाया। राजकुमार अजीत सिंह को भी महाराणा के सुपुर्दं कर दिया। मेवाड़ के महाराणा राज सिंह बहुत वीर और पराक्रमी महाराणा थे। वीर दुर्गादास अपने मुठठी भर साथियों के साथ यवन सेना से जूझ सकते थे परन्तु योंही मरना भी तो ठीक नहीं। अजीतसिंह को गद्दी पर बैठाने का लक्ष्य भी पूरा नहीं हो पाता। अत: विवेक से काम लिया, वीर दुर्गादास ने। राजदरबार में महाराणा ने वीर दुर्गादास से मारवाड़ को स्पष्ट स्थिति का परिचय मांगा। उन्होंने कहा, “महाराणा जी मारवाड़ की स्थिति इस समय बहुत ही दयनीय हैं। चारो ओर विपत्ति के बादल मंडरा रहे हैं। लोगों में हाहाकार मचा हुआ है। बादशाह ने विशाल सेना के साथ मारवाड़ भूमि पर भीषण आक्रमण किया है जिसका मुकाबला करना भी कठिन है।गांव जलाये जा रहे हैं, प्रजा के साथ अनेक अत्याचार किये जा रहे हैं। कुमार अजात सिंह जी को अरावली की गुफाओं में छिपा कर अब बड़ी कठिनाई से यहां ला पाये हैं। मैं चाहता हूं कि राठौड़ों का संगठन करू, और शत्रुओं का मुकाबल करते हुए प्राणों की बाजी लगा दू’। लेकिन राठौड़ों में आज उत्साह की कमी है। वे अस्त-व्यस्त हैं तथा घबराये हुए हैं। आप स्वतन्त्रता के रक्षक व उसके महान पुजारी हैं। मुझे आशा है आप इस पवित्र कार्य में मेरी सहायता करेगे। महाराणा वीर दुर्गादास के हृदय की व्यथा को समझ गये और बोले-“राठोड़ वीर, तुम्हारा देश-प्रेम अनूठा है, प्रशंसनीय है। तुम्हारे जैसे देश भक्तों का देखकर जन्मभूमि भी आज फूली नहीं समा रही है। में तुम्हारी सहायता अवश्य करूगा।” महाराणा के आश्वासन भरे वचनों से वीर दुर्गादास बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मेवाड़ और मारवाड़ के राजपूृतों का सैन्य संगठन भी प्रारम्भ किया। उधर बादशाह औरंगजेव को जब राजकुमार के मेवाड़ पहुंचने के संदेश मिले तो महाराणा को पत्र लिखा कि वे राजकुमार को उन्हें सौंप दे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो औरंगजेब से मुकाबला करना पड़ेगा। महाराणा बादशाह की धमकी में नहीं आये और स्पष्ट रूप से लिख दिया कि वे राजकुमार को किसी भी कीमत पर नहीं दे सकते। औरंगजेब की विशाल सेना ने मेवाड़ की ओर कूच किया। इधर वीर दुर्गादास के नेतृत्व में राठौड़ राजपूतों और सिशोदिया राजपूतों का सम्मिलित संगठन हुआ। सभी सामन्तगण एकत्रित हुयें। राजकुमार भीमसिंह और वीर दुर्गादास ने सैनिकों को एकत्रित किया। वीर दुर्गादास ने सैनिकों से कहा “मेवाड़ी सिंहों और राठौड़ वीरों !आपको मालूम ही है कि यवन सेना हमारी स्वतन्त्रता का अपहरण करने बड़ी तैयारी के साथ आई है। मुगल बादशाह हमारी स्वतन्त्रता छीनना चाहता है, हम बहादुरों को गुलाम बनाना चाहता है। वह हमको, हमारे धर्म और संस्कृत से अलग करना चाहता है। साथियों ! शरीर में खून की एक बूंद रहने तक हम यवनों का डटकर मुकाबला करेंगे। यद्ध भूमि में यमराज की भांति उनके जानी दुश्मन बन जायेंगे। हम जीते जी परतंत्र नहीं हो सकते। मुझे विश्वास है कि आप लोग स्वामी भक्ति तथा देश भक्ति का परिचय देंगे तथा यवनों को नाकों चने चबा देंगे।” जय मारवाड़ और जय मेवाड़. के साथ विसर्जन हुआ। राठौड़ वीर दुर्गादास के इन शब्दों से सेना में उत्साह और जोश की लहर फेल गई। देवारी के घाट के पास शाही सेना से भीषण युद्ध हुआ। वीर राजपूतों ने विवेक से काम लिया और उदयपुर को वीरान बनाकर पर्वतों में आ गये। यहीं पर युद्ध की तैयारियां की गई। मुगल सेना को पहाड़ी युद्ध का बिल्कुल अनुभव नहीं था। अतः .जब भी वे इधर उधर बढ़ी तो उनको मुंह की खानी पड़ी। मुगल सेना की बड़ी बुरी हालत हो रही थी। वीर दुर्गादास और कुमार भीमसिंह की युद्ध कुशलता के सामने मुगल सेना ने घुटने टेक दिये चित्तौड़, बदनोर झौर देसूरी के युद्ध में राजपूत वीरों ने जबरदस्त रण कौशल दिखाया। इन तीनों युद्धों की पराजय से औरंगजेब की हिम्मत टूटने लगी और वह सन्धि का प्रयत्न करने लगा। दुर्गादास वीर तो थे ही, राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने मराठा, सिक्ख और राजपूत-तीनों जाति के बहादुरों का एकीकरण का प्रयास किया। अगर ऐसा हो जाता तो, इतिहास का रूप ही दूसरा होता। वीर दुर्गादास की कीर्ति चारों ओर फैल गई। बड़े बड़े-राजा महाराजा और सामन्त उनकी देशभक्ति, वीरता और स्वामी भक्ति से प्रभावित होकर उनका सम्मान करने लगे थे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष