वियतनाम की क्रांति कब हुई थी – वियतनाम क्रांति के कारण और परिणाम Naeem Ahmad, May 16, 2022March 29, 2024 वियतनाम के किसानों ने ही ची मिन्ह और कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में आधी सदी तक साम्राज्यवाद से लोहा लेकर अपने देश को स्वाधीन किया। राष्ट्रीय मुक्ति-संग्रामों के इतिहास मे इस महान संघर्ष की गाथा स्वर्ण अक्षरों में लिखी जा चुकी है। वियतनाम ने फ्रांसीसी, ब्रिटिश, जापानी और अमेरीकी साम्राज्यवादी इरादों को धूल मे मिलाकर सारी दुनिया को आजादी के लिए जूझते रहने की प्रेरणा दी। वियतनामियों के इसी जन आंदोलन को वियतनाम की क्रांति के नाम से जाना जाता है। वियतनाम की यह क्रांति सन् 1930 से सन् 1975 तक चली। अपने इस लेख में हम इसी वियतनाम के स्वतंत्रता संग्राम का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:— वियतनाम की क्रांति कब हुई थी? वियतनाम की क्रांति के क्या कारण थे? वियतनाम की क्रांति के परिणाम और प्रभाव? वियतनाम की क्रांति के नेता कौन थे? वियतनाम की क्रांति के जनक कौन थे? उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम का एकीकरण कब हुआ था? अमेरिका ने वियतनामी युद्ध में क्यों भाग लिया इसका क्या परिणाम हुआ? वियतनाम के युद्ध में संयुक्त राष्ट्र की क्या भूमिका थी? वियतनाम की आजादी की लड़ाई कब तक चली? वियतनाम को आजादी कब मिली? वियतनाम के विभाजन के क्या कारण थे? वियतनाम की क्रांति के कारण और परिणाम दक्षिण पूर्व एशिया के छाटे से देश वियतनाम को अपनी आजादी के लिए पहले फ्रांसीसी साम्राज्यवाद से और फिर अमेरिकी साम्राज्यवाद से लगभग 50 वर्ष तक लोहा लेना पडा। फ्रांसीसियों ने सन् 1868 में सगान पर कब्जा किया था। आजादी के लिए लडने वाले एक किसान योद्धा वांग वुग वुक ने मौत की सजा पाने से पहले कहा था कि जब तक इस धरती पर घास उगती है। आक्रमणकारियों के खिलाफ लडने वाले लोग भी पैदा होते रहेंगे। इसी परंपरा व आधार पर वियतनामी देशभक्तों ने संघर्ष के हर तरह के रूपों का इस्तेमाल किया। 3 मई 1930 को वियतनाम के तीन कम्युनिस्ट ग्रुपों का एकीकरण सम्मेलन हांगकांग में ही ची मिन्ह की देख रेख में हुआ। पहले ये गुट साथ-साथ काम करने को राजी ही नही थे और इसीलिए फ्रांसीसी तीनों का अलग अलग दमन करने में कामयाब रहते थे। हां ची मिन्ह के प्रयासों से उनमें एकता हो गयी और वियतनाम कम्युनिस्ट पार्टी बनी जिसका नाम बदलकर बाद में हिंद चीन कम्युनिस्ट पार्टी कर दिया गया। पार्टी ने क्रांति का 11 सूत्रीय कार्यक्रम बनाया। इसी के बाद वियतनाम में कम्युनिस्टों का असर तजी से बढ़ा। उन्होंने 1930-31 के क्रांतिकारी उभार का नेतृत्व किया। नअन और हा निंह प्रांतों में जनता ने सत्ता अपने हाथ में लेकर गांव परिषद् स्थापित कर दी। पर यह जनवादी सरकार माव छः सात महीने में ही फ्रांसीसी सेना की बरबरता के सामने टूट गयी। हो ची मिन्ह ने हांगकांग से ही इस आंदोलन को यथा संभव निर्देशित किया और असफलता के बाद उसकी वजह बताने वाला एक पत्र लिखकर भेजा। उनके पास इंग्लैंड, फ्रांस, चीन और मास्को में वियतनामियों व जनवादी आंदोलनों में काम करने का गहरा तर्जुबा था। वे जानते थे कि कम्युनिस्ट विचारधारा को कैसे वियतनाम की राष्ट्रीय परिस्थितियों में लागू किया जाये। सन् 1936 में फ्रांस में पॉपुलर फ्रंट की सरकार बनी, जिसे हिंद चीन में साम्रज्यवादी दमन ढीला पडा। इसका लाभ उठाकर कम्युनिस्ट पार्टी ने जनता के बीच प्रचार के कई साधन अपनाएं और हिंद-चीन महा कांग्रेस नाम से एक आंदोलन चलाया। इसकी मुख्य मांग जनवादी-सुधार लागू करना, जनता का जीवन स्तर बेहतर करना और स्थानीय परिषद क चूनाव में तमाम बालिग जनता को वोट का अधिकार देना थी। मजदूर-हडताल हुई किसानो के प्रदर्शन हुए और 1 मई, 1938 को मई दिवस पर 5000 लोगों ने जोरदार जुलूस निकाला। इन दिनों ही ची मिन्ह चीनी क्रांति में जापान विरोधी युद्ध में काम करके लडाई का अनुभव हासिल कर रहे थे। वियतनाम की क्रांति सन् 1939 में दूसरा विश्व-युद्ध छिडा। फ्रांस ने फौरन वियतनामियों के बचे-खुचे अधिकार जब्त कर लिए। तबातोड़ गिरफ्तारियां होने लगी। ऐसे में ची मिन्ह से संपर्क करने फांग वान डाग और वो वेन जियाप्प चीन पहुंचे। इन लोगों ने विचार विमर्श करके वियतमिन्ह (वियतनाम स्वाधीनता मोर्चा) गठित किया, जिसने वियतनामियों को एक होकर फासिस्टवाद के खिलाफ लडने के लिए ललकारा। साथ साथ ही फ्रांसीसियों को मार भगाने का कार्यक्रम भी अपने हाथ में लिया। हो ची मिन्ह ने अपने एक पर्चे में लिखा- “फ्रांसीसी साम्राज्यवादी और जापानी फासिस्ट दोनों ही राष्ट्रीय स्वाधीनता ओर विश्व क्रांति के दुश्मन है।” राष्ट्रीयता और अंतरराष्ट्रियता के आधार पर बने इस कार्यक्रम ने वियतनामियों की आत्मा के सोते शेर को जगा दिया। उन्होंने अपने पड़ोसी सियामियों के खिलाफ फौज में भर्ती होने से इंकार कर दिया। टाकिन क वाक सन, अन्नम क डो लांग में और कोचीन-चाइना के इलाके में बगावते भडक उठी। फ्रांसीसियों ने भयानक दमन -चक्र चलाया। निहत्थे लोगों को मशीनगनों से भून दिया, गांव जला डालें लोगों से कब्र खुदवाई गयी और फिर उनमें उन्ही को जिंदा दफन कर दिया गया। उधर युरोप मे जर्मनी ने फ्रांस को हराया और इधर जापानियों ने वियतनाम में प्रवेश पा लिया। हो ची मिन्ह ने संदेश भेजा कि जापानियों के खिलाफ गुरिल्ला -युद्ध शरू किया जाना चाहिए। वियतनाम की क्रांतिहो ची मिन्ह जनवरी 1941 में 31 साल के प्रवास के बाद वियतनाम लौटे और उन्होंने आते ही आंदोलन का नेतृत्व सीधे अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने एक प्रचार-सेना और एक राजनैतिक सेना बनाने की जरूरत पेश की। पार्टी का अखबार शुरू हुआ जिसका नाम वियत लैप’ (स्वतंत्र वियतनाम) रखा गया। सन् 1941 के अंत तक काओ वांग क्षेत्र में कम्युनिस्टों ने बहुत से आधार क्षेत्र कायम कर लिए। हो ची मिन्ह ने किताबे लिखी, “गुरिल्ला दांव-पेंच” रूस में गुरिल्ला युद्ध के अनुभव और “चीन में गुरिल्ला-युद्ध के अनुभव”। चीनी नेता सुने यात सन की पुस्तकों “चीनी युद्ध-कला” और “रूसी कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास” का अनुवाद किया। उन्होंने वियतनाम पर फ़्रांसीसी कब्जे का इतिहास भी लिखा’ जिसमें देशभक्ति पूर्ण आंदोलनों को प्रमुखता दी गयी थी। इसी पुस्तक के आखिर में ची मिन्ह ने भविष्यवाणी की कि सन् 1945 में वियतनाम आजाद हो जायेगा। धीरे-धीरे क्रांतिकारी आधार-क्षेत्र विकसित होते-हाते लामसन तक पहुंच गया। वियतमिन्ह ने मित्र राष्ट्रों से सहायता लेने का फैसला किया। ची मिन्ह एक प्रतिनिधि मंडल के साथ चीन गये और च्याग काईशेक से मिलने का बहाना बनाकर वहां के कम्युनिस्ट से सम्पर्क करने की कोशिश की। ची मिन्ह गिरफ्तार कर लिये गये। 14 महीने बाद च्याग सरकार ने उन्हे काफी जद्दो-जहद के बाद रिहा किया। हो ची मिन्ह का स्वास्थ्य जेल-जीवन की यातनाओं से टूट चूका था पर उन्होंने पहाड़ों पर चढ चढ़कर अपना गठिया दूर किया और अंधेरे में झाक-झाक कर अपनी नजर ठीक की। उन्होंने चीन में वियतनामियों के संगठनों से कहा कि वे अपने काम का केन्द्र वियतनाम को ही बनाये और जितने लोग लौट सकते हो, स्वदेश लौट जाये। दो साल बाद अर्थात् सन् 1944 में ची मिन्ह भी वियतनाम लौट आये। वियतमिन्ह गुरिल्ला ने कई बार फ्रांसीसियों के सामने जापानियों से मिलकर लडने का प्रस्ताव रखा पर फ्रांसीसियों ने कम्युनिस्टों के खिलाफ जापान का साथ देना जारी रखा। जनता में आतंक फैलाकर उसे वियतमिन्ह में शामिल हाने से रोकने का प्रयास किया, पर जहा जहा दमन हुआ, वहा-वहा आंदोलन ओर उग्र हो उठा। फ्रांस में दगाल की विजय के बाद हिंद चीन में फ्रांस व जापान के बीच मतभेद बढ़ गये। इससे क्रांतिकारी आंदोलन को फलने फूलने का मौका मिल गया। हो ची मिन्ह ने राष्ट्रीय मुक्ति सेना गठित करने का प्रस्ताव रखा और जियाप्प को इसका जिम्मा सौंपा। 34 लड़ाकों का पहला दस्ता बनाया गया, जिनमें से कई ने चीन में फौजी शिक्षा ली थी। उसे “प्रचार और मुक्ति दस्ता” कहा गया। इससे दूसरे दिन ही पाए खाट और नानाम में पहली जीत हासिल की। 9 मार्च, 1945 को जापानियों ने फ्रांसीसियों को पूरी तरह से सत्ता से उतार दिया। फ्रांसीसी नागरिक गिरफ्तार कर लिये गये। 1 मार्च, 1945 को वियतमिन्ह ने फ्रांसीसियों से शत्रुता खत्म करके उन्हें शरणार्थियों का दर्जा दिया। गुरिल्लों ने फ्रांसीसी सैनिकों को जापानियों की कैद से छडाने के लिए हमले तक किये। जापान ने दाएं वियत (विशाल वियतनाम) पार्टी के जरिए कठपुतली सरकार बनायी और एक फौज जुटाकर वियतमिन्ह के खिलाफ भेजी। वियतमिन्ह ने इस फौज को आसानी से हरा दिया। उसके हथियार छीन लिये और खुद को मजबूत कर लिया। नारा दिया गया– जापानियों के लिए न एक दाना न एक छदाम् ॥ 35 लोगों तीन राइफलों एवं एक पिस्तौल के साथ शुरू हुई मुक्ति सेना में अब 10 हजार सिपाही भर्ती हो चुके थे और उसके कई गुप्त दस्ते देशभर में फेले हुए थे। 15 अगस्त 1945 को कम्युनिस्ट पार्टी की जन कोंग्रेस तानताव के आधार इलाके में हुई। अगले दिन जापानियों ने विश्च युद्ध में अपनी पराजय स्वीकार कर ली जन कांग्रेस ने सशस्त्र क्रांति का आदेश दिया और राष्ट्रीय मुक्ति समिति का चुनाव किया गया। क्रांति शुरू हुई। जन मुक्ति-सेना ने जापानी चौकियों को ध्वस्त कर दिया। 14 अगस्त को हनाई पर उसका कब्जा हो गया। 2 सितंबर को अस्थायी सरकार बनी। हो ची मिन्ह ने स्वतंत्रता का घोषणा पत्र पढा। पर वियतनाम को अभी साम्राज्यवाद के खिलाफ लडाई की काफी मंजिल तय करनी थी। मित्र राष्ट्रों ने जापानियों को निशस्त्र करने के नाम पर वियतनाम को दो भागों में बांटा। दक्षिण भाग ब्रिटिश सेना को सौंपा गया और उतरी भाग च्याग काइशेक की सेना को। 23 सितंबर को ब्रिटिश सैनिकों ने सैगान को घेरे में ले लिया। यह एक नया हथकंडा था। पहले हर जगह जापानी सैनिक भेजे जाते और फिर उनसे हथियार लेने के नाम पर अंग्रेज और उनकी कमान में भारतीय सैनिक पहुंच जाते। फ्रांसीसी अग्रेजो से हथियार लेकर बर्बर आक्रमण करते और बाद में अंग्रेजों और भारतीयों की आड में छिप जाते। वियतनामियों ने इन दिक्कतों के बावजूद कड़ा प्रतिरोध किया। उत्तर से वियतनामी देशभक्त आ-आकर दक्षिण में लडने लगे। उनके खून से वहां की धरती लाल हो गयी। उत्तर वियतनाम में हो ची मिन्ह के च्यांग काईशेक के जनरल के हथकंडों का जवाबदेना पडा। 6 जनवरी 1946 को हो ची मिन्ह ने चुनाव कराये और जीत हासिल की। देश को युद्ध से बचाने और पुननिर्माण के लिए समय निकालने के लिए हो ची मिन्ह ने 6 मार्च 1946 को फ्रांसीसियों से संधि कर ली। उन्हें इस सब के लिए कुछ आलोचना अवश्य झेलनी पड़ीं पर वे अंत में जनता को समझाने में कामयाब हो गये। 31 मई को वे फ्रांस रवाना हुए पर उन्हें वहां इंसाफ नही मिला। 14 दिसंबर को फ्रांसीसी सेना ने संधि तोडकर हनोई और दुसरे शहरों पर हमला कर दिया। उन्हें सफलता तो मिली पर वियतनामी देशभक्तों ने भी जमकर संघर्ष किया जिससे बडी संख्या में फ्रांसीसी मारे गये। एक बार फिर मुक्ति-युद्ध शुरू हुआ जो 7 मई 1954 तक चला। रीन-बीन फू के 55 दिन के युद्ध में मुक्ति सेना ने फ्रांसीसियों को अंतिम रूप से परास्त कर दिया। जिनेवा सम्मेलन बुलया गया जिसमें ढाई महीने तक बहस हुई । 20 जुलाई 1954 को युद्ध-बंदी समझौते पर दस्तखत हुए पर अमेरीका ने इस समझौते पर दस्तखत नही किये। अमरीकियों ने न्यू जर्सी में रहने वाले ना दिन्ह को दक्षिण में कटपुतली सरकार का प्रधानमंत्री बना दिया। अमेरीका का 200 फौजी अधिकारियों को सैनिक सहायता परामर्श दल पर्दे के पीछे से युद्ध का संचालन करने लगा। धीरे धीरे अमरीकियों ने हर क्षेत्र में फ्रांसीसियों का स्थान लेना शुरू कर दिया। साल-डेढ़ साल में उन्होंने दक्षिण वियतनाम को अपना अच्छा-खासा उपनिवेश बना लिया। जिनेवा समझौते में स्वतंत्र आम चुनाव के जरिए दोनों वियतनामा के एकीकरण की शर्त थी पर अमरीका की कठपुतली सरकार ने दक्षिण वियतनाम को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया। दक्षिण वियतनाम का साउथ-ईस्ट एशिया टीटी (सीटा) के संरक्षण में लेकर साम्राज्यवादी चौधराहट पुख्ता कर ली गयी। 20 जुलाई 1956 को जिनेवा समझौते के मुताबिक आम चुनाव होने चाहिए थे लेकिन अमरीका ने 4 मार्च 1956 को केवल दक्षिण में चुनाव कराके 123 सदस्यों की धारा सभा खडी कर दी। दक्षिण की सरकार ने न तो भूमि-सुधार किये और न ही ठीक से शासन चलाया। आंतरिक भ्रष्टाचार और जन-दमन के कारण वह अलोकप्रिय हो गई। कम्युनिस्टों ने वहां वियत-काग के नाम से संघर्ष शुरू कर दिया। उत्तर से पहले वियत-कांग का केवल आर्थिक एव नैतिक मदद मिली और बाद में सीधे-सीधे सैनिक ही दक्षिण में लडने के लिए आने लगे। अमरीकी राष्ट्रपति कैनडी ने चार हजार अमरीकी सैनिक वियत-काग और उत्तरी वियतनाम के खिलाफ भेजे। सन् 1965 तक अमरीकी विमान विभिन्न बहानों से उत्तर पर बमबारी करने लगे। सन् 1966 तक दो लाख अमेरीकी फौज दक्षिण की तरफ से लडने लगी। अमरीका अपनी नीति के कारण अकेला पडने लगा। फ्रांस ने खुद को इस नीति से अलग घोषित कर दिया। सन् 1967 में अमरीकी रक्षा-मंत्री माक्नमारो नेवियतनाम के मिलसिले में अमरीकी नीति की जांच की जिसके नतीजे सन् 1971 में सामने आये। सन् 1968 में राष्ट्रपति चुने गये निक्सन ने पूरी कोशिश की कि भयानक बमबारी करके वियतनाम को ध्वस्त कर दिया जाये पर अमेरीकी ताकत वियतनामी संकल्प को नही तोड़ सकी। हार कर सन् 1972 में निक्सन को अपनी फौज वापस बुलानी पडी। यह दुनिया के तथाकथित सबसे ताकतवर देश की एक बेहद अपमान जनक पराजय थी। अव अमेरीकियों ने नया हथकंडा अपनाया। उन्होंने युद्ध का वियतनामी करण करने की कोशिश की। जनरल थियू के रूप में अपनी एक कठपुतली के जरिए उसने वियत-कांग और उत्तर वियतनाम के खिलाफ लडाई चलाई लेकिन अप्रैल,1975 में कम्युनिस्टों की फौज ने सैगान को घेर लिया। थियू दो लाख दक्षिण वियतनामियों के साथ भाग गया। सेगान का नामकरण वियतनामियों ने अपने महान नेता के नाम पर ही हो ची मिन्ह नगर किया। नवंबर 1975 में दक्षिण और उत्तर वियतनाम के एकीकरण की घोषणा हुई। वियतनामी किसानों ने विश्व के इतिहास में सबसे लंबा, निर्मम धोखेबाजी से भरा हुआ युद्ध जीतकर कमाल कर दिखाया। उन्होंने फ्रांसीसी, जापानी, बिटिश और अमरीकी साम्राज्यवादी ताकतों को अपने आजाद रहने के दृढ़ संकल्प से पराजित किया। और वियतनाम की क्रांति को जीत कर स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण किया आज वियतनाम एक स्वाधीन और विकासशील राष्ट्र है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8940″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध जन क्रांति विश्व की प्रमुख क्रांतियां