वज्रेश्वरी देवी मंदिर नगरकोट धाम कांगडा हिमाचल प्रदेश – कांगडा देवी मंदिर Naeem Ahmad, October 12, 2017April 8, 2024 हिमाचल प्रदेश के कांगडा में स्थित माता वज्रेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यह स्थान जनसाधारण में नगरकोट कांगडे वाली देवी के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहा दर्शन किए बिना यात्रा सफल नही मानी जाती है। यवनो ने यहा अनेको बार आक्रमण किया फिर भी यह स्थान वज्रेश्वरी देवी के प्रताप से अक्षत रहा। यह स्थान 51 शक्तिपीठो में माना जाता है यहा कांगडा में सती के वक्षस्थल गिरे थे। यह श्री तारा देवी का स्थान हैवज्रेश्वरी देवी का धार्मिक महत्ववज्रेश्वरी देवी की कथाकांगडा धाम का इतिहास बहुत प्राचीन माना जाता है। राजा सुशर्मा के नाम पर रखा गया सुशर्मापुर नगर कांगडा का अति प्राचीन नाम है। जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। महमूद गजनवी के आक्रमण के समय इसका नाम नगरकोट था। कोट का अर्थ है किला अर्थात वह नगर जहां किला है। त्रिगर्त प्रदेश कांगडा का महाभारत कालीन नाम है। कांगडा के शाब्दिक अर्थ है – कान+गढ़ अर्थात कान पर बना हुआ किला । पौराणिक कथा के अनुसार यह कान जलंधर दैत्य का है। जलंर नामक दैत्य का कई वर्षो तक देवताओ से घोर युद्ध हुआ । जलंधर महात्मय के अनुसार ही जब विष्णु भगवान और शंकरजी की कपटी माया से परास्त जलंधर दैत्य युद्ध में जर्जरित होकर मरणासन्न हो गया तो दोनो देवताओ ने उसकी साध्वी पत्नी सती -वृंदा के शाप के भय से जलंधर को प्रत्यक्ष दर्शन देकर मनचाहा वर मांगने को कहा। सती वृंदा के आराध्य पति जलंधर ने दोनो देवताओ की स्तुति करके कहा कि – हे सर्वशक्तिमान प्रभो! यद्यपि आपने मुझे कपटी माया रचकर मारा है।Naina devi tample bilaspur – नैना देवी मंदिर बिलासपुर – नैना देवी की कथाइस पर भी में अति प्रसन्न हुं। आपके प्रत्यक्ष दर्शन से मुझ जैसे तामसी प्पी और अहंकारी दैत्य का उद्धार हो गया। मुझे कृपया यह वरदान दे कि मेरा यह पार्थिव शरीर जहां जहां फैला है उतने परिमाण योजन में सभी देवी देवताओ और तीर्थो का निवास रहे। आपके श्रद्धालु एंव भक्त मेरे शरीर पर स्थित इन तीर्थो का स्नान, ध्यान, दर्शन, पूजन, दान, औरश्राद्धादि करके पुण्य लाभ प्राप्त करे। इसके बाद जलंधर ने वीरासन में स्थित होकर प्राण त्याग दिये। इसी कथा के अनुसार शिवालिक पहाडियो के बीच 12 योजन के क्षेत्र में जलंधर पीठ फैला हुआ है जिसकी परिक्रमा में 64 तीर्थ व मंदिर है। इनकी प्रदक्षिणा का फल चार धाम की यात्रा से कम नही है।वज्रेश्वरी देवी मंदिर के सुंदर दृश्यवज्रेश्वरी देवी मंदिर के दर्शन – नगरकोट कांगडा देवी का मंदिरकांगडा पहुंचते ही मंदिर के भव्य कलश दूर से ही दिखाई देने लगते है। माता वज्रेश्वरी देवी का यह भवन जनसाधारण में नगरकोट कांगडा मंदिर के नाम से जाना जाता है। श्री वज्रेश्वरी देवी सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की कुल देवी है। तथापि पूरे भारत वर्ष के कोने कोने से भक्त माता के दर्शन के लिए यहां आते है। मंदिर के प्रबंध के लिए कार्यकारणी समिति ट्रस्ट के रूप में काम करती है। विशाल मंदिर के द्वार तक जाने के लिए लम्बी सीढियो की कतार है जिसके दोनो ओर दुकाने लगी रहती है। इन दुकानो में पूजा साम्ग्री व भेटे इत्यादि उचित मुल्य पर मिलल जाता है। मंदिर के सिंह द्वार से प्रवेश करके यात्री प्रागण में पहुंचते है। यहा से भव्य मंदिर की ऊचांई आकाश को छूती प्रतित होने लगती है। माता के साक्षात दर्शन करने से पहले बरामदे से गुजरने पर शेरो की जोडी के दर्शन होते है। मंदिर के चारो ओर परकोटा बना है। जिसकी परिक्रमा में धार्मिक कलाकृतियो के अतिरिक्त चमत्कारी प्रतिमाएं विद्यमान है। यहा से प्रवेश करते ही एक दिव्य अनूभूति हृदय को पुलकित करके देवी के साक्षात दर्शनो के लिए व्याकुल कर देती है। कुछ क्षणो की दूरी भी भक्तो के लिए असह्यहोने लगती है। चुम्बक की भांति खिचे चले जाते है।भक्त माता के चरणो में और सामने साक्षात पिण्डी रूप में माता वज्रेश्वरी देवी विराजमान है।अक्षरा देवी सिद्ध पीठ कहां है – अक्षरा सिद्ध पीठ का इतिहासमाता वज्रेश्वरी देवी के साक्षात दर्शन पिण्डी के रूप में होते है। यहा नित्य नियम पूर्वक माता का श्रृंगार, पूजन और आरती की जाती है। इस स्थान की विशेष महिमा और परमपरा है जब सतयुग में राक्षसो का वध करके श्री वज्रेश्वरी देवी ने विजय प्राप्त की तो सभी देवो ने अनेक प्रकार से माता की स्तुति की थी। उस समय मकर संक्रांति का पर्व माना गया है। जहा जहा देवी के शरीर में घाव लगे थे वहा वहा देवताओ ने मिलकर घि का लेप किया था। इसे परमपरा मानते हुए आज भी मकर संक्रांति को माता के ऊपर पांच मन देशी घि एक सौ बार शीतल कुंए के जल से धोकर मक्खन तैयार करके मेवो तथा अनेक प्रकार के फलो से सुसज्जि करके एक सप्ताह तक माई के ऊपर चढा दिया जाता हैमनसा देवी मंदिर मनीमाजरा पंचकुला – मनसा देवी पंचकुला – मनसा देवी मंदिरमंदिर के प्रागण में दाई ओर ध्यानू भक्त व माता की मूरति है। मान्यता है कि इसी मंदिर में ध्यानू भक्त ने अपना शीश अपनी ही कटार से काटकर देवी को भेंट कर दिया था। इसी कथा के अनुसार मंदिर के परकोटे के भीतर परिक्रमा में ही उच्चकोटि की कला प्रदर्शित करते हुए कलाकार ने अपनी कल्पना से पत्थर की मूर्तियां बनाई है। इमे ध्यानू भक्त अपना सिर काट लेने के पश्चात पूजा की थाली में रखकर देवी को समर्पित करते हुए दर्शाया गया है। जो कला का एक बहतरीन नमूना है।कांगडा तीर्थ के अन्य दर्शनीय स्थलश्री कृपालेश्वर महादेव मंदिरयह काफी प्राचीन मंदिर है। जहा पर भगवान शिव के दर्शन कृपालली भैरव के रूप में होते है। माता के हर एक स्थान पर शिव किसी न किसी रूप में विराजमान रहते है। यह बात अटल सत्य है। और उसी रूप में शिव के दर्शन किए बिना तीर्थ की यात्रा असफल रहती है।कुरूक्षेत्र कुंडइस कुंड में स्नान करने से पितरो का उद्धार होता है तथा परिवार में धन।धान्य और पुत्रादि की वृद्धि होती है। सूर्य ग्रण के अवसर पर कुण्ड में स्नान करने से तीन जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है। जो पुण्य कुरूक्षेत्र में तीर्थ में जाकर स्नान करने से प्राप्त होता है वही पुण्य इस कुरूक्षेत्र कुंड में स्नान करने से मिलता है। श्री वीर भद्र मंदिर के निकट ही यह कुंड स्थित है।वज्रेश्वरी देवी मंदिर के सुंदर दृश्यबाबा वीरभद्र का मंदिरयह मंदिर कांगडा (नगरकोट) से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भगवान शिव के गण वीरभद्र के नाम पर बना यह सूंदर मंदिर प्राचिन इतिहास का साक्षी है। जब राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन करके सती पार्वती के पति भगवान शंकर का निरादर किया तो सती ने यज्ञ कुण्ड में अपने शरीर की आहुती दे दी। तत्पश्चात शिवजी ने क्रोधित होकर वीरभद्र नामक अपने गण को यह यज्ञ नष्ट करने का आदेश दिया था।गुप्त गंगावीरभद्र मंदिर से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर गुप्त गंगा नामक स्थान है। महाभारत की एक कथा के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि वनववास की अवधि में पांडवो नै कुछ समय यहा कांगडा में व्यतीत किया था। पानी की कमी को दूर करने के लिए अर्जुन ने बाण चलाकर यहा जल प्रकट किया। जल तो अभी भी इस स्थान से निकलता है परंतु जल का उदगम स्थल कहा है यह पता नही चलता। इसलिए इस स्थान को गुप्त गंगा के नाम से संबोधित किया जाता है। माता के मंदिर में दर्शन करने से पहले इसमें स्नान करना शुभ माना जाता है।ज्वाला देवी मंदिर यात्राचिन्तपूर्णी देवी तीर्थ यात्राअच्छरा माता (सहस्त्रधारा) छरूण्डाश्री कांगडा मंदिर से चार किलोमिटर की दूरी पर यह स्थान गुप्त गंगा से थोडा आगे चलकर बाण गंगा के निकट पहाडी की एक गुफा में बना है। जहा जल की अनेक धाराएं गिरती है। मुख्य जल धारा लगभग 25 फीट की उचांई से गिरती है।चक्र कुंडयहा पर भगववती महामाया का चक्र गिरने से तीर्थ बन गया। इसी से नाम भी चक्र कुंड है। सती वृंदा के शाप से युक्त होकर ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र तीनो देवो ने यहा स्नान कर शोडषोपचार से महामाई का पूजन किया। इस प्रकार उन्हें छलपूर्वक जलंधर दैत्य का वध करने के पाप से मुक्ति मिली।वज्रेश्वरी देवी मंदिर कैसे पहुंचेपंजाब के पठानकोट और गुरदास पुर से होते हूए यहा आसानी से जा सकते है। ज्वालामुखी से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है। यहा के लिए हिमाचल प्रदेश के सभी प्रमुख शहरो से यहा के लिए बस मिलती है। इसके आलावा यहा छोटी पर ट्रेन द्वारा पहुचा जा सकता है छोटी लाइन पर कांगडा मंदिर स्टेशन पर उतरते है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=’16975′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल नौ देवियांहिमाचल पर्यटन