लोहंदी महावीर का मेला मिर्जापुर उत्तर प्रदेश Naeem Ahmad, August 14, 2022February 25, 2024 श्रावण मास के प्रत्येक शनिवार को लोहंदी महावीर का मेला लगता है। वैसे प्रत्येक मगलवार को भी सैकडो दर्शनार्थी भक्तगण लोहंदी महावीर जी के दर्शन के लिए जाते है। प्रत्येक रविवार को वदी के दिन भी तफरी के लिए सेठ-साहुकार तथा भावुकजन लोहंदी महावीर मंदिर जाकर लिट्टी-बाटी का आयोजन करते है। यह स्थान मिर्जापुर जिला मुख्यालय नगर से दक्षिण मे लगभग पांच किमी पड़ता है। तथा बहुत रमणीक है।लोहंदी महावीर का मेलाप्राकृतिक शोभा निराली है। नदी भी बहती है। कहते हैं, अपने भक्त को एक रात महावीर जी ने प्रकट होकर दर्शन दिया था और भयकर वेग से बहती नदी मे जब वे भी बहने लगे तो उनकी भक्ति भावना को देखते हुए अपने भक्त को राम-भक्त महावीर ने उबारा था। लोहंदी महावीर मंदिर भगवान हनुमान जी को समर्पित है। यहां सावण मास में पांच शनिवार दर्शन होते हैं और भव्य मेला लगता है। लोहंदी महावीर मंदिर को मिर्जापुर के बालाजी भी कहा जाता है।लोहंदी महावीर मंदिरमिर्जापुर जिले में अन्य मेलेप्रत्येक मंगलवार तथा शनिवार को अष्टभुजा तथा मां विन्ध्यवासिनी के धाम में मेला लगता है। इसी प्रकार प्रत्येक रविवार को विढम तथा टाडाफाल खजुरी नामक स्थानों पर भारी सख्या में लोगों की उपस्थिति के कारण मेला का दृश्य उपस्थित हो जाता है। अष्टभुजा त्रिकोण-यात्रा का प्रमुख स्थल है जहा अष्टभुजी देवी विराजमान है। पहाड पर स्थित होने के कारण इसका वातावरण अत्यत मनोरम हो गया है। यही सीता कु॒ण्ड भी है जिसका सतत प्रवाहित जल आरोग्य वर्द्धक बताया गया है।विंध्याचल नवरात्र मेला मिर्जापुर उत्तर प्रदेशटाडाफाल मिर्जापुर नगर से लगभग दस किमी दक्षिण मे स्थित है जहा झरने का दृश्य मनोरम है। यहां पहले जगली जानवर रात मे पानी पीने आया करते थे। नगर के साहित्यकार पहले यहां तफरी के लिए जाया करते थे तथा गोष्ठियों का आयोजन करते थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, प्रेमधन, उग्र, निराला, मतवाला की अलमस्ती के दर्शन यहां होते थे। भाग छनती थी। बाटी-चोखा विधिवत बनता था। अंग्रेज़ अफसर भी यहां जाया करते थे।पक्का घाट का मेला मिर्जापुर उत्तर प्रदेशइसी प्रकार विढमफाल में भी रविवार को मेला लगा करता था। यहां भी तफरी के लिए नगरवासी आते थे और मेले का दृश्य उपस्थित हो जाया करता था। खजुरी-अपर तथा लोवर विढमफाल से पश्चिम की ओर स्थित वह स्थान है जहा नदी को रोककर बाध बनाया गया है। चारों ओर जंगल-पहाड का सुन्दर दृश्य देखते बनता है। यहां पहले हिरणो का झुण्ड देखने को मिलता था। लोग शिकार के लिए भी जाया करते थे। तरह-तरह के पशु-पक्षियों को देखने के लिए भी भीड़ उपस्थित हो जाती थी। किंतु अब बढती व्यस्तता तथा प्रदूषण, वन-कटान के कारण प्राकृतिक सौंदर्य विनष्ट होता जा रहा है। वास्तव मे इन स्थानों को पर्यटन स्थल के रूप मे विकसित किया जाना चाहिए। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=’11706′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख त्यौहार उत्तर प्रदेश के मेलेमेले