लाल बारादरी लखनऊ – लाल बारादरी का इतिहास Naeem Ahmad, June 21, 2022March 3, 2023 इस निहायत खूबसूरत लाल बारादरी का निर्माण सआदत अली खांने करवाया था। इसका असली नाम करत्न-उल सुल्तान अर्थात- नवाबों का महल’ है। अपने लाल रंग के कारण यह लाल बारादरी के नाम से मशहूर हो गयी। इसके हाल में नवाब सआदत अली खां का दरबार चलता था। दरोगा अब्बास अली बेग के अनुसार– लखनऊ का सबसे विशाल दरबार लाल बारादरी में हो आयोजित होता था। अवध की एक से एक जानी-मानी हस्तियां यहां तशरीफ लाती थीं। दरबार की रूपरेखा बिल्कुल पाश्चात्य ढंग की थी। परिणाम स्वरूप एक नये युग का अवध के इतिहास में प्रवेश हुआ। लाल बारादरी का इतिहास सन् 1819 में नवाब गाजीउद्दीन हैदर की ताजपोशी बड़ी धूमधाम से इसी बारादरी में हुई थी। रेजीडेन्ट सर जान बेली ने खुद नवाब गाजीउद्दीन हैदर के सिर पर तमाम बेश कीमती जवाहरातों व हीरों से जड़ित सोने का ताज रखा। नवाब गाजीउद्दीन हैदर के वक्त यह बारादरी सुर की मदहोशी, सुन्दरियों के घूँघरूओं की छम-छम, तबले की थाप से सराबोर रही। नवाब नसीरुद्दीन हैदर का भी दरबार इसी लाल बारादरी में बिल्कुल अंग्रेजी ढंग से चला। अवध के इतिहास से यह स्पष्ट होता है कि 7 जुलाई 1837 को लाल बारादरी में सल्तनत के चक्कर में भयंकर संघर्ष हुआ था। मिर्जा फरीदु बख्श जो कि ‘मुन्ना जान’ के नाम से मशहूर थे ओर बादशाह बेगम के पोते थे अपने वालिद नवाब नसीरुद्दीन हैदर का इन्तकाल होते ही रियासत हथियाने के चक्कर में लग गये। मुन्ना जान को रातों-रात तख्त पर बैठा दिया गया। उधर नवाब मुहम्मद अली शाह जो कि नवाब गाजीउद्दीन हैदर के भाई जान थे, वह भी चाहते थे कि ताजपोशी उनकी हो, जब यह खबर मोहम्मद अली शाह को मिली कि मुन्ना जान ने तख्त पर हाथ साफ कर दिया है तो उनके तन-बदन में आग लग गयी। ऐसे में उनके सामने एक ही रास्ता था, आकाओं के पैरों पर टोपी रखना। गद्दी के लिए यह भी कुबुल था। रेजीडेन्ट साहब बादशाह बेगम के पास पहुँचे और कहा कि मुन्ना जान को बादशाह ने अपना बेटा नहीं माना था। इसलिए किसी भी तरीके से उनका सल्तनत का वारिस बन पाना नामुमकिन है इतना कहकर बादशाह बेगम को बड़े लाट साहब का फरमान दिखाया। बादशाह बेगम का खून खौल उठा। फरमान को किनारे कर दिया। उनके चापलूसों ने भी खूब हवा दी। बेगम साहिबा ने ऐसा मानने से इनकार कर दिया। अब रेजीडेन्ट साहब मजबूर हो गये।चेतावनी दी अगर पांच मिनट के अन्दर मुन्ना जान ने तख्त न छोड़ा तो यह खूबसूरत बारादरी हमेशा के लिए मिटा दी जायेगी। लाल बारादरी निर्धारित वक्त खत्म हुआ। तोपों ने आँखें खोल दीं। बारादरी में भगदड़ मच गयी। तमाम लोग अल्लाह को प्यारे हो गये। सरकार की तरफ से मृतकों की को संध्या 30 से 40 के बीच में आंकी गयी। एम० एम० मसीहुद्दीन के अनुसार सरकारी जानकारी गलत थी। यह संख्या तकरीबन 500 से कम नहीं रही होगी। खेर अंग्रेजी सनिकों ने बारादरी में प्रवेश किया। मुन्ना जान के सिर से ताज उतार दिया गया। बादशाह बेगम और मुन्ना जान गिरफ्तार कर बेलीगारद पहुंचा दिये गये। एक-एक हीरा तख्त से निकाल लिया गया। यहां तक कि शाही तख्त पर चाँदी की चादर तक लुटेरों ने नहीं छोड़ी। दिल खोल के लूटा, बारादरी की खूबसूरती मटियामेट कर दी। सन् 1838 में प्रकाशित अवध पेपर्स’ के अन्तर्ग जिसको ‘हाउस हाफ कार्मस की तरफ से चालू किया गया था उसमें 7 जुलाई की वह काली मनहूस रात और 8 जुलाई की सुबह तक की एक-एक घटना का खुलकर ज़िक्र किया गया था। यह 10 जुलाई को प्रकाशित हुआ। गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि रेजीडेंट खुद डाक्टर स्टीवेसन को साथ लेकर बादशाह की लाश देखने गये। लौटते वक्त कुछ जहूरी निर्देश देकर अपने आवास (बेलीगारद) लौट गये। उन्होंने कैप्टन पैटेन को यह हुक्म दिया था कि नसीरुद्दीन के खजाने की सारी सम्पत्ति को सुरक्षा की दृष्टि से बन्द रखा जाय। नवाब वाजिद अली शाह की ताजपोशी भी लाल बारादरी में ही हुई थी। 5 जुलाई सन् 1857 की वह शाम अपना भयानक रूप अख्तियार कर चुकी थी। तेज मूलाधार बारिश उसमें रह-रह कर कोंधती बिजली बार-बार लाल बारादरी में घट रही प्रत्येक घटना देखती और चुप हो जाती। इसी बारादरी में बादशाह वाजिद अली शाह के शाहबजादे का राज्याभिषेक नवाब वज़ीर सआदत अली खाँ की गद्दी पर बैठा कर किया गया। हाय री विडम्बना। बेटे का राज्याभिषेक और हजरत महल के पास वहां मौजूद लोगों को इस मौके पर देने लायक कुछ नहीं। बेगम ने आँखों में अश्क भर कर वहां मौजूद लोगों को एक-एक ‘दोशाला’ ओर “रूमाल’ भेट किया। आजादी के परवानों ने कसम खाई– मौत गले लगायेंगे। गुलामी नहीं ।’ इस बारादरी में एक लम्बे अरसे तक संग्रहालय भी कायम रहा। सन् 1883 में यह तय हुआ कि सीकचे वाली कोठी में मौजूद संग्रहालय को प्रान्तीय संग्रहालय का स्वरूप दिया जाए। अब समस्या आयी जगह की जिसका समाधान लाल बारादरी थी। आज इस लाल बारादरी में ललित कला अकादमी का कार्यालय कायम है। लाल बारादरी की वर्तमान स्थिति कभी अपनी भव्यता सुंदरता का परचम लहराने वाली यह लखनऊ ऐतिहासिक इमारत आज इसके प्रति चलती बेरूखी के कारण काल के गाल में समाती जा रही है, जो झरोखे और खिड़कियां हमेशा चमकती रहती थी आज उनकी चौखटे गल चुकी है प्लास्टर टूट टूट कर गिर रहा है, दीवारों पर दरारें और घास उग आई है। अगर जल्द ही इस विरासत पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक यहां सिर्फ भग्नावशेष ही शेष रह जायेगें। लखनऊ के नवाब:— [post_grid id=”9505″] लखनऊ के दर्शनीय स्थल:—- [post_grid id=’9530′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on 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