रोपड़ गुरू मंदिर इटौरा कालपी – श्री रोपड़ गुरु मंदिर का इतिहास Naeem Ahmad, August 26, 2022February 25, 2024 उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जनपद की कालपी तहसील में बसे एक ग्राम का नाम है “गुरू का इटौरा है। यह ग्राम कालपी से दक्षिण की ओर 8 मील तथा उरई से उत्तर पूर्व की ओर 16 मील की दूरी पर बसा हुआ है। ‘गुरू का इटौरा ” नाम स्वतः यह इंगित करता है वह इटौरा जो गुरू का स्थान हो अर्थात् जहाँ गुरू का स्थान हो वह इटौरा। यह स्थान प्रसिद्ध रोपड़ गुरु का स्थान है। यहां पर रोपड़ गुरु का मंदिर, आश्रम और अन्य कई महत्वपूर्ण मंदिर है। जो इस स्थान को एक तीर्थ स्थल का स्वरूप प्रदान करते हैं।गुरु का इटौरा का महत्वइटौरा का वर्णन ब्राह्मण पुराण में मिलता है जिसके अनुसार इस स्थान को स्वर्ग तथा मोक्ष का देने वाला और पुत्र तथा प्रपौत्रों को बढ़ाने वाला है। यहाँ से पास ही देवगुरू (श्री ब्रहस्पति जी) का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है। यह क्षेत्र ही इटौरा है क्योंकि इसी पुराण में आगे वर्णन मिलता है – “इटौराव्यं महापुण्यं भुक्ति मुक्ति प्रदावकम् । इस्रयाणां सुसंग्राही श्रैतका दशबोधकः चतुर्दशश महाविद्या उदरे यस्य संस्थिताः तेनांम त्रिदशाचार्य स्तन्नामाख्याति भागतः ॥ अस्तु वह महा पवित्र क्षेत्र इटौरा नाम से प्रसिद्ध भोग तथा मुक्ति का देने वाला है। ‘इ’ का अर्थ है 3 को इकट्ठा करने वाला और 8-11 का बोधक है। अर्थात् 11 और 3= 14 विद्यायें इनके पेट में स्थित हैं और इसी से देवगुरू ब्रहस्पति इस (इटौरा) नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्रहस्पति अगिंरस के पुत्र थे तथा देवताओं के गुरू माने जाते हैं। और यह इटौरा उनका स्थान होने के कारण “गुरू का इटौरा” कहलाता है।इस गुरू का इटौरा ग्राम को अकबरपुर इटौरा के नाम से भी जाना जाता है। इटौरा ढौंडिया खेरे के राजकुल में उत्पन्न रोपड़ गुरू की कार्य स्थली थी। जिससे प्रभावित होकर तत्कालीन भारत के मुगल बादशाह अकबर ने अपने नाम की कीर्ति हेतु ग्राम बसाया जिससे यह ग्राम अकबरपुर इटौरा के नाम से विख्यात हुआ।इटौरा का इतिहासयह गुरू का इटौरा अत्यंत प्राचीन स्थान है। ईसा से लगभग 1500 वर्ष पूर्व के समय को वैदिक काल के रूप में इतिहासकार मानते हैं। इसी वैदिक काल में पुराणों की रचना वैदिक पौराणिक काल का बोध कराता है। ब्रह्मांड पुराण में ‘इटौरा’ का वर्णन निम्नानुसार मिलता है:– “इटोराख्यं महापुण्य॑ भुक्ति मुक्ति प्रदायकम् ” अर्थात महापुष्य क्षेत्र भोग तथा मुक्ति का देने वाला , इटौरा नाम से प्रसिद्ध है। ब्रहमाण्ड पुराणानुसार यह क्षेत्र देवताओं के गुरु ब्रहस्पति का ब्रहस्पति ने ब्रहमा के वर्षों में सैकड़ों वर्षों तक तप किया था। यहाँ पर गुरु ब्रहस्पति का तडाग महापुण्य देने वाला है। जिसके स्नान मात्र से ही सभी पाप नष्ट हो जाते है। इस इटौरा ग्राम का अस्तित्व पौराणिक काल में था। यह ब्रहमाण्ड पुराण से स्पष्ट होता है।सूर्य मंदिर कालपी – कालपी सूर्य मंदिर का इतिहासईसा पूर्व की छठी शताब्दी में हुये धार्मिक परिवर्तनों के कारण इस युग को धार्मिक क्रान्ति युग एवं बौद्ध काल के रुप में जाना जाता है। इस काल में धार्मिक उत्सव एवं क्रिया कलाप उत्साह के साथ सम्पन्न होते थे। अतः प्राचीन आस्थाओं को सम्बल मिला और गुरु के इटौरा में यथा विधि गुरु का महात्म बना रहा। ईसा से 327 वर्ष पूर्व सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया। परन्तु यह क्षेत्र उसके आक्रमण के प्रभाव से मुक्त रहा। ईसा पश्चात् प्रथम शताब्दी से तृतीय शताब्दी तक यौधेयों का कार्यकाल रहा’ और उसके बाद सन 300 से सन 543 तक गुप्त शासकों का इस देश पर शासन रहा। गुप्तों के शासन से पूर्व विदेशी जातियों जैसे यवन , कुषाण , शक आदि भारत में आई परन्तु यह क्षेत्र इन सब जातियों के सांस्कृतिक प्रभाव से अछूता रहा और गुप्त काल तक इस क्षेत्र की सांस्कृतिक गतिविधियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ा।श्री बटाऊ लाल मंदिर कालपी जालौन उत्तर प्रदेशसन 543 से 565 तक हूणों तथा उसके पश्चात 9वी शताब्दी तक विभिन्न स्थानीय राजाओं का इस क्षेत्र पर अधिपत्य रहा। 9वीं शताब्दी से 13वी शताब्दी तक चन्देलों का शासन काल इस क्षेत्र पर रहा। ये चन्देल धर्मभीरु थे इसलिये इनके शासन काल में धार्मिक कार्यों की बढोत्तरी हुई व धार्मिक आस्थाओं को सम्बल मिला। सन 1206 से 1290 तक गुलामवंश का शासन इस देश पर रहा। सन 1290 से 1320 ई० तक खिलजियों ने व सन 1320 से 1413 ई० तक तुगलक वंश, सन 1414 से 1450 तक सैय्यद वंश व सन 1450 से 1526 ई० तक दिल्ली की गद्दी पर लोधियों शासन रहा। इन सबके शासन काल में यह गुरु का इटौरा सांस्कृतिक एवं वैचारिक रुप से अप्रभावित रहा और यहाँ पर सास्कृतिक एवं धार्मिक कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न होते रहे।चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहाससन 1556 में मुगल शासक अकबर ने जब दिल्ली से इस देश की राजसत्ता संभाली उस समय इस स्थान पर रोपड़ गुरु का आगमन हो चुका था और चूंकि रोपड़ गुरु तमाम चमत्कारिक अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न थे इस कारण उनकी चर्चा सर्वत्र फैल रही थी। रोपड़ गुरु की अलौकिक शक्तियों की चर्चा बादशाह अकबर ने भी सुनी और उन्हे अपने दरबार में बुलवाया। रोपड़ गुरु स्वयं तो अकबर के दरबार में नहीं गये परन्तु उन्होंने शाही हुक्म को नजर अन्दाज भी नहीं किया और अपने पुत्र मण्डन को अपनी अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न करके अकबर के दरबार में भेजा।जब मण्डन अकबर के दरबार में उपस्थित हुए तब अकबर ने उनकी अलौकिक शक्तियों की परीक्षा लेने की दृष्टि से एक गर्भवती घोड़ी मंगवाई और पूछा कि यह घोड़ी किस रंग का बच्चा जनेगी। मण्डन ने उसका जवाब दिया और कहा कि भूरे रंग का बच्चा जनेगी। इस पर उस घोड़ी का पेट खोल कर देखा गया और पाया कि बच्चे का रंग भूरा ही था। इसी प्रकार बादशाह अकबर ने एक दूसरी परीक्षा लेने के आशय से एक मटकी में काला सर्प बन्द करके दरबार में मंगवाया। इस पर मण्डन ने उस मटकी को लेकर अपने हाथ से सभी- दरबारियों को उस मटकी के अन्दर से प्रसाद निकालकर वितरित किया और अकबर को प्रसाद नहीं दिया। अकबर द्वारा प्रसाद माँगे जाने पर मटकी उनके सम्मुख रख दी और कहा कि इसमें वही है जो तुमने मंगवाया था। इससे अकबर प्रभावित हुआ और उसने मण्डन के आगे अपना सिर झुका दिया और इटौरा के पास अपने नाम से एक ग्राम बसाया जो कि अकबरपुर इटौरा नाम से विख्यात हुआ। श्री रोपड़ गुरू का जीवन परिचयश्री रोपड़ गुरू का जन्म डौंडिया खेरे के राजकुल में संवत 1540 में हुआ था, जो कि उन्नाव जनपद में स्थित है। भविष्य खण्ड 4 के अध्याय 18 श्लोक 18 में रोपण गुरू के विषय में इस प्रकार वर्णित है:–इत्युक्वा भगवांजाबों देव महात्म्य मुत्त मम् स्वनखात्सवांशमुत्पाथ बम्हयो निर्वभूवह इृष्ट का नगरी रम्या गुरूदत्तस्य वैसुतः रोपणो नाम विख्यातो ब्रहम मार्ग प्रदर्शकः सूत्र ग्रन्थ कृतां मालां तिलक जल निर्मतम् वासुदेवेति तन्मंत्र कलौ कृत्वा जने जने ॥गुरु ब्रहस्पति जी ऐसा देवताओं से कहकर अपने अंश करके ब्रहमयोनि को प्राप्त भये और इष्टाकापुरी में रोपण गुरू के नाम से प्रख्यात हुए और सूर्य ग्रन्थ आदि ब्रह्म मार्ग के दर्शक हुए।श्री रोपड़ गुरु मंदिर अकबरपुर इटौराबाल्यकाल में ही श्री रोपड़ की आध्यात्मिक प्रवृत्ति थी।इस कारण राज्य छोड़कर तप करने हेतु कालिन्दी के तट पर पहुँच गये और वहां से वापिसी पर उस स्थान पर ठहर गये जहां भगवान दत्तात्रेय ने तपस्या की थी। निश्चित रुप से वह स्थान सिद्ध क्षेत्र था। उस सिद्ध क्षेत्र में श्री रोपड़ गुरु ने स्वयं समाधि लगाई और समाधि के पश्चात जब नेत्र खोले तब सामने एक ब्रह्मचारी को खड़ा पाया। उस ब्रह्मचारी ने श्री रोपड़ से जल की मांग की। रोपड़ जब जल की व्यवस्था करके आये तब उस ब्रह्मचारी ने रोपड़ गुरु से पूछा कि क्या तुम्हारा कोई गुरु है ? रोपण ने नकारात्यक उत्तर देते हुये उस ब्रह्मचारी को ही अपना गुरु बनाने की बात कही। इस पर ब्रह्मचारी ने रोपड़ की प्रार्थना स्वीकार करते हुये उन्हे गुरु मन्त्र से दीक्षित किया है। जिससे रोपड़ के अन्तर में ज्ञान का उदय हुआ और उन्होने उस गुरु ब्रह्मचारी को बारम्बार प्रणाम किया तथा ब्रह्मचारी ने रोपड़ गुरु द्वारा लाये गये जल से अपनी प्यास बुझायी फिर ब्रह्मचारी का रुप धारण करने वाले भगवान विष्णु ने अपना लावण्य रुप प्रगट करके रोपड़ से वरदान माँगने हेतु कहा तब रोपड़ गुरु ने यह वरदान माँगा कि इस क्षेत्र को समस्त सिद्धियाँ प्राप्त हो और भगवान विष्णु तथास्तु कह कर अर्न्ध्यान हो गये।गणेश मंदिर कालपी – गणेश मंदिर का इतिहासजब रोपड़ गुरु को ब्रहम् ज्ञान प्राप्त हो गया तब उनकी कीर्ति चारों ओर फैलने लगी और यह कीर्ति दिल्ली के तख्त पर बैठे अकबर ने भी सुनी। अकबर ने थी रोपड़ गुरु की अलौकिक शक्तियों से प्रभावित होकर एक मन्दिर तड़ाग का निर्माण का आदेश दिया तथा निकट ही अपने नाम से एक ग्राम बसाने की भी घोषणा की।इसके बाद से श्री रोपड़ की गुरु के रुप में सभी जगह मान्यता हो गई। संवत 1618 में श्री रोपण गुरु ने गुरु पद की पदवी पाई। यह गुरू परम्परा आज भी निर्बाध रूप से चल रही है। कार्तिक शुक्ल पंचमी से रोपण बाबा के सम्मान में एक मेला लगता है जो 15 दिनों तक चलता है तथा जिसमें दूर दूर से लोग आते हैं. श्री रोपड़ गुरू द्वारा निरंजंनी नाम का एक अलग पंथ चलाया गया।ग्राम गुरु के इटौरा में दो दर्शनीय स्थल हैं एक श्री रोपड़ गुरू का मंदिर तथा दूसरा तडाग। यह दोनों स्थल एक दूसरे के निकट स्थित हैश्री रोपड़ गुरू का मंदिररोपड़ गुरु का मंदिर का मुख पूर्व की ओर व तड़ाग के पश्चिमी किनारे पर यह स्थित है। यह मंदिर चार मंजिलों का है तथा इसका निर्माण जहाँगीर के शासन काल में हुआ। मंदिर का इतिहास देखने से पता चला है कि श्री रोपड़ गुरू की अलौकिक आध्यात्मिक शक्तियों से प्रभावित होकर अकबर बादशाह ने इटौरा के पास ही अपने नाम से एक ग्राम बसाया तथा श्री रोपड़ गुरू के सम्मान में एक चौमंजिला भव्य मंदिर के निर्माण हेतु आदेश दिया। “प्रणाम-विलास” में वर्णित है:–सम्बत् सोरा सौ ऋषि नयना, क्रोधी मां मास शुभ ऐना पुष्प नक्षत्र चन्द्र शुभ बारा, तेहि दिन आज्ञा कीन्ह भुआरा करी धाम कर अब प्रारंभा, चहुँ दिशि शुभग लगावौ खम्बा यह कह पुनि यक ग्राम बसावों, हमरे नाम प्रसिद्ध कराबो।।अर्थात् सवंत 1672 में माघ पुष्प नक्षत्र चन्द्रवार को इस मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ। इस मंदिर के निर्माण के विषय में प्रणाम विलास में प्राप्त वर्णन के अनुसार अकबर द्वारा करवाया गया परन्तु इस मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण जहाँगीर द्वारा सम्पन्न हुआ।रोपड़ गुरु मंदिर का वास्तुशिल्पतड़ाग के पश्चिमी तट पर स्थित पूर्वा भिमुख॒ यह अत्यन्त मनोहारी चार मंजिला मंदिर है। इस मंदिर के पश्चिमी भाग में श्री रोपड़ गुरू सहित उनके बाद के अन्य सभी पंद्रह गुरूओ की समाधियाँ बनी हुई है। यह मंदिर तपसमाधि व विश्राम पूर्ण समाधि का अनुपम संगम स्थल है। इस मन्दिर में तपसमाधि का विशेष स्थान है। तपसमाधि एक चबूतरे के आकार की है। जिसके ऊपर एक मठिया निर्मित है। इस मठिया आकार में चन्दन का दो पल्लों का दरवाजा लगा हुआ है। इस दरवाजे से सात सीढ़ियाँ नीचे जाने पर सामने दीवार पर एक बड़ा आलेनुमा स्थान पर श्री रोपड़ गुरू का काल्पनिक हस्तनिर्मित चित्र रखा हुआ है। यह काल्पनिक चित्र मंदिर के पूर्वी स्तंभ पर एक लाल पत्थर की शिला पर अंकित चित्र के आधार पर बनाया हुआ है। श्रृद्धालु जन सीढ़ियों के सहारे नीचे तल घर में जाकर इसी स्थान पर दर्शन कर लाभान्वित होते हैं।श्री रोपड़ गुरु मंदिर इटौरा कालपीयह सम्पूर्ण समाधि स्थल लाल पत्थर के चार खंभों से घिरा है। प्रत्येक स्तंभ चार खंभों के संयोजन से बना है। ये चारों स्तंभ ऊपरी हिस्से में जालीदार घंटीनुमा बेल से अलंकृत पत्थरों से जुड़कर पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण चारों दिशाओं में चार अलंकृत मेहराबदार दरवाजों का निर्माण करते हैं। प्रत्येक स्तंभ के अग्र कोने पर तोड़ा के स्थान पर एक सवार युक्त घोड़ा अंकित है। इस घोड़े के दोनों ओर दो दो हाथी शांत मुद्रा में अंकित है। इन सबके ऊपर पत्थरों से जुड़ा हुआ पत्थर लगा है। जो मेहराबदार दरवाजे का ऊपरी भाग का निर्माण करता है। यह मंदिर की आंतरिक स्तंभ पंक्ति है। इस पंक्ति के बाहर मध्य की स्तंभ पंक्ति का निर्माण 12 स्तंभों की सहायता से किया गया है। जो आंतरिक चार स्तंभों के वर्ग को वर्गाकार आवरण प्रदान करता है। इस मध्य वर्ग की प्रत्येक भुजा में चार स्तंभ है। पूर्वी खंभों की कतार में तोड़ा स्थान पर दोनों कोणीय स्तंभों पर ऊपर की ओर बहाली कोने पर एक एक साथी तथा बीच के दक्षिणी स्तंभ पर सवार युक्त दो अश्व उतरी बीच के स्तंभों पर दो दो हाथी अंकित है। दक्षिणी पंक्ति के पूर्वी स्तम्भ पर तोड़ा स्थान पर एक हाथी व पश्चिमी स्तम्भ के तोड़ा स्थान पर एक सिंह अंकित है तथा बीच के दोनों स्तम्भों पर ‘दो दो मोरों का एक एक जोड़ा अंकित है। उत्तरी स्तम्भों की पंक्ति में तोड़ा स्थान पर पश्चिमी स्तम्भ पर एक हाथी अंकित है शेष सभी स्तम्भों पर दक्षिणी पंक्ति के स्तम्भों की भाँति मोर व हाथी अंकित है। इस प्रकार से द्वितीय वर्ग में कुल बारह स्तम्भ हैं।पाहूलाल मंदिर कालपी – पाहूलाल मंदिर का इतिहासबाहरी व तृतीय वर्ग में कुल स्तम्भों की संख्या 20 है। वर्ग की प्रत्येक भुजा में लगे सभी स्तम्भ लाल बलुआ पत्थर के बने हैं। इन सभी स्तम्भों से ही चार मंजिला यह मंदिर बना है। सबसे ऊपरी मंजिल अपूर्ण सी लगती है फिर भी उसके ऊपर कलश स्थापित है। इस मंदिर की स्थापना का कार्य श्री परशुराम जी द्वारा एक वर्ष के अन्तराल में सम्पन्न हुआ। फिर दानशील वैश्य क्षत्रिय श्री रामजी ने इस मनोहर आयतन को प्रस्तरमय बनवाया। इस मंदिर चैत्य हेतु श्री परशुराम जी के पुत्र श्री रतिभानु जी फतेहपुर सीकरी से 6 मील दूर स्थित भरतपुर स्टेट की रूपवास तहसील के सिंहावली नामक ग्राम से यमुना नदी के रास्ते नौकाओं से पत्थर कालपी लाये थे। वहीं से बैलगाड़ियों से यह पत्थर इटौरा लाया गया।पातालेश्वर मंदिर कालपी धाम जालौन उत्तर प्रदेशयह ग्राम सोलहवीं शती में अकबर के शासन काल में बसाया गया तथा अकबरपुर में इस मन्दिर का निर्माण हुआ। यह मन्दिर अकबर कालीन प्रतीत होता है क्योंकि अकबर के समय की इमारतों में कलाकारी उच्च श्रेणी की होती थी व इस काल की इमारतें सुन्दर व सजीव होती थीं। उनकी सादगी के कारण उनमें जो निखार पैदा हुआ है वह अत्यन्त सुन्दर है। इस मंदिर की निर्माण शैली में सजावट की छाप स्पष्ट है। अकबर ने अपने समय में लाल पत्थर का उपयोग किया है जो उसे आसानी से उपलब्ध हो जाता था। यह रोपड़ गुरू का मंदिर हिन्दू मुस्लिम वास्तु कला का एक अनुपम उदाहरण है। हिन्दू मुस्लिम वास्तुकला के सभी उपागों को यह मंदिर पूरा करता है। रोपड़ गुरु मंदिर की नींव सुदृढ़ है। नीव के ऊपर वर्गाकार जो कक्ष का निर्माण है वह स्तम्भों की सहायता से किया गया है। स्तम्भ पत्थर से तैयार किये गये हैं और फिर उन्हें गढ़ कर सुन्दर बनाया गया है। इन पर बेलबूटों द्वारा सजावट की गई है। इस मंदिर का फर्श साफ सुथरा तथा चिकना है और अच्छे ढंग से बनाया गया है तथा उसमें मजबूती के साथ साथ सुन्दरता भी पैदा की गई है।सरोवरश्री रोपड़ गुरू के मंदिर के पूर्व में यह सरोवर स्थित है इसी के पश्चिमी घाट पर श्री रोपड़ गुरू का चार मजिला मंदिर स्थित है। यह सरोवर अत्यन्त प्राचीन है। इसी सरोवर को ब्रहस्पति जी का तड़ाग कहते हैं। ब्रहमाण्ड पुराणानुसार इटौराख्यं महापुण्य॑ मुक्ति मुक्ति प्रदायकम् । अर्थात वह महा पवित्र क्षेत्र इटौरा नाम से प्रसिद्ध तथा मुक्ति का देने वाला है। आगे इसी पुराण में वर्णन मित्रता है किभवेदत्त न संदेहो मुने ! सत्य ब्रवीमिते । वृहस्पति स्तपस्तेये ब्रहमणः शरदां शत्म् ॥ अर्थात् हे मुने ! इसमें तुम्हे सन्देह न हो, मैं तुमसे सत्य ही कहता हूं, यहां पर श्री बृहस्पति ने ब्रम्हा की 100 वर्ष तपस्या की। “एवं प्रभावः समुनि : क्षेत्र तस्य तथा विधम् । ब्रहस्पति सरस्तत्न दर्शनात्पापनाशनम् ॥” “तत्रस्नात्वा विधानेन देवान पितृन समर्चयेत दद्या द्वानानि पिप्रेम्यस्तदा नन्त्याय कल्पते ॥” “ब्रहस्पति सरस्नान महापातक नाशनम् । महा सम्पतकर प्रोक्त स्वर्ग मोक्ष फल प्रदय ॥” अस्तु वे मुनि तथा उनका क्षेत्र ऐसे प्रभाव वाला है। वहाँ पर श्री ब्रहस्पति का तालाब है जिसके दर्शन से पाप नष्ट हो जाते हैं। वहाँ पर स्नान करके विधि पूर्वक देवता और पितरों को पूजे तथा ब्राह्मणों को दान दे जिससे वह कभी न नष्ट होने वाला हो जाता है। ब्रहस्पति के सरोवर में स्नान करने से बड़े बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं तथा महा सम्पत्ति व स्वर्ग मोक्ष फल प्राप्त होता है। पौराणिक काल से पूजित यह सरोवर आज भी जन मानष में अपना विश्वास आस्था बनाये हुए अडिग है।कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदीयह सरोवर काफी विशाल है। इसके चारों ओर घाट बने हुए थे। आज इस सरोवर के उत्तरी एवं पश्चिमी तटों पर ही घाट देखे जा सकते हैं। इस सरोवर के मध्य में उजियार नाम के ब्रहमज्ञानी शिष्य का समाधि स्थान निर्मित है महा भविष्य पुराण में उल्लिख़ित इष्ट की नगरी (वर्तमान इटौरा ग्राम) के मध्य में गुरू की ब्रहस्पति के सरोवर का वर्णन है जो पापों को नष्ट करने वाला व मोक्ष का देने वाला है। वह यही सरोवर है। वैसे तो यह सरोवर काफी विस्तृत है परन्तु वर्तमान में जो भाग इटौरा वासियों के उपयोग में आ रहा है वह लगभग 435 फुट चौड़ा एवं 525 फुट लम्बा है। इसके आगे सरोवर का पुन्छा नाम से जाना जाने वाला भाग अत्यन्त विस्तृत है।श्री रोपड़ गुरू का मंदिर व सरोवर से सम्बन्धित जनश्रुतियाँइटौरा ग्राम के सभी हलवाई जब मिठाईयों की रानी बताशा फेनी बनाते हैं तब उसकी चीनी की चाशनी बनाने के लिए इस ब्रहस्पति के सरोवर का पानी ही प्रयोग करते हैं क्योंकि उन सबका अपना अनुभव है कि इटौरा ग्राम के किसी भी अन्य स्थान के जल से चाशनी में सफेदी नहीं आती है। चाशनी में सफेदी सिर्फ सरोवर के जल से ही आती है।करण खेड़ा मंदिर जालौन – करण खेड़ा का इतिहास व दर्शनीय स्थलयह भी जनश्रुति है कि सरोवर के पश्चिमी तट पर बने श्री रोपड़ गुरू के मन्दिर का निर्माण गन्धर्वों द्वारा किया गया है। इटौरा ग्राम की किसी महिला द्वारा ब्रहम मुहर्त के धोखे में चक्की (अनाज पीसने वाली) चला देने के कारण गन्धर्व गण इस मंदिर की सबसे ऊपरी चतुर्थ मंजिल का निर्माण पूर्ण न कर सके और भाग गये। इसी कारण मंदिर की चतुर्थ मंजिल आज भी अपूर्णता का अहसास कराती है चक्की चलने की घटना उसी रात्रि की घटना है जिस रात्रि में गन्धर्व गण मंदिर का निर्माण कर रहे थे। यह मंदिर सिर्फ एक रात्रि में ही बना है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like 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