रॉबर्ट हुक का जीवन परिचय – रॉबर्ट हुक की खोज? Naeem Ahmad, May 29, 2022 क्या आप ने वर्ण विपर्यास की पहेली कभी बूझी है ? उलटा-सीधा करके देखें तो ज़रा इन अक्षरों का कुछ सिर-पैर बन सकता है क्या– CEIIINOSSTUV? इस पहेली में विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक का एक नियम दर्ज है जिसके उत्तर के बारे में इस लेख में आगे जानेंगे। और रॉबर्ट हुक के जीवन और खोजों का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर खोजने की कोशिश करेंगे:—- रॉबर्ट हुक का जीवन परिचय? रॉबर्ट हुक कोशिका की खोज कब की थी? रॉबर्ट हुक ने किसकी खोज की थी? रॉबर्ट हुक का जन्म कब हुआ था? सेल शब्द देने वाले वैज्ञानिक का नाम क्या था? रोबर्ट हुके कहा के वैज्ञानिक थे? रॉबर्ट हुक की उपलब्धियों से दुनिया को क्या फायदा हुआ? रॉबर्ट हुक का वैज्ञानिक योगदान क्या था? रॉबर्ट हुक ने कोशिका की खोज कैसे की थी? रॉबर्ट हुक ने किसका आविष्कार किया? रॉबर्ट हुक का माइक्रोस्कोप में क्या योगदान है? रॉबर्ट हुक का जीवन परिचय रॉबर्ट हुक का जन्म 18 सितम्बर, 1635 को इंग्लैंड के दक्षिणी तट से कुछ परे, बाइट द्वीप में हुआ था। रॉबर्ट हुक के पिता स्थानीय चर्च में सहायक पादरी के पद पर था, और पद की दृष्टि से उसकी आर्थिक स्थिति भी कुछ बुरी नहीं थी। किन्तु रॉबर्ट अभी 13 वर्ष का ही था कि पिता की मृत्यु हो गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि रॉबर्ट को घर छोड़ लन्दन जाना पडा। जहां उसे उन दिनों के माने हुए पोट्रेंट-चित्रकार सर पीटर लेली के यहां नौकरी मिल गई। चित्रकला में भी उसकी प्रतिभा कुछ कम न थी, किन्तु रॉबर्ट अक्सर बीमार रहा करता और चित्रकारी में प्रयुक्त होने वाले रंगों-तेलों को उसकी प्रकृति बरदाश्त नहीं कर सकती थी। यहां शागिर्दी करते हुए उसका भविष्य सुरक्षित था, तरक्की के लिए अवकाश भी पर्याप्त थे, पर सेहत ने साथ न दिया। किन्तु कला में यह प्रारम्भिक दीक्षा भी आगे चलकर उसके काम आई। सौभाग्य से पिता पीछे उसके लिए 100 पौंड छोड़ गया था। उन दिनों यह रकम काफी मानी जाती थी और, इसी के बल पर राबर्ट वैस्टमिन्स्टर स्कूल में दाखिल हो गया। 18 वर्ष की आयु में उसे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया। कालेज की पढ़ाई के लिए उसे कुछ काम-धाम भी करने पड़े। क्राइस्ट चर्च में सम्मिलित गान, छोटी-मोटी चपरासगीरी और इसी तरह के छुट-पुठ सम्बद्ध असम्बद्ध कुछ दूसरे काम। कितने ही क्षेत्रों में उसने कुछ न कुछ दक्षता प्राप्त कर देखी थी। नक्शाकशी, किताबों में चित्र जुटाना, लकडी और धातु पर काम, और इन सबसे बढ़कर वह एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी भी था। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के दिनो में उसका क्रिस्टोफर रेन तथा रॉबर्ट बॉयल से मेल हुआ। रॉबर्ट बॉयल स्वयं एक प्रतिभाशाली व्यक्ति था और सम्पन्न भी था। वह हुक से आठ साल आगे था। उसने देखा कि हुक में प्रतिभा भी है निशछलता भी, अनुसंधान कार्य में तथा परीक्षण शाला में। सो इस होनहार विद्यार्थी को उसने अपना सहायक लगा लिया। क्रिस्टोफर रेन का क्षेत्र था ज्यामिति, और 1660 मे उसकी नियुक्ति आक्सफोर्ड में ही ज्योति विज्ञान के प्रोफेसर के रूप मे हो चुकी थी। 1668 मे रेन ने अपनी जीवन दिशा बदल ली। वह एक वस्तु शिल्पी बन गया, और आज भी उसकी ख्याति लन्दन के सेण्टपाल गिरजे के निर्माता के रूप में ही अधिक है। रेन के घर मे आये दिन इग्लैंड के माने हुए वैज्ञानिक इकट्ठे हुआ करते। यही वस्तुत अदृश्य कुल का संकेत स्थान था, वही अदृश्य कुल जो आगे चलकर वैज्ञानिको की रॉयल सोसाइटी बन गया। रॉबर्ट हुक कुछेक का विश्वास है कि विज्ञान के क्षेत्र मे रॉबर्ट बॉयल के नाम से प्रसिद्ध बहुतकुछ कार्य, गैसो सम्बन्धी बॉयल का नियम भी, वस्तुत हुक की ही योग्यता और करामात का नतीजा था। असल में हुक मे कही-कही ऐसे संकेत मिलते भी है। किन्तु ईमानदारी का सेहरा बॉयल का भी कुछ कम नही ठहरता, क्योकि खुद बॉयल की ही परीक्षण शालाओं में जिस वैक्यूम पम्प का आविष्कार हुआ था बॉयल ने उसकी ईजाद का श्रेय खुलेआम हुक को ही दिया था। यद्यपि तब भी उसका नाम बॉयल का इंजन ही था। एक अजीब ढंग की नौकरी रॉबर्ट हुक को रॉयल सोसाइटी में मिली हुई थी, जिसके लिए तनख्वाह उसे एक पैसा भी नही मिलती थी। वह यह कि सोसाइटी के हर अधिवेशन से पहले जो भी परीक्षण दरशाने उसके सदस्यो को अभीष्ट होते उन सबका प्रबन्ध हुक के जिम्मे था। इस तजरबे से उसे काफी फायदा हुआ। एक तो युग के ज्ञान-विज्ञान की प्राय सभी शाखाओं से उसका सम्पर्क नित्य हो गया और दूसरे उसकी निजी परीक्षण-बुद्धि का विकास भी इस प्रकार स्वत सिद्ध हो गया। रॉयल सोसाइटी के पास उन दिनो लम्बी-लम्बी चिट्ठियां आये-दिन आया करती थी जिनमे ल्यूवेनहॉक की जीवाणुओ-कीटाणुओ के जीवन की छोटी-सी दुनिया के ब्यौरे छिपे रहते। ल्यूवेनहॉक के घर मे कितने ही माइक्रोस्कोप तैयार हो चुके थे। एक ही लेंस वाले अद्भुत सूक्ष्मदर्शी यन्त्र, जो छोटी-छोटी चीज़ों को खूब बडा करके दिखा सकते थे। 400 लेंस उसने बना लिए थे किन्तु वह एक भी लैंस किसी भी कीमत पर किसी को देने को तैयार न था। रॉयल सोसाइटी ने यह काम रॉबर्ट हुक के जिम्मे लगाया कि वह एक ऐसा माइक्रोस्कोप तैयार करे जिससे ल्यूवेनहॉक के दावों की परीक्षा की जा सके। रॉबर्ट हुक ने दो-दो, तीन-तीन लैंस मिलाकर कुछ कम्पाउण्ड माइक्रोस्कोप तैयार किए और जो कुछ उनके द्वारा प्रत्यक्ष किया उसके कोई साठ-एक रेखा-चित्र भी तैयार किए। उसकी आरम्भिक दीक्षा चित्रकला में हुई भी थी। मक्खी की आंख, डिम्ब का कायान्तर, पंखों की आन्तर रचना, जूएं, मक्खियां, इन सबके चित्र जो असल को कही बढा-चढा कर लेकिन हुबहू पेश किए गए ताकि इन वस्तुओ के सम्बन्ध में कुछ ज्ञान हासिल हो सके। इन अद्भुत चित्रों की प्रकाशन व्यवस्था भी 1664 मे कर दी गई–माइक्रोफेजिया’ के प्रामाणिक पृष्ठों मे। रॉबर्ट हुक ने माइक्रोस्कोप की रचना का सिद्धान्त तथा कार्य सार्वजनीक कर दिखाया, किन्तु इतिहास सूक्ष्मेक्षण-विज्ञान का जनक ल्यूवेनहॉक को ही मानता है। 1666 मे लन्दन मे एक बडी आग फैली। इससे पहले कि आग की लपटों को काबू मे लाया जा सकता, अस्सी फीसदी शहर जलकर खाक हो चुका था। रैन को जो अब एक प्रख्यात वास्तुशिल्पी था, लन्दन के पुन निर्माण कार्य में हुक का मुहताज होना पडा। शहर के पुनरुद्धार की योजना, जिसका श्रेय प्राय रैन को दिया जाता है, वस्तुत हुक की कृति है। इस योजना में परामर्श दिया गया था कि नगर को एक आयताकार रूप मे पुर्नजीवित किया जाए जिसमे गलियां और सड़कें एक-दूसरे को लम्ब पर काट रही हो। यह योजना स्वीकृत हो गई, किसी योजना-गत दोष के कारण नही, अपितु इसलिए कि जो मकान जलकर ढेर नही हो गए थे उनके मालिकों ने खुलकर इसका विरोध किया। और नतीजा साफ था, आज भी लन्दन मे कितनी ही तंग और टेढीमेढी गलियां विद्यमान है। रॉबर्ट हुक द्वारा डायल बैरोमीटर का आविष्कार वैज्ञानिक उपकरणों के निर्माण मे हुक की दक्षता अद्भुत थी। दृष्टि-विज्ञान मे उसका खासा प्रवेश था, जिसका उपयोग उसने नक्षत्र-सम्बन्धी गणनाओं मे कर दिखाया। एक ऐसी क्वाड्रैण्ट बनाकर, जिसमे दूर लोक के दृश्य भी उतर सके और साथ मे उसे यथा इच्छा आगे-पीछे करने के लिए कुछ स्क्रू एडजस्टमेंट भी हो। समुंद्र यात्रा के लिए इष्ट सर्वेक्षण की सुविधा के लिए भी उसने कुछ उपयोगी उपकरण तैयार किए, समुद्र की विभिन्न गहराईयों से पानी इकट्ठा करने के लिए, उन गहराईयों को शब्द गति द्वारा सही-सही जानने के लिए भी। मौसम का हाल मालूम करने के लिए भी उसके अपने ईजाद किए कुछ साधन थे। वायु की गतिविधि मापने का एक गेज, डायल-पाइप बैरोमीटर और वर्षा मापक तथा आर्द्वता-ज्ञापक यन्त्र, यही नही, रॉयल सोसाइटी के प्रश्नय मे उसने ऋतु-सम्बन्धी सूचनाओ के प्रकाशन की भी कुछ व्यवस्था की। ऋतु-सम्बन्धी इन पूर्व सूचनाओं का हम हुक को एक प्रकार से प्रवर्तक ही मान सकते है। सिद्धान्त की दृष्टि से रॉबर्ट हुक का विचार था कि इन ऋतु परिवर्तनो के मूल मे सूर्य का प्रकाश विकिरण तथा पृथ्वी की परिक्रमा–ये दो कारण ही प्रमुख होते है। अभी न्यूटन के ‘प्रिसीपिया’ का प्रकाशन नही हुआ था कि किस प्रकार ये ग्रह-नक्षत्र गुरुत्वाकर्षण द्वारा एक-दूसरे को थामे हुए है। इसके कोई पांच साल पहले ही हुक का रॉयल सोसाइटी के सम्मुख एक व्याख्यान हुआ था जिससे स्पष्ट है कि गुरुत्व के सामान्य विश्व-व्यापक प्रभाव को वह भी कहा तक समझ सका था। इस प्रसंग में उसके शब्द अंकित है कि “ये सभी ग्रह और नक्षत्र आकार मे प्राय वर्तुल हैं और इनमे प्रायः सभी अपनी धुरी के गिर्द ही परिक्रमा करते हैं। यदि इनमे एक प्रकार का कुछ गुरुत्वाकर्षण परस्पर सक्रिय न होता तो ये कभी के टूट-फूटकर, गुलेल से एक बार छूट गए पत्थर की तरह नष्ट हो चुके होते।” न्यूटन अपने गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त का प्रतिपादन दस साल पहले कर चुका था किन्तु उसके प्रकाशन की कुछ व्यवस्था नही बन सकी थी। और जब सचमुच “प्रिसीपिया’ छपकर लोगो के सामने आ गईं, हुक यह सोचकर बडा विचलित हुआ कि न्यूटन ने उसी के अनुसन्धानों को उलथा करके छाप दिया है और किंचित भी आभार-प्रदर्शन नही किया। इस छोटी-सी घटना से विज्ञान के दोनो महान प्रवर्तकों मे काफी विद्वेष एवं वेमनस्य आ गया। यह कथानक शुरू करने से पहले हमने एक वर्ण-पहेली पाठक के सम्मुख रखी थी, क्या पाठक उसका कोई समाधान निकाल सका ? प्रश्न का सही उत्तर है—Ut tensio, sic, vis, यह लेटिन मे एक वाक्य है जिसमे हुक का ‘इलेस्टिसिटी का नियम’ दर्ज है। किन्तु 1676 मे हुक ने इस ‘विपर्यास’ का प्रयोग अपने एक वैज्ञानिक निबन्ध मे एक बिलकुल ही दूसरे अभिप्राय से किया था। अभी उसे इसकी सत्यता के पूरे प्रमाण मिल भी नही पाए थे। उसे स्वय भी अभी यकीन नहीं आया था कि यह नियम सचमुच सही भी है या नही। खेर, इसे प्रकाशित करने का उसका ध्येय यही था कि ‘एक वैज्ञानिक स्थापना सबसे पहले मैंने दुनिया को दी है। पुस्तक पर अंकित वर्ष इस दावे में उसके समर्थन में एक अकाट्य प्रमाण था। लेटिन वाक्य का अनुवाद है. “धागे या स्प्रिंग का खिंचाव उस पर लगी शक्ति का समानुपाती होता है।” यह नियम देखने मे इतना सरल प्रतीत होता है कि बुद्धि को सहसा विश्वास भी नही आता। यदि एक पौंड लटका-भार रस्सी को या स्ंप्रिग को एक इंच तक खीच सकता है, तो दो पौंड उसे दो इंच तक और दस पौंड दस इंच तक खींचता जाएगा अलबत्ता उसमे इतना भार बर्दाश्त करने का माथा हो। इस नियम का प्रयोग रॉबर्ट हुक ने एकदम एक स्प्रिंग बेलेन्स बनाने मे कर दिखाया। तराजू तैयार करके हुक उसे सेण्टपाल के गिरजा पर ले गया, और एक ज्ञात भार भी साथ लेता गया, यह दिखाने के लिए जितना अधिक हम ऊचाई पर पहुंचते जाते हैं गुरुत्वाकर्षण का बल वहां उतना ही कम होता जाता है। इस वस्तुस्थिति के मूल में जो सिद्धान्त काम कर रहा होता है वह यह है कि पृथ्वी के केन्द्र के निकट तर पडे द्रव्य पर यह आकर्षण अपेक्षया अधिक होना चाहिए, और केन्द्र से दूर कम। स्प्रिंग की गतिविधि का विश्लेषण करके, अब वह उसके आधार पर घडियाऊ बनाने की ओर प्रवृत्त हुआ। उन दिनो पेंडुलम घड़ियों का इस्तेमाल आम था। घडी को बस किसी जगह पर रख दिया, कही उठाकर ले नही जा सकते। इसके अलावा जहाज़ों पर इसका प्रयोग अवसर एक समस्या हो जाता, क्योंकि भूमध्य रेखा की ओर चलते हुए इसकी सूइया सुस्त पडने लग जाती, क्योकि वहा गुरुत्वाकर्षण जो कम हो जाता है इसलिए पेंडुलम को हटाकर रॉबर्ट हुक ने उसकी जगह एक बेलेंस व्हील, और बाल-नुमा एक महीन स्प्रिंग का प्रयोग शुरू कर दिया। हुक का विचार यह था कि यह स्प्रिंग अपने केन्द्र बिन्दु के गिर्दे एक ही रफ्तार से स्पन्दन करता रहेगा। किन्तु यहां भी हुक को सफलता नही निराशा ही मिली, क्योकि फ्रांस से क्रिस्चियन ह्यूजेन्स इसी तरह की कुछ व्यवस्था प्रस्तुत करके उसे 1676 में पेटेंट करा चुका था। हुक ने सिद्ध कर भी दिखाया कि पहले-पहल ग्रह विचार उसी के दिमाग से निकला था ह्यूजेन्स के दिमाग से नही, किन्तु ह्यूजेन्स का पेटेंट फिर भी बदस्तूर चलता ही रहा।आविष्कार सचमुच हुक का था, किन्तु उसकी आगे छानबीन मे उसने और दिलचस्पी फिर नही दिखाई। आखिर हुक रॉयल सोसाइटी का सेक्रेटरी भी बन गया। सन् 1682 में उसने यह नौकरी छोड दी। किन्तु विज्ञान-सम्बन्धी उसके निबन्ध उसके बाद भी सोसाइटी को बाकायदा मिलते रहे। वह अन्त तक अविवाहित ही रहा। लेकिन एक भतीजी उसके साथ ही रहा करती थी और उसके घर की देखभाल किया करती थी। 1687 मे इस भतीजी की मृत्यू हो गई और इस धक्के को वह बरदाश्त न कर सका। वह बिलकुल ही बुझ गया। 1703 मे रॉबर्ट हुक की मृत्यु के दो साल बाद उसके नोटस प्रकाशित हुए। इन 400,000 शब्दों मे उस महान वैज्ञानिक की अभिरुचियों की व्यापकता एवं परिपूर्णता प्रमाणित है। लोकदृष्टि से हुक को कीर्ति एवं सफलता शायद नही मिल सकी, किन्तु उसकी मौलिक प्रतिभा कितने ही वैज्ञानिक आविष्कारों एव सिद्धान्तो का पूर्वाभास दे गई। जब उसने पेचकस के मुंह को अपनी घडी पर टिकाया और लकडी के सिरे को अपने कान पर लगाया, क्या स्टेथस्कोप की उत्पत्ति का पूर्वाभास उसमे नही आ चुका था ? विज्ञान- जगत को इसे क्रियात्मक रूप देने मे यद्यपि 150 साल और लग गए। कार्क को माइक्रोस्कोप से देखते हुए उसने नोट किया कि इसकी आन्तर रचना बिलकुल एक शहद के छत्ते की सी है, जिसका वर्णन करते हुए उसने ‘सेल’ (घर, कोष) शब्द का प्रयोग भी किया है। ऐसे वैज्ञानिक भी कितने ही उन दिनों थे जिनकी रूचि समाज सेवा में भी कम नहीं थी। उनमें ही हुक भी एक था जो दिलोजान से इन्सान की जिन्दगी में कुछ सुविधाएं क्रियात्मक विज्ञान द्वारा लाना चाहता था। खानों में काम करने वाले मजदूरों की और किसानों की कुछ समस्याओं का कुछ वास्तविक समाधान उसने किया भी था। रॉबर्ट हुक की प्रतिभा बहुत अद्भुत थी। विज्ञान में उसकी खोजों का वही महत्व है जो न्यूटन, ह्यूजेन्स, और ल्यूवेनहॉक की खोजों का है। किन्तु आज इतिहास उसे मुख्यतया स्पिंग के लचीलेपन को भांपने वाले प्रथम वैज्ञानिक के रूप में ही स्मरण करता है कि–खिंचाव लटक रहे भार का समानुपाती होता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on 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