रॉबर्ट बॉयल बायोग्राफी – रॉबर्ट बॉयल ने किसकी खोज की थी? Naeem Ahmad, May 28, 2022March 18, 2024 रॉबर्ट बॉयल का जन्म 26 जनवरी 1627 के दिन आयरलैंड के मुन्स्टर शहर में हुआ था। वह कॉर्क के अति समृद्ध, अति सम्पन्न अर्ल की 14वीं सन्तान एवं 10वां पुत्र था। उसकी अद्भूत प्रतिभा के सम्बन्ध में कभी भी किसी को सन्देह नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त उसे वे सारी सुविधाएं यूं ही प्राप्त थीं जो एक सुलझा हुआ और सम्पन्न बाप अपने बेटे के लिए जुटा सकता है। अंग्रेज़ी के साथ-साथ उसने लैटिन और फ्रेंच का अध्ययन किया और, आगे चलकर अपनी इस बढ़ती भाषा सम्पदा में हिन्रू, ग्रीक और सीरियैक का समावेश भी कर लिया। इस सबका परिणाम यह हुआ कि बाइबल का गम्भीर अध्ययन वह उसकी मूल भाषाओं के माध्यम से करने में सफल रहा। रॉबर्ट बॉयल बायोग्राफी इन हिन्दी 8 साल की उम्र में वह ईटन कालेज में दाखिल हुआ। ईटन उन दिनों इंग्लैंड की प्राथमिक पाठशालाओं में सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध विद्यालय था। तीन साल बाद उसे स्कूल से उठा लिया गया ताकि वह महाद्वीप यूरोप की यात्रा कर आए। इंग्लैंड का एक श्रेष्ठ नागरिक बनने के लिए यह यात्रा भी उस युग में आवश्यक समझी जाती थी। तब विद्यार्थी के लिए एक प्रकार से यही दीक्षान्त हुआ करता था। किन्तु उसके लिए ग्यारह साल की उम्र आम तौर पर काफी नहीं होती । सन् 1641 में 14 साल का रॉबर्ट बॉयल इटली पहुंचा और वहां वह प्रख्यात वैज्ञानिक गैलीलियो के सम्पर्क में आया। उसने निश्चय कर लिया कि अब वह अपना जीवन विज्ञान के अध्ययन को ही अर्पित करेगा। इंग्लैंड वापस पहुंचकर वह ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी का विद्यार्थी बन गया। विज्ञान का उन दिनों वहां यही प्रसिद्ध केन्द्र था।ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में उसने पाया कि वह अनजाने में ही विश्वविद्यालय के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के एक अदृश्य कुल का सदस्य बन चुका है। इस कुल व समाज के कुछ लिखित नियम-उपनियम नहीं थे बस, हर विषय पर खुलकर विवेचन, विनिमय। 1660 में बादशाह ने इन वैज्ञानिको को एक घोषणापत्र प्रदान कर दिया जिसके परिणामस्वरूप उनकी वह इन्विजिबल सोसाइटी अब रॉयल सोसाइटी बन गई। इस सोसाइटी के सदस्यों का ध्येय था, विज्ञान का परीक्षणात्मक अध्ययन। “सत्य की उपलब्धि केवल प्रत्यक्ष द्वारा, अन्त प्रत्यक्ष (चिन्तन) तथा बहि-प्रत्यक्ष (परीक्षण ) द्वारा ही हो सकती है। रॉबर्ट बॉयल रॉबर्ट बॉयल की खोज रॉबर्ट बॉयल की ख्याति विज्ञान मे एक परीक्षण प्रिय वैज्ञानिक के रूप मे ही है, बॉयल्ज़ लॉ के जनक के रूप मे। रॉबर्ट बॉयल का नियम गणित का वह नियम है जिसके द्वारा हम बता सकते हैं कि दबाव के घटने-बढने से हवा की हालत में क्या अन्तर आ जाता है। इस नियम का आविष्कार परीक्षणो द्वारा हुआ था और बहुत देर बाद ही जाकर कही उसे गणित के एक सूत्र का रूप मिल सका था। बॉयल ने अपना वह प्रसिद्ध परीक्षण, पहले-पहल, इस तरह किया था। पहले तो उसने अग्रेजी वर्णमाला के जे अक्षर की शक्ल की एक शीशे की ट्यूब बनवाई जिसका छोटा-सिरा मुहबन्द था। ट्यूब काफी लम्बी थी। उसकी लम्बी भुजा कोई 10 फुट ऊची थी। अब इतनी बडी ट्यूब को किसी कमरे मे फिट कैसे किया जाए ? एक सीढी इस्तेमाल करनी पडी, बडी सावधानी के साथ कुछ पारा ट्यूब मे डालना शुरू किया गया कि दोनों भुजाओं मे उसका स्तर एक ही रहें अर्थात्– इस स्थिति में मुहबन्द सिरे मे गैस का दबाव वही था जो खुले मुंह में बाह्य वायु मण्डल का था। पाठक स्वयं अनुमान कर सकता है कि यदि दोनो सिरों पर दबाव एक न हो तो पारे का स्तर ट्यूब की दोनो भुजाओं मे अलग-अलग होगा, बराबर नही। इन परीक्षण करने वालों को खूब मालूम था कि उनके उपकरण किस किस्म के है जो ट्यूब का निचला सिरा एक बडे बॉक्स मे रखा हुआ था, शीशा जरा टूटा नही कि बॉक्स पारे की चपेट मे आया नहीं। और कितनी ही बार यह दुर्घटना हुई भी। खेर, जब पारा दोनो भुजाओं मे एक स्तर पर आ गया, बॉयल ने कागज की दो लम्बी पर्चिया इचों और इच के आठवें हिस्सों मे अंकित करके, दोनों पर चिपका दी। धीरे-धीरे, फिर पारे को टयूब के खुले मुंह मे उडेलना शुरू किया गया, दोनो ओर पारा ऊपर को उठना शुरू हुआ किन्तु समान ऊचाई तक नहीं बन्द मुंह वाले हिस्से मे कुछ हवा थी जिसका दबाव पारे को उसमे और ऊपर न आने देता। परिणाम यह हुआ कि खुले-मुंह वाले हिस्से में पारा कुछ अधिक ऊचाई तक पहुच गया। ऊंचाई एक नही किन्तु, दोनों ही भुजाओं में पारा समतुलित। ट्यूब के अन्दर वायु मण्डल के दबाव के अतिरिक्त पारे का अपना भार भी होता , बन्द मुंह वाले सिरे मे गैस का दबाव कितना है, यह अब सिलिंडर पर चिपकी पर्चियो पर अंकित संख्याओ द्वारा बखूबी जाना जा सकता है। बॉयल ने एक अद्भुत स्थिति प्रत्यक्ष की, वह यह कि लम्बी भुजा मे जब छोटी भुजा की अपेक्षा 29 इंच पारा अधिक होता है, ट्यूब में गैस का परिमाण उसके मूल के परिमाण का बिलकुल आधा रह जाता है, बॉयल को ज्ञात था कि वायु मण्डल का भी अपना दबाव होता है और उसे यह भी मालूम था कि यह दबाव पारे के 29 इंच को उठाए रखने के लिए पर्याप्त हैं। खुले मुंह में 29 इंच दबाव इस प्रकार बढ़ जाने से बन्द मुंह सिरे में दबाव को दुगूना कर जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि उसमे पडी गेस का परिमाण आधा रह जाता है। किन्तु बॉयल को इतने अनुमान से ही संतोष नही हुआ। उसने सैकड़ों गणनाएं और की। आठ फुट ऊंचा पारे का स्तूप अन्दर बन्द हवा को अपने मूल परिमाण की चौथाई तक ले आया। रॉबर्ट बॉयल के प्रत्यक्ष को आज भौतिकी में हर वैज्ञानिक प्रतिदिन प्रयुक्त करता है गैस का परिमाण, दबाव के अनुसार, विपरीत अनुपात में अदलता बदलता रहता है। रॉबर्ट बॉयल के नियम की यही सूत्रात्मक परिभाषा है। अगली पीढी के वैज्ञानिकों ने विशेषत जैकीज़ चार्ली ने, इसमे इतना और जोड दिया कि यदि तापमान मे परिवर्तन न आए, तब। बॉयल के बहुत से परीक्षणो तथा अन्वेषणों का वर्णन हमे उसके भतीजे के नाम लिखे गए पत्रों मे मिलता है। बॉयल का यह भतीजा भी आगे चल कॉर्क का अर्ल बना। कभी-कभी ये पत्र सौ-सौ से भी ज़्यादा पृष्ठ के हो जाते। रॉबर्ट बॉयल एक महान वैज्ञानिक था, और उसकी अभिरुचि भी विज्ञान की एक ही शाखा तक सीमित न थी। शब्द की गति, वर्ण भगिमा के तथा वर्णो के मूल कारण तथा स्फटिकों की रचना के सम्बन्ध मे उसने अनुसंधान किए। जिसे आदमी चला सके ऐसे एक बैकुअम पम्प का निर्माण भी किया, और साबित कर दिखाया कि हवा से महरूम जगह मे कोई प्राणी जीवित नही रह सकता, यह भी कि वायु से शून्य स्थान मे गन्धक जलेगी नहीं। रासायनिक तत्व का एक लक्षण भी कहते है इसे बॉयल ने सुझाया था और जो हमारी वर्तमान “रसायन दृष्टि’ से कोई बहुत भिन्न नही। वह द्रव्य जिसे छिन्न-भिन्न नही किया जा सकता”, किन्तु एक सच्चे वैज्ञानिक की भांति उसने इसका जैसे संशोधन भी साथ ही कर दिया था कि किसी भी अद्यावधि ज्ञात तरीके से तोडा-फोडा नही जा सकता। किन्तु आजकल की परीक्षण शालाओ मे इन तत्त्वो की आन्तर-रचना में भी परिवर्तन लाया जा चुका है। बॉयल एक उदार ह्रदय व्यक्ति था। और यदि उसने बॉयल्ज़ लॉ’ का आविष्कार न भी किया होता, तब भी इतिहास के अमर पुरुषो मे उसका नाम सदा स्मरण किया ही जाता क्योकि न्यूटन के ‘प्रिन्सीपिया’ के प्रकाशन की व्यवस्था उसी ने पहले-पहल की थी। 30 दिसम्बर, 1691 को लन्दन मे रॉबर्ट बॉयल मृत्यु हुई। उसकी उम्र तब 64 साल थी अन्धविश्वासों और चुडेलों के उस ज़माने में भी वह विज्ञान में कुछ महत्त्वपूर्ण दिशाएं और प्रणालियां प्रस्तुत कर गया और अपने समकालीन कितने ही वैज्ञानिको के लिए प्रेरणा एवं अर्थ की दृष्टि से सचमुच एक स्रोत बनकर। वे लोग कहा भी करते थे, “रॉबर्ट बॉयल तो सत्य को, जैसे, सूंघ ही लेता है। रसायन प्रयोगशाला में प्रचलित कई विधियों का रॉबर्ट बॉयल ने आविष्कार किया, जैसे कम दाब पर आसवन। बॉयल के गैस संबंधी नियम, उसके दहन संबंधी प्रयोग, हवा में धातुओं के जलने पर प्रयोग, पदार्थों पर ऊष्मा का प्रभाव, अम्ल और क्षारों के लक्षण और उनके संबंध में प्रयोग, ये सब युगप्रवर्तक प्रयोग थे जिन्होंने आधुनिक रसायन को जन्म दिया। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी