रामेश्वरम यात्रा – रामेश्वरम दर्शन – रामेश्वरम टेम्पल की 10 रोचक जानकारी Naeem Ahmad, January 27, 2018February 25, 2023 हिन्दू धर्म में चार दिशाओ के चार धाम का बहुत बडा महत्व माना जाता है। जिनमे एक बद्रीनाथ धाम दूसरा द्वारका धाम तीसरा जगन्नाथ धाम और चोथा रामेश्वरम धाम है। अपने एक पिछले लेख में हम बद्रीनाथ धाम का वर्णन कर चुके है। अपने इस लेख में हम रामेश्वरम धाम का वर्णन करेगें और रामेश्वरम यात्रा का सम्पूर्ण विवरण आपको देगें। रामेश्वरम धाम की गणना द्वादश ज्योतिर्लिंगो में भी की जाती है। जिससे इसका महत्व और भी बढ जाता है। अपनी 12 ज्योतिर्लिगों की यात्रा के अंतर्गत हमने अन्य द्वादश ज्योतिर्लिगों की जानकारी दी थी जिनका विवरण इस प्रकार है:—सोमनाथ ज्योतिर्लिंगमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगकेदारनाथ धाम का इतिहासकाशी विश्वनाथ धामवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंगमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनभीमशंकर ज्योतिर्लिंगत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहासनागेश्वर ज्योतिर्लिंगघुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा रामेश्वरम यात्रा चार दिशाओ के चार धामों में रामेश्वरम दक्षिण दिशा का धाम है। यह एक समुद्री द्वीप पर स्थित है। समुंद्र का एक भाग बहुत संकीर्ण हो गया है, उस पर पाम्बन स्टेशन के पास रेलवे पुल है। यह पुल जहाजो के आने जाने के समय ऊठा दिया जाता है। कहा जाता है, कि समुंद्र का यह भाग पहले नही था। रामेश्वर पहले भूमी से मिला था। किसी प्राकृतिक घटना के कारण इस अंतरद्वीप का मध्य भाग दब गया। और वहा समुंद्र आ गया। मद्रास (तमिलनाडू) राज्य के रामनाथपुरम (रामनाद) जिले में भारत की दक्षिण सीमा के अंतिम स्थल पर यह रामेश्वर द्वीप है। यह द्वीप शंख के आकार का है। यही पर बंगाल की खाडी अरब सागर से मिलती है। लगभग 25 किलोमीटर लंबा और 2.5 किलोमीटर चौडा यह द्वीप पुराणो में गंधमादन पर्वत के नाम से वर्णित है।रामेश्वरम भारत के अत्यंत आदरणीय तीर्थ स्थानो में से एक है। भगवान श्रीराम के नाम पर इसका नाम रामेश्वर हुआ। कहा जाता है कि इसे यहा भगवान श्रीराम ने ही स्थापित किया था। रामेश्वरम के सुंदर दृश्य रामेश्वरम यात्रा या रामेश्वरम दर्शन के लिए जाने से पहले इस स्थान के महत्व के बारे जान लेते है। रामेश्वरम का महात्मय रामेश्वर तीर्थ सभी तीर्थो और क्षेत्रों में उत्तम माना जाता है। जो भगवान श्रीराम द्वारा बंधाए हुए सेतु से और भी पवित्र हो गया है। कहा तो यहा तक जाता है कि इस सेतु के दर्शन मात्र से ही संसार सागर से मुक्ति हो जाती है। तथा भगवान विष्णु एंव शिव में भक्ति तथा पुण्य की वृद्धि होती है। भक्तो के तीनो प्रकार के कायिक, वाचिक, और मानसिक कर्म भी सिद्ध हो जाते है। कहा तो यहा तक जाता है कि भूमि के रज कण तथा आकाश के तारे गिने जा सकते है परंतु सेतु दर्शन से मिलने वाले पुण्य को तो शेषनाग भी नही गिन सकते। यह तो मात्र सेतु के दर्शन का महत्व है। जो रामेश्वर ज्योतिर्लिग और गंधमादक पर्वत का चितंन करते है उनके समूल पाप नष्ट हो जाते है। जो रामेश्वर पर गंगाजल चढाते है, उनकी संसार सागर से मुक्ति हो जाती है। रामेश्वर दर्शन से ब्रह्महत्या जैसे पाप भी नष्ट हो जाते है। यहा थोडा श्रम करने मात्र से ही मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है।रामेश्वरम यात्रा या दर्शन के लिए जाने से पहले रामेश्वरम की स्थापना कैसे हुई और रामेश्वरम की कथा के बारे में भी जान लेते है। रामेश्वरम की कथा – रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की कहानीरामेश्वर की कथा के अनुसार भगवान श्रीराम चंद्र जी जब सीताजी की खोज करते करते, सुग्रीव की सेना के साथ यहा आए। रावण पर आक्रमण करने के लिए समुंद्र को पार करना अति आवश्यक था। तब प्रभु श्रीराम ने सागर से मार्ग मांगा, परंतु सागर ने मार्ग नही दिया। श्रीराम को तनिक क्रोध आया। उन्होने अग्निबाण द्वारा सागर को सूखा देने की बात सोची। तब सागर ने एक ब्राह्मण के रूप में प्रकट होकर उनसे क्षमा मांगी और एक पुल का निर्माण करने को कहा।श्रीराम ने सागर की बात मान ली और विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील को, जो महान शिल्पी थे, बुलवाया। नल ने अपनी शिल्प विद्या के प्रबल प्रताप से लकडी, पत्थर जो भी मिला उसी को पानी पर तैरा दिया और देखते ही देखते श्रीराम की आज्ञा से सौ योजन लंबा और दस योजन चौडा पुल समुंद्र पर तैयार हो गया।प्रचलित धारणा के अनुसार श्रीराम ने लंका के राजा रावण पर चढाई करने से पूर्व यहां शंकरजी की आराधना कर मंदिर की स्थापना की थी। युद्ध में विजय प्राप्त कर अधर्मी रावण का वध करके सीता को लेकर श्रीराम इसी गंधमादन पर्वत पर लौटे।यही सीता जी ने अग्नि परिक्षा दी थी। यही पर अगस्त्य आदि ऋषियो ने श्री राम से ब्राह्मण वध (रावण) का प्रायश्चित करने के लिए कहा था। प्रायश्चित के रूप में श्रीराम ने, भगवान शिव का एक ज्योतिर्लिंग स्थापित करना था। तब श्रीराम ने परम भक्त हनुमानजी को कैलाश पर्वत पर भेजकर भगवान शंकर की कोई उपयुक्त मूर्ति लाने को कहा था।हनुमानजी कैलाश पर्वत गए, परंतु उन्हें अभीष्ट मूर्ति नही मिल सकी, अत: उन्होने इसके लिए तप शुरू कर दिया। जब मूर्ति स्थापना का शुभ मुहूर्त बितने लगा और हनुमानजी न लौटे तो सीताजी ने एक बालू का शिवलिंग बनाया। इस शिवलिंग को ऋषियो ने स्वीकार कर लिया।इसके बाद श्रीराम जी ने उस ज्योतिर्लिंग को ज्येष्ठ शुक्ला दशमी, बुधवार को, जब चंद्रमा हस्त नक्षत्र में था और सूर्य वृष राशि में था। स्थापना की। यही ज्योतिर्लिंग बाद में रामेश्वरम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।बाद में हनुमानजी भी कैलाश से एक शिवलिंग लेकर आ गए। उनको श्रीराम की प्रतीक्षा न करने पर दुख हुआ। हनु आनजी के इस भाव को देखकर, श्रीराम जी ने रामेश्वर की बगल में ही हनुमानजी द्वारा लाए हुए शिवलिंग की भी स्थापना कर दी। साथ ही उन्होने यह घोषणा की कि रामेश्वर की पूजा करने से पहले लोग हनुमानजी द्वारा लाए हुए शिवलिंग की पूजा करेगें। आज तक यही प्रथा चली आ रही है।द्वादश ज्योतिर्लिगो में श्रीरामेश्वर की गणना होती है। भगवान श्रीराम ने जो पुल बंधवाया था, उसकी चौडाई देवीपत्तन से दर्भशयन तक थी। देवीपत्तन को सेतुमूल कहते है। सेतु सौ योजन लंबा था। धनुष्कोटि पर लंका से लौटने पर भगवान ने धनुष की नोक से पुल को तोड दिया था। इस प्रकार रामनाद (रामनाथपुरम) से धनुष्कोटि तक का यह पूरा क्षेत्र परम पवित्र है। यह पूरा क्षेत्र भगवद्लीला स्थल है।इस क्षेत्र का नाम गंधमादन था, परंतु कलियुग के प्रारम्भ में गधमादन पर्वत पाताल चला गया। उसका पवित्र प्रभाव यहा की भूमि में है। यहा बार बार देवता आते थे। अत: इसे देवनगर भी कहते है।महर्षि अगस्त्य का आश्रम यही पास में था। अपनी तीर्थ यात्रा में बलरामजी भी यहा पधारे थे। पांडव भी यहा आए थे। इस प्रकार अनादिकाल से यह देवता, ऋषिगण एंव महापुरूषो की श्रद्धाभूमि रहा है। रामेश्वरम यात्रा या दर्शन के लाए जाने से पहले हमने रामेश्वरम का महात्मय, और स्थापना से संबंधित कथा को समझा और जाना। अब हम रामेश्वरम यात्रा पर चलते है लेकिन उससे पहले शास्त्रो के अनुसार रामेश्वरम यात्रा के क्रम को जानना बहुत जरूरी है कि रामेश्वरम की यात्रा कैसे और किस प्रकार शुरू की जाएरामेश्वरम यात्रा का शास्त्रीय क्रम रामेश्वरम यात्रा के शास्त्रीय क्रम के अनुसार पहले उप्पूर में जाकर गणेशजी के दर्शन करते है। उप्पूर गांव रामनाथपुरम से 32 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यहा भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित विनायक जी का मंदिर है।उप्पूर के बाद शास्त्रो के अनुसार देवीपत्तन जाते है। यह स्थान रामनाथपुर से 20 किलोमीटर दूर है। भगवान श्रीराम चंद्रजी ने यहा नवग्रहो की स्थापना की थी। सेतुबंध भी यही से प्रारम्भ हुआ। अत: यह मूल सेतु है।देवीपत्तन के बाद यात्री धनुष्कोटि जाते है। धनुषकोटि रामेश्वरम से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहा समुद्र में स्नान करने के बाद रामेश्वरम के दर्शन करने के लिए जाना चाहिए। रामेश्वर दर्शनरामेश्वर बाजार के पूर्व में समुंद्री किनारे पर लगभग 20 बीघे भूमि में रामेश्वर मंदिर फैला हुआ है। मंदिर के चारो ओर ऊची चारदीवारी है। जिसमे प्रवेश के लिए पर्व और पश्चिम में ऊंचे द्वार है। पूर्व का द्वार दस मंजिला है। तथा पश्चिम का द्वार पूर्व द्वार की अपेक्षा कम ऊंचा है पश्चिम द्वार सात मंजिला है। यह दोनो द्वार काफी भव्य और सुंदर है।पश्चिम द्वार के बाहर बाजारो में शंख, सीपी, कौडी, माला, रंगीन टोकरिया तथा पूजा सामग्री आदि बिकती है। रामेश्वर में शंख और टोकरियो का बहुत बडा बाजार है। रामेश्वरम यात्रा पर आने वाले अधिकतर यात्री ये वस्तुए अपने साथ ले जाते है।पश्चिमी द्वार से भीतर जाने पर तीन ओर मार्ग जाता है। भीतर जाने से पहले आपको बता दे रामेश्वरम धाम में कुल 24 तीर्थ है। 22 तीर्थ मंदिर परिसर के भीतर है तथा 2 तीर्थ मंदिर परिसर के बाहर पूर्वी द्वार के सामने है जिनमे एक अग्नि तीर्थ है जो श्रेष्ठ माना जाता है। अग्नि तीर्थ पूर्वी द्वार के सामने स्थित समुद्र को ही कहते है। कहा जाता है कि यहा सीता ने अग्नि परिक्षा दी थी। अग्नि तीर्थ के पास ही आगस्त्य तीर्थ है यह दोनो मंदिर परिसर के बाहर है। बाकि के 22 तीर्थ परिसर के अंदर है। अधिकतर यात्री इन तीर्थो में स्नान करने के बाद श्री रामेश्वरम दर्शन के लिए जाते है। इन तीर्थो के नाम इस प्रकार है:—– माधव तीर्थ गवय तीर्थ गवाक्ष तीर्थ नल तीर्थ नील तीर्थ गंधमादन तीर्थ ब्रह्महत्या विमोचन तीर्थ गंगा तीर्थ यमुना तीर्थ गया तीर्थ सूर्य तीर्थ चंद्र तीर्थ शंख तीर्थ चक्र तीर्थ अमृत व्यापी तीर्थ शिव तीर्थ सरस्वती तीर्थ सावित्री तीर्थ गायत्री तीर्थ महालक्ष्मी तीर्थ अग्नि तीर्थ आगस्त्य तीर्थ सर्व तीर्थ कोटि तीर्थस्कंदपुराण में इन सब तीर्थो की उत्पत्ति कथा है। इनके जल से स्नान और मार्जन का बहुत बडा माहात्मय है। आपको बता दे यह तीर्थ परिसर के भीतर कुएं के रूप में स्थित है। जिनमे माधव तीर्थ और शिव तीर्थ सरोवर है। तथा महालक्ष्मी तीर्थ और अगस्त्य तीर्थ बावलियां है।इन तीर्थो में स्नान करने के लिए अधिकतर यात्री रस्सी और बाल्टी साथ लाते है। वैसे यहा पूजन पाठ और कर्म कराने के लिए पंडित भी होते है। अगर आपने पंडो की सुविधा ली है तो पंडो के आदमी स्नान हेतु रस्सी और बाल्टी साथ रखते है। तथा तीर्थो का जल निकालकर स्नान कराते जाते है। मंदिर में पर्वेश कैसे करे? मंदिर के पश्चिम द्वार से प्वेश करना चाहिए। फिर जो मार्ग बांई ओर को जाता है, उससे प्रदक्षिणा करते हुए आगे जाना चाहिए। इन मार्गो के दोनो ओर ऊंचे बरामदे है तथा ऊपर छत है। इस मार्ग से बाई ओर रामंलिगम प्रतिष्ठा का ह्रदय रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग है। यह स्थान नवीन बनाया गया है। यहा शेषनाग के फण के नीचे शिवलिंग है। श्रीराम – जानकी उसे स्पर्श किए हुए है। वहा नाआरद, तुम्बरू, लक्ष्मण, सुग्रीव, विभिषण, जाम्बवान, अंगद, हनुमान तथा दो अन्य ऋषियों की मूर्तियां है।मार्ग मे दोनो ओर स्तंभो में सिंहादि की सुंदर मूर्तियां बनी है। एक स्थान पर राजा सेतुपति तथा उनके परिवार के लोगो की मूर्तियां एक स्तंभ में बनी है।उससे आगे उत्तर के मार्ग में ब्रह्महत्या तीर्थ, सूर्य तीर्थ, चंद्र तीर्थ, गंगा तीर्थ, यमुना तीर्थ और गया तीर्थ है। ये तीर्थ मंदिर के दूसरे घेरे में है। दूसरे घेरे में ही पूर्व की ओर चक्र तीर्थ है। इस तीर्थ के पास ही एक सुब्रह्मण्यम मंदिर है। यहा से कूछ आगे शंख तीर्थ है। चक्र तीर्थ और शंख तीर्थ के मध्य मे रामेश्वर के निज मंदिर को जाने का फाटक है। यहा आगे बांयी ओर मंदिर का कार्यालय है।विशाल नंदी मूर्तिश्री रामेश्वरम मंदिर के सम्मुख स्वर्ण मंडित स्तंभ है। उसके पास ही मंडप में विशाल मृगमयी श्वेतवर्ण नंदी मूर्ति है। यह नंदी 13 फुट ऊंचा, 8 फुट लंबा और 9 फुट चौडा है।विस्तृत आंगन नंदी से दक्षिण में शिव तीर्थ नामक छोटा सरोवर है। नंदी के उत्तर में ही गंगा, यमुना, चंद्र ब्रह्महत्या तीर्थ है। नंदी से पश्चिम रामेश्वरजी के निज मंदिर के आंगन में जाने का द्वार है। द्वार के वाम भाग में गणेश तथा दक्षिण भाग में सुब्रह्मण्यम के छोटे मंदिर है। आंगन के वामभाग में श्री विश्वनाथ मंदिर के पास मुख्य चबूतरे के नीचे कोटि तीर्थ नामक कूप है। कोटि तीर्थ का जल रामेश्वर से जाते समय यात्री साथ ले जाते है। अपने हाथो से जल नही चढा सकते श्री रामेश्वर मंदिर के सामने घडो का घेरा लगा है। तीनो द्वारो के भीतर श्री रामेश्वर का ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित है। इनके ऊपर शेषजी के फनो का छत्र है। श्रीरामेश्जी पर कोई भक्त अपने हाथो से जल नही चढा सकता। मूर्ति पर गंगोत्तरी या हरिद्वार से लाया गगा जल ही चढता है। और वह जल पुजारी को दे देने पर पुजारी भक्तगण के सम्मुख ही चढा देते है। मूर्ति पर माला पुष्प अर्पित करने का कोई शुल्क नही है, परंतु जल चढाने का शुल्क लगता है। रामेश्वरम यात्रा के अंतर्गत रामेश्वरम मंदिर में निम्न कार्यो के लिए शुल्क देना पडता है। मूर्ति पर जल चढाने के लिए श्री रामेश्वर जी का दुग्धाभिषेक करने के लिए नारियल चढाने के लिए त्रिशतार्चन के लिए अष्टोत्तरार्चन के लिएश्री रामेश्वर जी के तथा माता पार्वती के सोने चांदी के बहुत से वाहन तथा रत्नाभरण है। जिनको महात्सव के समय उपयोग होता है। यदि इनको देखने की इच्छा हो तो मंदिर के कार्यालय में शुल्क जमा करवाकर रसीद ले लेनी चाहिए इसमे भी अलग अलग कार्यो के लिए अलग अलग शुल्क है। आभूषण दर्शन के लिए श्री रामेश्वर जी तथा पार्वती जी की रथ यात्रा का महोत्सव कराने के लिए पंचमूर्ति उत्सव कराने के लिए रजतथोत्सव कराने के लिएपंचमूर्ति उत्सव में शिव पार्वती की उत्सव मूर्तिया वाहनो पर मंदिर के तीन मार्गो तथा मंदिर के बाहर के मार्ग में घुमाई जाती है। और रजत रथोत्सव में वे यह यात्रा चांदी के रथ में करती है। यात्रा के समय रथ में बिजली की बत्ती का पूरा प्रकाश रहता है। श्री रामेश्वर जी की रथ यात्रा अत्यंत मनोहारी होती है। रामेश्वरम के सुंदर दृश्य रामेश्वरम के विशेष उत्सव श्रीरामेश्रर मंदिर में यूं तो उत्सव चलते ही रहते है। परंतु जो विशेष उत्सव है, वह इस प्रकार है:– महा शिवरात्री बैसाख पूर्णिमा ज्येष्ठ पूर्णिमा (रामलिंग प्रतिष्ठोत्सव) तिरूकल्याणोत्सव (विवाहोत्सव) नवरात्रोत्सव स्कन्दजन्मोत्सव आद्रार्दशर्नोत्सवइनके अलावा मकर संक्रांति, चैत्रशुक्ला प्रतिपदा, कार्तिक महीने की कृतिका नक्षत्र के दिन तथा पौष पूर्णिमा को ऋषभादि वाहनो पर उत्सव विग्रह दर्शन होते है। वैकुंठ एकादशी तथा रामनवमी को श्री रामोत्सव होता है।इसके अलावा प्रत्येक मास की कृतिका नक्षत्र के दिन सुब्रह्मण्य की चांदी के मयूर पर सवारी निकलती है। प्रत्येक प्रदोष को श्रीरामेश्वर की उत्सव मूर्ति वृषभवाहन पर मंदिर के तीसरे पर्कार की प्रदक्षिणा में निकलती है। पर्त्येक शुक्रवार को अंबाजी की उत्सव मूर्ति की सवारी निकलती है।रामेश्वर मंदिर के यह उत्सव व सवारी उत्सव बडे वैभवशाली और मनोहारी होते है। यदि अपनी रामेश्वरम यात्रा के दौरान इन उत्सवो व यात्राओ के दर्शन हो जाए तो यात्रा का आनंद बढ जाता है। रामेश्वरम के अन्य तीर्थ रामेश्वरम यात्रा के अंतर्गत रामेश्वर के आसपास कई तीर्थ है। जिनका रामेश्वरम यात्रा में बडा महत्व समझा जाता है। यात्रियै को अपनी रामेश्वरम यात्रा के दौरान इन तीर्थो के भी दर्शन करने चाहिए।गंधमादन (रामझरोखा)यह स्थान श्री रामेश्वर मंदिर से लगभग डेढ मील की दूरी पर है। यह एक टीला है। टीले के ऊपर हनुमान जी का मंदिर है। इस पर ऊपर तक जाने को सीढिया है। मंदिर में भगवान के चरण चिन्ह है। कहते है कि यही से हनुमानजी ने समुंद्र पार होने का अनुमान किया अथा। तथा रघुनाथ जी ने यहा सुग्रीव के साथ लंका पर चढाई के संबंद में मंत्रणा की थी।धनुष्कोटिधनुष्कोटि रामेश्रवरम से 20 किलोमीटर दूर स्थित है। रामेश्वरम जाने से पूर्व यहा 36 बार स्नान तथा बालुका पिंड देना चाहिए। जब सूर्य मकर में हो अथवा ग्रहण लगा हो, उस समय धनुष्कोटि में स्नान करने का विशेष महत्तव है।देवीपत्तनरामनाथपुर से देवीपत्तन की दूरी 12 मील है। रामनाथपुर से वहा तक बस जाती है। कहा जाता है कि श्रीराम ने यहीं नवग्रहो का पूजन किया था। और यही से सेतुबंध पुल का निर्माण प्रारंभ हुआ, इसे मूल सेतु भी कहते है। रामेश्वरम यात्रा में कहां ठहरेयहा बहुत अच्छे अच्छे होटल है। इसके अलावा कुछ लॉज व धर्मशालाएं भी है। होटलो और धर्मशालाओ के किराए में ज्यादा अंतर नही है। कुछ लोग यहा पंडो के यहा भी ठहरते है। रामेश्वरम में पंडो के सेवक दूर दूर से ही यात्रीयो को साथ लाते है। पंडो के यहा भी यात्रियो के ठहरने का पर्याप्त स्थान व सुविधा रहती है।कैसे जाएंमद्रास से धनुष्कोटि तक दक्षिण रेलवे की सीधी लाइन है। इस लाइन पर पाम्बन स्टेशन से एक लाइन रामेश्वरम तक जाती है। रेलवे की ऐसी व्यवस्था है कि कुछ गाडियां सीधी रामेश्वर जाती है तथा कुछ धनुष्कोटि। गाडी यदि सीधी धनुष्कोटि जाती है तो पाम्बन में उसे बदलकर रामेश्वर जाना पडता है। मदुरा से आने वालो को माना मदुरै मे गाडी बदलने पर मद्रास धनुष्कोटि लाइन की गाडी मिलती है।Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल चारों दिशाओं के धामतमिलनाडु पर्यटनतीर्थ स्थल