रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास Naeem Ahmad, August 23, 2022February 19, 2024 जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य केन्द्र रामपुरा में स्थित यह रामपुरा फोर्ट निश्चित ही एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहर है। जो आज तक क्षत्रियों के राजवंशीय कछवाहा जो रामदेव के समकालीन थे, के संघर्ष साहस शौर्य का प्रतीक है तथा तत्कालीन भवन निर्माण कलाका उत्कृष्ट नमूना प्रदर्शित करता है।रामपुरा का इतिहासकछवाहा राजवंश के इतिहास के विषय में यह मिलता है कि जहाँ तक कुशवाहा क्षत्रियों के इतिहास का प्रश्न है कहा जाता है कि महाराज रामचन्द्र के पुत्र कुश के वंशज कुशवाहा क्षत्रियों के महाराज दूल्हाराव नरवर नरेश के कंकाल देव और वीकल देव, इन राजपुत्रों का भविष्य वंशोत्तत्ति के कारण जयपुर और कछवाहाधार दो भाग हुए। क्षत्रियों के प्रधान 36 राजवंशों में कुशवाहा क्षत्रिय भी सम्मिलित हैं। ये महाराज रामचन्द्र के पुत्र कुश के वंशज है। अतएव ये कुशवाहा कहलाये।दौलताबाद का किला – दौलताबाद का इतिहासकुशवाहा वंश में राजा रविसेन बड़े प्रसिद्ध योद्धा हुए हैं इन्होंने अपने पराक्रम से अपना राज्य विस्तृत किया। प्रतापशाली महाराज दूल्हादेव के बड़े राजकुमार कांकलदेव जी ने अपने वंशजों का नाम आगे बढ़ाया। उन्होंने मीनाओं और बड़गूजरों को परास्त करके आमेर (जयपुर राज्य) की स्थापना की। इसी प्रकार वि० संवत 1190 में अर्थात् ईस्वी सन् 1133 में बीर बीकल देव ने बहुत ही बड़ी सेना लेकर आज के कछवाहाधार पर आक्रमण किया। जिस समय बीकलदेव ने इधर आक्रमण किया उस समय इस देश में इन्दुरखी (भिण्ड ग्वालियर) ही मेव (मेवाती) विविध जातियों के उपद्रवी राजपूत लोंगों की राजधानी समझी जाती थी। इन्दुरखी में मेव (मेवाता) लोगों का सबसे बड़ा सरदार हतिया इस समय राज्य करता था। वह बड़ा बलवान और साहसी था। सम्वत् 1200 के लगभग बीकल देव ने हतिया मेव को मारकर उसके राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। इसी समय बीकलदेव का स्वर्गवास हो गया। अतएव इनके प्रतापी राजकुमार इंद्रदेव ने शासन संभाला और अपने नाम पर इन्दुरखी नाम का गांव बसाया। वि० संवत 1210 में इन्हीं राजा इन्द्रदेव ने लहार (भिण्ड, ग्वालियर) जाकर भगवती मंगला देवी की मूर्ति की स्थापना करवाई। यह मंदिर आज भी बहुत अच्छी दशा में विद्यमान है।रामपुरा का किलाउस समय इन्दुरखी का अच्छा खासा राज्य था। इसके अधिकार में लगभग 425 ग्राम थे। इन्दुरखी राज्य के जन्मदाता इन्द्रदेव के पश्चात् ठीक पांचवीं पीढ़ी पर इन्दुरखी राज्य के राजा आस बृम्ह जी हुए है जिनके रोमपाल व भुवन पाल नामक दो राजकुमार उत्पन्न हुए थे । इन दोनों में बड़े राजकुमार रामपाल (रामसिंह) को अपने पिता के शरीरान्त होने पर इन्दुरखी राज्य का अधिकार मिला और छोटे राजकुमार भुवनपाल को बुधनौटा (वर्तमान रामपुरा) की जागीर दी गई। इस राज्य के राजा रामशाह तक के राजाओं का निवासविस्वारी (भिण्ड, ग्वालियर) के समीप करमरा नामक ग्राम में रहा। तदन्तर इन राजा रामशाह या रामसिंह ने अपने नाम पर रामपुरा ग्राम बसाया और एक किले का निर्माण कराया जो साधारण स्थिति के किलों में आज भी सर्वोत्तम है।पेनुकोंडा का इतिहास और पेनुकोंडा का किलारामपुरा राज्य कछवाहा राज्यों में सम्पत्तिशाली व प्रतिष्ठित रहा है। रामपुरा राज्य में राजा कल्यान सिंह जूदेव अध्यामवादी , अत्यन्त उदार तथा दयालु प्रवृत्ति के थे। संस्कृत भाषा में हस्तलिखित पुस्तक अध्यालवाद प्रकाश किसी विद्वान ने राजा कल्यान सिंह जूदेव को समर्पित की जो राज संग्रहालय में सुरक्षित है।सीरी किला का इतिहास:- दिल्लीइसी राजवंश में राजा यशवन्त सिंह भी बड़ा प्रतापी हो गये हैं इन्होंने भरेह (इटावा) के सेंगर राजा पर चढ़ाई की थी यद्यपि विश्वासघात होने के कारण ये संग्राम भूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो गये परन्तु इन्होंने जिस वीरता से सेंगर राज्य से घोर युद्ध किया वह किसी से छिपा नहीं है।लालकोट का किला – किला राय पिथौरारामपुरा का किलारामपुरा दुर्ग सामान्य स्तर से अधिक ऊँचाई पर निर्मित है। रामपुरा फोर्ट के चारों ओर 150 फीट चौड़ी व 20 फीट गहरी खाई है। किले का प्रवेश द्वार 20 फुट ऊंचा एवं पूर्वाभिमुख है।इसके ऊपर एक कोविल स्थापित है। जिसके मध्य में शिवलिंग नन्दी सहित प्रतिष्ठित है तथा इसके उत्तरी भाग में हनुमान जी एवं दक्षिणी भाग में गुप्तेश्वर शिवलिंग स्थापित है। इसी के नीचे से एक सुरंग टीहर तक जाती है। दरवाजा मोटी लकड़ी का बना है जो कि हाथी मस्तक भेदक कीलों सूपों से सुसज्जित लोहा युक्त है। दुर्ग की बाहरी परिखा मिट्टी के टीले नुमा है। आपातकाल हेतु दीर्घकाल अन्न व जल भण्डारण प्रबन्ध से पूरित है जहाँ एक ओर सुनियोजित उत्कृष्ट पार्वत दुर्ग की झलक इसमें मिलती है वही दूसरी ओर ईश्वर शक्ति में अटूट विश्वास का दिग्दर्शक शिवलिंग इस रामपुरा राज्य के राज्य चिन्ह में भैरव प्रतिमा का अंकन दृढ़ता प्रतिष्ठित करता हुआ, अध्यात्मवादी दृध्कोण प्रकट करता है।बिजय मंडल किला का इतिहासरामपुरा किला चारों ओर खाइयों से घिरा होने के कारण जहाँ यह सुरक्षा की गारन्टी लेता हैं वही दूसरी ओर यह किला कछवाहों की सूझबूझ को परिलक्षित करता है। किले के मुख्य द्वार में प्रवेश करने के पश्चात् परिखा की ओर बढ़ते हुए एक दरवाजा मिलता है। यह दरवाजा भी प्रथम दरवाजे जैसा ही है। यहाँ पर महल के अन्दर प्रवेश करते हुए दीवार की ऊँचाई लगभग 410 फुट है। इस किले के बाहर जो बुर्ज इत्यादि बना है इसमें एक कमल बुर्ज भी था जिसके विषय में यह भी कहा जाता है कि तात्याटोपे ने 1857 में एक तोप का गोला इस रामपुरा के किले पर मारा था जोकि इस किले के कमल नामक बुर्ज पर लगा था। मुख्यदरवाजे व उत्तर दक्षिण पर एक छोटा बुर्ज भी है। वर्तमान उत्तराधिकारी श्री समरसिंह ने एक साक्षात्कार मेंबतलाया कि:- “कुमत उठी यशवंत के घेरी जाये भरेख। बैठे हते सुख-चैन में अपनी अपनी गेह ।।”अर्थात् महाराज यशवंत ने भरेख ( इटावा राज्य के अन्तर्गत ) पर हमला किया लेकिन ये उसे जीत न सके। भरेख महाराज के रिश्तेदारों ने रामपुरा पर हमला करके इसे फतेह किया यहाँ पर 7 वर्ष तक भदौरियों का शासन रहा।, प्रभाव स्वरूप यहाँ पुरे पाँच कुएं भदौरियों द्वारा बनवाये गये। रामपुरा रियासत ने महाराज जयपुर की मदद से पुन रामपुरा पर अपना अधिकार कर लिया था।गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहासशिलालेख वह मंदिररामपुरा किले के नीचे महल में एक मंदिर है जो कि दक्षिणाभिमुख है तथा इस मन्दिर के द्वार पर एक ओर पत्थर पर शिलालेख लगा हुआ है जिसमें यह अंकित है कि –श्री गणैशाय नमः श्री कछवाहा श्री राजा भुवनपाल जूदेव इदुर जीतें आई कै बुधनौटा लई सम्वते 1310 की साल में तिन तै बारह साथी की श्री राजा राम साहि जूदेव भए तिन अपने नाम के रामपुरा को किला बनवायो 1676 की साल में तिनते पॉच साल पीछे श्री महाराजाधिराज श्रीराजा फतेह सिंह जूदेव भए तिहि सुत माधव सिंह महल भरौ बनवायो। सम्वतू दस 883 ऊपर पायो। कृष्ण पक्ष वैसाख हीं नवा सरस सिनानी। नींउ लगी शुभलगन सम प्रेम ध्यान बखानी। बनी बरस पांच में आरते कारीगर हरीसिंह की। ता ऊपर तरहन रासुको रहो कढ़ोरे गौ विप्र (दोहा) वेदवान वि वि राम शशि इत नौ हजार लगी लगाई न महल को लीजौ चतुर विचार अमल उज्जैन के श्री महाराजा धिराज श्री महाराज आलीजाह सूबेदार श्री दौलति राव जी सिद्धि ते बहादुर मुकाम इकलाष फौज सौ ग्वालियर बगीचा। इस शिलालेख से स्पष्ट है कि रामपुरा किले का निर्माण का सम्वत् 1310 में राजा रामसिंह जूदेव द्वारा करवाया गया था। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किले