रानी चेन्नमा की कहानी – कित्तूर की रानी चेन्नमा Naeem Ahmad, April 12, 2018March 14, 2023 रानी चेन्नमा का जन्म सन् 1778 में काकतीय राजवंश में हुआ था। चेन्नमा के पिता का नाम घुलप्पा देसाई और माता का नाम पद्मावती था। चेन्नमा के माता पिता दोनो सद्गुण संपन्न वीर और देशभक्त थे। बालिका चेन्नमा बचपन में बडी सुंदर और गुणवान थी। बच्ची के रूप और सुंदरता के कारण ही बच्ची का नाम “चेन्नमा” रखा गया था। चेन्नमा का अर्थ होता है जो देखने में अति सुंदर हो। माता पिता भी सुंदर और गुणवान पुत्री पाकर हर्ष से फूले नही समाते थे। धीरे धीरे जब पुत्री बडी होती गई तो उसकी शिक्षा दिक्षा पर भी ध्यान दिया गया चेन्नमा ने कन्नड उर्दू मराठी और संस्कृत भाषाओ का ज्ञान प्राप्त किया। इसके साथ साथ वह घुडसवारीऔर शस्त्र विद्या का भी अभ्यास करती थी। बारह तेरह साल की अवस्था में ही चेन्नमा शस्त्र विद्या और घुडसवारी में निपुण हो चुकी थी। कित्तूर की रानी चेन्नमा की वीर गाथा रानी चेन्नमा की जीवनीचेन्नमा जब विवाह योग्य हुई तो उनका विवाह कित्तूर के राजा मल्लसर्ज के साथ कर दिया गया। पूना से जो सडक बंगलौर के लिए जाती है। उसी सडक पर बेलगांव से पाच मील दूर कित्तूर पडता है। उन दिनो कित्तूर का राज्य बडा वैभवशाली था। राज्य मे बहत्तर किले और तीन सौ अठ्ठावन गांव थे। कित्तूर व्यापार का बहुत बडा केंद्र था। वहा सोने चांदी हीरे जवाहरातो का बहुत बडा बाजार था। दूर दूर से व्यापारी वहा माल खरीदने और बेचने आते थे। खेती भी बहुत अच्छी होती थी। प्रतिवर्ष धान की फसल इतनी अच्छी होती थी कि खाने और खर्च करने के बाद भी काफी मात्रा में बच भी जाता था। राजा मल्लसर्ज बडे वीर स्वाभिमानी और दयालु थे। वह किसी को दुख नही देते थे प्रजा की सुख सुविधाओ का हमेशा ख्याल रखते थे। वे विद्या और कला प्रेमी भी थे। उनके दरबार में भांति भांति कलाओ के पंडित। रहते थे। जिन्हे जीवन निर्वाह के लिए राज्य की ओर से वेतन मिलता था। राजा मल्लसर्ज ने दो विवाह किए थे। उनकी बडी रानी का ननाम रूद्रम्मा था। तथा छोटी रानी चेन्नमा थी। राजा दोनोओ रानियो का समान आदर व सम्मान करते थे। दोनो रानियो ने एक एक पुत्र को जन्म दिया था। परंतु दुर्भागयवश रानी चेन्नमा के पुत्र की मृत्यु बाल अलस्था मे ही हो गयी थी।राजा मल्लसर्ज कित्तूर को एक वैभवशाली राज्य बनाना चाहते थे। परंतु उनकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी। पूना के पटवर्धन ने उनके साथ विश्वासघात करके उन्हे बंंदी बना लिया। बंदी जीवन में ही राजा मल्लसर्ज की मृत्यु हो गई।राजा की मृत्यु के बाद रानी चेन्नमा ने रानी रूद्रम्मा के पुत्र शिवलिंग रूद्रसरर्ज को गोद ले लिया। । वे उसमे मातृप्रेम को केंद्रित करके उसका पालन पोषण करने लगी। उसके पालन पोषण और प्रेम में चेन्नमा अपने सारे दुखो को भुल गई।उन दिनो अंग्रेजी अफसर लार्ड डलहौजी देशी रियासतो अंग्रेजी राज्य में मिलाने में लगा हुआ था। वह बडा कुटनीतिज्ञ व चालाक था। वह किसी भी दत्तक पुत्र को वास्तविक उत्तराधिकारी नही मानता था। इस तरह के राज्यो को वह बिना वारिस का मान हडपता जा रहा था। कित्तूर राज्य की स्वतंत्रता भी उससे सहन नही होती थी। उसके वैभव पर वह अपनी नजरे गडाये बैठा था। अत: उसने रानी चेन्नमा के दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। डलहौजी ने धारवाड के कलेक्टर को इस आशय की सूचना दे दी। कलेक्टर ने चेन्नमा को सूचित कर दिया।परंतु रानी चेन्नमा के ऊपर कलेक्टर थैकरे की सूचना का कुछ भी प्रभाव नही पडा। थैकरे ने चेन्नमा को बहुत से प्रलोभन दिए धमकी भी दी परंतु फिर भी चेन्नमा अंग्रेजो की धमकी से जरा भी नही घबराई। चेन्नमा ने थैकरे को उत्तर दिया– मैं कित्तूर राज्य की स्वतंत्रता को बेचने की अपेक्षा रणभूमि में मर जाना अच्छा समझती हूँ। उन्ही दिनो मल्लपा शेट्टी और वैंकटराव नामक दो देशद्रोही थैकरे से जा मिले। उन्होने थैकरे से कहा– वह हर क्षेत्र मे उसकी सहायता करेगें। थैकरे ने भी उन्हे वचन दिया कि वह कित्तूर का आधा राज्य उन्हे दे देगा। वैंकटराव ने उन्हे समझाया जब तक चेन्नमा जिवित है उनकी दाल कित्तूर में नही गलेगी। अत: चेन्नमा को या तो किसी प्रकार मार दिया जाए या फिर बंदी बना लिया जाए। चेन्नमा अंग्रेजो की चाल से परिचित थी’ वह बिलकुल भी नही घबरायी। इसका कारण यह था कि उनके दरबार में गुरू सिद्दप्पा जैसे अनुभवी दिवान और बालण्ण, रायण्ण, गजवीर तथा चेन्नवासप्पा जैसे वीर योद्धा थे। जिनके रहते रानी के मन मैं भय पैदा होने का कोई सवाल ही नही उठता था। रानी चेन्नमा ने अपने दिवान से परामर्श करके थैकरे को पत्र द्वारा सूचित किया कि– चित्तूर एक स्वतंत्र राज्य है। लह सदा स्वतंत्र ही रहेगा। यदि आवश्यकता पडी तो हम कित्तूर की स्वतंत्रा के लिए युद्ध भी करेगें। हम अंग्रेजो का गुलाम होने की अपेक्षा मृत्यच की गोद में सोना पसंद करेगें।रानी के उत्तर से थैकरे क्रोधित हो गया। वह युद्ध के लिए तैयारियां करने लगा। उधर रानी भी बेखबर न थी वह भी गांव गांव घुमकर जनता को जगाने लगी कि– अंग्रेज हमारी मातृभूमि कित्तूर को अपना गुलाम बनाना चाहते है। पर हम उनके इस मंसुबे को पूरा नही होने देगें। हम कित्तूर के लिए युद्ध करेगें और अपनी अंतिम सांस तक अपनी मातृभूमि की रक्षा करेगें। चेन्नमा के प्रयासो से पूरा कित्तूर जाग उठा । जनता ने तन मन धन से चेन्नमा की बहुत सहायता की। जिसके फलस्वरूप कित्तूर राज्य की एक बडी सेना तैयार हो गयी। तरह तरह के हथियार एकत्र हो गए। उधर थैकरे तो पहले से ही तैयार बैठा था। जब उसे रानी की गतिविधियो का पता चला तो वह ओर बडी सेना लेकर कित्तूर जा पहुचां। 23 सितंबर 1824 को थैकरे की सेना और रानी चेन्नमा की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ। रानी ने स्वंय बडी वीरता और कुशलता के साथ अपनी सेना का संचालन किया। उन्होने अपने सैनिको को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि– “कन्नड माता के वीर सपूतो” देश की स्वतंत्रता के लिए लडते लडते मर जाओ। पर देश को गुलाम नही होने देना।.आज मातृ भूमि तुम्हे अपनी रक्षा के लिए पुकार रही है। तुम्हे अपनी माटी का कर्ज अदा करना है।हमारे यह लेख भी जरूर पढे—बेगम हजरत महल का जीवन परिचयरानी भवानी की जीवनीरानी दुर्गावती का जीवन परिचयझांसी की रानी का जीवन परिचयरानी चेन्नमा की इस पुकार का परिणाम यहहुआ की चेन्नमा के सैनिक काल का अवतार बन गए। उन्होने इतनी वीरता से युद्ध किया की अंग्रेज की सेना के पैर उखड गए। और अंग्रेज सेना भाग खडी हुई। स्वंय थैकरे ने भी धारवाड में जाकर सांस ली। पर थैकरे ने हारकर भी हार नही मानी। उसकी सहायता के लिए नई सेना आ पहुंची।.उसने नई सेना के साथ दूसरी बार पुन: कित्तूर पर आक्रमण किया। चेन्नमा के सैनिको ने दूसरे आक्रमण में भी अंग्रेज सेना के छक्के छुडा दिए। पर अंग्रेज कित्तूर का पिछा छोडने वाले नही थे। उन्होने तीसरी बार एक बहुत बडी सेना के साथ कित्तूर पर आक्रमण किया। रानी चेन्नमा ने तीसरी बार भी युद्ध में बडी वीरता से अंग्रेजो का सामना किया परंतु इस बार उनकी सेना अंग्रेज सेना के मुकाबले बहुत कम थी। बार बार युद्द के कारण इस बार उनके पास साधनो की भी कमी थी। जिसका परिणाम यह हुआ की तीसरे युद्द में चेन्नमा की सेना को हार का सामना करना पडा। अंग्रेज सेना ने चेन्नमा को बदी बना लिया। काराकार में ही 21 फरवरी 1829 को रानी चेन्नमा की मृत्यु हो गयी। रानी इस दुनिया से तो चली गई। परंतु अपने पिछे इस संसार को मातृभूमि का कर्ज कैसे चुकाया जाता है यह भी प्ररेणा दे गई। भारत के इतिहास में आज भी उनका नाम सवर्ण अक्षरो में लिखा जाता है। और उनकी इस कुर्बानी को भारत के नागरीक आज भी अपने मन में बसाए हुए है और उनके जीवन से प्ररेणा लेते है।Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की महान नारियां बायोग्राफीसहासी नारी