राणा सांगा की वीरता और साहस की कहानी Naeem Ahmad, October 18, 2022April 10, 2024 “मैं राजा नहीं, अपितु अपनी मातृभूमि का सेवक हूं । प्रत्येक देशवासी का पुण्य कर्तव्य है कि वह मातृभूमि को मुक्त करवाने के लिए अपना सर्वेस्व बलिदान करवाने हेतु सर्वदा प्रस्तुत रहे।” इस प्रकार आसपास के सभी राजपूत राजाओं तथा प्रत्येक व्यक्ति को देश में व्याप्त मुसलमानों को बाहर निकालने व एकता के सूत्र में बंधने का राणा सांगा ने मौन संकेत किया।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं वीर राणा सांगा चित्तौड़ के राणा रायमल के वीर पुत्र थे। ये तीन भाई थे। राणा सांगा, पृथ्वीराज चौहान, जयमल राणा, रायमल की वृद्धावस्था में ही राज गद्दी प्राप्त करने के लिये तीनो में संघर्ष हुआ, क्योंकि तीनों ही राजगद्दी पर बैठना चाहते थें। इनमें से पृथ्वीराज बहुत क्रोधी तथा वीर था, उसने स्पष्ट रूप से कह दिया, “चाहे जो हो, गद्दी पर तो में ही बेठूंगा। इसके लिए चाहे कितना ही मूल्य क्यों नहीं देना पड़े, हर कीमत पर तैयार रहूंगा”। तीनों भाइयों के आपसी झगड़े को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए तथा राज्य में शांति, एकता व प्रेम का साम्राज्य स्थापित करने के लिए इनके चाचा सूरजमल ने एक यूक्ति सामने रखी। उन्होंने कहा कि” सामने पहाड़ियों पर देवी का मन्दिर है तथा उसमें एक तपस्विनी व नेक पुजारिन है। इस विषय में वह हमें उचित परामर्श दे सकेगी। अतः मेवाड़ की गद्दी का वास्तविक उत्तराधिकारी कौन है ? हमें चल कर पूछना चाहिए।”राणा सांगा की वीरता और साहसचाचा जी को इस युक्ति पर सभी तैयार हुए तथा निश्चित स्थान पर अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु पहुंचे। सभी ने मन्दिर में अपना- अपना आसन ग्रहण किया। चाचा सूरजमल ने पुजारिन से पूछा “देवी ! ये तीनों भाई चित्तौड़ की राजगद्दी पर बैठना चाहते हैं। आप बताइये कि इनमें से मेवाड़ की गद्दी का वास्तविक अधिकारी कौन है? ” पूजारिन ने पूर्ण चिन्तन के बाद कहा.” वत्स ! इनमें से वही राजा होगा जो यहां पर बिछे हुए आसनों में सिंह आसन पर बैठा हुआ है ”। तीनों ने एक दूसरे की ओर देखा- पृथ्वीराज और जयमल चटाइयों पर बैठे थे और राणा सांगा, सिंह चर्म के आसन पर। पृथ्वीराज स्वभाव से बहुत क्रोधी थे अतः वे तलवार लेकर राणा सांगा पर टूट पड़े। राणा सांगा भी वीरता में अपना सानी नहीं रखते थे। परन्तु वे दूरदर्शी थे तथा भाइयों को प्रेम से समझाना अधिक श्रेष्ठ समझते थे। अतः उन्होंने दूर हटकर अपनी रक्षा की और वहां से तेजी के साथ बाहर चले गये।महाराणा कुम्भा का इतिहास और जीवन परिचयजब यह समाचार इनके पिता रायमल को मिला तो वे बहुत नाराज व दुखी हुए और उन्होंने तत्काल पृथ्वीराज को मेवाड़ से बाहर चले जाने को आज्ञा दे दी। पृथ्वीराज क्रोधी के साथ-साथ बहादुर भी कम न था। मेवाड़ से बाहर निकल कर पृथ्थीराज ने भीलों को अपने साथ मिलाया तथा एक संगठित सेना तैयार की तथा गौंदावर पर अपना अधिकार किया और मालिक बन बैठा।महाराजा भूपेन्द्र सिंह का जीवन परिचय और इतिहासउघर राणा जयमल,राव शिवरतन की लड़की ताराबाई के प्रेम पाश में फंस कर राव साहब द्वारा ही मारा गया। तारा बाई बहुत बहादुर सुन्दर लड़की थी। वह चाहती थी कि में उसके साथ शादी करूंगी जो मेरे बाप के गये हुए राज्य को वापस दिला देगा और मेरे जन्म स्थान से पठान शासकों को हटा देगा। जयमल ने ताराबाई को सन्तुष्ट करने के लिए पूर्ण शक्ति लगाई परंतु सफल न हो सका। अतः केम्प में धोखें से मारा गया।राणा सांगाइस खबर ने पृथ्वीराज के दिल में आग लगा दी तथा भाई का बदला लेने के लिए उसने टोंक पर चढ़ाई कर दी और वहां से पठान भगा दिये गये। ताराबाई ने प्रसन्न हो कर तथा पृथ्वीराज की वीरता पर रीझ कर उससे विवाह भी कर लिया। राजा रायमल को राणा सांगा का पता न होने से पुनः पृथ्वीराज को मेवाड़ बुला लिया और उसे मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया, किन्तु पृथ्वीराज के भाग्य में चितौड़ की गद्दी न थी। उसको बहनोई द्वारा विष खिला कर मरवा दिया गया तथा पतिव्रता स्त्री ताराबाई सती हो गई।महाराणा प्रताप सिंह का इतिहास – महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुईराणा सांगा को मेवाड़ छोड़ने पर बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। सत्य भी हैं, कांटो के मार्ग पर चलने से ही सफलता मिलती है। दुःखों की दोपहरी में तपने पर ही सुखपूर्ण रात्रि के दर्शन होते हैं। इन दिनों में उसे कई छोटे 2 कार्य कर अपना जीवन निर्वाह करना पड़ा। अन्त में पुरुषार्थ ने भाग्य को सबल बनाया। फल स्वरूप उसने एक अच्छी सेना का संगठन किया तथा किसी राज्य पर आक्रमण करने की प्रतीक्षा में था कि उसे समाचार मिला कि उसके दोनों भाई मारे गये और पिता रायमल भी चल बसे हैं तो वह सीधे चित्तौड़ आया और मेवाड़ का राजा बन गया।महाराणा फतह सिंह जी का परिचयराजगद्दी पर बैठते ही राणा सांगा ने कुशल शासक का परिचय दिया। उसने सबसे पहले घर की आन्तरिक स्थिति को सुदृढ़ बनाया, जो गृह कलह के कारण अस्त-व्यस्त व छिन्न-भिन्न हो गई थी। प्रजा की स्थिति व स्तर में सुधार लाने के लिए उसने भरसक प्रयत्न किया। “परिश्रम सफलता की कुंजी है “_“जिन खोजा तिन पाइयां वाले आदर्शों के आधार पर राणा सांगा का राज्य पूर्णरूप से समृद्धिशाली व सुदृढ़ हो गया। तत्पश्चात राणा सांगा ने भारत से मुस्लिम शासन को समाप्त करने की तथा देश-सेवा में रत रहने की दृढ़ प्रतिज्ञा की। इस हेतु एक विशाल सेना का संगठन-किया सबसे पहले उसने मेवाड़ के पड़ोसी मालवा, गुजरात, अजमेर और बयाना के मुस्लिम शासकों को हमेशा के लिए समाप्त करने की कमर बांध ली तथा एक के बाद एक पर चढ़ाई करके उसने उन तमाम मस्लिम शासकों को समाप्त कर दिया। इस प्रकार राणा सांगा की वीरता व अदम्य साहस से उसके राज्य में बयाना से लेकर अजमेर और मालवा तक के कुल प्रांत सम्मिलित हो गये। यहां तक कि उसका राज्य दिल्ली और गुडगांव तक फैल गया।महाराणा उदय सिंह द्वितीय का इतिहासउन दिनों दिल्ली में लोदी खानदान के बादशाह इब्राहिम लोदी मुसलमान शासक था। वह राणा सांगा की इन विजयों व वीरता पूर्ण कार्यों से घबरा गया और वह स्वयं घटोल के नवाब की सहायता के लिये रणक्षेत्र में पहुंच गया। राणा सांगा जो भारत के हिन्दू राजाओं के मुकुट के समान था विशाल सेना लेकर रणभूमि में आ पहुंचा। घमासान युद्ध हुआ। इब्राहीम लोदी पराजित हुआ और वापस दिल्ली लौटकर चला गया।राणा सांगा की विजय से क्रीति रूपी सुगंध सर्वत्र व्याप्त हो गई। भारत में प्रसन्नता की लहर फैल गई। सभी राजाओं ने राणा सांगा के पास शुभ संदेश, बधाइयां व अपनी सेवायें अर्पित की। मातृ भूमि के महान पुजारी, देश के संरक्षक चाहते थे कि चित्तौड़ को भारत की राजधानी बनाई जाये। राणा सांगा इसी उद्देश्य से चित्तौड़ को दृढ़ करने में पूरी शक्ति से लगे हुए थे। उनके सामने एक महान गौरवपूर्ण लक्ष्य था, वह यह कि दिल्ली से मुस्लिम शासन को समाप्त कर मेवाड़ में मिलाया जाये। अतः उन्होंने सैनिक संगठन व तैयारियां जोरों से प्रारम्भ कर दी।उधर मुगलों को सरदार बाबर छिपे रूप से सैनिक संगठन में लगा हुआ था तथा पूरी शक्ति के साथ भारत में घुस आया और लाहौर पर अपना अधिकार भी कर लिया। लाहौर ले लेने के बाद बाबर विजय के अनेक स्वप्न देखने लगा। वह पानीपत की ओर आगे बढ़ा। इस युद्ध में बाबर व इब्राहीम लोदी के मध्य मुकाबला हुआ। इब्राहीम इस युद्ध में मारा गया। बाबर का दिल्ली पर कब्जा हुआ।राणा सांगा ने चिन्तन किया व सभी राजाओं से परामर्श किया तथा आगरा में बाबर की सेना को हराने के लिए विशाल सेना का संगठन किया। आगरे के पास कन्हवा नामक स्थान पर दोनों सेनाओं का भीषण मुकाबला हुआ। सभी राजाओं ने राणा का साथ दिया। प्रथम बाबर की सेना घबरा गई तथा सरदारों के हाथ पांव ढीले हो गए। बाबर ने अपनी सेना को विशेष प्रलोभन दिये तथा इस्लाम के नाम पर उत्साहित किया। बाबर के पास एक भीषण तोपखाना था और उस समय तक भारत में तोप न थी। इसके साथ ही साथ कुछ राजाओं ने बाबर को मोर्चे बन्दी सम्बन्धी भेद भी बता दिये। इससे बाबर को सफलता मिली और वह विजयी हुआ।राणा सांगा इस युद्ध में पराजित अवश्य हुआ परन्तु उसका साहस भंग नहीं हुआ और उसने समस्त राजाओं व नागरिकों को उत्साहित किया। उसे प्रेरणास्पद वाक्य में कहा “मैं मुगलों को भारत से बाहर निकालकर ही सुख की नींद सोऊंगा।” “मनुष्य क्या सोचता है और ईश्वर क्या करता है“ विधि के कार्यों की विडम्बना अदभुत है। राणा सांगा की उक्त प्रतिज्ञा पूर्ण होने के पूर्व ही अचानक रोगग्रस्त हो गया और इस मृत्युलोक से चल बसा।राणा सांगा का स्थान भारत समृद्ध राज्य राजस्थान के इतिहास में बहुत ऊंचा एवं गौरवमय है। उसने अपना सर्वस्व मातृभूमि की स्वतन्त्रता व सेवा में अर्पित कर दिया था। राणा सांगा एक बहादुर, साहसी व निर्भीक योद्धा था। उसकी भी एक टांग, एक हाथ व एक आंख युद्ध स्थल में ही काम आई थी। उसके शरीर पर तलवार और बर्छे के 80 घाव थे। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि वह कितना बहादुर था और वह अपनी मातृभूमि से विदेशियों को निकालने के लिए अन्तिम श्वास तक लड़ता रहा। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on 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