राजकुमारी अमृत कौर का जीवन परिचय – राजकुमारी अमृत कौर बायोग्राफी Naeem Ahmad, August 11, 2020March 11, 2023 श्री राजकुमारी अमृत कौर वर्तमान युग की उन श्रेष्ठ नारी विभूतियों में से एक है। जिन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में भाग लेकर अपने देश को गौरव और सम्मान प्रदान किया है। अगस्त सन् 1947 को जब भारत स्वतंत्र राष्ट्र घोषित हुआ तो केंद्रीय सरकार के स्वास्थ्य सचिव पद पर नियुक्त किया गया और इन्होंने अपने कार्य भार को अथक और सुगम कार्य पद्धति से संभाला। राजकुमारी अमृत कौर की जीवनी राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी सन् 1889 में लखनऊ के कपूर शाही महल मे हुआ था। ये कपूरथला के भूतपूर्व राजा हरनाम सिंह की एकमात्र पुत्री थी और इनकी शिक्षा दीक्षा भारत और इंग्लैंड में प्रमुख रूप से शेरवोर्न गर्ल्स स्कूल (लंदन) में हुई थी।गांधी युग के प्रारंभिक चरण में जिन कुछ व्यक्तियों ने अपने आप को त्याग, तपस्या और बलिदान के पथ पर अग्रसर किया उनमें राजकुमारी अमृत कौर को प्रथम पंक्ति में रखा जायेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। इन्होंने महान व्यक्तित्व बापू जी के संपर्क में रहकर राष्ट्र के कल्याण का प्रण लिया था, और उनके द्वारा प्रचारित मानव प्रेम के आदर्श से अनुप्राणित होकर उस जीवन पद्धति को अपना लिया था, जो संक्रांति युग की प्रेरक और मानवीय कुंठित चेतना को विकसित करने वाली है। लगभग सोलह साल ये गांधी जी के सेक्रेटरी का कार्य करती रही। सन् 1930 में ये अखिल भारतीय महिला सभा की मंत्री और सन् 1933 मे उसकी अध्यक्षा निर्वाचित हुई। सन् 1934-36 मे ये जालंधर शहर में म्यूनिसिपल कमिश्नर भी रही, यहां इन्हें कुछ समय तक स्त्री शिक्षा, बालकों के सुधार और सामाजिक सेवाओं का सुअवसर मिला। सन् 1932 में लार्ड लोथियन की चुनाव समिति के समक्ष इन्होंने अखिल भारतीय महिला सभा और राष्ट्रीय नारी संघ का महत्व दर्शाया और सन् 1933 में लंदन की संयुक्त चुनाव समिति में इन्होंने भारतीय महिला एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व भी किया। सन् 1938 में ये पुनः अखिल भारतीय महिला सभा की प्रसीडेंट नियुक्त हुई। केंद्रीय सरकार में राजकुमारी अमृतकौर ही सर्वप्रथम शिक्षा एडवाइजरी बोर्ड की महिला सदस्या निर्वासित की गई और तब तक इस पद रही जब तक कि स्वयं इन्होंने अगस्त 1942 में मतभेद के कारण त्याग पत्र न दे दिया, किन्तु ये पुनः सन् 1946 में एडवाइजरी बोर्ड की सदस्या हो गई। कुछ वर्षों तक ये ऑल इंडिया स्पिनर्स एसोसिएशन के ट्रस्टी समिति की भी मेंबर रही और इसके अतिरिक्त हिन्दुस्तानी तालीमी संघ तथा अखिल भारतीय महिला सभा की स्थायी समिति की भी सदस्या करती रही। नवंबर1945 में ये भारतीय प्रतिनिधि मंडल के साथ यूनेस्को के लिए लंदन पधारी और पुनः सन् 1946 में भारतीय प्रतिनिधि मंडल की उपनेतृ होकर पेरिस गई। सन् 1949-50 में इन्होंने विश्व स्वास्थ्य संघ में इंडियन डेलिगेशन का नेतृत्व किया और सन् 1930 में विश्व स्वास्थ्य एसेम्बली की प्रेसिडेंट चुनी गईं। राजकुमारी अमृत कौर टेनिस खेलने में भी अत्यंत दक्ष थी। शिमला और लाहौर की खिलाड़ी टीमों में कई बार चेम्पियनशिप जीत चुकी है। भारत की विभिन्न स्त्री शिक्षा संस्थाओं को, जिनसे कि ये संबंधित रही है। इन्होंने खेलों और बाहरी प्रक्रियाओं का महत्व समझाया है। ये भारत की नेशनल स्पोर्ट्स क्लब की प्रसीडेंट भी रही। राजकुमारी अमृत कौर सन् 1948 में ये इंडियन रेड क्रास सोसाइटी की चेयरमैन और सेंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड की चीफ कमिश्नर नियुक्त हुई। सन् 1948-49 मे ये अखिल भारतीय समाज संघ की प्रेसिडेंट रही और अखिल भारतीय कोढ़ी एसोसिएशन की चेयरमैन तथा अखिल भारतीय यक्ष्मा एसोसिएशन की प्रेसिडेंट भी रही तथा आप गांधी स्मारक कोष की ट्रस्टी भी थी। इन्होंने गांधी जी के साथ रहकर कई वर्षों तक हरिजन के संपादन मे हाथ बटाया। अंग्रेजी धारावाहिक रूप से ये लिखती और बोलती थी। इनकी दो प्रसिद्ध पुस्तकें टू वुमेन (To Women) और चेलेंज टू वुमेन (Challenge to women) इनकी विचारधारा की परिचायक है, जो इनके छत्तन्त्री के तारों को झंकृत करती है। इन्हें हिन्दी से अत्यधिक प्रेम था। जब कभी भी हिन्दी बोलने अथवा लिखने का सुयोग होता था, ये बड़ी सुचारुता से उसका प्रयोग करती थी। ये अखिल भारतीय हिन्दी परिषद की देहली प्रान्तीय शाखा की सभानेत्री चुनी गई थी। इनका जीवन बहुत ही सरल और निर्दम्भ है। विदेशों में भ्रमण करके और लंदन के स्कूलों में अधिकतर शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात भी ये जीवन कला कि उन वैयक्तिक और समाजिक मिथ्या व्यवहारिकताओ से अनभिज्ञ थी, जिनके आचरण से मस्तिष्क अशांत और दैनिक परिस्थितिया बोझिल हो जाती है। नारी के समान अधिकारों की कायल होते हुए भी ये उसकी उच्छृंखल मनोवृत्ति पर्तिथ आचरण और बढ़ती हुई कुत्सित क्रीडाओं की वासना को हय समझती थी। नारी की सच्चरित्रता पर जोर देती हुई एक स्थल पर ये अपना मन्तव्य इस प्रकार प्रकट करती थी— ” अच्छे चाल चलन वाली स्त्री का मूल्य जगमगाते जवाहिरो से भी अधिक है। वह देश के आध्यात्मिक विकास और संस्कृति की रक्षक है”। स्त्रियों मे सामाजिक बौद्धिक एवं सांस्कृतिक चेतना उत्पन्न करने के लिए, उन्हें सामयिक समस्याओं के समाधान योग्य बनाने के लिए घरेलू जीवन को सुंदर, स्वस्थ और सुखमय तथा अनपढ़ ग्रामीण नारियों को बाल मनोविज्ञान और शिशु पालन के सिद्धांतों से परिचित कराने के लिए सुंदर शिक्षा की आवश्यकता है”। राजकुमारी अमृत कौर लिखती है– ” नारी जीवन की समस्याएं आज के युग में सर्वतो मुखी हो उठी है। उनके बारें में कहने का अंत नहीं है। कारीगर जैसे टूटी दीवार का पुनः निर्माण करता है। वैसे ही हमें नारी जीवन की सभी समस्याओं का एक ही सुझाव या हल दिखाई पड़ रहा है, और वह है, नारी जीवन की निर्माण शक्ति। उन्हें प्रारंभ से ही मानसिक और नैतिक अनुशासन और सहयोग की शिक्षा देना आवश्यक है। मनुष्य की सामाजिक ईकाई कुटुंब है। और घर के वातावरण को सुनिश्चित बनाएं रखना स्त्री का ही कर्तव्य है। हमें उनमें काम की महत्ता जागृत करनी चाहिए, ताकि वे समाज पर बोझ न बन सके। अध्ययन और मनन की प्रवृत्ति होने के कारण राजकुमारी अमृतकौर ने स्वभावतः एकाकी जीवन ही अधिक व्यतीत किया है। विगत साठ वर्षों की अनवग्त साधना, एकाकी कर्मठ जीवन और कठोर तपश्चर्या से जो स्वतंत्र राष्ट्र का नेतृत्व इन्होंने प्राप्त किया है वह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में सदैव विस्मरणीय रहेगा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम मे गांधी जी के साथ कंधे से कंधा मिला कर इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 2फरवरी सन् 1964 को 75 वर्ष की आयु में राजकुमारी अमृत कौर का दिल्ली में निधन हो गया। भारत की महान नारियों पर आधारित हमारे ये लेख भी जरूर पढ़ें:—– [post_grid id=”6215″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in 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