रबड़ की खोज किसने की – रबड़ कैसे बनता है तथा उत्पादक देश Naeem Ahmad, March 9, 2022April 1, 2024 रबड़ आधुनिक सभ्यता की बहुत बड़ी आवश्यकता है। यदि हम रबर को एकाएक हटा लें, तो आज की सभ्यता पंगु हो जाएगी।प्रारंभ में, पेंसिल के निशान मिटाने के इसके गुण के कारण प्रीस्टले ने सन् 1770 में इसका नाम ‘घिसने वाला’ अर्थात् ‘रबड़’ रखा। चूंकि सर्वप्रथम यह अमेरिका में पाया गया, (जहां के मूल निवासियों को इण्डियन कहते थे) ‘इण्डियन शब्द को भी इसके साथ जोड़ दिया गया। लंदन और पेरिस के बाजारों मे सर्वप्रथम यह पेंसिल के निशान मिटाने के लिए ही बिकता था।लोथल की खोज किसने की और कब हुईएक समय था जब जंगलों में रबड़ स्वतः ही पेड़ों से प्राप्त होता था, किन्तु ज्यों-ज्यों इसकी मांग बढ़ती गई त्यों-त्यों इसकी विधिवत उपज का चलन बढ़ने लगा। इस सिलसिले में अन्य वृक्षों और लताओं की भी खोज की जाने लगी। रबड़ का आदिस्रोत अमेरिका है। वहां के मूल निवासी 11वीं शताब्दी से पूर्व भी इसके गुणों से परिचित थे। उस जमाने की रबड़ की वस्तुएं आज भी पुरातत्व के महत्व की हैं। कोलम्बस ने सन् 1493 में हेयती की अपनी दूसरी यात्रा में जब यह देखा कि वहां के आदिवासी किसी पेड़ से निकले हुए गोंद की गेंद बनाकर खेलते हैं, तो उसके विस्मय का ठिकाना न रहा। फ्रांस के खगोलवक्ताओं के एक दल ने सन् 1735 में दक्षिण अमेरिका के पेरु प्रान्त में देखा कि एक विशेष प्रकार के वृक्ष से गोंद या रस उत्पन्न होता है,जो अपनी प्राकृतिक अवस्था में रंगहीन होता है, किन्तु गर्म करने पर या धूप में रखने पर ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है। वहां के आदिवासी इसका उपयोग जूते और बोतलें बनाने में करते थे। वे फ्रांसीसी यात्री इस पदार्थ को अपने साथ ले गए। बहुत दिनों तक इसके गुण यूरोप वालो की जिज्ञासा और विस्मय का कारण बने रहे। दक्षिण-पूर्वी एशिया के निवासी भी रबड़ की टोकरियां, घड़े तथा गेंदें बनाते थे। यूरोप के निवासियों को अमेरिका से ही रबड़ का परिचय प्राप्त हुआ था। उच्च कोटि का रबर दक्षिण अमेरिका के अमेजन (Amazon) के जंगलों में हीविया नामक वृक्ष से प्राप्त होता है। रबड़ कैसे बनती है समय-समय पर रबड़ पर अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गए। वैज्ञानिक पील ने इसे तारपीन के तेल में घोलकर देखा और उस घोल का लेप पहन ने के कपड़ों पर तो वाटरप्रुफ कपड़ा तैयार हो गया। उसमे पानी का प्रवेश नहीं होता था। मैकिनटोश ने इसी आधार पर व्यावसायिक रूप से बरसाती कपड़े बनाए। माइकल फैराड़े ने अपना मत प्रदर्शित किया कि रबड़ एक यौगिक है। इसमें कार्बन के दस परमाणु और हाइड्रोजन के सोलह परमाणु होते हैं। इसका अनुमानित सूत्र C.10,H.16 है। कालांतर में इसका सूत्र (C.5,H8)n निश्चित किया गया, जिसमें एक अनिश्चित संख्या है। गुडईयर और रबड़ की खोजअमेरिका निवासी चार्ल्स गुडईयर ने सन् 1831 में रबड़ उपयोगिता का विकास करने का प्रयत्न किया। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन रबड़ अनुसंधान में ही लगा दिया। रबड़ पर अनेक पदार्थों की प्रतिक्रियाओं का उन्होंने अध्ययन किया। प्रथम प्रयोग उन्होंने रबड़ की गोंद के साथ मिला कर किया। तत्पश्चात् नमक, चीनी, अण्डी का तेल, साबुन, आदि के साथ भी मिलाकर प्रयोग किए ताकि रबड़ में स्थिरता आ सके और थोड़ी सी गरमी पर ही चिपचिपापन आ जाने की खामी दूर हो सके। उन्होने रबर की विविध वस्तुएं बनाना प्रारंभ कर दिया, किन्तु गर्मी का मौसम शुरू होते ही उनकी रबर निर्मित वस्तुओं मे दुर्गंध आने लगती और चिपचिपापन आ जाता। जूते, थैले आदि बिकने बंद हो जाते और बहुत-सा माल वापस भी आ जाता। नतीजा यह होता कि कारखानों द्वारा दिए गए आर्डर रद्द कर दिए जाते और उल्टी-सीधी बातें सुनने को मिलतीं। उस हालत में गुडईयर को जान तक बचाना कठिन पड़ जाता था।इंजन का आविष्कार किसने किया – इंजन की खोज कब हुईरबड़ का प्रयोग करते हुए अनेक बार ऐसे मौके आए, जबकि गुडईयर के लिए अपने परिवार का भरण-पोषण करना कठिन हो गया। फिर भी वे अपने प्रयोगों में भूखे-प्यासे लगे रहे। रबड़ के प्रचार के लिए उन्होंने सबसे पहले स्वयं को रबर की चादर से ढंक लिया। उन दिनों उनका परिचय देते हुए लोग कहते कि यदि आपको एक ऐसा आदमी दिखाई पड़े जो इण्डियन रबड़ का कोट, जूते और टोप पहने हुए हो तथा उसकी जेब में रबर का पर्स हो, जिसमे एक भी सेण्ट (सिक्का) न हो, तो समझ लीजिए कि वह मिस्टर गुडईयर होंगे।टेलीफोन का आविष्कार किसने किया – टेलीफोन की खोज कब हुईएक दिन रबर और गन्धक के मिश्रण का नमूना गुडईयर अपने मित्रों को दिखा रहे थे कि अकस्मात् वह मिश्रण स्टोव की आंच में गिर गया। उस नमूने को आंच से बाहर निकाला, तो यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि गर्म होकर ऐसा रबर बन गया था जिसमें चिपचिपाहट जरा भी न थी और अतिशय ठण्ड में यह चटखा भी नहीं। तभी उन्होंने निश्वय किया कि रबड़ को गन्धक के साथ मिलाकर आंच में तपाया जाए और वह क्रिया ठीक समय पर रोक दी जाए तो रबर से चिपचिपाहट समाप्त हो सकती है। वही क्रिया आगे चलकर वल्कनाइजिंग के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके लिए आवश्यक ताप की मात्रा ज्ञात करने के लिए रबर के अनेक नमूनों को विभिन्न तापक्रमों पर गर्म किया गया। गुडईयर की उस अथक तपस्या का फल हमारे सामने है और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में रबड़ का अपना विशेष स्थान है।एनरिको फर्मी का जीवन परिचय – एनरिको फर्मी की खोजरबड़ के बढ़ते हुए महत्व को देखकर इंग्लैंड में भी रबड़ के पेड़ उगाने की योजना बनाई गई। ब्राजील से बीज मंगाने शुरू किए गए, लेकिन ब्राजील सरकार ने बीजों के विदेश भेजने पर रोक लगा दी। चोरी छिपे विकहम नामक एक अंग्रेज रबड़ के हीविया वृक्ष के बीज इंग्लैंड ले आया। लंदन के किऊ बाग में सन् 1876 में 70 हजार बीज बोए गए। उनसे केवल 2700 ही पौधे उगे। नवजात पौधों को अत्यंत सावधानी के साथ सिंगापुर, जावा, वर्मा तथा लंका भेजा गया। यद्यपि भारत में भी रबड़ के पेड़ स्वाभाविक रूप से उगते थे, किन्तु तब तक उनका कोई व्यापारिक महत्व नहीं था। आधुनिक ढंग से भारत में रबड़ की उपज पिछले 50-60 वर्षों से ही होने लगी है। वृक्षों के उगाने तथा कच्चे रबर के शोधन में महत्वपूर्ण सुधार किए गए। भारत का कच्चा रबर पहले विदेशों में भेजा जाता था, किन्तु अब रबर के सामान तैयार करने के अनेक कारखाने यहीं पर खुल चुके हैं। प्रयोगशाला में रासायनिक रीति से भी कृत्रिम रबड़ बनाना संभव हो चुका है, किन्तु वह विधि महंगी पड़ती है। प्राकृतिक रबड़ का अक्षय भण्डार कभी खाली नही हो सकता। पुराने पेड़ों की जगह सदैव ही नए पेड़ लगते रहेंगे।प्राकृतिक रबर के स्रोतअभी तक लगभग 500 तरह के ऐसे वृक्षों तथा लताओं का पता लग चुका है, जिनके लेटेक्स नामक रस से रबड़ बन सकता है। हीविया ब्रेजिलियेनसिस नामक वृक्ष से, जो अमेजन घाटी में बहुतायत से पाया जाता है, संसार का सर्वोत्तम रबर प्राप्त होता है। यही वृक्ष दक्षिण भारत के त्रावनकोर, कोचीन, मैसूर,मालाबार, कुर्ग तथा सालेम जिलों के पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया गया हैं।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े[post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व की महत्वपूर्ण खोजें प्रमुख खोजें