योहानेस केप्लर का जीवन परिचय – ग्रहों की गति के केप्लर के नियम क्या थे? Naeem Ahmad, May 27, 2022 “और सम्भव है यह सत्य ही स्वयं अब किसी अध्येता की प्रतीक्षा में एक पूरी सदी आकुल पड़ा रहे, वैसे ही जैसे सृष्टि का सूत्रधार 6000 साल इसके अन्वेषक की प्रतीक्षा में अब तक आकुल रहा है !”– इन शब्दों में ग्रहों-उपग्रहों की परिक्रमा के सम्बन्ध में एक वैज्ञानिक-तथ्य का प्रख्यायन योहानेस केप्लर ने पहले-पहल किया था। उसे मालूम था कि ग्रहों की गतिविधि में उसकी व्याख्या, जो उसने 1618 में तब प्रकाशित की थी लोकप्रिय नहीं होगी और उसे धर्म विरुद्ध समझा जाएगा। केप्लर, निकोलस कोपरनिकस के इस विचार से सहमत था कि ब्रह्माण्ड का केन्द्र सूर्य है, और पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। वैज्ञानिक सत्य था भी यही कुछ, किन्तु लोक धारणा उसके पक्ष में नहीं थी। और इसके अतिरिक्त एक और भी सिद्धान्त योहानेस केप्लर ने प्रस्तुत किया जोकि उसके निजी प्रत्यक्ष पर आधारित था, कि ये ग्रह नक्षत्र सूर्य के गिर्द पूर्ण वृत्त मंडलों में परिक्रमा नहीं करते। इस सिद्धान्त को भी लोकप्रियता कैसे मिल सकती थी। सदियों से वैज्ञानिक वृत्त को ही श्रेष्ठतम आकृति अथवा परिक्रमा मार्ग मानते आ रहे थे। वृत्त एक ईश्वर-प्रदत्त वस्तु थी और इसलिए गगनचारी वस्तुओं के लिए अब परिक्रमा का और कोई मार्ग सम्भव रह ही न गया था। खैर, योहानेस केप्लर ने अपने सिद्धान्तों को प्रकाशित कर दिया कि एक सदी बाद ही सही कोई तो उससे सहमत होने वाला पैदा हो जाएगा। केप्लर के ये नियम इतने पूर्ण थे कि दो सदियां बीत गई और उनमें संशोधन की सम्भावना तब भी नहीं निकल पाई। अपने इस लेख में हम इसी महान वैज्ञानिक का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—- ग्रहों की गति के केप्लर नियम क्या है? केप्लर के तृतीय नियम से गुरुत्वाकर्षण बल का परिकलन कीजिए? ग्रहों की गति के केप्लर के नियम क्या है? केप्लर के कितने नियम हैं? केप्लर के नियम से न्यूटन में कितने निष्कर्ष निकाले? केप्लर ने क्या खोजा था? केप्लर का जन्म कब हुआ था? योहानेस केप्लर के माता पिता कौन थे? केप्लर के शिक्षा कहा से प्राप्त की थी? केप्लर की मृत्यु कब हुई थी? योहानेस केप्लर का जीवन परिचय योहानेस केप्लर का जन्म 1571 में दक्षिणी जर्मनी के एक शहर बाइल में हुआ था। अभी वह चार साल का ही था कि चेचक का बडी बुरी तरह से शिकार हो गया। इससे उसकी आंखें बहुत कमज़ोर हो गई, और हाथो से वह लगभग लूला ही हो गया। योहानेस केप्लर के पिता एक सिपाही थे और भाग्यशाली माने जाते थे। केप्लर की मां एक सराय-मालिक की बेटी थी। पिता अक्सर नशे में होता, मां का दिमाग भी अक्सर कोई बहुत ठिकाने न होता। उसकी अपनी आंखें जवाब दे चुकी थी, हाथ लूले, और बाकी जिस्म भी कमज़ोर और बेकार हो चुका था। इन सब बाधाओं के बावजूद योहानेस केप्लर बचपन से ही एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी था। चर्चो की व्यवस्थापिका संस्था ने उसका भविष्य निर्धारित कर दिया और वह, धर्म विज्ञान का अध्ययन करने के लिए ईसाइयो के ‘गुरूकुल’ मे दाखिल हो गया। ट्यूर्बिजेन विश्वविद्यालय की एक छात्रवृत्ति उसने उपार्जित की। यहां पहुंचकर वह निकोलस कोपरनिकस के विचारो के सम्पर्क में आया कि किस प्रकार ग्रह-नक्षत्र सूर्य के गिर्दे परिक्रमा करते है। विज्ञान और गणित के प्रति उसका यह आकर्षण शीघ्र ही एक व्यामोह में परिवर्तित हो गया। उसने पादरी बनने के अपने वे पुराने सब विचार छोड दिए। 23 वर्ष की आयु मे ग्रात्स विश्वविद्यालय ने उसे निमन्त्रित किया और उसने नक्षत्र-विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में वह नियुक्ति स्वीकार कर ली। योहानेस केप्लर ने एक धनी परिवार की लडकी से शादी कर ली, और प्रतीत यही होता था कि उसके जीवन की दिशा अब निश्चित हो चुकी है। परन्तु धार्मिक आन्दोलन उठ खड़े हुए और उसके लिए वह प्रोटेस्टेंट था, ग्रात्स से रहना अब असम्भव हो गया। योहानेस केप्लर खगोलशास्त्री बडा आश्चर्य होता है यह जानकर कि इस व्यक्ति की विज्ञान का एक पुजारी होते हुए भी, सामुद्रिक शास्त्र मे कुछ आस्था थी। तारों और नक्षत्रों की स्थिति अंकित करते हुए वह अपने जीवन की दैवी घटनाओं का भी यथावत् रिकार्ड रखा करता था, हालांकि उसका अपना कहना यही था कि मुझे ज्योतिष से रत्ती-भर भी विश्वास नहीं है। किन्तु अतीत के अन्ध विश्वासो का प्रभाव उसके विचारो पर कुछ न कुछ निःसंदेह पडा। गणित पर आधारित नक्षत्रों की गतिविधि का सुक्ष्म अध्ययन जहां उसका विषय था, वहा उसने मूर्त आकृतियो– घन वर्ग, चतुष्फलक, अष्टफलक, द्वादशफलक तथा विशतिफलक की पूर्णता के सम्बन्ध में भी एक अन्त सूत्र सा, एक स्थूल नियम-सा, प्रस्तुत करने की कोशिश की। विज्ञान की दृष्टि से यह उसका एक गलत दिशा मे कदम था जिसमे शायद अनजाने मे वह प्राचीन ग्रीक दार्शनिकों की उस अवैज्ञानिक धारणा का ही अनुसरण कर रहा था जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड कुछेक पूर्ण आकृतियों का एक पुंज बनकर रह जाता है।केप्लर के नियम केपलर को ग्रात्स छोडना पडा। उन दिनो डेनमार्क का प्रसिद्ध नक्षत्रविद ताइको ब्राहे भी देश निर्वासित होकर प्राग में आ बसा था। यही दोनो वैज्ञानिको का सम्मिलन हुआ। किंतु ब्राहे, कोपरनिकस का विरोधी था। उसकी आस्था थी ईश्वरीय नियमों में और विज्ञान के नियमों में खलल पड जाएगा यदि हम यह मान लें कि ब्रह्मांड का केन्द्र सूर्य ही है। इसी आस्था के अनुसार उसने पुराने जमाने से चली आ रही इस भ्रान्ति धारणा को ही वैज्ञानिक रूप में समर्थित करने का प्रयत्न किया कि नक्षत्र मंडल का केन्द्र पृथ्वी है। ब्राहे के नक्षत्र-सम्बन्धी प्रत्यक्ष तथा सूक्ष्म अन्बेषणो की सख्या कितने ही हज़ार तक पहुच चुकी थी, और विज्ञान जगत आज भी 1592 में प्रकाशित तारों की आकाश में आपेक्षिक स्थिति के उसके प्रतिपादन के लिए कृतज्ञ है। सम्भव है उसने स्वयं अनुभव भी किया हो कि वह अब तक गलती पर था, क्योंकि केप्लर को उसने अपने सहायक और उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया, यद्यपि केप्लर की धारणा यह थी कि ब्रह्माड का केन्द्र सूर्य है, पृथ्वी नही। सन् 1601 मे ताइको ब्राहे की मृत्यु हो गई। उसके बाद भी केप्लर की ग्रह गणनाएं चलती रही। उसकी अध्यक्षता में 228 अन्य तारों का सूक्ष्म अध्ययन किया गया। ब्राहे के संगृहीत अध्ययनों का विश्लेषण करते हुए ही योहानेस केप्लर ग्रहों की गतिविधि के सम्बन्ध मे कुछ नियमों का निर्धारण कर सका, जिनकी व्याख्या न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के मूल सिद्धांत के आधार पर आगे चलकर की। विज्ञान मे आज भी कैपलर और न्यूटन के उन नियमों का प्रत्याख्यान नही हो सका है। यही नियम हैं जो मानव-निर्मित उपग्रहों के भी नियामक है। योहानेस केप्लर की नई खोज यही नही थी कि सूर्य के गिर्द नक्षत्रों का परिक्रमा-मार्ग अंडाकार होता है, अपितु यह भी की अपनी अपनी परिधि मे परिक्रमा करते हुए हर नक्षत्र की गति मे निरन्तर परिवर्तन आता रहता है। नक्षत्र ज्यो-ज्यो सूर्य के निकट पहुंचते जाते हैं, उनकी यह गति बढती जाती है। केपलर ने गणना द्वारा यह भी जान लिया कि किसी नक्षत्र को सूर्य की परिक्रमा काटने में कितना समय लगता है। जो ग्रह भोर नक्षत्र सूर्य के निकट होते है, उन्हे इस परिक्रमा मे समय अपेक्षया कुछ कम ही लगता है। गणित के नियमों के अनुसार नक्षत्रों के सम्बन्ध में केप्लर ने घडी, पल सब-कुछ गिनकर दिखा दिया कि प्रत्येक नक्षत्र की वास्तविक स्थिति और गतिविधि कब क्या होनी चाहिए। जब हम केप्लर के इन सूक्ष्म अध्ययनों को पढ़ते है तो आश्चर्य चकित रह जाते हैं कि वह पृथ्वी के सम्बन्ध में विशेषतः इतना सही अनुमान कैसे कर सका, जबकि आज हम जानते है कि पृथ्वी की सूर्य के गिर्द परिक्रमा का मार्ग प्राय वृत्ताकार है। एक दिशा में यदि उसकी परिधि 100 फुट हो तो दूसरी दिशा मे वह 99.1/2 फुट होगी। इससे कुछ अन्दाजा लग सकता है कि किस प्रकार इस अण्डाकृत मंडल मे पृथ्वी सूर्य के गिर्द घूमती है। और इससे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि वृत्त मडल को पूर्णतम परिधि मानने के सदियों से चले आ रहे विचार को परास्त कर सकना किस कदर मुश्किल था। योहानेस केप्लर ने विज्ञान के अन्य सम्बद्ध क्षेत्रों मे भी अन्वेषण किए। मानव दृष्टि तथा दृष्टि विज्ञान के सम्बन्ध मे जो स्थापनाएं उसने विकसित की उनका प्रकाश के अपसरण’ के क्षेत्र मे बहुत महत्त्व है। यहां तक कि नक्षत्रों ग्रहों के अध्ययन के लिए एक दूरबीन तैयार करने की आधारशिला भी नियमो के रूप में वह रखता गया। गणित के क्षेत्र मे उसकी खोजें प्राय कैल्क्यूलस का आविष्कार करने के निकट आ पहुची थी और साथ ही गृरुत्वाकर्षण तथा समुद्रों के ज्वार के सम्बन्ध में भी उसने सही सही कल्पनाएं कर ली थी। योहानेस केप्लर की मृत्यु 1630 मे आइजक न्यूटन के जन्म से 2 वर्ष पूर्व हुई। न्यूटन ने अपने महान कार्य को संग्रहित करने के लिए कम से कम एक पैर विज्ञान के इस औदिग्गज के कन्धो पर रखा था। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी