मुक्तसर साहिब का गुरूद्वारा, हिस्ट्री ऑफ मुक्तसर साहिब Naeem Ahmad, July 11, 2019July 18, 2019 मुक्तसर फरीदकोट जिले के सब डिवीजन का मुख्यालय है। तथा एक खुशहाल कस्बा है। यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थान भी है। इसके निकट ही मांझे से आये गुरू गोबिंद सिंह जी के 40 श्रद्धालु सिक्खो ने जिन्हें चालीस मुक्ते कहा जाता है, नवाब वजीर खां की फौजों से जंग करते हुए शहीदी प्राप्त की थी। इसी पवित्र स्थान को मुक्तसर साहिब कहते है।हिस्ट्री ऑफ मुक्तसर साहिब, मुक्तसर की लड़ाईजब मुगल सेना गुरू गोबिंद सिंह जी का पीछा करते हुए यहां पहुंची थी। इन चालीस मुक्तों की शहीदी ने ही मुगल सेना को मुंह तोड़ जवाब दिया था। और उन्हीं शहीदों के नाम पर यह स्थान जो कभी खिदराणे की ढाब के नाम से जाना जाता था अब मुक्तसर साहिब के नाम से प्रसिद्ध हो गया।खिदराणे की ढाब की लड़ाई गुरू गोबिंद सिंह जी के जीवन की आखरी लड़ाई थी। यह जंग 29 दिसंबर 1705 को हुई थी। गुरू गोबिंद सिंह जी ने स्वयं शहीदों का संस्कार किया था। जिस समय गुरू गोबिंद सिंह जी शवों को एकत्र कर रहे थे। उनके बीच में से एक भाई महासिंह जोकि गंभीर रूप से घायल थे और सिसक रहे थे। उनकी हालत बहुत गंभीर थी। परंतु उसकी सांसे गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज के दर्शन करने के लिए लालायित थी।गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज ने उसे देखा तो आगे बढ़कर उसका सिर अपनी गोद में रखकर पूछा—- तुम्हारी कोई इच्छा है तो बताओं! महासिंह ने गुरू जी से विनती की कि सच्चे पातशाह जी कृपा करके मेरा बेदावा (त्यागपत्र) फाड़ दे, तथा टूटे हुए सम्बंध जोड़ दे। अपने चरणों से जोड़ने की कृपा करें।मुक्तसर साहिब के सुंदर दृश्ययहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब गुरू जी आनंदपुर साहिब के किले में मुगल सेना के घेरे में फंसे थे, और युद्ध चल रहा था। तो कुछ सिख मतभेद के चलते गुरू जी को बेदावा (त्याग पत्र) देकर वहां से निकल आये थे।जब वे अपने गाँव में पहुंचे तो उनकी पत्नियों, परिवार वालों तथा गाँव वालों ने उन लोगों को बहुत फटकारा और कहा कि जब गुरू गोबिंद सिंह जी धर्मयुद्ध लड़ रहे है, तो ऐसे समय में तुम लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है। ये लोग अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हुए।तब ये लोग माई भागो जी की अगुवाई में पुनः वापस आये तथा यहां खिदराणे की ढाब में मुगल सेना से टक्कर ली तथा शहीदी प्राप्त की और अपने गुरू से टूटा हुआ रिश्ता पुनः जोड गये।दसवें गुरू गोबिंद सिंह जी ने महासिंह के सामने ही उसकी विनती स्वीकार करते हुए बेदावा फाड़ दिया तथा आशीर्वाद दिया। इस तरह से गुरू साहिब जी ने अपने सिखों को माफ कर दिया।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-गुरूद्वारा चरण कंवल साहिबगुरूद्वारे नानकसर कलेरा जगराओंगोइंदवाल साहिब का इतिहासदुख निवारण साहिब पटियालामंजी साहिब गुरूद्वारा कैथल हरियाणाहिस्ट्री ऑफ तरनतारन साहिबहिस्ट्री ऑफ दमदमा साहिबहिस्ट्री ऑफ पांवटा साहिबहिस्ट्री ऑफ अकाल तख्त साहिब अमृतसरहिस्ट्री ऑफ आनंदपुर साहिबहिस्ट्री ऑफ गोल्डन टेम्पल अमृतसरयहां पर सभी गुरू पर्व धूमधाम से मनाये जाते है। विशेष तौर पर माघ के महीने में शहीद सिक्खो की याद में जोड़ मेले का आयोजन होता हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु उसमें शामिल होने तथा गुरू घर की चरण रज प्राप्त करने के लिए यहां आते है।गुरूद्वारा मुक्तसर साहिब के अलावा यहां पर गुरूद्वारा श्री तम्बू साहिब, शहीदगंज गुरूद्वारा, टिब्बी साहिब गुरूद्वारा, रकाबसर साहिब आदि मुख्य दर्शनीय स्थान है। यहां आने वाले यात्रियों के लंगर एवं ठहरने के लिए गुरूद्वारा मुक्तसर साहिब में उचित व्यवस्था है।भारत के प्रमुख गुरूद्वारों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=’6818′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल पंजाब दर्शनप्रमुख गुरूद्वारे