महाराणा विक्रमादित्य का इतिहास Naeem Ahmad, November 22, 2022February 21, 2023 महाराणा विक्रमादित्य महाराणा सांगा के पुत्र थे, और महाराणा रतन सिंह द्वितीय के भाई थे, महाराणा रतन सिंह द्वितीय की मृत्यु के पश्चात और अपने पुत्र को फांसी पर चढ़ाने के बाद महाराणा रतन सिंह द्वितीय के अब कोई पुत्र न बचा था, अतएवं उनके भाई महाराणा विक्रमादित्य सन् 1531 में राज्य सिंहासन पर बैठे। इस समय इनकी उम्र 14 वर्ष थी। इनके शासन-काल में घरेलू विरोध की आग बड़े जोर से धधकने लगी। भील भी उनसे नाराज़ रहने लगे। इस उपयुक्त अवसर को देख कर गुजरात के शासक बहादुर शाह जफर ने फिर मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। यह बढ़ा भीषण आक्रमण था। शिसोदिया वीरों ने अपूर्व वीरत्व के साथ युद्ध किया। महाराणा विक्रमादित्य का इतिहास यहाँ तक कि स्वयं राजमाता महारानी कर्णावती कई वीर क्षत्राणियों के साथ हाथ में तलवार लेकर शत्रुओं पर टूट पड़ी और उसने सैकड़ों शत्रु-सेनिकों को तलवार के घाट उतार दिये। बहादुर शाह जफर दंग रह गया। पर बहादुर शाह जफर के पास असंख्य सेना एवं बढ़िया तोपखाना था, अतएव आखिर में वह विजयी हुआ। असंख्य राजपूत वीर और वीर रमणियाँ अपनी मात्रभूमि की रक्षा करती हुई स्वर्गलोक को सिधारीं। महाराणा विक्रमादित्य बहादुर शाह जफर ने चित्तौड़ लूट कर अपने अधीन कर लिया, पर पीछे से बादशाह को महाराणा ने चित्तौड़ से निकाल दिया। महाराणा विक्रमादित्य अपने सरदारों के साथ अच्छा व्यवहार न करते थे, इससे एक समय सब सरदारों ने मिलकर उन्हें गद्दी से उतार दिया। उनके स्थान पर उनके छोटे भाई बनवीर, जो दासी पुत्र थे, राज्यासन पर बैठाये गये। ये बढ़े दुष्ट स्वभाव के थे। इन्होंने सरदारों पर अनेक अत्याचार करना शुरू किया। इन्होंने अपने भाई भूतपूर्व महाराणा संग्रामसिंह को मारकर अपनी अमानुषिक वृत्ति का परिचय दिया। इतना ही नहीं, संग्रामसिंह के बालक पुत्र उदयसिंह पर भी यह दुष्ट हाथ साफ कर अपनी राक्षसी वृति का परिचय देना चाहता था। पर दाई पन्ना ने निस्सीम स्वामि-भक्ति से प्रेरित होकर बालक उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया और उसके स्थान पर अपने निज बालक को सुला दिया। नराधर्म बनवीर ने दाई पन्ना के बालक को उदयसिंह जानकर मार डाला। दाई पन्ना ने अपने इस दिव्य स्वार-त्याग से मेवाड़ के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। बालक उदयसिंह को आसाशाह नामक एक ओसवाल जैन ने परवरिश किया। आखिर में सरदारों ने बनवीर को हटा कर इन्हें मेवाड़ के सिंहासन पर बैठाया । यह घटना ईस्वी सन् 1542 की है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”13251″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष उदयपुर शासक