महाराणा रतन सिंह द्वितीय का इतिहास Naeem Ahmad, November 22, 2022February 21, 2023 महाराणा संग्रामसिंह (सांगा) के बाद उनके पुत्र महाराणा रतन सिंह द्वितीय राज्य-सिंहासन पर बैठे। आपमें अपने पराक्रमी पिता की तरह वीरोचित गुण भरे पड़े थे। रणक्षेत्र ही को आप अपनी प्रिय वस्तु समझते थे। आपने चित्तौड़गढ़ के दरवाजे खुले रखकर लड़ने का प्रण किया था। इन्होंने आमेर के राजा पृथ्वीराज की पुत्री के साथ गुप्त विवाह किया था। स्वयं पृथ्वीराज को यह बात मालूम न थी। उन्होंने हाड़ा वंशीय सरदार सूरजमल के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया जब महाराणा को इस विवाह की खबर लगी तो उन्हें बडा दुःख हुआ। महाराणा रतन सिंह द्वितीय का इतिहास राजा सूरजमल की बहिन महाराणा को ब्याही थी, अतएव प्रत्यक्ष रूप से महाराणा उन्हें कुछ न कह सके। पर उनके दिल में इसका बदला लेने की आग बड़े जोर से धधक रही थी। थोड़े ही दिनों के बाद अहेरिया का दिन आया। महाराणा शिकार खेलने के लिये निकले। प्रसंगवश सूरजमल भी महाराणा के साथ शिकार खेलने के लिये चल पढ़े। अवसर देख कर महाराणा ने सूरजमल को ललकारा। दोनों वीरों ने तलवार से फ़ैसला करने का निश्चय किया। इसमें दोनों काम आये। महाराणा रतन सिंह के केवल एक ही पुत्र था, जो महाराणा की आज्ञा से फाँसी पर लटका दिया गया था। यह कथा कुछ ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। महाराणा रतन सिंह द्वितीय अतएवं हम उसे यहाँ देते हैं–पाठक जानते हैं कि वीरवर महाराणा संग्रामसिंह ने गुजरात और मालवा के शासकों को बुरी तरह हराया था। वे दोनों इस पराजय से दुःखी होकर मेवाड़ पर सदा दृष्टि लगाये रहते थे। जब इन्होंने देखा कि महाराणा रतन सिंह द्वितीय के समय में सरदारों ओर सामन्तों में फूट पड़ रही है तो इन्होंने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण की बात सुनकर महाराणा बढ़े दुखी हुए। परन्तु मंत्रियों ने उन्हें समझाया कि कुछ भी हो मेवाड़ की रक्षा अवश्य करनी होगी। इस पर महाराणा ने रण-भभेरी बजवा कर हुक्म दिया कि पवित्र भूमि मेवाड़ की रक्षा के लिये सब सामन्त और सरदार कराला देवी के मंदिर में ठीक 12 बजे उपस्थित हों। सामन्त और सरदार ठीक समय पर पहुँच गये, परन्तु युवराज उपस्थित न हो सके। उनका एक सिलनी से स्नेह था। वे उस समय उससे मिलने के लिये गये हुए थे। उपस्थिति का घण्टा बजते ही सरदारों में काना फूसी होने लगी कि युवराज अभी तक नहीं आया। जब महाराणा ने देखा कि एक सरदार ने खड़े होकर ताना मारा कि सब आ गये, पर युवराज अभी तक नहीं आये। उस समय मेवाड़ में यह नियम था कि युद्ध की भेरी बजने पर कोई सरदार या सामन्त ठीक समय पर उपस्थित न होता तो वह फाँसी पर लटका दिया जाता था। इसी नियम पर पाबन्द रह कर महाराणा रतन सिंह ने अपने खास पुत्र के लिये फाँसी तैयार करवाने का हुक्म दिया। मंत्रियों ने महाराणा को अपनी यह कठोर आज्ञा वापस लेने के लिये बहुत समझाया और कहा कि युवराज अब उपस्थित हो गये हैं।पर महाराणा रतन सिंह द्वितीय ने कहा कि वह ठीक समय पर क्यों न उपस्थित हुआ। दूसरे दिन युवराज फाँसी पर लटका दिये गये। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”13251″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष उदयपुर का राजपरिवारउदयपुर के शासकमेवाड़ का राजवंशराजस्थान के वीर सपूतराजस्थान के शासक