महाराजा भूपेन्द्र सिंह का जीवन परिचय और इतिहास Naeem Ahmad, February 8, 2023April 10, 2024 महाराजा राजेन्द्र सिंह जी के देहान्त के समय महाराजा भूपेन्द्र सिंह जी नाबालिग थे। अतएव आप पटियाला की राज-गद्दी पर बिठाये गये और राजकार्य चलाने के लिये एक कौंसिल स्थापित की गई। महाराजा भूपेन्द्र सिंह जी का जन्म सन् 1891 में हुआ था। लाहौर के एटकिन्सन चीफ कॉलेज में आपने शिक्षा पाई। आपकी नाबालिगी में रिजेंसी कौन्सिल द्वारा राज्य कार्य चलता रहा। सन् 1903 के कारोनेशन दरबार में आप स्वयं अपने संचालन में अपनी सेना को ‘प्रेड रिव्यू दिखाने ले गये थे। इस समय आपकी उम्र केबल 10 वर्ष की थी। उसी वर्ष आपकी भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन के साथ मुलाकात हुई। महाराजा भूपेन्द्र सिंह का जीवन परिचय और इतिहास सन् 1905 में आपने तत्कालीन भारत सम्राट से लाहौर में भेंट की। उस समय सम्राट भारत में प्रिंस आफ वेल्स की हैसियत से पधारे थे। इस शुभ अवसर पर पटियाला नरेश ने अमृतसर खालसा कॉलेज से विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाने वाले विद्यार्थियों की सहायता के लिए एक लाख रुपए प्रदान किए। सन् 1908 में महाराजा भूपेन्द्र सिंह का जिंद राज्य के सेनापति की पुत्री से विवाह हुआ। सन् 1909 की 30 सितंबर को आपने 18 वर्ष की उम्र में शासन सूत्र धारण किया। इसके दूसरे वर्ष नवंबर मास में लार्ड मिन्टो पटियाला पधारे। उस समय पटियाला के जल कारखाने का उद्घाटन किया गया। आपके शासन-काल में पटियाला रियासत ने बहुत उन्नति पाई। आपने अपने राज्य की शिक्षा और स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान दिया। राज्य में प्राथमिक तथा कालेज संबंधित शिक्षा नि: शुल्क दी जाती थी।महाराजा महेन्द्र सिंह और महाराजा राजेन्द्र सिंह पटियाला रियासतमहाराजा भूपेन्द्र सिंह को क्रिकेट के खेल में विशेष अभिरूचि थी। आप सन् 1911 में भारतीय क्रिकेट टीम के कैप्टन बनकर इंग्लैंड पघारे थे। आप इसी वर्ष तत्कालीन भारत सप्राट के राज्यारोहण उत्सव के समय निमन्त्रित किये जान पर उक्त उत्सव में सम्मिलित हुए थे। सन् 1911 के देहली दरबार में भी आपने महत्वपूर्ण भाग लिया। इसी दरबार में आपको श्रीमान सम्राट महोदय ने जी सी एस आई० की उपाधि से विभूषित किया। आपकी महारानी साहिबा ने इसी दरबार में भारतीय स्त्री समाज की ओर से श्रीमती सम्राज्ञी को एक अभिनन्दन-पत्र दिया। महाराजा भूपेन्द्र सिंह पटियाला यूरोपीय युद्ध शुरू होने पर आपने अपनी सारी सेना ब्रिटिश सरकार को समर्पण कर दी। सन् 1918 में आपने देहली बार कॉन्फ्रेन्स में मुख्य भाग लिया था। इसी वर्ष आप इम्पीरियल युद्ध कान्फ्रेन्स तथा केबिनेट के भारत की ओर से प्रतिनिधि मनोनीत किए गए। आपने बेलजियम, फ्रान्स, इटली और पेलेस्टाइन आदि स्थानों में पहुँचकर युद्ध-क्षेत्र में भ्रमण किया तथा वहां की सरकार से उच्च सम्मान तथा उपाधियाँ प्राप्त की। आपकी सेवाओं के उपहार में श्रीमान सम्राट महोदय ने आपको ‘सी० ओ०“ बी० ई० की उच्च उपाधि से विभूषित किया है तथा आपको मेजर जनरल की रैंक का भी सम्मान दिया गया। महाराजा करम सिह जी के शासनकाल में ब्रिटिश-सरकार को किसी प्रकार की नजर न देने का जो विशेष अधिकार आपको प्राप्त था, वह आपने युद्ध में दी हुई सहायता के उपलक्ष्य में पुश्तैनी कर दिया गया। आपकी सलामी भी 17 से बढ़ाकर 19 तोपों की कर दी गई।महाराजा नरेंद्र सिंह पटियाला परिचय और इतिहासउपरोक्त युद्ध में पटियाजा नरेश ने कुन 25000 मनुष्यों से ब्रिटिश सरकार को सहायता की थी युद्ध में पराक्रम दिखाने के उपलक्ष्य में आपकी सेना को 160 से अधिक सम्मानप्रद पदक मिले थे। सैनिक सहायता के अतिरिक्त आपके राज्य की ओर से वार-लोन फंड में भी 350000 रुपये एकत्रित हुए थे। आपने इस युद्ध में प्रथक कार्यो में दी हुई सहायता 15000000 रुपयों के लगभग है। गत अफगान युद्ध में भी आपने अपनी सेना सहित ब्रिटिश सरकार की सहायता करने की इच्छा प्रकट की, जो कि सहर्ष स्वीकृत की गई। आपने इस युद्ध में ‘नॉर्थ वेस्टर्न फ्रांटियर फोर्स’ के स्पेशल सर्विहस ऑफिसर का पद स्वीकृत किया था। आप भारतीय नरेन्द्र-मंडल के प्रमुख सदस्यों में से हैं तथा आप उसकी कार्यवाही में विशेष दिलचस्पी रखते थे। अपनी प्रजा को राज्य-कार्य में विशेष अधिकार देने के हेतु से आपने म्यूनिसिपेलिटी तथा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड में प्रतिनिधि निर्वाचन करने की प्रथा प्रचलित की थी। इस राज्य का बहुत सा हिस्सा एक दूसरे से विशेष दूरी पर होने से कृषि व्यवसाय प्रत्येक भाग में विभिन्न प्रकार से होता था यहाँ की अधिकांश जमीन समतल है किन्तु वर्षा की कमी के कारण उपज सब जगह एक सी नहीं होती थी। यहाँ मुख्यतः गेहूँ, ज्वार, कपास, चना, मकई, सोंठ चावल, आलुओर गन्ने की खेती की जाती थी। यहाँ जंगल का क्षेत्रफल भी काफी था,जिनमें इमारती लकड़ी बहुतायत से होती थी। घास के लिये भी काफी जमीन थी। कृषि तथा दुसरे कामों के लिये ठोर भी अच्छी तादाद में थी। यहाँ विभिन्न जिलों में घोड़े भी अच्छे मिलते थे।महाराजा अमरसिंह पटियाला का परिचय और इतिहासपटियाला नगर में लगभग 80000 रुपया लगाकर विक्टोरिया मेमोरियल पुर हाऊस स्थापित किया गया है। विक्टोरिया गर्लस स्कूल, लेडी डफरिन हॉस्पिटल और दाई तथा नर्सों की पाठशाला आदि भी महाराजा भूपेन्द्र सिंह ही ने बनवाये थे। शासन-सम्बन्धी कार्यो के लिये राज्य में चार विभाग मुख्य थे–अर्थ विभाग, फ़ॉरेन विभाग, न्याय विभाग औन सेना विभाग। इन सब विभागों के कार्यो की देख रेख स्वयं महाराजा भूपेन्द्र सिंह अपने कान्फिडेन्शियल सेक्रेटरी के जरिए करते थे। पटियाला राज्य करमगढ़, पिंजोर, अमरगढ़, अनहदगढ़, और महिन्द्रगढ नामक पांच भागों में विभाजित था, जिन्हें निजामत कहते हैं। प्रत्येक निजामत एक नाजिम के अधीन थी।महाराजा डूंगर सिंह का इतिहास और जीवन परिचयसन् 1862 के पहले भूमिकर फसल का 1 हिस्सा लिया जाता था । फिर यह नक॒द रुपयों में वसूल किया जाने लगा। सन् 1901 में यहाँ नई पद्धति के अनुसार बन्दोबस्त कायम किया गया था। भूमि-कर के अतिरिक्त इरिगेशन वर्क, रेलवे, स्टाम्प तथा एक्साइज ड्यूटी आदि से भी राज्य को अच्छी आमदनी होती थी। प्रधान न्यायालय को सदर कोट कहते थे, इसे दीवानी और फौजदारी मामलों के कुल अधिकार प्राप्त थे। सिर्फ प्राण-दंड के मामलों में इस कोर्ट को महाराजा भूपेन्द्र सिंह की मंजूरी प्राप्त करना होती थी। पटियाला रियासत में “भादौड़ के सरदार” नामक बहुत से जमींदार थे। इन जमीदारों की वार्षिक आय लगभग 70000 रुपये हैं। खामामन गाँवों के जागीरदारों को भी राज्य से प्रतिवर्ष 90000 रुपये दिये जाते थे।पटियाला नरेशों को अपना सिक्का जारी करने का अधिकार अहमदशाह दुर्रानी ने सन् 1767 में प्रदान किया था। यहाँ तांबे का सिक्का कभी नहीं जारी हुआ। एक बार महाराज नरेंद्रसिंह ने अठन्नी और चवन्नी चलाई थी। रुपये और अशर्फियाँ सन् 1895 तक राज्य की टकसाल में ढलती रहीं। अन्त तक सिक्कों पर वही पुरानी इबारात खुदी रहती थी कि “अहमदशाह की आज्ञानुसार जारी हुआ।” पटियाले का रुपया राजशाही रुपया कहलाता था। नानकशाही रूपये भी ढाले जाते थे। यह केवल दशहरे या दिवाली पर ही काम आते थे। इस रुपये पर यह शेर छपा रहता है–देग तेगो फतह नसरत बेदंग, याफ्त भज नानक गुरु गोविन्द्सिंह। 23 मार्च सन् 1938 को महाराजा भूपेन्द्र सिंह की मृत्यु हो गई। आपके बाद आपके पुत्र महाराजा यादवेन्द्र सिंह पटियाला रियासत की गद्दी पर विराजे, जो पटियाला रियासत के अंतिम शासक थे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=’15407′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष जीवनी