मल्हारराव द्वितीय का परिचय हिन्दी में Naeem Ahmad, November 11, 2022 महाराज यशवन्तराव होलकर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी तुलसीबाई जिन्होंने महाराजा की विक्षिप्त अवस्था में राज्य का शासन किया था-रिजेन्ट बनाई गई। उस समय महाराजा के उत्तराधिकारी मल्हारराव द्वितीय की उम्र केवल चार वर्ष की थी। सब लोगों ने उनके उत्तराधिकारित्व को स्वीकार किया। इन बाल- महाराजा के समय कुछ सैनिक अधिकारियों की बगावत के कारण राज्य में बड़ी अशान्ति और गड़बड़ी फैली हुईं थी। आधीनस्थ इलाकेदार इस समय स्वाधीन होने लग गए थे। भील लोग जंगलों से निकल निकल कर उत्पात मचाने लग गए थे। तनख्वाह के लिये सेना अलग चिल्ला रही थी। तुलसीबाई ओर मल्हारराव द्वितीय के खिलाफ साजिशें होने लगीं। यह अशान्ति और गड़बड़ इतनी फैली हुई थी कि सन् 1815 में तुलसीबाई को गंगराड़ के किले में आश्रय लेना पड़ा। इसके बाद दीवान गनपतराव तुलसीबाई के हर एक काम पर नज़र रखने लगे। बागी फौज के नायक राज्य की शान्ति स्थापना में बराबर बाधा डालते रहे। इन सब बातों से तंगआकर तुलसीबाई को गंगराड़ का किला छोड़ कर आलोट के किले में आश्रय लेना पड़ा। मल्हारराव द्वितीय का परिचय इसी समय अर्थात सन् 1817 में पेशवा ने अंग्रेजों से युद्ध घोषित कर दिया। होल्कर सरकार के कुछ बागी सेनानायक इस समय पेशवा से मिल गये। तुलसीबाई अंग्रेजों से सुलह रखना चाहती थी, अतएव वे इस बागी फौज द्वारा मार डाली गईं। उनके सचिव भी कैद कर दिये गये। इसी बागी फौज़ ने बाल महाराज को भी पकड़ कर इसलिये अपने कब्जे में कर लिया कि वह उनके नाम पर हुकूमत करे। इस समय वह अंग्रेजी सेना जो पिंडारियों को दबाने के लिये मध्य भारत में घुसी थी होल्कर राज्य में आ पहुँची। इसने होल्कर राज्य की बागी सेना की चहलपहल देख कर यह समझा कि होल्कर राज्य ब्रिटिश से युद्ध किया चाहता है। उसने युद्ध की तैयारी की और सन् 1817 के दिसम्बर में युद्ध हुआ। यहाँ यह ध्यान में रखना चाहिये कि इस युद्ध में होल्कर राज्य के केवल तोपखाने ने भाग लिया था। इसने अंग्रेज़ी सेना को बहुत नुकसान पहुँचाया। राज्य की अन्य फौजें निरपेक्ष रहीं। इससे अंग्रेजों को सहज ही में विजय मिल गई। अंग्रेज़ी सरकार ने यह तो न समझा कि यह सब कारवाई बागी फौज की है, इसमें होल्कर राज्य का कोई दोष नहीं। उसने होल्कर राज्य पर बड़ी ही कड़ी शर्तें लाद दी। होल्कर राज्य के तत्कालीन दीवान ताँतिया जोग ने अंग्रेज़ों को यह बात खूब अच्छी तरह समझाई कि यह सब कारवाई होल्कर राज्य की मनशा के खिलाफ बागी फौज की थी–इसमें राज्य का तिल भर भी दोष नहीं, पर उनकी एक न सुनी गई। आखिर उन्हें उस कड़े सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े, जो अंग्रेज सरकार की ओर से पेश किया गया था। यह बात सन् 1818 की है। इस सन्धि से होल्कर राज्य का आधा हिस्सा चला गया। उदयपुर, जयपुर , जोधपुर, कोटा, बूंदी और करोली आदि के महाराजा जो कर और खिराज होल्कर राज्य को देते थे, इस सन्धि के अनुसार वह अंग्रेज सरकार को दिया जाने लगा। रामपुरा, बसंत, राजेपुरा, बलिया, नीमसरा, इन्द्रगढ़, बूंदी, लाखेरी, सामेदी, ब्राह्यणगाँव, दसई और अन्य स्थानों से जोकि बूंदी की पहाड़ियों के बीच में या उत्तर में हैं, होल्कर ने अपना अधिकार हटा लिया ओर सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच के या उनके दक्षिण वाले इलाकों, खानदेश वाली अमलदारियों तथा निजाम और पेशवा के इलाकों से मिले हुए अपने जिलों का सम्पूर्ण अधिकार भी उन्हें अंग्रेज सरकार को देना पड़ा। पच-पहाड़, डग, गंगराड और आवर आदि परगने कोटा के जालिम सिंह को दिये गये। अंग्रेज सरकार ने इकरार किया कि वह महाराजा होल्कर की संतानों, सम्बन्धियों, आश्रितों, प्रजा व कर्मचारियों से किसी तरह कासंबंध न रखेगी। उन सब पर महाराजा होल्कर का पूर्ण अधिकार रहेगा। इसी प्रकार का इकरार अंग्रेज सरकार ने निजाम हैदराबाद और सिन्धिया सरकार के साथ भी किया। अंग्रेज सरकार ने स्वीकार किया कि वह होल्कर दरबार में अपना सन्त्री तथा राज्य में शान्ति स्थापित रखने के लिये सेना रखेगी। महाराजा अपना वकील बड़े लाट के पास जब चाहेंगे भेज सकेंगे। इस सन्धि से होल्कर सरकार पर से पेशवा का प्रभुत्व उठ गया। मल्हारराव द्वितीय सन् 1818 में इन्दौर राजनगर (राजधानी) नियुक्त किया गया। इसके बाद जल्दी ही दीवान ताँतिया जोग ने खर्च में कमी करना शुरू की। इस समय इलाकों से बहुत कम मालगुजारी वसूल होती थी। राजकाज चलाने के लिये कर्ज निकालने की जरूरत पड़ी। सेना का एक भाग कान्टिन्जेन्ट में परिवर्तित किया गया और अंग्रेज सरकार के एक फ़ौजी अफसर की अधीनता में महिद्पुर भेज दिया गया। कुछ सैनिक रोब जमाने की गरज से इलाकों में भेजे गये। केबल 500 सवार राजनगर में रखे गये। रक्षा और पुलिस का काम करने के लिये कुछ पैदल सेना भी राजनगर में रखी गई। अब तक राज्य में सवत्र शान्ति स्थापित थी। सन् 1819 में कुछ लोगों ने इधर उधर उत्पात मचाना शुरू किया। सबसे पहले कृष्णकुँवर नामक एक व्यक्ति ने अपने आपको काशीराव का भाई मल्हारराव द्वितीय प्रकट कर चम्बल के पश्चिम में एक सेना का संगठन किया। उसने अरबों और मकरानियों की मदद से महीनों उत्पात मचाया पर महिदपुर की कान्टिम्जेन्ट सेना ने उसे मार भगाया। इसी समय मल्हारराव द्वितीय के चचेरे भाई हरिराव ने भी सिर उठाया। सन् 1826 सें ताँतिया जोग की मृत्यु हो गई। इनके मन्त्रित्व-काल में राज्य की आमदनी 5 लाख से बढ़ कर 30 लाख हो गई थी। इनकी मृत्यु के बाद राज्य-प्रबन्ध क्रमशः बिगड़ता गया। सन् 1829-30 में उदयपुर के इलाकेदार बेगूं के ठाकुर ने नंदवास पर दो बार आक्रमण किया। पर राज्य और कान्टिन्जेन्ट सेना ने उन्हें दोनों बार मार भगाया। सन् 1831 में एक ढोंगी ने साठ महाल में कुछ आदमी जमा कर बलवा किया पर मालवे की कान्टिन्जेन्ट सेना द्वारा वह परास्त और निहत हुआ। 27 अक्टूबर सन् 1833 को 27 वष की अवस्था में मल्हारराव द्वितीय की मृत्यु हो गई। इन्दौर में इनकी छत्री बनी हुई है। इनका कद मझला और रंग साँवला था। ये बड़े उदार और दयालु थे। पुराना महल (Old place ) और पंढरिनाथ का मन्दिर-जोकि नगर के मध्य में है-इनके ही समय में बना है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:– [post_grid id=”11374″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष महाराष्ट्र के वीर सपूतवीर मराठा सपूत