भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला Naeem Ahmad, July 6, 2021March 11, 2023 भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान समय में इसका विध्वंश हो चुका है। महाराजा छत्रसाल के शासनकाल से लेकर 1857 की क्रान्ति तक इस दुर्ग का ऐतिहासिक महत्व रहा है। बाँदा का यह दुर्ग बाँदा महोबा मार्ग पर स्थिति है। भूरागढ़ का किला का इतिहास इन हिन्दी पहले समय मे कभी यहाँ कोल भीलो की बस्तियाँ थी। इसके स्मृति चिन्ह आज भी यहाँ उपलब्ध है। मुगलों के शासनकाल में यह क्षेत्र मुगलों के अधीन था। औरंगजेब के शासनकाल में पन्ना महाराज छत्रसाल ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया था। छत्रसाल की मृत्यु के पश्चात सन् 1740 में भूरागढ़ किले का निर्माण जगतराय के पुत्र कीर्ति सिंह ने कराया था। उसी समय से बुन्देलों के अनेक स्मृति चिन्ह दुर्ग और उसके आस-पास अनेक स्थलों पर उपलब्ध होते है। ये स्थल राजा बाग दउआ के महल और गौरहार महल के नाम से विख्यात है। सन् 1787 से 90 के मध्य बाँदा के प्रथम नवाब अली बहादुर भूरागढ़ के शासक के संरक्षक, नोने अर्जुन सिंह के मध्य युद्ध हुआ इस युद्ध में नोने अजुन सिंह की पराजय हुईं तथा अली बहादुर प्रथम की विजय हुई। इस युद्ध में अली बहादुर का साथ हिम्मत बहादुर गोसाई ने दिया था। भूरागढ़ चूँकि भूरे रंग के बलुवा पत्थरों से निर्मित हुआ है इसलिए इसका नाम भूरागढ़ पड़ा 17 वीं शताब्दी के पश्चात यह दुर्ग राजा गुमान सिंह के नियन्त्रण में रहा स्थानीय लोगो का कथन है कि इस दुर्ग में असंख्य धन गड़ा हुआ है। सरकार ने इन अफवाहों से प्रवाहित होकर यहाँ उत्खनन कार्य कराया था। किन्तु कुछ भी उपलब्ध नहीं हुआ, बल्कि दुर्ग की प्राचीर उत्खानन के दौरान नष्ट हो गयी थी। भूरागढ़ का किला सन् 1857 में इस दुर्ग के समीप बागी सैनिकों का मुकाबला अंग्रेज सेनापति व्हिटलक से हुआ था। इस युद्ध मे 800 व्यक्ति मारे गये थे। तथा अनेक व्यक्तियों को फाँसी दी गयी थी। इसके पश्चात बाँदा के अन्तिम नवाब अली बहादुर सानी को परिवार सहित निकाल दिया गया था। 1857 की क्रान्ति के पश्चात यह दुर्ग अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। इस दुर्ग में निम्नलिखित दर्शनीय स्थल भी हैं। नटबली का मजार भूरागढ़ किले का यह सर्वाधिक प्रसिद्ध स्थल है इस स्थल के सन्दर्भ में एक जनश्रुति प्रचलित है कि एक नट का प्रेम सम्बन्ध यहाँ के नरेश की राजकुमारी से था। राजा को जब इस बात का पता लगा तो नरेश ने नट को मारने की एक योजना बनायी और नट से कहा कि यदि वह कच्चे धागे पर केन नदी को पार करके दिखलाये तो वह अपनी कन्या का विवाह तुम्हारे साथ कर देगा। राजा ने देखा कि नट नदी पार कर रहा है तो उसने उस कच्चे सूत के धागे को कटवा दिया। नट जिस स्थल पर गिरा उसी स्थल पर उसकी समाधि बना दी गयी मकर संक्रान्ति के समय इस स्थल पर मेला लगता है। प्रवेशद्वार भूरागढ़ किले का प्रवेश द्वार आज भी सुरक्षित स्थिति में है। दुर्ग में प्रवेश के पश्चात एक बडा मैदान उपलब्ध होता है द्वार के दाहिने ओर ऊपर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ बनी हुई है। इसी स्थान पर यहाँ निवास करने वाले नागा बाबा की समाधि बनी हुई है। रंग महल दुर्ग के मैदान में दुर्ग से लगे हुये रंग महल के अवशेष मिलते होते है। कहते है कि इस स्थल में तदयुगीन नरेशो की रानियाँ रहा करती थी अब यह स्थल भग्न अवस्था में है। रानी की बावली भूरागढ़ दुर्ग से कुछ हटकर रेलवे लाइन के सन्निकट रानियों के स्नान करने के लिये एक बावली थी। जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। और रंग महल से वहाँ पहुँचने के लिए गुप्त मार्ग है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- [post_grid id=”8089″] Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किले