भातखंडे संगीत विद्यालय का इतिहास Naeem Ahmad, July 20, 2022February 27, 2024 भारतीय संगीत हमारे देश की आध्यात्मिक विचारधारा की कलात्मक साधना का नाम है, जो परमान्द तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए है परन्तु उत्तर मध्यकाल के विलासी वातावरण में संगीत कला को भोग-विलास की सामग्री बना कर कोठों पर पहुंचा दिया गया था और इस तरह उसे देह व्यवसाय के साथ जोड़ा जा चुका था। इसके मर्यादाहीन हो जाने के बाद सभ्य समाज गायन-वादन और नृत्य से कतराने लगा था। वहां केवल लोक संगीत, और लोक नृत्य ही रह गया था जिसकी अनवरत प्रतिष्ठा थी। आधुनिक काल में जब हर ओर जन-जागरण की लहर थी और सामाजिक मूल्यों को फिर से जगाए जाने की बात उठी तो संगीत के पुनरुद्धार का भी आन्दोलन हुआ। लखनऊ का भातखंडे संगीत महाविद्यालय (पुराना नाम-मैरिस म्यूजिक कालेज) इसी आन्दोलन की देन है।भातखंडे संगीत विद्यालय का इतिहास10 अगस्त सन् 1860 को बालकेश्वर महाराष्ट्र में जन्में भारतीय संगीत मनीषी पं. विष्णुनारायण भातखंडे जी ने इस नगर में वैज्ञानिक शिक्षण पद्धति से संगीत की शिक्षा देने के लिए यहां एक संगीत विद्यालय की स्थापना करने की योजना बनायी। इसके लिये उन्होंने पहले देश भर में संगीत प्रेमियों की सहमति प्राप्त की। उनका लक्ष्य ही संगीत को राजदरबारों, सामन्तों, वेश्याओं के कोठों और मुजरे की महफिलों से निकाल कर स्वच्छ पर्यावरण में लाना था। उन्होंने 1916 में बड़ौदा के विशाल संगीत सम्मेलन में विचार विमर्श किया और फिर उसी आशय से 8 जुलाई सन् 1926 को कैसरबाग चाइना बाज़ार के निकट की तोप वाली कोठी में एक अखिल भारतीय संगीत महाविद्यालय स्थापित किया गया। पं. विष्णु नारायण भातखंडे ने भारत भर में भ्रमण कर के संगीत सूत्र खोजे और फिर “हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक मालिका” स्वरलिपि सहित प्रकाशित की। संस्कृत भाषा में भी आपकी दो पुस्तकें ‘लक्ष्य संगीत” तथा “अभिनव राग मंजरी’ प्रसिद्ध हैं।लखनऊ के क्रांतिकारी और 1857 की क्रांति में अवधभातखंडे जी की पवित्र प्रेरणा के इस पुण्य प्रतिष्ठान के लिये रूपरेखा सन् 1924-25 में लखनऊ में ही आंयोजित होने वाली अखिल भारतीय संगीत परिषद् के वार्षिक अधिवेशनों में तैयार की गई थी। महाविद्यालय निर्माण में सबसे आगे राय उमानाथ बली ताल्लुकेदार दरियाबाद अवध और तत्कालीन शिक्षा मन्त्री राय राजेश्वर बली साहब थे। इनके साथ राजा बरखण्डी, राजा नवाब अली (अकबरपुर, जिला सीतापुर वाले), नवाब साहब रामपुर , रायबहादुर चन्द्रबली और श्री अतुल प्रसाद सेन जी थे। राजा नवाब अली हारमोनियम बजाने में इतने पारंगत थे कि उनको अपने इस हुनर के लिए आज तक याद किया जाता है। उसी तोप वाली कोठी में इस भातखंडे संगीत विद्यालय का विधिवत उद्घाटन 16 मार्च 1926 की यूनाइटेड प्राविन्सेज आगरा एवं अवध के गवर्नर सर विलियम मेरिस द्वारा किया गया था और उसी समय इस संगीत विद्यालय का नाम “मैरिस कालेज आफ हिन्दुस्तानी म्यूजिक” रखा गया। प्रारम्भ में ये सभी संगीत प्रेमी स्वयं तानपूरा, हारमोनियम, सितार, तबला आदि वाद्य लेकर फर्श बिछाकर बैठते थे, गाते-बजाते थे क्योंकि सीखने वाले लड़के लड़कियां आसानी से आने को तैयार नहीं थे। इसी दौर में कैसरबाग चौराहे के उस पार नज़ीराबाद के नुक्कड़ पर फल और सब्जी की बाज़ार “मैरिस मार्केट” का निर्माण हुआ था। 20 मार्च सन् 1926 को इसे राज्य सरकार ने अपना संरक्षण दिया था।भातखंडे संगीत विद्यालयकर्मठ संगीत उपासकों के निरंतर प्रयास से कुछ छात्रों ने विद्यालय में प्रवेश लिया और जब सीखने वालों की संख्या बढ़ी, तो कौंसिल अगस्त 1928 में विद्यालय को पुराने चैम्बर्स व कैनिंग कालेज के भवन में ले आया गया जिसका भवन 1878 में अवध के परम्परागत स्थापत्य में बनवाया गया था। भातखंडे जी की प्रेरणा से ही ग्वालियर का माधव संगीत विद्यालय और बड़ौदा का म्यूजिक कालेज कायम हुआ। मैरिस म्यूजिक कालेज के पहले प्रधानाचार्य श्री माधव राव केशव जोशी जी बने। जब वो सितम्बर 1928 को सेवानिवृत्त हुए तो भातखंडे जी के प्रमुख शिष्य श्री कृष्ण नारायण रतनजंकर जी प्राचार्य हुए जिनकी निष्ठापूर्ण आजीवन सेवाएं सदा भातखंडे विद्यालय के साथ याद की जायेंगी।शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगमभातखंडे संगीत महाविद्यालय का एक गौरव यह भी है कि यहाँ बड़े से बड़े संगीत विदों ने गायन-वादन और नृत्य की शिक्षा दी है, तो बड़े नामी कलाकार यहाँ के स्नातक रहे हैं। श्री गोविन्द नारायण नातू, लखनऊ के उस्ताद छोटे मुन्ने खाँ खयालिए तथा उस्ताद अहमद खाँ धुरपदिए यहां गायन की शिक्षा देते थे। इसी तरह उस्ताद आबिद हुसैन खाँ खलीफा तबला वादन और डॉ. सखावत हुसैन खाँ सरोद वादन सिखाते थे। इनके अलावा रहीमुद्दीन खाँ. डागर, अहमद जान थिरकवा, बेगम अख्तर, वी जी जोग, उस्ताद यूसुफ अली खाँ (सितार) जैसे सुविख्यात गुणवन्त शिक्षक रहे हैं। सन् 1936 में यहां कथक नृत्य की विधिवत शिक्षा दी जाने लगी। इसका उत्तरदायित्व उस समय श्री रामलाल कथिक ने संभाला था। फिर मैरिस संगीत महाविद्यालय की स्थापना सन् 1939 में हुई।गोमती नदी का उद्गम स्थल और गोमती नदी लखनऊ के बारे मेंसन् 1960 में जब स्वनामधन्य भातखंडे जी की जन्मशती मनायी गयी तो उनकी श्रद्धांजलि में इसका नया नामकरण कर दिया गया- “भातखंडे हिन्दुस्तानी संगीत महाविद्यालय” तदुपरान्त मार्च 1966 से इसे उ.प्र. सरकार के तत्वावधान में कर दिया गया। राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद तथा राज्यपाल कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी जी नवम्बर 1952 में इस संगीत संस्थान की रजतं जयन्ती में भाग लेने के लिए यहां पधारे थे।लखनऊ की बोली अदब और तहजीब की मिसालभातखंडे संगीत महाविद्यालय में नामवर स्नातकों में डॉ. सुमति मुटाटकर, श्री के:जी. शिण्डे, फिल्म उद्योग के प्रसिद्ध गायक पहाड़ी सान्याल, संगीतकार रोशन, सज्जाद हुसैन गायक तलत महमूद, मुजद्दि नियाजी, दिलराज कौर, पं. रघुनाथ सेठ, डॉ सुशीला मिश्र, अनूप जलोटा और सपना अवस्थी का नाम लेना ही होगा। बहुत कम लोग जानते हैं कि भारतीय रजत पट की प्रथम महिला संगीतकार सरस्वती देवी (असली नाम खुर्शीद हुरमुज पारसी) ने इसी विद्यालय में संगीत सीखा था उनकी प्रसिद्ध फिल्मों के नाम हैं – जीवन नैया, अछूत कन्या, कंगन, झूला, नया संसार आदि।लखनऊ की मस्जिदें – लखनऊ की ऐतिहासिक मस्जिदआज लखनऊ का यह सुप्रसिद्ध संगीत संस्थान भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय (डीम्ड युनिवार्सिटी) की प्रतिष्ठा पा चुका है जिसकी उपकुलपति प्रसिद्ध कथक नृत्यागंना डॉ. पूर्णिमा पाण्डे जी भी रही है। संगीत (संगीत, वादन, नृत्य) के सन्दर्भ में यहां लखनऊ के वरिष्ठ गायकों में पं. गणेश प्रसाद मिश्र, पं. सुरेन्द्र शंकर अवस्थी, श्री कृष्ण कुमार कपूर, पं. धर्मनाथ मिश्र, उस्ताद गुलशन भारती, प्रो. कमला श्रीवास्तव, मालिनी अवस्थी, हिरण्यमयी तिवारी और विशेषकर श्रीमती सुनीता झिंगरन का नाम लिया जाएगा। इसी प्रकार तबले के लिए अहमद जान थिरकुआ, खलीफा आफाक हुसैन, मुन्ने खाँ साहब, पं. शीतल प्रसाद मिश्र, श्री सुधीर वर्मा, पं. गिरधर प्रसाद मिश्र, उस्ताद इल्मास हुसैन, पं. रविनाथ मिश्र, पं रत्नेश मिश्र लखनऊ की शान बने। पखावज वादन के लिए लखनऊ को पं० राज खुशी राम और पं० राम पाठक पर गर्व रहेगा। सितार में तजम्मुल खाँ और सिब्ते हसन मशहूर हुए तो सारंगी में श्री मुहम्मद खाँ, श्री कृष्ण कुमार मिश्र, भोला मिश्र, एम.डी. नागर और विनोद मिश्र जी का नाम है। सरोद के लिए नरेन्द्रनाथ धर को भुलाया नहीं जा सकता तो वायोलिन में जी.एन. गोस्वामी के बाद अशोक गोस्वामी और शुमाशा मिश्रा ने काम किया। मणिपुरी नृत्य में वनमाली सिन्हा और भरत नाट्यम में पद्मा सुब्रह्मण्यम तथा लक्ष्मी श्रीवास्तव ने प्रसिद्धि पायी।चारबाग रेलवे स्टेशन का इतिहास – मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैनगर के संगीतकारों में श्री एच. वसन्त, और विनोद चटर्जी, श्री केवल कुमार, उत्तम चटर्जी, रविनागर, कैलाश श्रीवास्तव और हेम सिंह अग्रणी हैं। लखनऊ के लोकप्रिय भजन गायकों में अग्निहोत्री बन्धु, किशोर चतुर्वेदी, स्वाति रिज़वी, अंजना बनर्जी, मुक्ता चटर्जी, अमृता नन्दी हैं तो गजल गायिकी में इकबाल अहमद सिद्दीकी, युगान्तर सिंदूर, इलियास खां, विवेक प्रकाश, जमील अहमद, कमाल खां और कुलतार सिंह है। अवधी लोकगीत के खेमे में सर्वश्री केवल कुमार, शकुन्तला श्रीवास्तव, अन्नपूर्णा देवी, आभा रानी वर्मा, रीना टन्डन, गौरीनन्दी, पदना गिडवानी, विमल पंत, प्रेमलता, अनिल त्रिपाठी और मिथिलेश कुमार प्रसिद्ध हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=’9530′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... 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