ब्लैक होल कैसे बनता है – ब्लैक होल की खोज किसने की थी Naeem Ahmad, March 17, 2022March 27, 2024 धरती पर अक्सर तरह तरह के विस्फोट होते रहे हैं। कभी मानव निर्मित कभी प्रकृति द्वारा प्रेरित तो कभी दूर्घटनावश लेकिन साइबेरिया को हिला देने वाले विस्फोट के सामने कोई भी अन्य विस्फोट इतने बड़े रहस्य का आधार नहीं बना है। यह विस्फोट कहा हुआ और कब हुआ इसका ज्ञान हो चुका है, लेकिन यह कैसे हुआ यह किसी को मालूम नहीं है। क्या साइबेरिया में कोई उल्कापिंड फट गया था? या कोई उड़नतश्तरी अपने इंजन मे खराबी आ जाने के कारण किसी आणुविक विखंडन की शिकार हो गई थी? अथवा समय और अंतरिक्ष के नियमों का उलंघन कर सकने मे सक्षम कोई नन्हा सा ब्लैक होल ही साइबेरिया से आ टकराया था?। ब्लैक होल क्या है, ब्लैक होल कैसे बनता है, ब्लैक होल ट्रेजेडी, ब्लैक होल की खोज किसने की, ब्लैक होल की थ्योरी किसने दी, ब्लैक होल का सिद्धांत क्या है? आदि अनेक सुलझे वह अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर हम अपने इस लेख में जानने की कोशिश करेंगे।ब्लैक होल की दुर्घटना कब हुई थी – ब्लैक होल क्या हैमध्य साइबेरिया के टंगस (Tungus) क्षत में 30 जून सन 1908 को स्थानीय समयानुसार प्रातः 7 बजकर 17 मिनट पर एक प्रलयकारी विस्फोट हुआ जिससे 20 मील की त्रिज्या (Radius) में मौजूद सभी वृक्ष जल गए। सन 1960 तक के हवाई सर्वेक्षण में इन जले हुए पेड़ों के तनों को देखा जा सकता था। साइबेरिया के निवासियों ने आकाश में एक आग का गोला देखा जो सूर्य से भी ज्यादा चमकदार था। विस्फोट के स्थान से 250 मील दूर क्रिंस्क (Kirensk) मे आग का एक स्तम्भ देखा गया तथा तीन-चार तालियों की आवाज सुनने के बाद किसी चीज के जमीन से टकरान की आवाज सुनी गई। विस्फोट की शक्ति से कंस्क (kansk) के दक्षिणी क्षेत्र में घोड़े 400 मील दूर जा गिरे। 40 मील दूर रहने वाले किसान एस बी समीनाव की कमीज उनके शरीर पर जल गई और विस्फोट ने उन्हें सीढियों के नीचे फेंक दिया। जब उनकी बहोशी दूर हुई तो उन्हे लगातार बिजली कड़कने की आवाजें सुनाई दे रही थी। उनके पड़ोसी पी पी कासालापाव के कानों मे भयानक पीडायुक्त जलन होने लगी। विस्फोट से डेढ हजार रडियर (Raindeer) मारे गए। एक मवैशीपालक किसान के कपड़े जल गए तथा समावार व अन्य चांदी के बर्तन पिघल गए।रूस में अर्जुन का बनाया शिव मंदिर हो सकता है? आखिर क्या है मंदिर का रहस्यइस विचित्र और रहस्यमय घटना के अभी तक पांच कारण बताए गए हैं लेकिन इन पांचों में कोई भी अंतिम रूप से सही सिद्ध नही हुआ है। ये पांच कारण निम्नलिखित है—-यह विस्फोट किसी दैत्याकार उल्कापिण्ड के गिरने से हुआ और उसके गिरने से भयानक ऊष्मा निकली। ध्यान रहे कि प्रागैतिहासिक काल में मध्य एरिजोना (Central Arizona) में एक उल्कापिंड से 314 मील चौडा गड्ढा हो गया था। लेकिन साइबेरिया में ऐसा कोई गड़ढा खोजने पर भी नही मिला है। इस तरह यह पहली परिकल्पना संदिग्ध हो जाती है।सन 1950 में यह संभावना व्यक्त की गई कि एक अत्याधुनिक तथा बाहरी सभ्यता ने वायुमंडल के मध्य नाभिकीय विस्फोट किया होगा जिसके कारण साइबेरिया में यह तबाही हुई। सन् 1958 व 1959 में इस क्षेत्र के अंदर रेडियो सक्रियता (Radio Activity) काफी मात्रा में पाए जाने की रिपोर्ट मिली थी लेकिन सन् 1961 में किए गए इस अध्ययन से यह दावा प्रमाणित नही हुआ। पेड़ों की शाखा के फट जाने तथा उनकी ऊपरी सतह जल जाने को इसका पर्याप्त प्रमाण नही माना गया।ब्लैक होलतीसरी व्याख्या यह है कि कोई धूमकेतु वायु मण्डल में इतनी तेजी से आया कि उसका शीर्ष जो जमी हुई गैसों से बना था, ऊष्मा के कारण फट गया। इसके प्रमाण में तर्क यह दिया गया कि धूमकेतु बिना दिखे हुए भी पृथ्वी पर गिर सकता है तथा उसकी गैस तथा धूल के कारण ही पूरे यूरोप के ऊपरी वायुमंडल में साइबेरिया के विस्फोट के बाद कई दिन तक श्वेत रात्रि जैसा दृश्य बना रहा था।प्रात-पदार्थ (Anti metter) का बना हुआ ‘एण्टी-रॉक वायु मण्डल में आया तथा साधारण पदार्थ के परमाणुओं से टकरा कर गामा किरणों के एक आग के गोल में बदल गया। इसके फलस्वरूप भयानक विस्फोट हुआ। यह सिद्धांत सन् 1965 में पेश किया गया था। यह कारण साइबेरिया निवासियों का शरीर जलने तथा साधारण रासायनिक और आणुविक विस्फोट से उगने वाले बादलों की अनुपस्थिति की व्याख्या करता है।अपोलो की मूर्ति का रहस्य क्या आप जानते हैं? वे आश्चर्यसबसे ताजा तर्क यह है कि एक नन्हा-सा “ब्लैक होल” (Black Hole) साइबेरिया से टकराया था और पृथ्वी में से होते हुए वह उत्तरी अटलांटिक में जा निकला था। यह ब्लैक होल क्या है? वैज्ञानिकों के अनुसार ब्लैक होल पदार्थ का ऐसा विशाल खण्ड होता है, जा सिकुड़ कर एक अत्यंत संघन रूप में आ जाता है। उसकी संघनता इतनी विकट होती है कि वह अदृश्य हो जाता है। अपने सघन घनत्व के कारण वह इतना शक्तिशाली गुरुत्व बल (Gravity) पैदा करता है कि प्रकाश या अन्य कोई भी चीज उससे बच नही सकती। वह अपने पास से गुजरती किसी भी प्रकाश किरण को आकर्षित कर लेता है। यदि पृथ्वी को दबा कर एक टेबिल टेनिस की गेंद के आकार का कर दिया जाए उसका गुरुत्वाकर्षण इतना संकेंद्रित हो जाएगा कि प्रकाश भी उसका प्रतिरोध नही कर सकेगा। इसी को ब्लैक होल कहेंगे।कहा जाता है कि ब्लैक होल में गिरने वाला कोई भी व्यक्ति पहले खिच कर स्पथट्टी के समान डोरा मे बदल कर विघटित हो जाएगा। उस व्यक्ति के शरीर के परमाणु कण अपना अस्तित्व खो देंगे लेकिन उस व्यक्ति की छवि भूत की तरह ब्लैक होल की बाहरी सीमा पर अंकित हो जाएगी, जिससे बाहर से देखने वाला व्यक्ति उसे देख सके।अटलांटिस द्वीप का रहस्य – अटलांटिक महासागर का रहस्यजैसे-जैसे अंतरिक्ष समय और पदार्थ की आधिकाधिक जानकारी वैज्ञानिकों को होती जा रही है, वैसे-वैसे प्रति-पदार्थ की धारणा विकसित हो रही है। सन् 1920 में आइंस्टीन के समकक्ष मान गए अंग्रेज वैज्ञानिक पी ए एम डिराक (P A M Dirac) ने ईलेक्ट्रॉन जैसे लेकिन धनात्मक आवेश वाले कण (Positively Charged Particles) का सिद्धांत पेश किया। 4 वर्ष बाद इस कण को प्रयोगशाला में खोज लिया गया। इससे यह पता चला कि हर कण का एक प्रतिकण होता है। यदि ये प्रतिकण परमाणु बना कर पत्थर मनुष्य और विश्व का निर्माण कर डाले तो प्रति पदार्थ की रचना हो जाएगी। अत्याधिक उच्च ऊर्जा के वायुमण्डलीय परमाणुओं के दाब से हमारे पर्यावरण मे प्रति-पदार्थ के कणों की रचना होती है। एक सेकण्ड के 10 लाखवे हिस्से तक दिखाई दे सकने वाल इन प्रति कणों को प्रयोगशाला के संवेदनशील यंत्रों द्वारा देखा जा सकता है। जब ये साधारण पदार्थ के कणों से टकरा कर नष्ट हो जात है तो अपने पीछे प्रकाश की नन्हीं परत तीव्र चमक छोड जाते है जो जबर्दस्त ऊर्जा युक्त विकिरण (Radiation) की तरंगदैधर्य (Wavelength) वाली गामा किरण होती है।चीन की दीवार कितनी चौड़ी है, चीन की दीवार का रहस्यरेडियो सक्रिय कार्बन डेटिंग पर नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अमेरिकी रसायन शास्त्री विलाड एफ लिब्बी (Villard F Libby) ने अध्ययन करके निष्कर्ष निकाला है कि यदि कोई उल्कापिण्ड हमारे वायु मण्डल में गिरता है तो पदार्थ व प्रति-पदार्थ, दोनों के ही ऊर्जा मे बदल जान की संभावना रहेगी। यह ऊर्जा परमाणु बम से भी ज्यादा विस्फोटक होगी। प्रति-पदार्थ की थोडी-सी मात्रा ही 3 करोड टी एन टी के बराबर विस्फोट करने के लिए पर्याप्त है। साइबेरिया के विस्फोट की शक्ति को भी इतना ही आंका गया है। ऐसे विस्फोट से वायु मे कार्बन-14 की सामान्य से अधिक उपस्थिति की संभावना रहती है। अरिजोना तथा लॉस एंजल्स के निकट के 300 वर्ष पुराने वृक्षों की जब जांच की गई तो सन्1909 मे वहा कार्बन-14 का उच्चतम स्तर प्राप्त हुआ। यह उच्चतम स्तर भी एक विस्फोट के कारण प्राप्त किए गए स्तर का सातवां भाग ही था। इसलिए लिब्बी तथा उनके साथी वैज्ञानिकों ने प्रति पदार्थ के द्वारा विस्फोट होने वाले विस्फोट के सिद्धांत को नकार दिया।सितम्बर 1973 मे ए ए जैक्सन (A A Jackson) तथा माइकल पी रायन (Michael P Ryan) ने मिनी ब्लैक होल का सिद्धांत दिया ओर कहा कि हमारे ब्रह्माण्ड के जन्म के समय ही इन मिनी ब्लैक होल का निर्माण हो गया था। एक मिनी ब्लैक होल के पृथ्वी में से गुजरने से साइबेरिया जैसी घटना घटित हो सकती है लेकिन इस सिद्धांत को वैज्ञानिक मान्यता नही मिली क्योकि यदि साइबेरिया से पृथ्वी के अंदर अपनी यात्रा शुरू करने वाला ब्लैक होल जब पृथ्वी के दूसरे सिरे पर जा कर निकलता तो वहां भी साइबेरिया जैसा ही प्रलयकारी विस्फोट होना चाहिए था।Nazca Lines information in Hindi – नाजका लाइन्स कहा है और उनका रहस्यधूमकेतुओं अथवा उल्कापिण्डो के फटने के कारण हुए परमाणु विस्फोट के सिद्धांत को यदि सही मान लिया जाए तो इस बात की पूरी संभावना है कि किसी देश के वायु मण्डल में प्राकृतिक शक्तियां द्वारा होने वाला ऐसा विस्फोट किसी परमाणु युद्ध की संभावनाएं न पैदा कर दे। सन् 1844 में पहली बार तत्कालीन कोनिस्बंग (Konigsberg Prussia ) की वैधशाला मे खगोल शास्त्री एफ डब्ल्यू बेसल (F W Bassel) ने आकाश के सबसे चमकदार सितारे साइरिअस के मार्ग को अतिनियमित पाया, जिससे लगता था कि साइरिअस का एक अदृश्य साथी भी है जो उसे सीधी रेखा के मार्ग से विचलित कर रहा है। 19 वर्ष बाद अमेरिकी टेलीस्कोप निर्माता एल्बन क्लार्क ने इस ‘अदृश्य साथी’ को देख लिया ओर पाया कि इसका रंग सफेद है अर्थात यह एक गर्म तारा है। इसका आकार बहुत छोटा है इसलिए यह माना गया है कि इसका भार सूर्य के बराबर ही होगा क्योंकि यह अत्यधिक संघन तारा था। इस तार को ‘ब्हाइट ड्रवाफ’ (White drawf ) का नाम दिया गया। बाद में इस तरह के अन्य पिण्ड भी दिखाई पडे।अंग्रेज वैज्ञानिक आर एच फाउलर (R H Fowler) तथा भारतीय वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर ने सन् 1930 मे अपनी ऊर्जा जला रहे तारो के अपने ही भार से सिकुड़ कर सघन पदार्थ में बदल जाने संबंधी गणनाएं की, चूंकि पदार्थ परमाणुओं से बनता है और परमाणु खोखले होते है इसलिए उनको अपने आप में ध्वस्त हो जाना अवश्यंभावी है। इसे सिकुड़ना भी कहा जा सकता है। वैज्ञानिक चंद्रशेखर का ख्याल था कि सूर्य से 50 गुना बड़े बहुत से तारे इतनी तेजी से जल रहे है कि एक या दो करोड साल में पूरी तरह जल जाएंगे — तब उनका क्या होगा या जो तारें अभी तक जल चुके हैं उनका क्या हुआ होगा? क्या यही तारे ही तो ब्लैक होल नही बन गए है?।तूतनखामेन का रहस्य – तूतनखामेन की कब्र वह ममी का रहस्यसन 1885 में एक तारा 25 दिन तक 1 करोड़ सूर्यो के बराबर प्रकाश देता रहा था। और फिर उसका प्रकाश इतना धीमा हो गया कि उसे शक्तिशाली दूरबीन से भी देखना असम्भव हो गया। इससे पहले सन् 1517 में ऐसी ही एक घटना प्रकाश में आईं थी। ये घटनाएं चंद्रशेखर के अनुमानों को सत्य सिद्ध करती हैं। परमाणु बम बनाने मे प्रमुख भूमिका अदा करने वाले राबर्ट जे ओपेनहाइमर (Robert J Oppenheimer) ने अपने अध्ययनों से तारा से सिकुडते चले जाने अत्यधिक सघन होते चल जाने तथा शक्तिशाली गुरुत्व पैदा करने के सिद्धांत का समर्थन किया। आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत इससे पहले तारों ओर ऊर्जा के रहस्य को समझने में मदद दे चुका था। विज्ञान के विकास के साथ हमें रेडियो तरंग छोडने वाले ‘पल्सर (Pulsar) तारा का पता चल चुका है। इन तारों की मदद से ‘ब्हाइट ड्वार्फूस तथा न्यूट्रॉन सितारों को परिभाषित करने की कोशिश की गई है लेकिन सभी खगोलज्ञ अभी भी ब्लैक होल के सिद्धांत से सहमत नही है। उनके अनुसार ‘या तो आकाश मे छेद है या सापेक्षता के सिद्धांत में ही छेद है।इस रहस्य का अनसुलझा प्रश्न यही रह जाता है कि यदि ब्लैक होल नही तो फिर कौन-सी वैज्ञानिक परिघटना से साइबेरिया के विस्फोट को परिभाषित किया जाए? अगर ऐसा नही था तो क्या वास्तव में अंतरिक्ष से आने वाली कोई उड़न तश्तरी में याँत्रिक खराबी आ जाने से यह विस्फोट हुआ था? आस्ट्रेलियन पत्रकार जॉन बेक्स्टर (John Baxter ) तथा अमेरिकी विद्वान थामस एटकिन्स (Thomas Atkins) ने इस तरह के कई तथ्य पेश करन की कोशिश की है लेकिन इससे साइबेरिया का यह विस्फोट और भी रहस्यमय हो जाता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े[post_grid id=’8656′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... अद्भुत अनसुलझे रहस्य अनसुलझे रहस्य