ब्रज निधि जी मंदिर जयपुर परिचय और इतिहास Naeem Ahmad, September 16, 2022February 22, 2024 राजस्थान में जयपुर वाले जिसे ब्रजनंदन जी का मन्दिर कहते है वह ब्रज निधि का मंदिर है। ब्रजनिधि का मंदिर जयपुर नगर-प्रासाद के चांदनी चौक में स्थित है। यह ‘ब्रज निधि’ उपनाम से काव्य रचना करने वाले महाराजा प्रतापसिंह की भक्ति-भावना का प्रतीक तो है ही, देवालय निर्माण की उस शैली का विशिष्ट प्रतिनिधि भी है जो जयपुर बसने के साथ ही आरम्भ हई थी, और प्रतापसिंह के समय में अपने चरम विकास को पहंची थी।ब्रज निधि जी मंदिर का इतिहास और परिचयइस शैली की विशेषता दुर्ग के समान ऊंचे और भव्य प्रवेश द्वार, ऊची उठान का आंतरिक द्वार या पोल, खुले विशाल चौक और जगमोहन या मण्डप की ऐसी संयोजना है जहां पहुंचकर प्रतीति होती है जैसे किसी हवेली के ”रावले ” या अन्तपुर में आ गये। आज कल यह देखकर बडा क्लेश होता हैं कि जयपुर के इतिहास, संस्कृति और कला की दृष्टि से ऐसे महत्त्वपूर्ण देवालय भी घोर उपेक्षा के शिकार हैं और संस्कारहीन शासकों तथा लालची प्रबन्धकों ने मन्दिरों को वृस्तुत अपने-अपने मजीदानों और यार-दोस्तों के रहने के मकानों मे परिणत कर दिया हैं। ठाकुरजी तो बेचारें बस उस निज मन्दिर या गर्भगृह के मालिक हैं जहां वे बिराजे हुए है।ईसरलाट जयपुर – मीनार ईसरलाट का इतिहासमहाराज सवाई प्रतापसिंह ने कई प्रकार से अपनी रचनाओं में कहा है, ”हमारे इष्ट है गोविन्द”। कहते है एक रात स्वप्न में उसे गोविन्द की आज्ञा हुई कि वह अपने प्रेम और अपनी भावना के अनुसार पृथक प्रतिमा बनवाकर महल के समीप एक नये मन्दिर में विराजमान करे। प्रताप सिंह ने इस आज्ञा को शिरोधार्य कर यह विशाल देवालय बनवाया और ब्रज निधि के नाम से भगवान कृष्ण की श्याम और राधा की पीत मूर्ति को पाट बैठाया।गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुर राजस्थानब्रज निधि जी मंदिर जयपुरजब ब्रज निधि मंदिर का पाटोत्सव होने लगा तो बडा उत्सव मनाया गया। जयपुर के मुसाहिब दोलतराम हल्दिया की जौहरी बाजार स्थित हवेली मे ठाकुर ब्रज निधि जी अपने विवाह के लिये पधारे और वहा प्रिया-प्रियतम का पाणिग्रहण संस्कार हुआ। इसके बाद ही राधा की मूर्ति मन्दिर में लाकर विराजमान की गई।गिरधारी जी का मंदिर जयपुर राजस्थानदौलतराम हल्दिया के लिये यह समारोह बेटी के ब्याह से कम न था। बडी तबियत से उसने बरात की खातिर की। लम्बी-चौडी ज्योणार का आयोजन किया ओर दहेज देकर प्रियाजी की मूर्ति को विदा किया। ब्रज निधि मन्दिर की ठाकुरानी राधा के साथ हल्दिया वंश ने आज तक यह सम्बन्ध बरकरार रखा है। बेटी के घर पर्व- त्योहारों को उपहार भेजने की प्रथा सारे राजस्थान में है और ब्रज निधि जी के मन्दिर मे विराजमान राधा के लिये हल्दियों के यहां से तभी से “तीज का सिजारा” आता रहा है।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानइस विवाहोत्सव का वर्णन करते हुए प्रतापसिंह ने पद भी लिखा, कविता भी लिखे ओर रेखते या गजले भी। यहां एक रेखता ही देना प्रासंगिक होगा:– शादी मे रायजादा से तमने किया है क्या। नाजुक बदन की नाज का प्याला पिया है क्या।। खुशरूह की खूबी का खजाना लिया है क्या। ब्रज निधि बदस्त उसके दिल को दिया है क्या।।जटिल समस्याओं से भरे अपने जीवन मे सवाई प्रताप सिंह निराशा की घडियो में भक्ति करता और आशा की किरणे फूट पडने पर तब के राजाओं के युग धर्म के अनुसार भोग-विलास ओर आमोद-प्रमोद मे डूब जाता। उसकी मौत खून-विकार और अतिसार रोग बढ जाने से हुईं। उस दशा मे वह ठाकुर ब्रज निधि जी के चरणो के तले तहखाने मे ही प्राय विश्राम करता था। 1803 ई. में सावन के सजल महीने मे इस सरस और बहुगुणी व्यक्तित्व के धनी राजा का अन्त हो गया। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल जयपुर के दर्शनीय स्थलजयपुर पर्यटनजयपुर पर्यटन स्थलराजस्थान धार्मिक स्थलराजस्थान पर्यटन