बैरकपुर छावनी कहां है – बैरकपुर दर्शनीय स्थल Naeem Ahmad, March 4, 2023 बैरकपुर पश्चिम बंगाल राज्य के उत्तर 24 परगना जिले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह नगर हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। यह कोलकाता महानगर क्षेत्र के अंतर्गत भी आता है। कोलकाता से बैरकपुर 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बैरकपुर में अंग्रेजी सेना की छावनी हुआ करती थी। 1857 की क्रांति का सर्वप्रथम बिगुल यही से वीर शहीद मंगल पांडे द्वारा बजाया गया था। लार्ड एम्हर्स्ट के काल (1823-26) में यहां एक सैनिक आंदोलन हुआ था। उसने यहां स्थित एक हिंदू टुकड़ी को बर्मा युद्ध में भाग लेने का आदेश दिया। हिंदू सैनिकों का विचार था कि दूसरे देश में जाने से उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। अतः उन्होंने यह आदेश मानने से इन्कार कर दिया। एम्हर्स्ट ने अनेक सैनिकों को मारने का आदेश दे दिया। बैरकपुर ही वह स्थान है, जहां प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी प्रज्वलित हुई। यहां पर एक अंग्रेजी कंपनी ठहरी हुई थी, जिसमें अनेक हिंदू और मुस्लिम सिपाही थे। ऐसा विश्वास है कि अंग्रेज इन सैनिकों को गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूस प्रयोग करने के लिए देते थे। 29 मार्च, 1857 को एक सैनिक मंगल पांडे ने ऐसे कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया और तीन अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला, जिनमें मेजर हसन भी शामिल था। परंतु जनरल हियरसे ने शीघ्र ही आंदोलन को दबा दिया। अंग्रेजों ने 8 अप्रैल, 1857 को मंगल पांडे को मौत की सजा सुनाई। यहीं से स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम का सूत्रपात हो गया। इसी कारण बैरकपुर को ऐतिहासिक शहर माना जाता है। पर्यटन की दृष्टि से भी बैरकपुर बहुत महत्वपूर्ण है, यहां के कुछ दर्शनीय स्थलों का वर्णन नीचे किया गया है। बैरकपुर के दर्शनीय स्थल – बैरकपुर पर्यटन स्थल शहीद मंगल पांडे पार्क बैरकपुर अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति का बिगुल बजाने वाले राष्ट्रवादी नेता मंगल पांडे के नाम पर इस पार्क का नाम ‘शहीद मंगल पांडे महा उद्यान’ रखा गया है। इसी स्थान पर दमनकारी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आवाज उठाने वाले वीर पुरुष को 8 अप्रैल, 1857 को फाँसी दी गई थी। पार्क में महानायक की एक प्रतिमा स्थापित की गई है। यह स्थान बहुत ऐतिहासिक महत्व का है और इसलिए अक्सर पर्यटकों द्वारा सबसे अधिक पसंद किया जाता है। बैरकपुर के दर्शनीय स्थल गांधी संग्रहालय बैरकपुर गांधी संग्रहालय या गांधी स्मारक संग्रहालय भारत के सबसे प्रमुख संग्रहालयों में से एक है। बैरकपुर में यह संग्रहालय पांच दीर्घाओं, एक अध्ययन केंद्र और एक विशाल पुस्तकालय के रूप में फैला हुआ है। यह देश के अग्रणी संग्रहालयों में से एक माना जाता है, जिसमें महात्मा गांधी के बारे में जानकारी उपलब्ध है, तथा गांधी के दुर्लभ संग्रह, दुर्लभ किताबें या लेख जो उनके थे या जो हमारे राष्ट्रपिता द्वारा स्वयं लिखे गए थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 800 से अधिक दुर्लभ तस्वीरों के संग्रह को गैलरी में सजाया गया है। तारकेश्वर मंदिरतारकेश्वर मंदिर यहां का प्रमुख धार्मिक स्थल है। करीब 50 फीट ऊंचा और 25 फीट चौड़ा यह मंदिर 18वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया था। यह सेरामपुर के आसपास के क्षेत्र में स्थित है, अपने उत्तम संगमरमर के फर्श और भव्य वास्तुकला के साथ यह मंदिर न केवल भक्त आत्मा को शांत करता है, बल्कि सौंदर्यवादी मन को भी प्रसन्न करता है। तारकेश्वर मंदिर के बरामदे में एक मण्डली केंद्र है। इसके अलावा, मंदिर के दो खंड हैं- आंतरिक गर्भगृह और बाहरी बरामदा। आंतरिक गर्भगृह में एक शिव लिंग है, जिसकी पूजा इस मंदिर में आने वाले कई भक्तों द्वारा की जाती है। बार्थोलोम्यू चर्च पहले इस चर्च को गैरीसन चर्च के रूप में जाना जाता था, बार्थोलोम्यू चर्च का निर्माण 1847 में किया गया था। यह कैथेड्रल गोथिक स्थापत्य शैली का उदाहरण है। अंग्रेजों के जमाने की भव्य वास्तुकला आपको हैरत में डाल देगी। अपने अति सुंदर आंतरिक सज्जा और भव्य चैपल के साथ हुई संरचना यात्रियों के लिए वास्तव में एक समृद्ध अनुभव बनाती है। कैथेड्रल का ढांचा और डिजाइन ब्रिटेन के कई चर्चों से मिलता जुलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बार्थोलोम्यू कैथेड्रल चर्च भी अंग्रेजों द्वारा बैरकपुर में रहने के दौरान बनाया गया था। काली देवी मंदिर यह मंदिर देवी काली को समर्पित है। मंदिर का निर्माण लगभग 700 साल पहले किया गया था। यह भी माना जाता है कि कलकत्ता के संस्थापक जॉब चारनोक की पत्नी काली देवी की पूजा करने के लिए यहां आती थीं। यह भी किंवदंती है, कि राष्ट्रवादी नेता महत्वपूर्ण बैठकों और चर्चाओं के लिए यहां इकट्ठा होते थे। वे 1824 और 1857 के विद्रोह से पहले काली के आशीर्वाद का लेने के लिए एक साथ यहां आए थे। यह स्थान न केवल काली के भक्तों को आकर्षित नहीं करता है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक प्रासंगिकता और प्रधानता के कारण कई इतिहास में रूची रखने वाले पर्यटक को भी देखा जाता है। अन्नपूर्णा मंदिर अन्नपूर्णा मंदिर का निर्माण रानी रश्मोनी की सबसे छोटी बेटी जगदंबा देवी ने 12 अप्रैल 1875 को करवाया था। उनका विवाह माथुर मोहन बिस्वास से हुआ था, जिन्होंने अपनी पहली पत्नी करुणामयी की मृत्यु के बाद जगदंबा देवी से विवाह किया था। उनके पुत्र द्वारिकानाथ विश्वास ने इस मंदिर की स्थापना के लिए सभी व्यवस्थाएँ कीं। रामकृष्ण द्वारा मंदिर को भक्तों के लिए खोल दिया गया था। मंदिर परिसर के अंदर एक नटमंदिर, छह शिव मंदिर और दो नहाबतखाना हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”6702″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to 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