बैटरी का आविष्कार किसने किया और कब हुआ Naeem Ahmad, July 28, 2022February 26, 2024 लैक्लांशी सेल या सखी बैटरी को प्राथमिक सेल ( प्राइमेरी सेल) कहते हैं। इनमें रासायनिक योग के कारण बिजली की धारा पैदा होती हैं। मोटर कार में जिन बैटरियों का प्रयोग होता है वे इस प्रकार की नहीं होती। वे अपने रासायनिक द्रव्यों से बिजली नहीं बनाती। ऐसा समझना चाहिए कि उनमें पहले बिजली भरी जाती है ओर फिर इस बिजली से काम निकाला जाता है। कुछ समय के बाद भरी हुई बिजली सब ख़तम हो जाती है– इसे बैटरी का “ख़तम”’ या डिस्चार्ज होना कहते हैं। अब फिर हम इसमें बिजली भर सकते हैं– अर्थात बैटरी फिर से चालू या चार्ज की जा सकती है। ऐसी बैटरियाँ जिन्हें बार-बार बिजली द्वारा चार्ज किया जा सके, द्वैतीयिक सेल ( सेकेंडरी सेल ) या संग्राहक (एक्युमुलेटर ) कहलाती हैं।बैटरी का आविष्कार किसने कियासबसे पहले सन् 1749 बेंजामिन फ्रैंकलिन ने ‘बैटरी’ शब्द का इस्तेमाल किया था। किंतु विद्युत संग्रह करने वाली बैटरी का आविष्कार प्लैंट ( Plante) नामक वैज्ञानिक ने 1878 में सबसे पहला संग्राहक बनाया था। इसमें उसने सीसे के दो धातु पत्रों और गंधक के हलके तेज़ाब का उपयोग किया। इस संग्राहक में जब बिजली की धारा भेजी गयी, तो एक धातुपत्र छेदीला (स्पंज सा ) हो गया, और अब यह संग्राहक काम लायक़ बन गया।बैटरीसन् 1881 में फारे (Faure) ने इस बैटरी में सुधार किए।उसने सीसे के एक प्लेट पर लेड-ऑक्साइड चढ़ाया। मोटर कार की बैटरियाँ इसी प्रकार के संग्राहक हैं। हर एक मोटर की बैटरी वस्तुतः ,4-6 बैटरियों के योग से बनी होती हैं, जिसे सेल कहा जाता है, और प्रत्येक बैटरी एक संग्राहक होती है। हर एक बैटरी 12 बोल्ट के दबाव की बिजली देती है। यदि 6 बैटरियों के योग का प्रयोग किया गया है तो कुल 12 बोल्ट का दबाव मिल जाता है। इस प्रकार 6 सेल बैटरियों को मिलाकर 12 वोल्ट की एक बैटरी बन जाती है।ट्रांसफार्मर का आविष्कार किसने किया और यह कैसे काम करता हैबैटरी का उपयोगइन बैटरियों का ऐसिड थोड़े दिनों में हलका पड़ जाता है ओर तब दूसरा ऐसिड भरना चाहिए अगर ऐसिड खराब न हुआ हो तो डिस्चार्ज हुई बैटरी को हम घर में अपने बिजली घर वाले तारों से बिजली लेकर तथा उस विद्युत को चार्जर यंत्र द्वारा 12 वोल्ट में कन्वर्ट कर बैटरी को फिर चार्ज कर सकते हैं। इस प्रकार के सग्रांहक या ऐक्यूम्यूलेटरों ने बेटरियों के उपयोग में कितनी सरलता ला दी है, इसका हम आज अनुमान भी नहीं कर सकते। रेल ओर रेलवे स्टेशनों पर इन संग्राहकों का हज़ारों की संख्या में उपयोग होता है। जहाँ बिजली घर न हों वहाँ इनके द्वारा बिजली पहुँचायी जा सकती है। पनडुब्बियों और हवाई जहाजों में इनका प्रयोग होता है। टेलीफोन और रेडियो के यंत्रों में इनका उपयोग होता है। घरों में इनका उपयोग होता है। ऐसी जगहों पर जहां बिजली घर के तार न पहुँचे हों, भोंपू या लाउड स्पीकरों को संग्राहकों की बिजली चालू किया जा सकता है। बिजलीघर यदि कभी फेल कर जाये तो अस्पतालों थियेटरों, पागलखानों और बैंकों का काम कभी न रुकेगा। यदि वहां संग्राहकों का पहले से प्रबन्ध है। आकस्मिक सावधानियों के लिए इनका सार्वजनिक स्थानों में रहना नितांत आवश्यक है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=”8586″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व के प्रमुख आविष्कार प्रमुख खोजें