बहू बेगम की जीवनी – बहू बेगम का मकबरा कहां स्थित है Naeem Ahmad, July 20, 2022March 29, 2024 नवाब बेगम की बहू अर्थात नवाब शुजाउद्दौला की पटरानी का नाम उमत-उल-जहरा था। दिल्ली के वज़ीर खानदान की यह लड़की सन् 1745 में नवाब शुजाउद्दौला को ब्याही गई थी। यह शादी दिल्ली में दाराशिकोह के महल मे हुई थी। इस बिन बाप की लड़की को शहनशाहे दिल्ली ने अपनी मुँह बोली-बेटी बताकर इसे अवध के नवाब से ब्याहा था और उस शादी में लाखों रुपये खर्च किये थे।बहू बेगम का जीवन परिचयससुराल में उमत-उल-ज़हरा को जनाब आलिया बहू बेगम साहिबा का खिताब मिला। बहू बेगम का रुतबा बेगमाते अवध की कतार में सबसे ऊँचा माना जाता है। इन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी बड़ी शानो-शौकत और तमकनत से गुज़ारी। उनकी हुक्मरानी से फ़ैजाबाद क्या लखनऊ के महल भी थरथराते थे। और तो और, उनके शौहर नवाब शुजाउद्दौला भी इनके मायके की दौलत से दबते थे। चूँकि शुजाउद्दौला बड़े रसिक स्वभाव के आदमी थे, इसलिए उनकी औरत परस्ती पर रोक लगाना बहू बेगम के बस के बाहर की बात थी। हाँ, इनका दबदबाइतना जरूर था कि शुजाउद्दौला अगर एक रात भी इनके महल के बाहर गुजारना चाहते, तो उसके लिए अच्छा-ख़ासा हर्जाना वसूल करती थीं।बहू बेगमबहू बेगम की शर्ते थी कि जो रात उनके महल के बाहर गुजारी जाए उसकी कीमत के 5000 रुपये सुबह तक उनके सरहाने पहुँचा दिए जाये और ज़ाहिर है कि जुर्माने की इस रक़म से उनकी आमदनी उनकी जागीरी से भी ज़्यादा हो गई थी।जब तक नवाब ने अपने चलन पर काबू किया कि तब तक बहू बेगम सोने के चबूतरे चुनवा चुकी थीं। उनकी ड्योढ़ी का दारोगा बहादुर अली खाँ ख्वाजासरा था जो उनकी जागीर की देखभाल भी करता था।शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगमबहु बेगम के पाँव में पद्म था। दिल्ली से वो इतना मालो जेवर लेकर आई थीं कि फ़ैजाबाद की महलसरा भर गई थी। बक्सर की लड़ाई का जो खर्च अंग्रेजों ने नवाब से वसूला था उसके बहुत बडे हिस्से की अदायगी तो उन्होंने की ही थी, अपने एकमात्र पुत्र आसफुदौला की भी उन्होंने वक्त पड़ने पर मदद की। माँ-बेटे में हमेशा अनबन रहती थी। सिर्फ़ चन्द महीनों के लिए वो हर साल आसफुद्दौला की राजधानी लखनऊ में आकर रहती थीं। इस जमाने में वो गोमती के किनारे अपने खास महल सुनहरा बुर्ज में ठहरती थीं। उनको जब नवाब आसफुद्दौला पहली बार मनाकर फ़ैजाबाद से लखनऊ लाए थे तो इस 80 मील के फ़ासले में वो रास्ते-रास्ते अशरफ़ियाँ लुटाते आये थे।लखनऊ की बोली अदब और तहजीब की मिसालबहू बेगम के लखनऊ प्रवास के दिनों में दौलतखाना आसफ़ी से उम्दा खाना बनवाकर सुनहरा बुर्ज भेजा जाता था लेकिन बहू बेगम ने कभी उस सफ़ारी खाने को हाथ नहीं लगाया उसे सिर्फ नौकरों में तक्सीम कर दिया जाता था। खजाना ए अवध से 400 रुपये रोज उनके दस्त रख्वान का खर्च बँधा था जो दरबारी मौलवी उन्हें पहुँचाने जाते थे और ये तब जबकि वो सिर्फ दोपहर में हमेशा एक बार खाना खाती थीं। एक बार इसी बावर्ची ख़ाने का कुल बकाया हिसाब 84 हजार रुपये हो गया था जो बाद में फ़ैजाबाद उनके महल पर भेजा गया। एक बार जब आसफ़ुद्दौला तंगदस्त थे बहु बेगम ने दो बरस तक उनकी फ़ौज को अपने पास से तनख्वाह बाँटी थी और मज़ा ये कि यह कुल दौलत उनकी गुड़िया की शादी के दहेज में से निकली थी जो उन्होंने बचपन में की थी और जिसके दहेज की खिचड़ी (सोने की मोहरें और चॉँदी के सिक्के) बक्सों में भरे रखे थे।गोमती नदी का उद्गम स्थल और गोमती नदी लखनऊ के बारे मेंसन् 1816 में नवाब गाजीउद्दीन हैदर के शासन काल में बहू बेगम मृत्यु हुई। फ़ैजाबाद के जवाहर बाग़ में उनके ही ट्रस्ट किए गए लाखों रुपयों से उनका आलीशान मक़बरा बनवाया गया। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=”9505″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की महान नारियां जीवनीलखनऊ के नवाब