फ्रांसीसी क्रांति कब हुई थी – फ्रांसीसी क्रांति के कारण और परिणाम Naeem Ahmad, May 8, 2022March 24, 2024 फ्रांसीसी क्रांति ने प्रगतिशीलता ओर वैचारिक उत्थान में अमेरिकी आजादी की लड़ाई को भी पीछे छोड दिया। समानता, आजादी ओर भार्ईचारे के नारे पहली बार पूंजीवादी प्रतियोगिता बाजार पर आधारित समाज और मांग व आपूर्ति की बीज रूप में रचना की। राजशाही खत्म कर दी गयी। आम जनता की हुकूमत स्थापित हुई । हालांकि यह क्रांति पांच साल बाद असफल हो गयी और नेपोलियन बोनापार्ट के युग की शुरुआत हुर्ई पर इसके भ्रूण में भविष्य का पूंजीवादी समाज मौजूद था। अपने इस लेख में हम इसी फ्रांसीसी क्रांति का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:– फ्रांसीसी क्रांति कब हुई थी? फ्रांसीसी क्रांति के कारण और परिणाम? फ्रांसीसी क्रांति का अग्रदूत कौन था? फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित भारतीय कौन थे? फ्रांसीसी क्रांति क्यों हुई? फ्रांसीसी क्रांति 1789 के मुख्य उद्देश्य क्या थे? फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत कैसे हुई? फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत कब हुई? फ्रांसीसी क्रांति के पिछे समाज के किस वर्ग का हाथ था? 1789 की फ्रांसीसी क्रांति का फ्रांस और यूरोप पर क्या प्रभाव पड़ा? फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस का शासक कौन था? फ्रांसीसी क्रांति के कारणअमेरिकी की क्रांति की सफलता के बाद भी दुनिया को 18वीं शताब्दी से कुछ लेना बाकी था। युरोप और दुनिया के इतिहास को एक निर्णायक मोड़ देने वाली सामंतवाद विरोधी पूंजीवादी क्रांति का बिगुलता अभी नही बजा परंतु उसके लिए परिस्थितियां तैयार हो रही थी। युरोप के राजवंश अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रहे थे। लूई सालहर्ब ने सन् 1773 में गद्दी संभाली और सन् 1788 तक उसके कुशासन ने सरकारी खजाना खाली कर दिया। सन 1789 तक आते-आते फ्रांसीसी एस्टेट जनरल (Estate General) के तीनों प्रतिनिधि तबको में अलग-अलग कारणों से असंतोष पनपने लगा। ये तीन तबके थे- कुलीन वर्ग (Nobles) पुरोहित वर्ग (Clergy) आर थर्ड एस्टेट यानी सामान्य जनता।काली हवेली कालपी – क्रांतिकारी मीर कादिर की हवेलीकुलीनों को एतराज था कि राजा के मंत्रीगण मनमानी कर रह है। पुरानी प्रांतीय आजादी के वकील सत्ता के अत्यधिक केंद्रीकरण के खिलाफ थे। ब्रिटेन की संसदीय क्रांति और अमेरीकी आजादी का युद्ध में प्रभावित लोग थामस पाइन (Thomas Paine) व मनुष्य के अधिकारों संबंधी विचारो से बहुत प्रभावित थे। आम आदमी के प्रतिनिधि इस बात से नाराज थे कि खजाना खाली होने का सारा बोझ करों के रूप में किसानों के कंधों पर डाल दिया गया है। सन् 1786 का ओद्यौगिक संकट सन् 1787 और सन् 1788 में हुई खराब फसलों के साथ मिलकर आर्थिक तबाही ढा रहा था। दाम बढत चले जा रहे थे और अकाल का डर जनमानस को सता रहा था।ऐसे विकट समय में लृई सालहर्ब ओर मारिया थेरसा (Maria Theresa) की बेटी मैरी एण्टोइनिट (Marie Antoinette) ने अपने शासन में सुधार करने की तरफ बिलकुल ध्यान नही दिया। राजा को चाहिए था कि वह जनता की तकलीफ को देखते हुए सुविधा संपन्न कुलीन तबके को नियंत्रण में रखता। पर ऐसा नही किया गया। बढ़ते हुए आर्थिक संकट ने राजा को करीब डेढ़ सौ वर्ष बाद वसाई (Versailles) एस्टेट जनरल बलाने पर मजबूर कर दिया। अपनी प्रजा के तीनों तबकों से राजा यह पुछना चाहता था कि राष्ट्र पर चढ़े कर्ज को कैसे उतारा जाये? अर्थ -व्यवस्था कैसे दुरुस्त की जाय? इससे पहले सन् 1614 में एस्टेट जनरल की बैठक हुई थी। उस समय से अब तक थर्ड एस्टेट के प्रतिनिधि दोगुने हो चुके थे। एस्टेट जनरल के 1100 प्रतिनिधियों में से आधे थर्ड एस्टेट के ही थे।फ्रांसीसी क्रांतिकई वकील और बुद्धिजीवी एस्टेट जनरल में थर्ड एस्टेट के प्रतिनिधि बन कर गये। इनमे रॉब्सपियरे (Robespierre), वोलनी (Volney) और खगोलविद् बैली (Bailey) के नाम प्रमुख थे। कुलीनों के प्रतिनिधियों के रूप में ड्यूक ऑफ आर्लियंस (Duke of Orleans) और मारक्विस दि लेफायत (Marquis de Lafayette) थे। लेफायत अमरीका की आजादी के नायक जीर्ज वाशिंगटन के दोस्त थे और उन्होंने उस लड़ाई में हिस्सा भी लिया था। पुरोहित वर्ग के प्रतिनिधि थे काडिनल रोहन (Cardinal Rohan), हेनरी ग्रिगाइर (Henry Grigoir) और चार्ल्स मारिस दि टॉलीरण्ड (Charles Maurice De Tollegrand)। इसके अलावा थर्ड एस्टेट के पास मारक्विस दि मिराब्यू (Marquis de Mirabeau) और एड्डी सीएस (Abbe Sieyes) जैसे दो नेता भी थे। जो मानते तो कुलीन वर्ग को थे परन्तु आम लोगों के अधिकारों की हिमायत करते थे। सीएस ने तो एस्टेट जनरल की बैठक से पहले एक पर्चा भी प्रकाशित किया था, जिसमें व्हाट इज थर्ड एस्टेट (What is third state) शीर्षक के तहत जनता के अधिकारों को बुलंद किया गया था। इसे पर्चे ने सीएस की लोकप्रियता काफी बढ़ा दी थी।फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत5 भी 1789 को एस्टेट जनरल की बैठक शुरू हुई। दो महीने तक यह बहस चलती रही कि फैसला बहुमत के आधार पर होगा या नहीं। दूसरा तरीका सुविधा संपन्न तबकों के हक में जाता था। 17 जून को थर्ड एस्टेट वालों ने कहा कि वे फ्रांस के 96 प्रतिशत लोगों के प्रतिनिधि हैं। इसलिए वे ही राष्ट्रीय असेंबली है और वे जो टैक्स मांगेंगे वहीं कानून होगा। थर्ड एस्टेट की ताकत देखकर पुरोहित वर्ग के बहुत से प्रतिनिधि उससे आ मिले। यह देखकर राजा ने शक्ति की और थर्ड एस्टेट वालों को सदन से निकाल दिया। थर्ड एस्टेट के डिप्टी पास के टेनिस कोर्ट में बैठक करने पहुंच गए। टेनिस कोर्ट में ही उन जन प्रतिनिधियों ने शपथ ली कि जब तक फ्रांस को वे नया संविधान नहीं दे देते तब तक अपनी बैठक भंग नहीं करेंगे। 20 जून को यह ऐतिहासिक घटना हुई। तीन दिन बाद राजा ने उन्हें चेतावनी भेजी और फौरन अपनी बैठक खत्म करने को कहा। थर्ड एस्टेट के मिराब्यू ने अपना प्रसिद्ध उत्तर दिया कि तलवार की नोक पर ही उन्हें हटाया जा सकता है। राजा नेशनल असेंबली से डर गया। उसने बसाई में सैनिक जमा करने शुरू कर दिये।लखनऊ में 1857 की क्रांति का इतिहासउधर पेरिस में जनता के अंदर कुलीनों के खिलाफ भावनाएं भड़क रही थी। राजा ने नेशनल असेंबली से सुविधाभागी वर्ग अपनी सुविधाएं जिन जाने से और थर्ड एस्टेट कुलीनों के हमले के आदेशों से डरे हुए थे। पेरिस बेरोजगारी और शरणार्थियों से बजबजा रहा था। लोगों को यकीन हो चला था कि कुलीन वर्ग उनके खिलाफ साजिश कर रहा है। इस माहौल में पूरे देश में दंगे भडक उठे। इन पर काबू ना पा सकने का इलजाम लगाकर राजा ने अपने प्रधानमंत्री नेकर (Necker) को बर्खास्त कर दिया। 14 जुलाई को कुलीन वर्ग से अपनी रक्षा करने के लिए हथियार तलाशती भीड ने किलेनुमा जेल बेस्टीले (Bastille) में घूसने की कोशिश की। जेल के गवर्नर लाउन (Launay) ने सैनिकों से भीड पर गोलियां चलवायी। कई नागरिक मारे गये। इसके बाद तो पेरिस वासियों का ग़ुस्सा भडक उठा और उन्होंने तोप घसीटकर मोर्चे पर लगा दी। बस्टीले पर हमला बोल दिया। गवर्नर को हथियार डालने पडे। भीड उसे घसीटकर लायी ओर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। बस्टीले में केवल सात कैदी थे पर उसका पतन क्रांति की प्रतीकात्मक शुरूआत बन गया।पेरिस के ही नमूने पर फ्रांस के देहातों में भी संघर्ष छिड गया। नयी म्यूनिस्पलिटीज बन गयी। ग्रामीणों ने हथियार उठा लिये। राजा ने घबराकर नेकर को दोबारा प्रधानमंत्री बनाया और पेरिस की क्रांति को मान्यता दे दी। परंतु राजा के अधिकार और सत्ता तकरीबन खत्म हो चके थे असेंबली के कदमों का कुलीनों और पादरियों ने भी समर्थन किया। नये कानूनों ने सामंती सुविधायें, भूदान प्रथा और सामंतों पर कर न लगाने की परंपरा को खत्म कर दिया। पर राजशाही समर्थक एक गुट का ख्याल था कि राजा के बिना पूरे देश में अराजकता फैल जायेगी। इसी बीच पांच-छ: हजार लोगों ने जिनमें महिलाएं ज्यादा थी वरसा के महल पर कब्जा कर लिया। फिर असेंबली पेरिस में बैठी। क्रांति पूरी हो चुकी थी।1947 की क्रांति इन हिन्दी – 1947 भारत की आजादी के नेतागांव गांव में कम्यून बन गये जिन्होंने एक दूसरे से मिलकर फेडरेशन बना डाली। भाईचारा समानता और आजादी का नारा हर एक दी जुबान पर था। राइन नदी के पुल पर तिरंगा झण्डा लगा दिया गया, जिस पर लिखा था। “यहां से स्वतंत्र धरती की शुरूआत होती है” नेशनल असेंबली ने नया संविधान बनाया और लूई सालहब को कसम खानी पडी कि वह इसी संविधान को मानेगा। सन् 1790 के इस दिन से फ्रांस पहली बार एक राष्ट्र के रूप में उभरा।उधर असेंबली में खुली बहस का माहौल था। एक से एक धुंरधर वक्ता एक दूसरे के विचारों को काटते हुए अपने तर्क रखते थे। इसी दौरान दक्षिण पंथी ओर वामपंथी जैसी अभिव्यक्तियों का पहली बार इस्तेमाल हुआ। जिनके जरिए आज तक राजनीति समझी जाती है। क्रांति का यह दौर काफी अवस्था और भयानक संकट का था। राजा ने देश छोड़कर भागने की कोशिश की पर पकड़ लिया गया। असेंबली ने पहले उसे निलंबित किया परंतु फिर माफ करके गद्दी पर बैठा दिया। फ्रांसीसी संविधान की प्रस्तावना डिक्लेरेशन ऑफ दि राइट्स ऑफ मैन एण्ड दि सिटीजन (Declaration of the rights of man and the citizens) अमरीकी स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र से भी आगे का कदम था। यह प्रस्तावना कहती थी कि जन्म से सभी बराबर है। सामाजिक विभिन्नताएं तो सामुदायिक उपयोग की दृष्टि से बनायी गयी है। कानून सब के लिए एक है। सोचने बोलने और व्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे अहम है। समस्त प्रभुसत्ता राष्ट में निहित है और कानून सभी की मिली जुली इच्छा की अभिव्यक्ति है। इस संविधान ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग-अलग कर दिया।क्यूबा की क्रांति कब हुई थी – क्यूबा की क्रांति के नेता कौन थेफ्रांस ने ब्रिटिश और अमेरीका के संसदीय तजुर्बे पर चलने से इंकार कर दिया। फ्रांस में अधिकारों को संतुलित करने के लिए कर्तव्यों का प्रावधान नही किया गया था। फ्रांस के राजा एक प्रभुसत्ता संपन्न राष्ट्र का केवल प्रथम सेवक रह गया था। पूरे फ्रांस को 83 भागों में बांट दिया गया। उनके एतिहासिक नामों की जगह नदियां और पर्वतों के आधार पर नया नामकरण किया गया। अर्थ-व्यवस्या इस तरह बनायी गयी कि बाजार पर आधारित समाज का जन्म हाने लगा। मांग और आपूर्ति और पूंजीवादी प्रतियोगिता की शुरुआत हुई। यह नया ढा़ंचा निकट भविष्य में आने वाली अराजकता का कारण बना, पर यही ढांचा अपने भ्रूण में भविष्य के परिपक्व पूंजीवादी समाज के बीज भी छिपाए हुए था।क्रांतिकारी सरकार ने भू कर, व्यक्तिगत संपत्ति पर कर और धंधा करने के लिए लाइसेंस की व्यवस्था दी। एक तरह से राज्य चलाने में सभी के योगदान के उसूल के लिहाज से यह सही कदम था पर व्यवहार में जनता ने टैक्स नही दिया। सरकारों का खजाना खाली ही रहा। धीरे-धीर नये क्रांतिकारी सुधारों से लोगों का मोह-भंग होने लगा। 10 अगस्त 1792 को भीड ने टयुलरिस पैलेस (Tuileries palace) को घेर लिया। राजा ने भागकर लजिस्टलिव असेंबली में शरण ली। नागरिकों ने मांग की कि राजा का मुअत्तल किया जाये और एक नेशनल कंवेशन चुना जाये जो एक नये संविधान की योजना बनाये। 20 सितंबर को कन्वेंशन की बैठक हुई और उसने सर्वसम्मति से राजशाही खत्म करने का फैसला किया।फ्रांसीसी क्रांति का परिणामलूई पर गणराज्य से गद्दारी करने का मुकदमा चला और 21 जनवरी 1793 को फ्रांस के राजा को मृत्यु दंड दिया गया। नई स्थिति यह थी कि फ्रांस के दुश्मन राष्ट्र उसकी कमजोर हालत देखकर हमला करने की योजनाएं बना रहे थे। देश निकाले के शिकार राजशाही के समर्थक साजिश कर रहे थे। ऐसे में फ्रांसीसी क्रांति के नायकों में से एक रॉब्सपियर के नेतृत्व में जकॉबिंस (Jacobins) ने गणराज्य की रक्षा का बीडा उठाया। पर उनका तरीका बडा खून खराबा वाला था। डॉ गिलटिन की इजाद की गयी मृत्यु देने वाली मशीन का इस्तेमाल खुल कर होने लगा। सन् 1794 तक जकॉबिस ने कमेटी ऑफ पब्लिक सेफ्टी (committee of public safety) के नाम पर फ्रांस को तानाशाही में जकड़ दिया। क्रांतिकारी न्यायाधिकरण ने सैंकड़ो लोगों को गिलाटिन पर चढ़ा दिया। रानी मैरी एण्टोइनिट का भी सिर धड़ से अलग कर दिया गया। यहां तक कि भिन्न विचारों वाले क्रांतिकारी भी नहीं बख्शें गए। बाद में फ्रांसीसी क्रांति का पतन होने पर रॉब्सपियर को गिरफ्तार करके मृत्यु दंड दिया गया। यह राजशाही की वापसी की शुरुआत थी। क्रांति के इसी दौर में फ्रांसीसी तोपखाना रेजीमेंट में कमीशन पाकर अफसर बनने वाले नेपोलियन बोनापार्ट के रूप में फ्रांस को अपना नया सम्राट और नायक मिलने वाला था। राजकीय व्यवस्था का ढांचा कोई भी रहा हो फ्रांस ने सन् 1789 की क्रांति के रूप में दुनिया को जो दिया था वह भविष्य निर्माण करने वाला था। इसलिए फ्रांसीसी क्रांति को नये युग का आगमन कहा जाता है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=”8940″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध जन क्रांति विश्व की प्रमुख क्रांतियां