पेनुकोंडा का इतिहास और पेनुकोंडा का किला Naeem Ahmad, February 15, 2023March 22, 2024 पेनुकोंडा ( Penukonda )आंध्र प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक नगर है, जो यहां स्थित ऐतिहासिक पेनुकोंडा का किला के लिए जाना जाता है। पहले यह आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में था सन् 2022 में जिले का विभाजन हुआ और पेनुकोंडा नवनिर्मित जिला श्री सत्य साईं में आ गया। पर्यटकों के लिए पेनुकोंडा की स्वप्न के कम नहीं है। यहां की ऐतिहासिक धरोहरें पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। इसलिए यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। पेनुकोंडा का इतिहास 1565 में तलीकोटा की लड़ाई में विजयनगर साम्राज्य के अंतिम शासक रामराय की मृत्यु के बाद उसके भाई तिरुमल ने शासन की बागडौर अपने हाथ में ले ली थी, परंतु उसके पास शासन चलाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। उसने विजयनगर छोड़ दिया और पेनुकोंडा में रहना आरंभ कर दिया। विजयनगर में वातावरण रामराय के पुत्र पेडा तिरुमल अर्थात् टिम्मा के पक्ष में था। इस प्रकार तिरुमल के वास्तविक रूप में शासक बनने में छह वर्ष लगे और इस दौरान राज्य में अराजकता बनी रही। पेडा तिरुमल ने अपने चाचा तिरुमल के विरुद्ध बीजापुर के सुल्तान अली आदिलशाह से सहायता की माँग की, परन्तु सुल्तान ने पहले विजयनगर और बाद में पेनुकोंडा पर ही कब्जा करने के लिए सेना भेज दी। परंतु पेनुकोंडा सेनानायक सावरम चेनप्पा नायक ने किले की रक्षा की। तिरुमल ने तब अहमदनगर के निजामशाह से सहायता की माँग की। इससे निजामशाह ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया, जिस कारण आदिलशाह 1567 में ही वापस लौट गया। बाद में तिरुमल को बीजापुर के विरुद्ध निजामशाह और कुतुब शाह की सहायता करने के लिए कहा गया। तिरुमल ने उनकी सहायता की। परंतु आदिलशाह ने अपने मुस्लिम पड़ौसियों से समझौता करके तिरुमल पर 1568 ई० में ही पूरी शक्ति से पुनः आक्रमण कर दिया और अदोनी पर कब्जा कर लिया, फिर भी वह पेनुकोंडा पर कब्जा नहीं कर सका। उसने नायकों से समझौता करके उन्हें सम्मान दिया। मैसूर के वोडयार और वेल्लोर के नायक तथा केलाडी शासक अभी भी उसके प्रति निष्ठावान थे। तिरुमल ने अपने सबसे बड़े पुत्र श्रीरंगा को तेलुगु क्षेत्र (मुख्यालय पेनुकोंडा) का, दूसरे पुत्र राम को कन्नड क्षेत्र (मुख्यालय श्रीरंगापटनम) का और सबसे छोटे पुत्र वेंकटपति को तमिल प्रदेश (मुख्यालय चंद्रगिरि) का राज्यपाल बनाया। 1570 में उसने अपने आपको सम्राट घोषित कर लिया। 1572 में उसके बड़े बेटे श्रीरंगा ने शासन भार संभाल लिया। तिरुमल इसके बाद भी छह वर्ष तक जीवित रहा। श्रीरंगा प्रथम के काल में उसके दो मुस्लिम पड़ोसी राज्यों ने आक्रमण जारी रखे। 1576 में अली आदिलशाह ने पेनुकोंडा पर कब्जा करने के लिए अदोनी से सेना भेजी। श्रीरंगा राजधानी की रक्षा का भार अपने सेनापति चेनप्पा पर छोड़कर धन-माल लेकर स्वयं चंद्रगिरि चला गया। आदिलशाह की सेनाओं ने पेनुकोंडा का तीन महीने तक घेरा डाले रखा। इस दौरान श्रीरंगा ने गोलकुंडा से सहायता की माँग की और आदिलशाह के एक हिंदू सेनापति को अपनी ओर करके आदिल शाह को 24 दिसंबर, 1576 को करारी मात दी। इसके बाद आदिलशाह अपनी राजधानी चला गया। परंतु गोलकुंडा का सुल्तान इब्राहिम कूृतुबशाह श्रीरंगा से हुए अपने समझौते को भूलकर तीन महीने के अंदर ही पेनुकोंडा पर चढ़ आया। कुतुबशाह ने उसके काफी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, परंतु श्रीरंगा ने उसे वापस ले लिया। अब कुतुबशाह ने कोंडविदु पर आक्रमण किया तथा उसके काफी क्षेत्र पर पुनः अधिकार कर लिया।श्रीरंगा इन क्षेत्रों को कभी वापस न ले सका। 1585 में उसकी मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई राजगद्दी पर बैठा। उसके काल में गोलकुंडा के अगले शासक मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने समग्र कुर्नूल तथा कडप्पा और अनंगपुर जिलों के कुछ भागों पर कब्जा कर लिया और पेनुकोंडा का घेरा डाल लिया। वेंकट ने उससे संधि करके उसे वापस भेज दिया। इन दोनों शासकों के मध्य बाद में भी कई युद्ध हुए, जिनमें वेंकट को पर्याप्त सफलता मिली, परंतु उसके काल में तमय्या, गोडा, नदेला, कृष्णमाराय और अन्य सामंतों ने आंदोलन कर दिया। वेंकट ने इन सभी आंदोलनों को सफलतापूर्वक दबाया। इसी दौरान तमिल प्रदेश से वेल्लोर के लिंगम्मा नायक ने भी आंदोलन कर दिया। वैंकट ने याचम्मा हु को लिंगम्मा पर निगरानी का काम सौपा।याचम्मा ने लिंगम्मा के सहायक नाग से उटटीरामेरू छीन लिया, जिस कारण मई 1604 में एक तरफ याचम्मा तथा दूरारी तरफ लिंगम्मा और जिंजी, तंजौर, एवं म॒दुरा के मध्य घमासान युद्ध हुआ। युद्ध में याचम्मा की विजय हुई। नाग का साला दावुल पाप नायडु, जिसने विद्रोही सेना का नेतृत्व किया था, मारा गया। बाद में वेंकट ने वेल्लोर के निकट लिंगम्मा को भी हरा दिया। उसने चोल तथा मदुरा के नायकों के कुछ प्रदेशों पर भी अधिकार कर लिया। अब वेंकट ने वेल्लोर को अपनी राजधानी बना लिया। पेनुकोंडा का किला पेनुकोंडा का किला और दर्शनीय स्थल पेनुकोंडा का किला रेलवे स्टेशन से 3 किमी की दूरी पर स्थित एक मध्यकालीन किला है। पेनुकोंडा का किला एक विशाल पहाड़ी पर निर्मित, विशाल और भव्य किला नीचे शहर का एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। किले की दीवारों, बुर्जों और प्रवेश द्वारों का तहखाना पत्थर, गारे और चूने से बनाया गया था। किले के आवासीय भवन के पहले आंतरिक भाग में शाही परिवार के सदस्यों के लिए सुविधाओं को डिजाइन किया गया है। किले का केंद्रीय हॉल हिंदू और मुस्लिम वास्तुकला का अनुसरण करता है। इस हॉल के गुंबद को हिंदू शैली के निर्माण में डिजाइन किया गया है, जबकि फर्श में इस्लामी वास्तुकला की हस्ताक्षर शैली का निर्माण है। किला चारों ओर की पहाड़ियों के प्राकृतिक किलेबंदी से घिरा है और बाहरी दीवार के चारों ओर खाई खोदी गई है। किले के भीतर सात गढ़ हैं। किले के प्रवेश द्वार को एक विशाल द्वार द्वारा चिह्नित किया गया है जिसे येरमांची गेट कहा जाता है। यहां भगवान हनुमान की एक ऊंची मूर्ति देखी जा सकती है जो लगभग 11 फीट ऊंची है। यहां के दो प्रसिद्ध आकर्षण गगन महल पैलेस और बाबैय्या दरगाह हैं। गगन महल का निर्माण 1575 ई. में हुआ था और यह विजयनगर राजवंश की जीवन शैली पर प्रकाश डालता है। क्षेत्र के मुस्लिम शासन के दौरान गगन महल को कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मिली थी। किले के भीतर एक अन्य महत्वपूर्ण स्थान बाबैय्या दरगा है। पेनुकोंडा में कई मंदिर हैं, जिनमें भगवान हनुमान, योग नरसिम्हा स्वामी, काशी विश्वनाथ और भगवान योगराम के मंदिर प्रसिद्ध हैं। अधिकांश मंदिर वर्तमान में खंडित अवस्था में हैं। सबसे महत्वपूर्ण मस्जिद शेर खान मस्जिद है, जिसके आंगन के फुटपाथ पर सदाशिव का एक तेलुगु शिलालेख है। इस किले में एक शस्त्रागार भी स्थित है जहाँ सभीआग्नेयास्त्र और गोला-बारूद रखे गए थे। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस पेनुकोंडा किले का प्रबंधन कर रहा है। किला सबसे अच्छी स्थिति में नहीं है, लेकिन अपने आगंतुकों को इस क्षेत्र के गौरवशाली अतीत की झलक देता है। किले पर नीचे से लगभग 20 मिनट की पैदल यात्रा द्वारा पहुंचा जा सकता है और आमतौर पर पूरे किले का दर्शन करने में लगभग 2 घंटे लगते हैं। हम्पी के पतन के बाद एक बार पेनुकोंडा को विजयनगर साम्राज्य की दूसरी राजधानी के रूप में सेवा दी गई थी और इसे पहले घनागिरी या घनाद्री कहा जाता था। शिलालेखों के अनुसार, पेनुकोंडा राज्य को राजा बुक्का-प्रथम ने अपने बेटे विरूपन्ना को उपहार में दिया था। इस किले का निर्माण विरुपन्ना के समय किया गया था। यह किला विजयनगर साम्राज्य के सबसे अच्छे गढ़ों में से एक था। विजयनगर साम्राज्य के पतन के साथ गोलकुंडा के सुल्तान ने इस किले पर कब्जा कर लिया। बाद में मैसूर साम्राज्य ने इस किले पर कुछ समय के लिए कब्जा कर लिया जब तक कि टीपू सुल्तान के पतन के बाद ब्रिटिश आगे नहीं निकल गए। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=’16290′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new 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