पतंगबाजी का शौक आपको ही नहीं लखनऊ के नवाबों को भी था Naeem Ahmad, July 2, 2022March 3, 2024 पतंगबाजी या कनकौवे बाजी, पतंग उर्फ ‘कनकइया’ बड़ी पतंग उर्फ ‘कमकउवा, बड़े ही अजीबो-गरीब नाम हैं यह भी। वैसे तो पतंग उड़ाने का सिलसिला बहुत ही पुराने जमाने में चीन, जापान और तमाम दूसरे मुल्कों में प्रचलित था। मगर जब इन पतंगों का शौक लखनऊ के नवाबों को हुआ तो एक नयी तबदीली इस दिशा में हुईं। और मुल्कों में तो यह केवल उड़ाई ही जाती थी लेकिन लखनऊ में इनको लड़ाने की कला ईजाद की गयी।लखनऊ के नवाबों को भी था पतंगबाजी का शौकनवाब वाजिद अली शाह के जमाने में लखनऊ की पतंगबाजी ने बड़ी तरक्की हासिल की। करती भी क्यों न–आखिरकार नवाब साहब पतंगबाजी के बेहद शौकीन जो ठहरे। नवाब वाजिद अली की हुकूमत के दौरान बहुत ही बड़ा सूखा पड़ा। उन्होंने लोगों की मदद करने का एक नया तरीका खोजा। पतंग उड़ाने से पूर्व उसमें थोड़ा सोना, चाँदी या रुपया बाँध दिया जाता। पतंग के कटने के बाद जो उन्हें पा जाता उसका एक-आध दिन के लिए पेट भरने का बन्दोबस्त हो जाया करता।लखनऊ में 1857 की क्रांति का इतिहासवाजिद अली शाह के बाद पतंगबाजों ने पतंगें उड़ाने के लिए गोमती नदी का किनारा अधिक बेहतर समझा। वहीं से पतंगबाजी शुरू हो गयी। पहले तो यह शौक नवाबों, वजीरों तक ही सीमित था धीरे-धीरे पतंगबाजी ने रईसों के दिलों पर भी कब्जा कर लिया।पतंगबाजीलखनऊ में एक पतंग इजाद की गयी। जिसका नाम ‘तिक्कल’ रखा गया। यह पतंग बड़ी मशहूर हुई इसमें कई कापें और ठुडड हुआ करते थे। इनकी शक्ल सितारे जैसी होती थी। लखनऊ के पतंगबाजों ने पतंगबाजी में बड़ी शौहरत हासिल की और शहर का नाम ऊंचा किया। लखनऊ में एक से बढ़कर एक पतंगबाज थे– जिनमें छोटे आगा, लाला रामदास, जकी, डा० प्रेम बहादुर, लाला श्याम बिहारी, नजीर वगैरह मुख्य रहे।लखनऊ में 1857 की क्रांति का इतिहासइन पतंगों और पतंगबाजी की एक साहसिक कहानी हमेशा याद की जायेगी। साइमन महोदय लखनऊ तशरीफ लाए तो कैसरबाग बारादरी में एक कांफ्रेंस होना तय हुई। कान्फ्रेंस चल ही रही थी कि उसी दौरान साइमन साहब के सामने कुछ काली पतंगे आकर गिरी। जिन पर लिखा था ‘साइमन गो बैक’ पतंगों की ऐसी जुर्रत देखकर वह बौखला गए। मगर जैसा पतंगों ने उनसे कहा वैसा ही करने में उन्होंने अपनी खेरियत समझी। इन पतंगों को उड़ाने वाले थे बालकराम वेश्य, मोहनलाल, श्री सी० बी० गुप्ता (चन्द्रभान गुप्ता) थे।शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगमएक बुजुर्ग श्री अब्दुल रशीद बताते हैं– कि यह पतंगें आशिकों की बड़ी मददगार साबित होती थीं। जब महबूबा पर घर से निकलने पर पाबन्दी लगा दी जाती तो बेचारे मह॒बूब साहब किसी पास की इमारत की छत पर चढ़ जाते और अपने तड़पते दिल का हाल खत में लिखकर पतंग से बाँध देते । पतंग उड़कर महबूबा की छत पर गिरा दी जाती। वह खत पढ़कर जवाब बेचारी पतंग के गर्दन में बाँध देती।चारबाग रेलवे स्टेशन का इतिहास – मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैलखनऊ के ही मशहूर पतंग बाज श्री बी० पी० श्रीवास्तव साहब ने उन्होंने बताया कि पतंगे उड़ाने में केवल मर्दों को ही दिलचस्पी नहीं थी बल्कि औरतें भी बखूबी पतंग उड़ाना और लड़ाना जानती थीं। चौक इलाके में “जेली खुर्शीद’ नाम की एक महिला थीं उनके बराबर दूर-दूर तक कोई पतंग लड़ाने में माहिर नहीं था। उनसे बड़ी-बड़ी टीमें पतंग लड़ाने आया करती थीं।लखनऊ की बोली अदब और तहजीब की मिसाललखनऊ के मशहूर बुद्ध पार्क से ही मिला हुआ पतंग पार्क है। आज भी इसी जगह से बड़ी-बड़ी पतंग प्रतियोगिताएं होती हैं। सन् 1983-84 में अखिल भारतीय पतंग प्रतियोगिता लखनऊ के हुसैनाबाद घंटा घर के पास ‘टूडिया-घाट’ मैदान पर आयोजित की गयी थी, जिसमें देश की जानी मानी 80 टीमों ने भाग लिया था, जो कि अपनी जगह एक कीर्त्तिमान है।लखनऊ की चाट कचौरी ऐसा स्वाद रहें हमेशा यादसन् 1990-2000 के समय तक भी लखनऊ में अनेक मशहूर पतंगबाज मौजूद हैं। इनमें नरेश श्रीवास्तव श्री बी० पी०श्रीवास्तव, सिद्धू, हश्मत अली, अली मियां, फरीद मिर्जा आदि बड़े मशहूर पतंगबाज थे तो बाबूलाल, इकबाल, श्याम लाल, एम० जमा मशहूर पतंग साज। आज मकर संक्रांति पर शहर खूब जमकर पतंगबाजी होती है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=’9530′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized लखनऊ पर्यटन