न्यूट्रॉन तारें की खोज किसने की थी – आकाशगंगा में दूसरी सभ्यता के संकेत Naeem Ahmad, March 11, 2022March 12, 2022 सन् 1961 की बात है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की खगोल वेधशाला में प्रोफेसर एंथोनी ह्यूइश के साथ काम कर रहे उनके एक सहयोगी जोसलीन बैन ने पाया कि अचानक वेधशाला के संवेदनशील यंत्रों को कही से रेडियो संकेत मिल रहे हैं। ये संकेत 1.3 सेकंड के अंतर पर लगातार आ रहे थे और इनकी यह आवृत्ति बिल्कुल निश्चित थी। इस खोज के बारे में जिसने सुना वही हैरान रह गया। हैरानी की बात ही थी। आखिर अंतरिक्ष की गहराई मे वह क्या चीज हो सकती थी, जिससे रह-रह कर ये संकेत आ रहे थे मानो अंतरिक्ष के दिल की धड़कन हो। कई वैज्ञानिक यह अनुमान लगा बैठे की जरूर ये संकेत हमें आकाशगंगा में स्थित कोई अन्य सभ्यता भेज रही है। एक विशेष समयांतर पर प्राप्त होने वाले इन रेडियो संकेतों की व्याख्या कई प्रकार से करने की कोशिश की गई, पर बाद में वैज्ञानिक विश्लेषण से यह सिद्ध हो गया कि ये संकेत हमें न्यूट्रॉन तारें से मिलते हैं। न्यूट्रॉन तारें की खोज न्यूट्रॉन तारें अपनी धुरी पर घूमते रहते हैं इसीलिए वे एक निश्चित समयांतर पर रेडियो संकेत भेजते हैं! ये न्यूट्रॉन तारें क्या हैं आखिर? इस विषय में वैज्ञानिकों की धारणा है कि जब किसी तारें की ऊर्जा खत्म हो जाती है, तो वह अपनी स्वयं की गुरूत्वाकर्षण शक्ति से पिचक जाता है। यह दबाव इतना अधिक हो जाता है कि तारें के पदार्थ के परमाणु एक दूसरे में एकाकार हो जाते हैं और अविश्वसनीय रूप से भारी पिड बन जाता है। इकट्ठा होने की यह क्रिया इतनी शक्तिशाली होती है कि खाली स्थान तो रहता ही नही। बस पूरा पदार्थ टकराकर तरंगें पैदा करता है। तारें पृथ्वी से 330,000 गुना है पर अगर इसका ऊर्जा समाप्त हो जाए तो यह पिचक कर दस किलोमीटर व्यास का एक गोला बन जाएगा। इस प्रकार की क्रिया मे भार तो वही रहता है, पर आयतन में बहुत कमी आ जाती है। इस तरह घनीभूत हुए पदार्थ से ही न्यूट्रॉन तारा बनता है और यह रेडियो तरंगो का एक शक्तिशाली स्रोत होता है। घनीभूत होने के कारण इन तारों की चुंबकीय शक्ति भी बहुत प्रबल होती है। क्योंकि न्यूट्रॉन तारें अपनी धुरी के इर्द-गीर्द घूमते हैं। इसीलिए हमें रह रहकर रेडियो संकेत प्राप्त होते रहते है। ये न्यूट्रॉन तारें ही अंतरिक्ष का धड़कता दिल है, जिन्हें वैज्ञानिकों ने नाम दिया है पलसर’ यानी पल्ससेंटिग सोर्स। अब तक कई पलसर खोजे जा चुके हैं। पलसर्स से मिलने वाले रेडियो संकेतों की आवृत्ति 1/10 सेकंड से ले कर कई मिनटों तक पायी गई है। न्यूट्रॉन तारें लट॒टू की तरह अपनी धुरी पर घूमते हैं और हर चक्कर में जो शक्ति इन धड़कते पिंडों से छिटक जाती है, उसकी वजह से इनकी गति धीमी पड़ती जाती है। गति का हिसाब-किताब लगाने से यह पता चल सकता है कि कौन-सा पलसर कितना पुराना है। इनकी आयु से ब्रह्मांड की आयु पता कर सकते हैं। एक रहस्यमय पलसर तथा आकाशगंगा में दूसरी सभ्यता के संकेत वैसे तो पलसर की गुत्थी सुलझ गईं 2408 एक विशेष पलसर जे, पलसर-153 अभी रहस्य बना हुआ है। कई वैज्ञानिकों के विचार मे यह पलसेटिंग पिंड ब्रह्मांड की अनुमानित आयु से भी बूढ़ा है। इससे यही धारणा बनती है कि यह पिंड शायद इससे पहले के ब्रह्मांड का कोई छूटा हुआ अंश है। कुछ वर्ष पहले खोजा गया यह पलसर-153 अपनी धुरी के ग्रिर्द चक्कर भी नहीं खाता, जिसके कारण वैज्ञानिक और भी चकरा गए है। न्यूट्रॉन तारें ब्रह्मांड की संरचना का सिद्धांत यह है कि यह किसी घनीभूत पदार्थ से छिटका हुआ अंश है, जो चारों ओर बाहर की तरफ फैल रहा है। एक समय आएगा जब यह फैलाव थम जाएगा और करीबी नक्षत्र मंडलों का चुम्बकीय खिचाव भी समाप्त हो जाएगा। इस दशा में ब्रह्मांड का पदार्थ सिमटने लगेगा और फिर एक नये सिरे से ब्रह्मांड का निर्माण होगा। पर यह स्थिति आएगी कब? वैज्ञानिको का अनुमान है कि यह लगभग सात हजार करोड़ वर्षो बाद होगा क्योंकि ब्रह्मांड के निर्माण और अंत का एक चक्र होता है, जो करोड़ों वर्षों बाद पूरा होता है। इस बीच थोड़े समय के लिए ब्रह्मांड बहुत गर्म हो जाता है। तब ऊर्जा के अलावा और कुछ नहीं रहता। पर जे पलसर-153 कैसे बच गया? एक वैज्ञानिक फ्रैंक ड्रेक का विचार है कि शायद इस ब्रह्मांड के कुछ अंश इतने गर्म नहीं हुए थे कि वे ऊर्जा में बदल जाते। शायद जे. पलसर-153 भी इसी कारण से पदार्थ का बचा हुआ एक अंश है। रेडियो तरंग पैदा करने वाले अन्य पिंड क्या पलसर पिंड ही रेडियो तरंगो के स्रोत है? जी नही। पलसरों के अतिरिक्त ब्रह्मांड में रेडियो तरंगो के दूसरे और स्रोत भी मिले हैं। ये स्रोत है क्वासर या ‘क्याजी स्टैलर रेंडियो सोर्स’ और रेडियो गैलेक्सी क्वासर वे रहस्यमय पिंड हैं, जो सितारों से मिलते-जुलते हैं, यानी इनका द्रव न्यूट्रॉन सितारों की तरह घनीभूत हुआ है। ये आकाशीय पिंड साधारण प्रकाश, इन्फ्रारेड और रेडियो तरंगों के शक्तिशाली स्रोत हैं। इनकी खोज सन् 1950 में कैम्ब्रिज वेधशाला में ही हुई थी। पहला क्वासर 3-सी 48 था, जो सन् 1960 में खोजा गया था। यह हल्का नीला रंग लिए हुए है। तब से अब तक सैकडों क्वासर खोजे जा चुके है। कुछ तो 284,580 किमी. मील प्रति सेकंड की अप्रत्याशित गति से दौड़ रहे हैं। हमसे इनकी दूरी एक प्रकाश वर्ष से लेकर नौ सौ करोड प्रकाश वर्ष तक आंकी गई है (एक प्रकाश वर्ष बह दूरी है जो प्रकाश एक वर्ष में तय करता है)। आश्चर्य की बात तो यह है कि एक छोटा-सा क्वासर हमारी पूरी गैलेक्सी से सैकडों गुना ज्यादा ऊर्जा ब्रह्मांड में छोड़ रहा है। यह रहस्य वैज्ञानिकों की समझ में अभी तक नहीं आया है। कुछ आकाश गंगाएं भी रेडियो तरंगों की शक्तिशाली स्रोत हैं। यह है रेडियो गैलेक्सी। जिस आकाशगंगा में हमारी पृथ्वी स्थित है, वह भी रेडियो तरंगें रेडिएट तो करती है, पर यह इतना शक्तिशाली स्रोत नही है कि इसे रेडियो गैलेक्सी की संज्ञा दी जाए। एम-87 एक बहुत बड़ी अंडाकार गैलेक्सी है, जो शक्तिशाली रेडियो तरंगों को भेज रही है। एम-82 गैलेक्सी तो और भी रहस्मयी है। लगता है कि जैसे इसका विस्फोट हो रहा हो। रेडियो तरंगे इसके मध्य भाग से निकलती है। रेडियो गैलेक्सी क्यो इतनी ऊर्जा रेडियो तरंगों के रूप में छोड़ रही है, इसका उत्तर अभी तक खोजा नहीं जा सका है। शायद भविष्य मे पता चल जाए, तथा ब्रह्मांड की कई गुत्थियां सुलझ सकेंगी। अंतरिक्ष में और भी कई रेडियो तरंगों के स्रोत हैं, पर वे इतने रहस्यमय नहीं हैं। शायद अंतरिक्ष के कक्ष में कुछ और अनजाने दिल धड़क रहे हों। इन रेडियो तरंगों के साथ किसी अन्य विकसित सभ्यता के अस्तित्व की संभावना अभी भी जुड़ी हुई है। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार हो सकता है कि रेडियो संकेतों द्वारा अंतरिक्ष के किसी पिंड पर विकसित कोई सभ्यता रेडियो तरंगों से अपने अस्तित्व का संदेश दे रही हो, पर इसके प्रत्युत्तर तक तो कई पीढ़ियां खत्म हो चुकी होगी। पर क्या इससे वैज्ञानिक हताश हो गए हैं? इसका उत्तर है–नही। किसी दूसरी सभ्यता के अस्तित्व को परखने के लिए कुछ समय पहले पृथ्वी से एक शक्तिशाली रेडियो संकेत भेजा गया है, जो हमारी आकाशगंगा के किनारे पर पहुंचने तक 24,000 वर्ष लेगा। यह हमारी सभ्यता के अस्तित्व का संकेत है। ब्रह्मांड मे अगर कही कोई विकसित सभ्यता हुई तो हो सकता है कि हमारे संकेत का उत्तर हमारी दसवीं,पंद्रहवी या पचासवीं पीढ़ी प्राप्त करे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व की महत्वपूर्ण खोजें खोजें