नौरोज़ त्यौहार का मेला – नवरोज त्योहार किस धर्म का है तथा मेला Naeem Ahmad, August 4, 2021March 10, 2023 नौरोज़ फारसी में नए दिन अर्थात् नए साल की शुरुआत को कहते हैं। ईरान, मध्य-एशिया, कश्मीर, गुजरात और महाराष्ट्र के उन क्षेत्रों में जहां पारसी धर्म के अनुयायी रहते हैं, यह त्यौहार मार्च को मनाया जाता है। इस नौरोज़ त्यौहार या पारसी नया साल के नाम से भी जाना जाता है। नवरोज त्योहार किस धर्म का है ? नौरोज़ त्यौहार पारसी धर्म का त्यौहार है यह तो हम जान ही चुके है। नौरोज़ त्यौहार किसने शुरू किया, नौरोज़ क्यों मनाते है। नौरोज़ कब मनाया जाता है। नौरोज़ त्यौहार हिस्ट्री इन हिन्दी आदि आगे के लेख में जानेंगे। नौरोज़ त्यौहार का इतिहास व जानकारी हिन्दी में नौरोज़ त्यौहार भारत में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। असल भारत में रहने वाले पारसी धर्म के लोग ईरान के रहने वाले थे जो अबसे लगभग बारह सौ साल पहले भारत के पश्चिमी तट के नगरों में आकर बस गए थे। पारसी लोग आग की पूजा करते हैं और उनके संदेशवाहक का नाम “’जर्तुश्त” है। नौरोज़ त्यौहार कहा जाता है हज़रत ईसा से छः सौ साल पूर्व ईरानी शासक दारयूश के काल में नौरोज़ मनायी जाती थी। “फिरदौसी” ने अपने कविता संग्रह “शाहनामा” में लिखा है कि यह त्योहार बादशाह जमशेद के जमाने में मनाया जाता था। उसके पास एक ऐसा प्याला था, जिसमें वह सारी दुनिया का हाल देख लेता था। इसलिए उस दिन को जमशेदी नौरोज भी कहते हैं। नौरोज़ कैसे मनाते हैइस दिन लोग अपने घरों की सफाई और रंगाई-पुताई कराते हैं, नए कपड़े पहनते हैं। पारसी लोग इस दिन के लिए पहले ही से मांस और मछली खरीद कर रख लेते हैं। फूलों के हार दरवाजों पर सजा दिए जाते हैं। घरों की सीढ़ियों पर रंगीन पाउडर से डिजाइन बनाए जाते हैं और गुलदानों में ताजा और खुशबू वाले फूल सजाए जाते हैं। सुबह के समय सेवैयां और सूजी का हलवा बना कर उनमें गुलाब जल और मेवे छिड़क कर पड़ोसियों और संबंधियों में बांटा जाता है। नाश्ते के बाद पारसी परिवार समीप के “अग्नि मंदिर” में जा कर धन्यवाद की पूजा में भाग लेते हैं। पूजा की समाप्ति पर लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और हर तरफ नववर्ष की शुभकामनाओं की आवाजें सुनायी पड़ती हैं। नौरोज़ के दिन मूंग की दाल और सादा चावल खाना बहुत अच्छा समझा जाता है। गरीबों को खाना खिलाया जाता है। कश्मीर में नौरोज़ बादाम की कली खिलने पर मनायी जाती है। मुग़लों के काल में नौरोज़ के दिन बादशाह सोने की तराजू में तुलते थे। उनके वजन के बराबर सोना चांदी, खुशबू और अनाज तौल कर लोगों में बांदा जाता था। इस रस्म को “तुलादान” कहते थे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—– [post_grid id=”6671″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख त्यौहार त्यौहारमेले