नेपच्यून ग्रह की खोज किसने की, नेपच्यून ग्रह इन हिंदी Naeem Ahmad, March 6, 2022March 12, 2022 नेपच्यून ग्रह की खोज कैसे हुई यह हम इस अध्ययन में जानेंगे पिछले अध्याय में हम यूरेनस ग्रह के बारे में पढ़ चुके हैं। हर्शेल द्वारा की गई खोज से पहले भी यूरेनस कई बार देखा जा चुका था। जब गणितज्ञ यूरेनस के भ्रमण मार्ग को गणित की सहायता से हल करने लगे, तो उन्होंने देखा कि गणितीय गणना में और यूरेनस की कक्षा स्थिति में अंतर पड़ता है। फ्रांसीसी गणितज्ञ अलेक्सिस बाडवार्ड ने यूरेनस के लिए एक नई कक्षा निर्धारित की। फिर भी यूरेनस की कक्षा स्थिति का अंतर बना रहा और यह पूर्व निर्धारित मार्ग में आगे-पीछे रहने लगा। सन् 1822 तक इसकी गति कुछ तेज लगी और इसके बाद कुछ मंद। गणितज्ञों को पूर्ण विश्वास हो गया कि यूरेनस को आकर्षित करने वाला इसके बाहर अवश्य ग्रह’ होना चाहिए। नेपच्यून ग्रह की खोज किसने की सन् 1834 मे रेवरेण्ड टी. जे हेस्से ने कल्पना की कि यूरेनस के बाहर उसे आकर्षित करने वाला और एक ग्रह है। उन्होने सुझाव दिया कि इस कल्पित ग्रह की आकर्षण शक्ति को अव्यक्त मानकर उल्टी गणना करने पर इस ग्रह का पता चल जाएगा। हैस्से ने उस समय के राजकीय खगोलविद् जार्ज एयरी को इस अद्भूत सुझाव के संबंध में एक पत्र भी लिख दिया। परंतु एयरी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे एक तरुण विद्यार्थी जॉन कोच एडम्स ने सन् 1843 में विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त करने के बाद यूरेनस के इस प्रश्न को सुलझाने का संकल्प किया। कुछ माह के कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने गणितीय आधार पर यूरेनस की कक्षा का प्रश्न सुलझा लिया। एडस्स ने यूरेनस के क्षोभ का इस्तेमाल करके नये ग्रह की स्थिति का पता लगाया। एडम्स ने भी अपनी गणनाओं को शाही खगोलविदू एयरी के पास भेज दिया। एयरी ने कुछ गलतफहमी के कारण इस तरुण विद्यार्थी की खोजो की कोई सुध नहीं ली। नेपच्यून ग्रह इस बीच सन् 1846 में फ्रांसीसी गणितज्ञ लवेरी ने यूरेनस की कक्षा का ठीक-ठीक हल निकाल लिया और उसे प्रकाशित भी कर डाला। लवेरी के हल एडम्स के ही समान थे। जब एयरी ने लबेरी के प्रकाशन को देखा तो उन्होंने अपने दो सहायकों को कैम्ब्रिज के प्रो.चालिस और विलियम लास्सेल को लवेरी से निर्धारित ग्रह को ढूंढ़ने के लिए कहा। चालिस के पास अच्छे खगोलीय मानचित्र नहीं थे और लाग्सेल किसी दुर्घटना के कारण अपाहिज हो गए थे। इस बीच लवेरी की गणना के आधार पर बर्लिन वे प्रयोगशाला के जानगाले और हेनरिख डी अरेस्ट नामक दो खगोलविदों ने इस नए ग्रह का पता लगा लिया। इस नए ग्रह का नाम ‘नेपच्यून’ रखा गया। यूनानी पौराणिक कथाओं के अनुसार नेपच्यून जीयस का भाई और सागरों का अधिपति था। भारतीय मिथकों में सागरों के अधिपति वरुणदेव कहलाते हैं। नेप्च्यून ग्रह गति और आकार-प्रकार नेपच्यून ग्रह हमारे 164.3/4 वर्षो मैं सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करता है। अत: सन् 1845 में आकाश में जिस स्थान पर यह खोजा गया था, उसी स्थान पर पुन: यह सन 2011 से पहले नहीं आ सकता था। यह 3.1/3 मील प्रति सेकंड की मंथर गति से सूर्य की परिक्रमा करता है। यह 15.3/4 घंटों में अपनी धुरी पर एक चक्कर लगा लेता है। अतः नेपच्यून ग्रह का वर्ष इसके लगभग 90,000 दिनों के बराबर है। नेपच्यून ग्रह की खोज भी बड़े मौके पर हुई। सन् 1822 में सूर्य, यूरेनस और नेपच्यून लगभग एक सीधी रेखा में थे। यूरेनस बीच में था। सन् 1822 के पहले नेप्च्यून यूरेनस को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था और इसके बाद यूरेनस नेपच्यून से दूर हटने लगा था। इससे गणितज्ञों को इन ग्रहों की कक्षा निर्धारित करने में आसानी हुई। यदि यूरेनस और नेपच्यून सूर्य के विपरीत दिशा में होते तो बहुत संभव है कि नेप्च्यून को खोज निकालने के लिए और कई वर्षों का समय लगता। कुछ वर्ष पूर्व तक खगोलविदों का यह अनुमान था कि नेप्च्यून शायद यूरेनस से बड़ा है। परंतु टेक्सास (अमेरिका) की मैक्डोनल्ड वेधशाला में कुइपेर द्वारा किए परीक्षणों से अब यह निश्चित हो गया है कि नेपच्यून यूरेनस से छोटा है। इसका व्यास लगभग 49,500 किमी. है। नेपच्यून ग्रह का वजन हमारी 17 पृथ्वियों के बराबर है। इसका घनत्व बृहस्पति, शनि और यूरेनस से कुछ अधिक है। बिल्डर के अनुसार नेप्च्यून की ‘ठोस गुठली’ 19,200 किमी. व्यास की है। इसके ऊपर 9,600 किमी. मोटी बर्फ की परत है और इसके भी ऊपर 3,200 किमी. की गैस परत है। रैमजे के अनुसार नेपच्यून ग्रह की रचना लगभग यूरेनस के समान ही है। कहा जाता है कि नेप्च्यून एक शान्त ग्रह है। इसके धरातल पर किसी प्रकार की कोई खलबली नहीं है। और संभवत: यह मत ठीक भी है। इतनी भीषण ठण्ड में यहां पर क्या खलबली हो सकती है। नेपच्यून ग्रह के उपग्रह आज तक नेप्च्यून के दो उपग्रहों का पता चला है ट्रिटान और निरीड। टिट्रान की खोज लास्सेल ने नेप्च्यून की खोज से तीन सप्ताह बाद ही कर ली थी। टिट्रान सौरमंडल का सबसे अधिक वजनी उपग्रह है। इसका व्यास लगभग 4,800 किमी. है। इस ग्रह का पलायन वेग काफी अधिक हो सकता है और सम्भवतः इस पर कुछ वायुमंडल भी हो। कुइपेर ने सन् 1944 में इस पर मिथेन गैस का पता लगाया है। चंद्रमा हमारी पृथ्वी से जितनी दूर है उससे भी कम दूरी पर टिट्रान है। यह छः दिनों में अपने ग्रह की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है परंतु जैसे चंद्रमा हमारी पृथ्वी से दिखाई देता है, वैसे टिट्रान नेप्च्यून से नहीं दिखता। इतनी दूरी पर बहुत ही कम सूर्य-प्रकाश पहुंच पाता है। यह उल्टी दिशा में पश्चिम से पूर्व की ओर, नेपच्यून ग्रह की परिक्रमा करता है। नेपच्यून ग्रह के दूसरे उपग्रह निरीड को कुइपेर ने सन् 1949 में खोज निकाला। यह बहुत ही छोटा उपग्रह है, जिसका व्यास केवल 320 किमी. है। नेपच्यून से इसकी न्यूनतम दूरी 16,00,000 किमी. और अधिकतम दूरी 96,00,000 किमी. है। अतः इसका भ्रमण मार्ग कुछ अधिक दीर्घवृत्ताकार होता है। यह हमारे लगभग एक वर्ष मे अपने ग्रह की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े [post_grid id=’8586′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व की महत्वपूर्ण खोजें प्रमुख खोजें