नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास – Nalanda university history in hindi Naeem Ahmad, February 7, 2019March 23, 2024 बिहार राज्य की राजधानी पटना से 88 किमी तथा बिहार के प्रमुख तीर्थ स्थान राजगीर से 13 किमी की दूरी पर बड़ा गांव के पास प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर स्थित है। आज से लगभग ढाई हजार साल पहले एशिया में तीन विश्वविद्यालय थे। तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा। पाकिस्तान बनने पर तक्षशिला विश्वविद्यालय पाकिस्तान में चला गया तथा विक्रमशिला और नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर खुदाई करने पर बिहार में मिले। विक्रमशिला बिहार के भागलपुर जिलें में है। और नालंदा विश्वविद्यालय नालंदा जिले में पाया गया इसी के नाम पर नालंदा जिले का नाम है। आज के समय यह खंडहर काफी प्रसिद्ध है। देश विदेश के कोने कोने से पर्यटक और इतिहास में रूची रखने वाले सैलानी यहां आते रहते है। कुल मिलाकर आज के समय यह बिहार राज्य का प्रमुख आकर्षण है। निम्बार्क सम्प्रदाय के संस्थापक, प्रधान पीठ, गुरु परंपरा व इतिहासअपने इस लेख हम इसी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda university) के बारें में विस्तार से जानेगें कि:- नालंदा विश्वविद्यालय किसने बनवाया था? नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास क्या है? नालंदा विश्वविद्यालय हिस्ट्री इन हिन्दी? नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया था? नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किसने कि थी? नालंदा किस तरह का विद्यालय था? नालंदा विश्वविद्यालय में कितने विद्यार्थियों पढतें थे? विश्वविद्यालय का खर्च किस प्रकार वहन किया जाता था? नालंदा विश्वविद्यालय को किसने बरबाद किया? नालंदा विश्वविद्यालय मे कौन पढ़ते थे? नालंदा विश्वविद्यालय कहाँ पर है? नालंदा विश्वविद्यालय का बौद्ध धर्म से क्या कनेक्शन है? नालंदा विश्वविद्यालय की रोचक जानकारी नालंदा विश्वविद्यालय के रोचक तथ्य नालंदा विश्वविद्यालय पर निबंध और एस्से लिखने मे भी हमारा यह लेख उयोगी है। अंबिका चरण मजूमदार का जीवन परिचय हिन्दी में नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, नालंदा यूनिवर्सिटी हिस्ट्री इन हिन्दी Nalanda university history in hindi, About Nalanda university प्राचीन काल में नालंदा में बौद्ध विश्वविद्यालय था, और एशिया में सबसे बड़ा स्नातकोत्तर शिक्षा का केन्द्र था। पांचवीं शताब्दी के आरम्भ से 700 वर्ष तक यहां बौद्ध धर्म दर्शन तथा अन्य विषयों की शिक्षा दी जाती थी। चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, तिब्बत तथा श्रीलंका आदि देशों से विद्यार्थी यहां आकर कई वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करते थे। और कठोर जीवन बिताते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री हवांग यांग ने भी यही आकर पांच वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की थी। सैयद हसन इमाम का जीवन परिचय हिन्दी मेंइस विद्यालय मे 10 हजार विद्यार्थी और 1500 आचार्य थे। नागार्जुन, शीलमद्ध, आर्यदेव, संतरक्षित, वसुवंधु दिग्नाग, धर्मकीर्ति, कमलशील, अतिस, दीपकर, कुमारजीव, तथा पद्मसम्भव आदि आचार्यों ने यही से शिक्षा प्राप्त की थी, और विद्या की ज्योति विदेशों में ले गये थे। चक्रवर्ती विजयराघवाचार्य का जीवन परिचय हिन्दी मेंनालंदा का अर्थ (Meaning of Nalanda) संस्कृत के अनुसार “नालम् ददाति इति नालन्दा” का अर्थ कमल का फूल है। कमल के फूल के डंठल को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। “दा” का अर्थ देना है। अतः जहाँ ज्ञान देने का अंत न हो उसे नालंदा कहा गया है। एनी बेसेंट का जीवन परिचय हिन्दी मेंनालंदा का प्राचीन इतिहास (Ancient history of Nalanda) नालंदा का इतिहास बहुत प्राचीन है। ईसा से पांचवीं तथा छठी शताब्दी पूर्व में भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के युग तक, यहां का इतिहास फैला हुआ है। जैन ग्रंथों के अनुसार नालंदा राजगीर के उत्तर पश्चिम में एक उपनगर था। और महावीर स्वामी ने नालंदा और इसके निकट राजगीर में 14 वर्ष गुजारे थे।संकिसा का प्राचीन इतिहास – संकिसा बौद्ध तीर्थ स्थलदिग्म्बर जैन मत के अनुसार नालंदा से केवल दो किमी दूर कुडंलपुर में भगवान महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। बौद्ध धर्म के साहित्य के अनुसार भगवान बुद्ध अक्सर यहां आते जाते थे। यह नगर बहुत खुशहाल था, और यहां की आबादी बहुत घनी थी। यहाँ एक आम का बगीचा था, जिसे पवारिक कहते थे।महाबोधि मंदिर का इतिहास और परिचयभगवान बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों सरिपुत्र और मार्दगलापन का जन्म नालंदा में ही हुआ था। सरिपुत्र का देहांत नालंदा में उसी कमरे में हुआ था, जिसमें वह पैदा हुआ थे। उनकी मृत्यु का कमरा बहुत पवित्र माना जाने लगा और बौद्धों के लिए तीर्थ स्थान बन गया। नालंदा विश्वविद्यालय के सुंदर फोटोनालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना (Establishment of Nalanda University) सम्राट अशोक ने नालंदा में इस स्थान पर मंदिर बनवाया, इसलिए सम्राट अशोक को नालंदा विहार का संस्थापक माना जाता है। नालंदा की खुदाई में समुद्रगुप्त के समय का एक ताम्रपत्र और कुमारगुप्त का एक सिक्का मिला है। इसलिए नालंदा विहार कुमारगुप्त आदि गुप्त सम्राटों के बनवाये हुए माने जाते है। कन्नौज के राजा हर्षवर्धन (606-47) ने नालंदा विश्वविद्यालय को बहुत धन दिया था। उसने लगभग 100 गाँव की मालगुजारी इस विश्वविद्यालय के नाम छोड़ दी थी। उन गांवों से विश्वविद्यालय की आवश्यकता के अनुसार चावल, घी, और दूध आदि आने लगा। इसलिए विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को पूरी खुराक इन गांवों से मुफ्त मिलने लगी, और उनको कहीं भिक्षा मांगने नही जाना पड़ता था।कौशांबी का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ कौशांबी बौद्ध तीर्थ स्थलकुछ मतों के अनुसार सम्राट अशोक ने 1200 गांव नालंदा विश्वविद्यालय के लिए दे दिए थे। कि इनसे जो आमदनी हो उससे विश्वविद्यालय का खर्च चलाया जाए। विद्यालय में विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थीं, और उनको खाना पीना भी मुफ्त दिया जाता था। चीनी यात्री हवांग यांग के कथन के अनुसार नालंदा के विद्यार्थियों को खाने पीने के लिए भीक्षा नहीं मांगनी पड़ती थी।हवांग यांग के बाद इतिसंघ 673 ईसवी में भारत पहुंचा था उसने भी कई वर्ष तक नालंदा में विद्या ग्रहण की थी। उन्नति के शिखर पर (On the peak of advancement) नवी शताब्दी के आरम्भ मे बंगाल के राजा देवपाल के समय में नालंदा उन्नति के उच्चतम शिखर पर पहुंच गया था। हिन्देशिया, जावा, सुमात्रा के सम्राटों ने राजदूतों द्वारा देवपाल के पास धन भेजा जिससे वहां विहार बनाए गए। तिब्बत के सम्राट सांग यांग गम्पो ने आचार्य देवाविद्ध से बौद्ध और ब्राह्मण साहित्यों का ज्ञान प्राप्त किया।गया दर्शन बौद्ध गया तीर्थ – बौद्ध गया दर्शनीय स्थलतत्पश्चात राजा खौ देव उत्सान ने संतरक्षित को तिब्बत बुलाया। उसी समय के लगभग पदम्सम्भव भी तिब्बत गये, और उन्हें तिब्बत में लामा पंथ के संस्थापक के नाते बहुत प्रसिद्धि मिली। नालंदा विद्यालय के लिए यह एक बहुत गौरव की बात थी कि उसके विद्वान ने तिब्बती धर्म को एक विशेष रूपरेखा दी। नालंदा के विद्वान कोरिया में भी गए थे। नालंदा विश्वविद्यालय मे आग किसने लगायी, नालंदा महाविद्यालय खडंहर कैसे बनाWho put fire to the University of Nalanda? How was the University of Nalanda ruined पांचवीं शताब्दी में ब्राह्मण दार्शनिक कुमारिल और शंकराचार्य के प्रयत्नों से तथा उपदेशों से बौद्ध धर्म को बहुत धक्का लगा। उन्होंने सारे भारत में घूम घूम कर तर्क तथा शास्त्रार्थ द्वारा बौद्धों को हराया और उनसे अपना मत मनवाया इसलिए प्राचीन बौद्ध केंद्र वीरान हो गए। बिहार और बंगाल में सरकारी संरक्षण के कारण बौद्ध धर्म जीवित था, परंतु अन्य राज्यों में उसका प्रभाव घट रहा था। आखरी चोट जो बौद्ध धर्म पर पड़ी वह सन् 1205 में मुहम्मद बख्तियार खिलजी का नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण था। उसने इसे कोई किला समझा और इसे नष्ट कर दिया।भोटिया जनजाति कहां पाई जाती जनजीवन और इतिहासमुहम्मद खिलजी के आक्रमण के बाद मुदित मुद्रा नाम के एक व्यक्ति ने इसका पुनः निर्माण कराया और शीघ्र पश्चात मगध के राजा के मंत्री कुकूटा सिंह ने यहां मंदिर बनवाया। इसके बाद एक धर्म उपदेश के समय दो क्रोधित ब्राह्मण तीर्थ करने यहां आये। कुछ नटखट भिक्षुओं ने उनके ऊपर हाथ पैर धोने का पानी फेंक दिया। उन ब्राह्मण ने 12 वर्ष तक सूर्य को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की और तपस्या के बाद यज्ञ किया। उन्होंने यज्ञ की अग्नि के सुलगते हुए अंगारे नालंदा विश्वविद्यालय तथा बौद्ध मंदिर आदि में फेंक दिए। जिसकी प्रचंड आग से विश्वविद्यालय में आग लग गई। और विश्वविद्यालय नष्ट हो गया। उसके बाद यहां कोई निर्माण नहीं हुआ। और धीरे धीरे समय के साथ इस स्थान का अस्तित्व मिट गया। नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों का कब और कैसे पता चला (How ruins are discovered)सन् 1812 में बकानम हेमिल्टन को बड़ागांव जहाँ नालंदा खंड़हर है। वहाँ से कुछ ब्राह्मण मूर्तियां और कुछ बौद्ध मूर्तियां मिली थी। कन्घिम ने इन्हें नालंदा से संबंधित ठहराया। कुछ साल बाद ब्रेडली ने चेत्या स्थान पर खुदाई करवाई। बीस साल तक पुरातत्व विभाग ने भी वहां खुदाई कराई जिससे नालंदा विश्वविद्यालय के खंड़हर का पता चला। नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्यकला (Nalanda University Architecture)नालंदा विश्वविद्यालय सात मील लंबी और तीन मील चौडी भूमि में फैला हुआ था। किंतु केवल एक वर्ग मील मे ही इसकी खुदाई का काम हुआ, जिसमें विशवविद्यालय के दो भाग मिले। एक भाग मे हॉस्टल कम कॉलेज था जो एक लाइन में है। और दूसरे भाग में एक लाइन में भगवान बुद्ध के मंदिर मिले, ग्यारह बौद्ध विहार एक लाइन में मिले है। अब इन्हें 11 ब्लॉक कहते है। जो कुछ एक ब्लॉक मे है वैसा ही हर ब्लॉक मे है। इनकी दो मंजिलें नीचे दबी हुई है। और हम तीसरी मंजिल देखते है। तल पर पहली मंजिल गुप्त काल की है। सातवीं शताब्दी में पहली मंजिल को ढ़ककर दूसरी मंजिल हर्षवर्धन ने बनवाई थी। और दूसरी मंजिल को ढ़ककर देवपाल ने तीसरी मंजिल बनवाई थी। कन्हेरी गुफाएं क्यों प्रसिद्ध है तथा कितनी हैप्रत्येक ब्लॉक में एक लेक्चर हॉल है। यहां आचार्य पढ़ाते थे। एक ब्लैक बोर्ड था, लेक्चर हॉल मे ही एक कुंआ था। लेक्चर हॉल के चारों तरफ कमरें थे। जिनमें विद्यार्थी और आचार्य रहते थे। यह कॉलेज आवासीय था। कमरो तथा लेक्चर हॉल के बीच में चारों तरफ बरामदा था। एक तरफ बाथरूम था। जिसमें लेक्चर हॉल के कुएँ से पानी जाता था। कपडे धोने के लिए चबूतरा था। रोशनदान भी थे। ब्लॉकों को समझने के लिए सरकार ने यहाँ एक नक्शा बना दिया है।स्तूप और प्रमुख बौद्ध मंदिर (Stupas and major Buddhist temples) स्तूपा :- यहां भगवान बुद्ध के शिष्य सारिपुत्र की समाधि मिली है। सारिपुत्र की मृत्यु यही पर हुई थी। यहां पर उनका स्तूपा बना है। यह नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे ऊंचा मुख्य स्तूपा है। भगवान बुद्ध के दूसरे शिष्य मोर्दगलापन की मृत्यु सांची मध्यप्रदेश में हुई थी। इसलिए उसका स्तूपा सांची में बना है। दोनों स्तूपा सम्राट अशोक ने बनवाएं थे। विश्वविद्यालय मे सारिपुत्र का स्तूपा ढाई हजार साल पुराना है। यह स्तूपा सात बार बना है और सात बार नष्ट हुआ है। लेकिन यहां तीन काल के सबूत है बाकी काल के स्तूपा जमीन में दबे हुए है।उज्जैन का इतिहास और उज्जैन के दर्शनीय स्थलवर्तमान स्तूपा 1500 साल पुराना है। यह स्तूपा भी मिट्टी मे ढका हुआ था, जो खुदाई करने पर प्राप्त हुआ था। तीनों स्तूपा एक ऊपर दूसरा और दूसरे के ऊपर तीसरा, पांचवीं, सातवीं, तथा नौवीं शताब्दी के बनाये हुए है। पांचवी शताब्दी में कुमारगुप्त का बनाया हुआ है। उसने इस स्तूपा पर धनुष का चिन्ह दिया है। और चारो तरफ से ढ़ककर इसमें मूर्तियां बनवाई। दिल्ली के जैन मंदिर – श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर, नया मंदिर, बड़ा मंदिर दिल्लीसातवीं शताब्दी में राजा हर्षवर्धन ने कुमारगुप्त के बने हुए स्तूपा के ऊपर ही स्तूपा बनवाया और उसके ऊपर नौवीं शताब्दी में बंगाल के राजा देवपाल ने स्तूपा बनवाया, उसके काल की सीढियां भी मिली है। इन तीनों के नीचे सम्राट अशोक का बनाया हुआ स्तूपा है। यदि उसे खोदा जाए तो ऊपर की तीनों स्तूपा गीर जायेंगे, इसलिए खुदाई रोक दी गई। जो भी सम्राट स्तूपा बनवाता था। वह नीचे वाले को ढ़क देता था। इसलिए सब स्तूपा नीचे दबते चले गए। स्तूपा के पास ड्रेन (नाली ).मिली है यह कुमारगुप्त काल की है, तथा दूसरी नाली हर्षवर्धन काल की है।देवगढ़ का इतिहास – दशावतार मंदिर, जैन मंदिर, किला कि जानकारी हिन्दी मेंबौद्ध मंदिर:- हालांकि खुदाई मे यहां पर छोटे बड़े कई बौद्ध मंदिरों के खंड़हर मिले है। परंतु इनमें सबसे प्रमुख मंदिर संख्या तीन है। यह छोटे स्तूपों से घिरा एक चकोर बौद्ध मंदिर है। जो क्रमशः सात बार एक के ऊपर एक बना है। शुरू के दो मंदिर भीतर दबे हुए है। पांच मंदिर दिखाई देते है। पांचवां मंदिर सबसे सुंदर और सुरक्षित है। इसके चारो कोनो पर स्तूप के आकार बने हुए है। और दीवारों पय बुद्ध और बौद्ध सात्वो की मूर्तियां बनी है। उत्तर की ओर तीन सीढियां दिखाई देती है। जोकी पांचवें, छठे और सातवें मंदिर की है। विद्यालय में जितने भी बौद्ध मंदिर थे, उनमे हर एक मंदिर के सामने या अगल बगल में छोटे बड़े स्तूप बने है। विश्वविद्यालय में जो लोग मरते थे। चाहे वो विद्यार्थी हो या आचार्य उनकी राख के ऊपर एक स्तूपा छोटा या बड़ा जूनियर सीनियर के हिसाब से बना दिया जाता था।नालंदा के अन्य दर्शनीय स्थल ( other tourist attraction in nalnda university)पाली इंस्टीट्यूट:- नालंदा में 1951 में पाली इंस्टीट्यूट खोला गया था। जिसे नव नालंदा महाविहार संस्था कहा जाता है। इसमें पाली भाषा और बौद्ध धर्म शास्त्र की उच्च शिक्षा दी जाती है। यहां पर जापान, फ्रांस, तथा तिब्बत आदि देशों से विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते है। म्यूजियम:- सडक के दूसरी ओर नालंदा म्यूजियम है। इसमें नालंदा तथा आसपास के स्थानों से प्राप्त वस्तुएं रखी है। सूर्य मंदिर:- नालंदा खंडहरों से मिला हुआ सूर्य मंदिर है। इसमें हिन्दू देवी देवता तथा बौद्ध मूर्तियां है। मंदिर में सूर्य, विष्णु, शिव पार्वती की मूर्तियां है। पार्वती की पांच फुट ऊंची मूर्ति बहुत आकर्षक है। मंदिर के पास सूर्य तालाब है। यहां साल मे दो बार सूर्य छठ का मेला लगता है। अहिच्छत्र जैन मंदिर – जैन तीर्थ अहिच्छत्र का इतिहासनालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास पर आधारित हमारा यह लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है। बिहार पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:–[post_grid id=”6569″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल ऐतिहासिक धरोहरेंजैन तीर्थ स्थलबिहार के पर्यटन स्थलबिहार पर्यटनबौद्ध तीर्थहिस्ट्री
आपके द्वारा दी गई जानकारी अच्छी है लेकिन मुगलों के आक्रमण को बहुत ही सहजता से आपने छिपा दिया इतिहास आपको भी पता है और जितना मैंने पढ़ा है मुझे भी कृपया कर सत्य लिखें ना कि सूर्य देव की पूजा का रहस्यLoading...
Ye puri knowledge nhi h isme baaki baatien jaise mughal akraman aur isme lgne waali aag kb tk thi ye sb to clear hi nhi HLoading...
इसमें दी गयी जानकारियां, बहुत ही सतही हैं। कृपया पूरा इतिहास लिखे, विशेषकर 11वी सदी से लेकर 16वी सदी तक का, जब मुगल आक्रांता आयेLoading...
नालंदा विद्यालय टूट रहा था तब लक्ष्मण सेन जो बंगाल का राजा था जिसका शासन बिहार तक लगता था वह क्या कर रहा था उसने क्यों नहीं नालंदा विश्वविद्यालय को तोड़ने से बचाया इसका मुझे जवाब दोLoading...
ये सब बातें पूरी तरह सही नही है। इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। ऐसे में ये सब पढ़ कर नई पीढ़ी मिसगाइड होगी।Loading...
इतिहास लेखन का शौक है तो मुझे भी बहुत है अब मैं भी आपके Submit a post section में जाकर अपना यह शोक पुरा करूगा उम्मीद है कि आप मेरे लिखे लेख को अपने इस प्लेटफार्म जरूर शामिल करेंगेLoading...
bhut naam suna tha nalanda visv vidaly ka but aj pata laga ki itihas itna purana hai, itni sari jankari padh kar bhut acha laga tahnku soo muchLoading...