नवाब सआदत अली खां द्वितीय लखनऊ के 6वें नवाब Naeem Ahmad, June 15, 2022March 3, 2023 नवाब सआदत अली खां अवध 6वें नवाब थे। नवाब सआदत अली खां द्वितीय का जन्म सन् 1752 में हुआ था। उन्होंने सन् 1798 से 1814 तक लखनऊ के नवाब के रूप में शासन किया। इनके वालिद नवाब आसफुद्दौला थे। अपने भतीजे नवाब वजीर अली को अंग्रेजों की मदद से नवाब की गद्दी से उतार कर इन्होंने अवध के नवाब की गद्दी हासिल की थी। नवाब सआदत अली खां का जीवन परिचय 21 जनवरी सन् 1798 में नवाब सआदत अली खां अगर एक ओर अवध के नवाब बने तो दूसरी ओर अंग्रेजों के हाथ की कतपूतली। उनके नवाब होते ही जान शोर ने फरवरी 1798 में 17 शर्तों वाला एक सन्धि पत्र प्रस्तुत किया। उस वक्त तक तो ईस्ट इण्डिया कम्पनी को 56 लाख रुपए सालाना कर दिया गया। इसके साथ ही अब किला इलाहाबाद भी पूरी तरह से अंग्रेजों ने हासिल कर लिया था। कम्पनी सरकार चाहती थी कि धीरे-धीरे नवाब की सैन्य शक्ति एकदम खत्म कर दी जाए। सन् 1798 में हुई सन्धि के तहत नवाब ने विवश होकर यह मंजूर कर लिया कि वह बिना रेजिडेन्ट की आज्ञा के किसी यूरोपियन को अपना कर्मचारी नहीं रखेंगे। कम्पनी सरकार ने नवाब साहब को हर तरह से ठोंक बजाकर देख लिया था और वह निरन्तर धीरे-धीरे अवध पर कब्जा जमाती जा रही थी। लार्ड वेलेजली ने नवाब सआदत अली खां से अवध का आधा राज्य माँगने की बजाय उनसे सख्त आदेशात्मक लहजे में कहा कि अवध का आधा राज्य कम्पनी सरकार को दे दिया जाए। नवाब साहब कर भी क्या सकते थे बड़े ही भारी मन से अपने जिगर के आधे टुकड़े को उन्होंने कम्पनी सरकार के सुपुर्द कर दिया, जिसकी वसूली सालाना 35,00,000 रुपये थी। इसके अलावा लार्ड वेलेजली ने कहा कि अगर नवाब इस पर राजी न हो तो वह गद्दी छोड़ दें उनकी पेंशन बाँध दी जाएगी। नवाब सआदत अली खां 28 अप्रैल 1801 ई० को लखनऊ के रेजिडेन्ट को लार्ड वेलेजली ने एक खत लिखा कि अगर नवाब साहब न माने तो जबरन अवध पर कब्जा कर लिया जाए। सन् 1798 में हुई सन्धि के अनुसार नवाब की रियासत की देखभाल कम्पनी सरकार खुद करेगी और उनके पास उतनी ही फौज मौजूद रहेगी जिससे कि उनका जरूरी काम चलता रहे। अब तो कम्पनी सरकार राजकाज के मामलों में भी दखल देने लगी थी। एक अन्य शर्ते के मुताबिक नवाब साहब हमेशा ब्रिटिश फौज की निगरानी में रहेंगे और विभिन्न आवश्यक मुद्दों पर कम्पनी उन्हें आदेश भी देती रहेगी। इस प्रकार नवाब सआदत अली खां नाममात्र के ही नवाब रह गये थे। नवाब सआदत अली खां, हालांकि वित्तीय प्रबंधन में किफायती थे, फिर भी एक उत्साही निर्माता थे और उन्होंने दिलकुशा, हयात बख्श कोठी और फरहत बख्श कोठी के साथ-साथ प्रसिद्ध लाल-बारादरी सहित कई भव्य महलों को निर्माण कार्य शुरू किराया। फरहत बख्श को क्लाउड मार्टिन से पचास हजार रुपये में खरीदा गया था। फरहत बख्श इमारतों का एक विशाल परिसर था। जब तक वाजिद अली शाह ने कैसरबाग का निर्माण नहीं किया, तब तक यह मुख्य शाही निवास बना रहा। यह क्षेत्र 1857 के दौरान क्रांति लड़ाई का केन्द्र था और परिसर लगभग नष्ट हो गया था। राज की अवधि के दौरान छतर मंजिल एक ब्रिटिश क्लब बन गया। 1947 से यह केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान का आवास बना रहा है। लाल बारादरी में शाही दरबार, फरहत बख्श परिसर का हिस्सा, जिसे ‘क़सर-यू-सुल्तान’ के नाम से जाना जाता है, राजा का महल, सआदत अली खान के समय से अवध शासकों के लिए सिंहासन कक्ष, जो विधानसभा के राज्याभिषेक हॉल के रूप में कार्य करता था। 1819 में इस शाही महल में नवाब गाजीउद्दीन हैदर को ताज पहनाया गया था। कोठी ‘दिल आराम’, नवाब के लिए एक निजी घर के रूप में नदी तट पर बनाया गया था। इन घरों के अलावा नवाब ने प्रसिद्ध इमारतों मुनवर बख्श, खुर्शीद मंजिल और चौपर अस्तबल का निर्माण किया। सआदत अली खान के शासनकाल के दौरान अवध शैली को धीरे-धीरे त्याग दिया गया और यूरोपीय नवाचारों को बड़े पैमाने पर अपनाया गया। नतीजा यह हुआ कि लखनऊ पहले से कहीं ज्यादा प्रतिष्ठित लोगों का मिलन बन गया। 11 जुलाई 1814 को नवाब सआदत अली खां की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के पश्चात उनका पुत्र नवाब गाजीउद्दीन हैदर लखनऊ के नवाब की गद्दी पर बैठा। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें—- [post_grid id=”6023″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized अवध के नवाबजीवनीलखनऊ के नवाब