नवाब नसीरुद्दीन हैदर लखनऊ के 8वें नवाब Naeem Ahmad, June 14, 2022March 3, 2023 नवाब नसीरुद्दीन हैदर अवध के 8वें नवाब थे, इन्होंने सन् 1827 से 1837 तक लखनऊ के नवाब के रूप में शासन किया। नवाब नसीरूद्दीन हैदर, नवाब गाजीउद्दीन हैदर के पुत्र थे। 9 सितंबर सन् 1803 को नवाब नसीरूद्दीन हैदर का जन्म हुआ था। इनके बाद इनके पुत्र नवाब मुहम्मद अली शाह ने शासन किया था। नवाब नसीरूद्दीन हैदर का जीवन परिचय 20 अक्टूबर 1827 को नवाब गाजीउद्दीन हैदर के पुत्र नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने अवध की हुकूमत संभाली। उस वक्त उसकी उम्र 25 वर्ष थी। नवाब साहब बड़े ही रंगीन मिजाज के निकले। पैसा पानी की तरह खर्चे करते उनका अधिकांश समय भोग विलास में बीतता। उनकी कमजोरी थी खूबसूरत स्त्री। नवाब का दिल एक दिन एक विलायती लड़की पर जा टिका। लड़की के पिता का नाम हॉपकिन्स वाल्टरी था जो कि कम्पनी की अंग्रेजी सरकार की सेना का मुलाजिम होकर लखनऊ आया था। नवाब साहब ने उससे शादी रचाई और उसका नाम ‘मुकहरा औलिया’ रखा। नवाब नसीरुद्दीन हैदर को एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली स्त्री से प्रेम हो गया और उससे निकाह कर लिया उसका नाम था कुदसिया। बादशाह कुदसिया बेगम से बड़ी मोहब्बत करते थे। एक दिन वह दिलकुशा घूमने गए और तमाम लंगूर बन्दर मार डाले। शाम को जब महल वापस आये तो कुदसिया बेगम से उनकी तृ-तू मैं-मैं हो गयी। यह झगड़ा इतना बढ़ा कि कुदसिया बेगम ने जहर खा लिया। खाते ही आँतें मुंह से निकल आयीं आँखें बाहर उबल पड़ीं। बादशाह यह दृश्य देख भाग खड़े हुए। वह इतना डर गए कि अस्तबल में जा छुपे। जब बेगम की लाश वहाँ से हटा दी गयी तब जाकर वह कहीं महल में लौटे। कुदसिया महल की जुदाई का गम नवाब साहब सह न पाये बड़े बेचन व खोये-खोये से रहने लगे। नवाब साहब के दिल से कुदसिया महल की यादों को निकालने का एक ही चारा था कि उनकी शादी किसी ऐसी लड़की से की जाये जो मरहूम बेगम से मिलती जुलती शक्ल की हो। शीघ्र ही उनके दोस्तों ते एक रास्ता खोज निकाला। कुदसिया बेगम की एक छोटी बहन और थी। जिसका नाम नाजुक अदा था। उसकी शादी नवाब दूल्हा से हो चुकी थी। दोनों ही बहनों की शक्ल सूरत ही नहीं आदतें तक मिलती थीं। नवाब नसीरूद्दीन हैदर के दोस्तों और दरबारियों ने बड़ी कोशिशें की कि नाजुक अदा नवाब नसीरुद्दीन हैदर से निकाह करने को राज़ी हो जाये मगर इन सारी कोशिशों पर पानी फिर गया। दरबारियों ने एक रास्ता और खोज निकाला। नवाब रोशनुद्दौला की ओर से मीर सैयद अली को नाजुक अदा के शौहर से बात करने के लिए भेजा कि वह उसे तलाक दे दें। नवाब दूुल्हा बड़ी मुश्किल से राजी हुआ और तलाक दे दिया। फिर भी नाजुक अदा नवाब नसीरुद्दीन हैदर से निकाह करने को राजी न हुई। इस पर उसे एक मकान में नजरबन्द कर दिया गया। एक दिन मौका पाकर वह भाग निकली और कानपुर जाकर अपने मियाँ से मिली। कहते हैं नाजुक अदा की इस फरारी में रोशनुद्दौला का काफी हाथ रहा। उसने नवाब दूल्हा से कह दिया था कि वह उसे नाटकीय तौर पर तलाक दे दें शीघ्र ही उसकी बीबी उसके पासदोबारा पहुँचा दी जायेगी। नवाब नसीरुद्दीन नाजुक अदा और उसके शौहर नवाब दूल्हा की बड़ी तलाश करवाई गयी पर दोनों का कुछ पता न चला। अब इस तलाश को बन्द कर दोबारा कुदसिया महल की हमशक्ल को ढूँढ़ने की कोशिश शुरू हो गयी। तमाम लड़कियां नवाब साहब के सामने लाई गयी मगर उन्हें कोई भी पसन्द न आयी। तरीखे-अवध के अनुसार एक दिन रोशनुद्दौला ने नवाब से अपने रिश्तेदार की लड़की का ज़िक्र किया। वह चाहते थे कि कुदसिया महल के चेहल्लुूम के बाद उनका निकाह हो जाये। उन्होंने एक रोज़ नवाब साहब को दावत के बहाने अपने घर बुलाया और रिश्तेदार मिर्जा बाकर अली खाँ की लड़की उन्हें दिखाई।नवाब नसीरुद्दीन हैदर उसकी खूबसूरती देखते ही उस पर फिदा हो गये। शादी की बात पक्की हो गयी। बड़ी धूमधाम से शादी हुई। निकाह होने के बाद नवाब साहब ने अपनी नयी बीबी को ‘मुमताजुद्हर’ का खिताब दिया। कम्पनी सरकार ने नवाब नसीरुद्दीन हैदर को भी लूटा। 1 मार्च सन् 1821 ई० को सरकार ने उनसे 62,40,000 रुपयों की माँग की। नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने न चाहते हुए भी इतनी बड़ी रकम अदा कर दी। नवाब नसीरुद्दीन बड़े ही नेकदिल इंसान थे। उन्होंने कई स्कूलों व कालेजों की स्थापना की। किसानों की दशा सुधारने के लिए भी बादशाह ने कई प्रयास किये उनकी योजना गंगा से एक नहर निकालने की थी मगर हरामखोर अंग्रेजों ने ऐसा होने न दिया। एक हजार रुपया कम्पनी सरकार को इसलिए दिया जाता था कि गरीब तबके के लोगों का मुफ्त इलाज हो सके। नवाब नसीरुद्दीन हैदर द्वारा वित्त पोषित, लखनऊ में एक वेधशाला का निर्माण कराया गया था। यह 1832 में बनकर तैयार हुआ था और इसे तारों वाली कोठी के नाम से जाना जाता था। नवाब का विचार यह था कि खगोल विज्ञान और भौतिकी सीखने के लिए कुलीन युवकों के लिए एक स्कूल खोलने के लिए भी यह सही जगह होगी। इस नवाब को 90 एकड़ के पार्क और बादशाह बाग नामक महल परिसर के लिए याद किया जाता है जिसे उन्होंने गोमती में बनाया था जो बाद में कैनिंग कॉलेज का घर बन गया, अब लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर उन्होंने इलाज के लिए चौक में अस्पताल दार-उल-शफा की स्थापना की। पारंपरिक यूनानी पद्धति, और रेजीडेंसी के पास किंग्स अस्पताल जहां डॉ स्टीवेन्सन ने पश्चिमी चिकित्सा का अभ्यास किया। किंग्स लिथोग्राफिक प्रिंटिंग प्रेस को अंग्रेजी पुस्तकों का अनुवाद करने और उन्हें स्थानीय भाषाओं में प्रिंट करने का आदेश दिया गया था। नवाब नसीरुद्दीन हैदर अपने निजी जीवन में अंग्रेजी की हर चीज के शौकीन थे, और अक्सर औपचारिक पश्चिमी कपड़े पहनते थे। वह अंग्रेजी सीखने के प्रति उत्साही थे। वास्तव में उनके पास पाँच यूरोपीय शिक्षक थे। रेज़ीडेन्ट की कोठी (बेलीगारद) पर सालाना बीस हजार रुपये मरम्मत आदि के लिए खर्च किये जाते थे। अंग्रेजों ने यह रकम बढ़ाकर पचास हजार रुपये सालाना कर दी। एक दिन रात के समय नवाब साहब की तबियत अचानक खराब हो गयी और वह 7 जुलाई सन् 1837 को इस दुनिया से कूच कर गये। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें—– [post_grid id=”6023″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... 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