नंदगाँव मथुरा – नंदगांव की लट्ठमार होली व दर्शनीय स्थल Naeem Ahmad, April 3, 2019March 19, 2024 नंदगाँव बरसाना के उत्तर में लगभग 8.5 किमी पर स्थित है। नंदगाँव मथुरा के उत्तर पश्चिम में लगभग 50 किलोमीटर पर स्थित है। इस जगह का नाम कृष्णा के पालक पिता नंद जी और माता यशोदा के नाम पर रखा गया था, जिनका गोकुल से जाने के बाद इस स्थान पर उनका स्थायी निवास था। अपने बचपन के दौरान कृष्ण अपने पालक माता-पिता के साथ नंदगाँव के इस गाँव में रहते थे। बरसाना मथुरा – हिस्ट्री ऑफ बरसाना – बरसाना के दर्शनीय स्थलयह माना जाता है कि कंस द्वारा कृष्ण को मारने के लिए भेजी गई राक्षसों की गड़बड़ी के बाद, नंद रायजी ने गोकुल छोड़ दिया और कुछ समय के लिए छटीकरा, डीग और काम्यवन में रहने के बाद नंदगाँव में स्थानांतरित हो गए। नंदगाँव का यह गाँव नंदीश्वर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। नंदरायजी, चरवाहों के राजा ने नंदीश्वर पहाड़ी की चोटी पर अपना महल बनाया और सभी चरवाहों ने पहाड़ी के आस-पास अपने घर बनाए। नंदगाँव का इतिहास (Nandgaon history in hindi) नंदगाँव नन्दीश्वर महादेव की पहाडी है। तांडल ऋषि ने कंस को श्राप दिया था कि तुम्हारा कोई भी दूत या राक्षस नन्दीश्वर पहाड़ी पर जायेगा तो वह पत्थर का बन जायेगा। इसलिए जब कंस गोकुल और वृन्दावन में श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक राक्षस भेजने लगा, तो नंद बाबा अपने परिवार तथा गांववासियों को लेकर नन्दीश्वर पर्वत पर चले आये। और सब अपने अपने मकान बना कर यही रहने लगे।बाबा जयगुरुदेव आश्रम मथुरा – जयगुरुदेव मंदिर, सत्संग, कथाइस तरह से नंदगाँव की स्थापना हुई। नंद बाबा ने नन्दीश्वर पहाड़ी पर अपना महल बनवाया और बहुत बड़ा उत्सव मनाया। यही पर श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ होली खेली। यही पर उधव वन है। ऊधव भगवान श्रीकृष्ण का मित्र था। और उस समय का सबसे महान ब्रह्मयोगी था। जब श्रीकृष्ण मथुरा में चले गये तो गोपियाँ उनके विरह में दिन रात आंसू बहाती रहती थी। श्री ऊधव वहां जाकर राधा व गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम देखकर अपने ब्रह्मज्ञान के अहंकार को भूल गया था। नंदगांव का धार्मिक महत्व (Religious importance of Nandgaon)नंदीश्वर का अर्थ है ‘नंदी का स्वामी’, और सर्वोच्च भगवान शिव का दूसरा नाम है। इस प्रकार, नंदीश्वर नाम भगवान शिव के व्यक्तित्व से लिया गया है, जो माना जाता है कि यहां भगवान कृष्ण के पारलौकिक अतीत के दर्शन हुए थे।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं हिंदू महाकाव्यों के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की और उनसे भगवान कृष्ण के बचपन और युवा अतीत के साक्षी बनने का संकल्प लिया। शिव की प्रार्थनाओं से प्रसन्न होकर, भगवान कृष्ण ने उन्हें पहाड़ी के रूप में वृन्दावन में इस स्थान पर रहने का निर्देश दिया। इस प्रकार भगवान शिव ने नंदीश्वर पहाड़ी का रूप धारण किया और नंदगाँव में निवास किया और इस प्रकार भगवान कृष्ण के पारलौकिक अतीत का आनंद लिया।नंदगाँव के दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्यनंदगाँव को वृंदावन के उप-वन या उपवन में से एक माना जाता है और यह वृंदावन की सीमाओं के भीतर आता है। यह वह स्थान है जहाँ नंद रायजी के पिता (परजन्या) पहले अपने परिवार के साथ रहते थे, लेकिन केशी दानव के कारण हुए आतंक के कारण वे गोकुल चले गए थे। नंदगाँव में कई मंदिर हैं जो भगवान कृष्ण के अतीत के लिए समर्पित हैं।नंदगांव के दर्शनीय स्थल (Top places visit in Nandgaon)जहाँ पर पहले नंद बाबा का महल था, अब इस महल में श्रीकृष्ण बलराम मंदिर है। यह यहां का मुख्य मंदिर है। मंदिर में श्रीकृष्ण बलराम की मूर्तियां है। यहां दोनों भाईयों का एक ही स्वरूप माना गया है। अर्थात दोनों की एक ही भावना से पूजा होती है। मंदिर के निकट 60-70 सीढियां चढ़नी पड़ती है।मथुरा दर्शनीय स्थल – मथुरा दर्शन की रोचक जानकारीश्रीकृष्ण बलराम मंदिर के अलावा नंदगाँव के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में हाऊ बिलाऊ, पद्म तीर्थ, बेल कुंड, चरण पहाड़ी, रोहणी गोदनी कुंड, मानसरोवर, सनातन गोस्वामी की तपोभूमि, बल्लभाचार्य जी की बैठक, मोती कुंड, फुलवारी कुंड, कदम कुंड, कृष्ण कुंड, सनातन कुटी, बिहार कुटी, जोग कुंड, सास कुंड, श्याम पीपर, टेर कदम, राधा कृष्ण मंदिर, गोवर्धन नाथ मंदिर, सूर्य कुंड, श्री अक्रूर बैठक, ऊधव बैठक, नन्दीश्वर, नंद बाग, गऊशाला तथा भोजन स्थल देखने योग्य है। नंदगाँव की लट्ठमार होली (Nandgaon lathmar holi) फाल्गुन एकादशी को नंदगांव वाले बरसाना में होली खेलने जाते है। और दूसरे दिन बरसाना वाले नंदगाँव में होली खेलने जाते है। जिसके पिछे किवदंती है कि श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे तथा उनके साथ ठिठोली करते थे जिस पर राधा तथा उनकी सखियां ग्वालों वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाले भी लाठी या ढ़ालों का प्रयोग किया करते थे जो धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गया। उसी का परिणाम है कि आज भी इस परंपरा का निर्वहन उसी रूप में किया जाता है। यहा की लट्ठमार होली देखने योग्य है। हजारों लोग हर साल दूर दूर से नंदगाँव बरसाना की होली देखने आते है। नोट:– प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताए। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है। उत्तर प्रदेश पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:–[post_grid id=”6023″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in 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