देवरिया का इतिहास – देवरिया हिस्ट्री इन हिन्दी Naeem Ahmad, August 4, 2022March 26, 2024 देवरिया भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला मुख्यालय और एक प्रमुख शहर है। देवरिया का इतिहास बहुत ही प्राचीन और समृद्ध रहा है। देवरिया का शाब्दिक अर्थ होता है, ऐसा स्थान जहां मंदिर स्थिति हो। इस प्रकार देवरिया की उत्पत्ति देवरही से मानी जाती है जो करना नदी (karna river) तट पर स्थित चतुर्भुजी भगवती के मंदिर हेतु विख्यात है। देवरिया का वर्तमान प्रदेश प्राचीन काल मे घने जंगलो (अरण्य) से आवृत था। अत इसे देवारण्य प्रदेश या देवारण्य भी कहा जाता था क्योकि इस अरण्य प्रदेश मे देवों एव ऋषियो की तपोस्थली थी। इस प्रकार देवारिया शब्द की व्युत्पत्ति देवारण्य से देवारिया भी मानी जाती है।देवरिया जिले का पौराणिक महत्वदेवरिया जनपद के पौराणिक आख्यानो पर दृष्टिपात करे तो विदित होता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के प्रथम पुत्र कुश की राजधानी कुशीनगर मे थी जो कभी इसी जनपद मे था अब स्वय जनपद हो चुका है। कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को लेकर हरिहर क्षेत्र की ओर जाते समय इस जिले के दक्षिण पश्चिम कोण पर सरयू के संगम पर उन्होने एक कुटी की स्थापना की थी। इस जनपद के अडिल्यापुर नामक स्थान के बारे मे ऐसा कहा जाता है कि गौतम ऋषि की पत्नी आहिल्या अपने पति के शाप से जब प्रत्थर रूप मे हो गयी थी तो वन गमन के समय भगवान श्रीराम के चरण स्पर्श से उसने पुन सजीव होकर स्त्री रूप धारण कर लिया था। इस जनपद का वर्तमान भागलपुर” भार्गवपुर का विकृत रूप है। यह भार्गव” या भृंगु” शब्द से बना है। यहाँ पर भृगु तथा उनके शिष्यों के आश्रम के होने की बात कही जाती है। इस बात की सत्यता इससे भी जान पडती है कि इस क्षेत्र के दक्षिण मे सरयू पार बलिया जनपद मे महार्षि भृंगु का प्राधान्य क्षेत्र होने के साथ साथ यहां पर अनेकानेक ऋषियों की परिपूरित धर्मारण्य क्षेत्र पाया जाता है।कुशीनगर के दर्शनीय स्थल – कुशीनगर के टॉप 7 पर्यटन स्थलमार्टिन मान्ट गोमरी ने अपनी पुस्तक इस्टर्न इण्डिया मे लिखा है कि प्रारम्भ मे भागलपुर और खैराडीह दोनो एक ही नगर थे जो सयुक्त रूप से भार्गवपुर कहलाते थे तथा बाद मे अपभ्रश होकर भागलपुर हो गये। कहा जाता है कि यह भृगुवशीयों का बसाया हुआ नगर था। जन श्रुतियो के अनुसार यहाँ भृगुवशीय ऋषि जमदग्नि का आश्रम था। मार्टिन’ ने यह भी लिखा है कि सयुक्त नगर भार्गवपुर घाघरा के एक ही ओर दक्षिण मे स्थित था।कालान्तर मे इस नदी की धारा में परिवर्तन हुआ और यहां के लोगो ने नदी के उस पार उत्तर की ओर जाकर भागलपुर नामक नया नगर बसा लिया।बिठूर आकर्षक स्थल जहां हुआ था लव और कुश का जन्मभागलपुर के प्राचीन नगर के पास पीपल के वृक्ष बहुत मात्रा मे विद्यमान थे। जो सरयू की कटान के कारण धराशायी हो गये। पीपल का वृक्ष ग्रोधिवृक्ष के रूप मे बौद्ध संस्कृति मे विशेष स्थान रखता है। पीपल वृक्षों की बहुलता से यह इंगित होता है कि यह स्थान कभी बौद्ध केन्द्र के रूप मे विकसित रहा होगा। प्रो सिन्हा को खैराडीह की खुदाई मे जो कमरे तथा अन्य सामग्रियां मिली है। उनसे स्पष्ट संकेत मिलता है कि यहां कभी बौद्ध विहार विद्यमान थे। बौद्धकाल के बाद इस क्षेत्र पर भर राजाओं का शासन रहा जो भवन निर्माण कला मे बडी रुचि लेते थे और इसके जानकार भी थे। इस क्षेत्र के इन्दौली मे भरो की गढी थी जहां खुदाई करने पर उस काल की ईंटे आदि मिलती है।भदेश्वर नाथ मंदिर का महत्व और भदेश्वर नाथ का मेलाइस जनपद में भगवान शिव की अराधना के प्रसिद्ध केन्द्र रुद्रनाथ रुद्रपुर तथा दीर्घेश्वर नाथ स्थित है जिनसे अश्वत्थामा का सम्बन्ध जोडा जाता है। दुग्धेश्वर नाथ महेन्द्र नाथ शैवनाथ सोहनाग आदि के प्राचीन स्थल आज भी है। रुद्रपुर मे सहनकोट के पास स्थित दुग्धेश्वर नाथ का मंदिर एकादश रुद्रों की कोटि मे आता है। कहा जाता है कि कामधेनु ने जब इन्द्र के व्रज के लिए महर्षि दधीचि की हडडी के लिए उनका मास चाटा था तो स्वत स्तनों से दूध की धारा बहने लगी। उसी से इस शिवलिंग का उदय हुआ तथा इसका नाम दुग्धेश्वर नाथ पडा।भदेश्वर नाथ मंदिर का महत्व और भदेश्वर नाथ का मेलामझौली राज के दक्षिण मे एक मंदिर है जिसका नाम दीर्घेश्वर नाथ है। कहा जाता है कि अश्वत्थामा ने दीर्घ जीवन के लिए यही तपस्या की थी इसलिए इस मंदिर का नाम दीर्घेश्वर नाथ है। सलेमपुर के पास सोहनाग परशुराम धाम के रूप मे जाना जाता है कहा जाता है कि परशुराम ने यहां साधना की थी। देवरिया जनपद के भू-भाग को महान संतो ने भी अपनी साधना हेतु चुना था क्योकि एक तो घने अरण्य दूसरे भगवती सरयू का पवित्र किनारा तीसरे पर्वतराज हिमालय की सन्निकटता ने इस क्षेत्र मे ऐसा वातावरण तैयार कर दिया था कि यहां आकर चंचल मन स्वत शान्त हो जाता था। इस जनपद के लार कस्बे मे स्थित मठलार आश्रम एक सिद्धपीठ है।देवरिया का ऐतिहासिक महत्वजब दुनिया की अधिकाश जातियां निर्वस्त्र होकर घूम–घूम कर भोजन तलाश रही थी राजनैतिक चिंतन का स्वरूप शैशवावस्था में था उस समय देवरिया जनपद की उर्वरक मिट्टी मे स्वतंत्र मल्ल गणराज्य का अस्तित्व था। मल्ल गणराज्य को महाभारत में मल्लराष्ट्र तथा जातक कथाओं मे मल्लरद्द’ कहा गया है। यहां राज्य दो राज्यों में विभकत था। इन्ही दोनो राज्यों का जिक्र महाभारत मे मल्ल एव दक्षिण मल्ल के नाम से किया गया है। बौद्ध धर्म का इतिहास देवरिया जनपद के कण-कण मे समाया हुआ है।बांसी का मेला कब लगता है – बांसी मेले का इतिहासईसा पूर्व छठी शताब्दी के आते आते राजनैतिक चेतना बलवती होने लगी थी और उनके छोटे–छोटे कबीले बडे-बडे राज्यो में समाहित होने लगे थे। इस तरह धीरे-धीरे सोलह महा जनपदों का युग प्रारम्भ हुआ उस समय देवरिया जनपद का भू-भाग कौशल जनपद का एक अंग था जहां के मल्ल वीरो को कौशल राज्य मे विशेष स्थान प्राप्त था। वे लोग उस समय सेना मे भर्ती होने के लिए देवरिया मे राप्ती नदी द्वारा नावों से कौशल राज्य की राजधानी श्रावस्ती जाया करते थे। महापण्डित राहुल साकृत्यायन ने भी इस तथ्य को अपनी पुस्तक ‘वोल्या से गया” में बन्धुत्व मल्ल निकन्ध’ मे उल्लेख किया है। कालान्तर मे जब गणराज्यो का परिवर्तन हुआ तो महावीर मल्ल अपना अलग गणराज्य कायम करके उसका विस्तार गोरखपुर से देवरिया तक किये। महापद्मनन्द के युग मे यह जनपद नन्द राजाओं के अधीन था। कालान्तर मे जब मगध पर इईसा पूर्व तृतीय शताब्दी मे मौर्य राजाओं का वर्चस्व हुआ और चन्द्रगुप्त मौर्य राजा बना तो देवरिया का भू-भाग मौर्य राजाओं के अधीन हो गया।भदेश्वर नाथ मंदिर का महत्व और भदेश्वर नाथ का मेलादेवरिया जनपद के भू-भाग को महान सन्तो ने भी अपनी साधना हेतु चुना था। सिद्ध सन्त अनन्त महाप्रभु का आश्रम इसी जनपद के बरहज बाजार मे स्थित है। महान संत देवरहा बाबा का आश्रम भी इसी जनपद के सरयू नदी के तट पर मइल कस्बे के निकट स्थित है। राष्ट्रीय स्तर के महान स्वतत्रता सेनानी बाबा राघवदास का भी पवित्र आश्रम बरहज बाजार मे है। इस प्रकार उपर्युक्त विकिरणों से स्पष्ट है कि देवरिया जनपद आज से ही नही अपितु अतीत काल से ही ऐतिहासिक एव सांस्कृतिक विरासत मे अत्यन्त गौरवशाली रहा है। संसार मे चाहे शील क्षमा एव करुणा का उपदेश देने वाले देवदूतो की परम्परा रही हो या सत्य अहिंसा जैसे सतत मानवीय मूल्यो के उपदेशको की बात रही हो अथवा अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य जैसे सामाजिक विचारधारा का प्रचार-प्रसार रहा हो महान सन्त परम्परा एव गरिमामयी ऐतिहासिक धरोहरो हेतु यह पावन धरती सदैव से ही नितान्त वैभवशाली रही है।देवरियादेवरिया का प्राचीन कालीन इतिहासअध्ययन क्षेत्र में देवरिया का इतिहास आर्य सभ्यता से प्रारम्भ होता है। महाराजा मनु ने मध्य देश मे अपना साम्राज्य स्थापित किया। उनके बडे पुत्र इक्ष्वाकु इस क्षेत्र के प्रथम शासक बने तथा कौशल राज्य मे इक्ष्वाकु वंश की स्थापना हुई। इस वंश के विभिन्न पराक्रमी राजाओं यथा- मान्धाता हरिश्चन्द्र सगर, भगीरथ, दीलीप, रघु, दशरथ और राम तथा उनके पुत्रो ने इस क्षेत्र पर राज्य किया। महाभारत काल मे यहां धार्मिक प्रवृत्ति के राजा राज्य करते थे जिन्हे भीम ने अपना आधिपत्य स्वीकार कराया। प्राचीन नगर काहोन के भग्नावशेष तथा एक प्रस्तर पर भीमसेन की लात की आकृति जनपद से प्राप्त हुयी हैं। कालान्तर मे यह क्षेत्र मल्लो के अधीन आ गया। जो पावा (फाजिलनगर) एव कुशीनारा (कुशीनगर) से शासन करते थे। मल्लो का राज्य गणतत्रात्मक था।रामदेवरा का इतिहास – रामदेवरा समाधि मंदिर दर्शन, व मेलाईसा पूर्व छठी शताब्दी मे यह मल्ल शासित राज्य कौशल के सोलह महा जनपदो मे से एक हो गया। जिसमे बुद्ध के समकालीन प्रसेनजित का इस क्षेत्र पर प्रभुत्व था। कुशीनगर एव पावा के मल्ल भगवान बुद्ध और महावीर के अनुयायी थे। महावीर यहां अक्सर आते रहते थे। कैवल्य प्राप्ति से पूर्व उन्होने यहां अपना अंतिम धर्मोपदेश दिया था, जिसे काशी और कौशल राज्य के अठारह संघटनो (नौ मल्ल एव नौ लिच्छवियो) ने सुना था। भगवान बुद्ध का इस क्षेत्र पर प्रमुख धार्मिक प्रभाव था जो इस क्षेत्र के सोहनाग, साहिया भागलपुर खुखुन्चू आदि क्षेत्र मे पाए जाने वाले बुद्ध की प्रतिमाओं, मूर्तियों, स्तूपो मठों, टीलो आदि के अवशेषो से स्पष्ट है। भगवान बुद्ध महापरिनिर्वाण के पूर्व बसाढ(बिहार) से कुशीनारा के लिए आते समय पावा मे रुके थे तथा वही पर उन्होने एक सुनार जाति के चन्द नामक व्यक्ति के यहां अपना अंतिम भोजन ग्रहण किया था। बुद्ध के निर्वाण के पश्चात यहां उनके अस्थियों को लेकर अनेक राज्यो एवं मल्ल शासकों के बीच गंभीर विवाद उत्पन्न हो गया। परन्तु द्रोण की मध्यस्थता से संघर्ष टला और अस्थियो को आठ भागो में विभाजित कर प्रत्येक राज्यो को दे दिया गया। इन्ही अस्थियों के अवशेष पर आठ स्पूतो का निर्माण हुआ जिसमे से दो स्तूप इस जनपद मे निर्मित हुए एक कुशीनगर (कुशीनगर जनपद) एव दूसरा पावा मे।पातालेश्वर मंदिर कालपी धाम जालौन उत्तर प्रदेशपाचवी शताब्दी ई० पूर्व के आरंभ मे मगध के उत्कर्ष के साथ अजातशत्रु के समय मे इस क्षेत्र के मल्लो का राजनीतिक महत्व कम हो गया। इस समय यह क्षेत्र कौसल और मगध के मध्य एक तटस्थ क्षेत्र (Buffer) के रूप मे ही रह गया। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व मे इस पर मगध के शासक महापद्मनन्द के अधीन रहा। इस दौरान मल्ल शासकों ने पद्मनन्द की अधीनता स्वीकार कर अपने अस्तित्व को बनाये रखा। 321 ई0 पूर्व मे चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा नंदवश के विनाश और मौर्य वंश की स्थापना के साथ यह क्षेत्र मौर्य सम्राज्य के अधीन आया। इस समय यहां के मल्ल शासकों का सम्बन्ध मौर्य शासकों से मित्रतापूर्ण एव सम्मानपूर्ण बने रहे। मौर्यवंश के प्रतापी शासक सम्राट अशोक ने उपगुप्त के साथ कुशीनगर की यात्रा की और यहां पर दो स्तूपो का निर्माण कराया।श्री बटाऊ लाल मंदिर कालपी जालौन उत्तर प्रदेश185 ई पूर्व मे पुष्यामित्र शुग ने मौर्य शासक वृहद्रथ की हत्या कर शुग वश की स्थापना की। इसी के साथ मौर्य वंश तथा कुशीनगर एव पावा के मल्ल शासकों का भी अस्तित्व समाप्त हो गया। इसके पश्चात यह क्षेत्र क्रमशः शक और कुषाणो के आधिपत्य मे रहा। अध्ययन क्षेत्र मे अनेक स्थानों से प्राप्त कुषाण शासकों विम कडफिसस और कानिष्क के सिक्के इस बात की पुष्टि करते है। कानिष्क (78 से 120 ई) तक इसके क्षेत्र के इतिहास पर परदा पडा रहा। चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा गुप्त साम्राज्य की स्थापना (320 ई0) के साथ यह क्षेत्र गुप्त साम्राज्य के अधीन आ गया। चन्द्रगुप्त द्वितीय (380–415 ई०) के काल मे चीनी बौद्ध यात्री फाहयान (400-411) इस क्षेत्र मे भ्रमण करने आया और कुशीनगर रूका। मौर्य शासक कुमार गुप्त ने यहां के स्तूपो की मरम्मत कराई इस क्षेत्र से कुमारगुप्त के 46 चांदी के सिक्के प्राप्त हुए है। कुमार गुप्त के शासन काल मे निर्मित काहोन के प्रस्तर स्तम्भ क्षेत्र मे दृष्टव्य है।ललितपुर का इतिहास – ललितपुर के टॉप 5 पर्यटन स्थल510 ई0 मे गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् इस क्षेत्र पर भर शासकों का आधिपत्य हो गया। छठी शताब्दी मे कनौज के माखिरी शासकों का इस क्षेत्र पर आधिपत्य रहा। माखिरी शासक हर्षवर्धन (606–647 ई०) के समय यहां पर शांति व्यवस्था बनी रही तथा इसी समय चीनी यात्री ह्वेनसांग भी देवरिया आया। इसने कुशीनगर का नाम ‘कौ-सुल्ह-ना-का’ (Kou-Sulh-Na-Ka) रखा। हर्षवर्धन ने इस क्षेत्र विशेषकर कुशीनगर के विकास के लिए काफी धन देकर विकास किया। हर्ष की मृत्यु के पश्चात् पुन केन्द्रीय शक्तियो का ह्वास हुआ और क्षेत्र का इतिहास पुन नौवी शताब्दी तक अंधेरे मे रहा। इस बीच का क्षेत्रीय इतिहास स्पष्ट नही है। नौवीं शताब्दी मे यह क्षेत्र कन्नौज के आधिपत्य मे चला गया जिस पर राजा भोज के शासन काल में इस क्षेत्र पर कल्चुरी राजा गुनाम बोधि देव का शासन स्थापित हुआ। 11वी शताब्दी मे इस क्षेत्र के पूर्वी भाग नवापार (सलेमपुर) मे बिसेन का शासन स्थापित हुआ। बाद मे सम्पूर्ण जनपद पर गहडवाल राजा गोविन्द चन्द्र (1114–1154 ई०) का आधिपत्य हो गया। इनके नाती जयचन्द्र को (1194 ई० मे) सहाबुद्दीन गौरी ने परास्त किया जिससे गहडवाल शक्ति समाप्त हो गयी। इस समय इस क्षेत्र के बिसेन क्षत्रियो ने अपने को सलेमपुर मझौली मे स्वतंत्र घोषित कर लिया। परन्तु शेष भाग पर भरो का शासन कायम रहा।देवरिया का मध्यकालीन इतिहासदिल्ली सलतनत के काल में सुल्तान दास वंश और खिलजी वंश के शासन काल मे इस क्षेत्र पर इनका मामूली नियंत्रण रहा। 1353 मे तुगलक शासक फिरोज़ शाह तुगलक के बंगाल अभियान (हाजी इलियास शाह के विरुद्ध) के समय यहां के स्थानीय शासकों मझौली के बिसेन और गोरखपुर के उदय सिंह ने उसे अपना सहयोग प्रदान किया। कालान्तर मे यह क्षेत्र शर्की शासकों के अधीन रहा पर इस क्षेत्र पर इनका प्रभावशाली नियंत्रण नही रहा। यहां तक कि शेरशाह तक के काल का भी कोई ऐसा प्रमाण नही मिलता है कि उसका इस क्षेत्र पर पूरा नियन्त्रण रहा हो। इस प्रकार 14वी शताब्दी तक इस क्षेत्र पर मझौली के बिसेनो का प्रभुत्व बना रहा। इसके पश्चिम मे इस समय डोमवारों का भी अस्तित्व बना रहा। पर 14वी शताब्दी के मध्य मे चन्द्रसेन ने डोमवारो को परास्त कर सतासी राज की स्थापना की। प्रारम्भ मे इनका बिसेनो से अच्छा सम्बन्ध बना रहा परन्तु बाद मे दक्षिण मे रुद्रपुर के क्षेत्र को लेकर दोनो मे संघर्ष होने लगा जो लगभग एक शताब्दी तक चला।भक्त नरसी मेहता की कथा – नरसी मेहता की कहानी1556 ई में अकबर के राज्यारोहण के साथ देवरिया क्षेत्र का इतिहास स्पष्ट होने लगता है। इस समय यह सम्पूर्ण क्षेत्र मुगल सत्ता के अधीन था। कालान्तर मे अकबर के जनरल ‘फिदाई खान एव राजा मझौली के बीच संघर्ष हुआ। राजा परास्त हुए। अकबर ने इस क्षेत्र नेवापार की भूमि को शेख सलीम चिस्ती को दान में दे दिया तथा सलीम चिस्ती के नाम पर इस क्षेत्र का नाम सलेमपुर रखा। बाद मे अकबर ने राजा सतासी को भी परास्त कर सम्पूर्ण राप्ती क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। 1572 ई के आस-पास इस क्षेत्र पर पयिण्डा मुहम्मद बगश शासक नियुक्त हुए। 1596 ई में जब अकबर ने अपने साम्राज्य को प्रशासनिक दृष्टि से सूबों मे विभाजित किया। तो यह क्षेत्र अवध सूबा के अंतर्गत गोरखपुर सरकार के अंतर्गत आया। इस समय सिधुआ, जोबना, सलेमपुर और शाहजहांपुर इसके परगना बनाए गए। उत्तर-पश्चिम मे एक छोटा क्षेत्र हवेली परगना के अधीन लाया गया।गौड़ का इतिहास – गौड़ मालदा के दर्शनीय स्थल1625 ई में सतासी के राजा बसत सिह ने मुगल गवर्नर पर हमला कर के गोरखपुर का स्वतंत्र शासक अपने आपको घोषित किया। यह स्थिति औरंगजेब के पूर्व तक बनी रही। इस बीच दिल्ली को कोई राजस्व अदा नही किया गया। 1680 ई मे काजी खलिल-उल-रहमान गोरखपुर का कलक्टर नियुक्त हुआ। इन्होने सतासी के राजा को पदच्युत कर सिलहट परगना के रुद्रपुर गाँव मे रुद्रपुर नगर की स्थापना किया। 1690 ईस्वी मे राजकुमार मुअज्जम (बहादुर शाह) गोरखपुर आए। इनके सम्मान मे एक और परगना मुअज्जमाबाद की स्थापना की गयी। पुनः मुगल शासको के कमजोर होने एव पतन होने के साथ क्षेत्रीय सरदारो ने अपनी स्वतंत्रता बहाल कर ली।देवरिया का आधुनिक कालीन इतिहास1707 ई मे औरंगजेब की मृत्यु के समय यह क्षेत्र अवध के अंर्तगत गोरखपुर सरकार में सम्मिलित था जिसके अंतर्गत वर्तमान के गोरखपुर देवरिया कुशीनगर और बस्ती जिले समाहित थे। जून 1707 ई मे जब बहादुर शाह बादशाह बना तब उसने चिनकिलीच खान को गोरखपुर का फौजदार नियुक्त किया जो 1710 ई तक बना रहा। इस दौरान वास्तविक शक्ति स्थानीय राजपूत शासकों के हाथो मे ही रही। सितम्बर 1722 ई मे शिया धर्मावलम्बी सहादत खान अवध का सूबेदार नियुक्त हुआ। यह एक तरह से नाम मात्र का ही सूबेदार था। वास्तव मे यह एक स्वतंत्र शासक था। इसके समय मे चारो ओर अशांति और अराजकता व्याप्त थी। परन्तु इस दौरान मझौली के राजा ने अपने क्षेत्र मे शांति और सुरक्षा बरकरार रखी। बाद मे सिराजुद्दौला और नवाब आसफुद्दौला के शासनकाल मे अवध की शासन व्यवस्था मे कुछ सुधार हुआ।नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर का जीवन परिचय हिन्दी मेंबाद मे अवध के नवाब को कुशासन के आरोप मे पदच्युत कर ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन अपने हाथ मे ले लिया। 1857 ई के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रारम्भ के साथ ही इस क्षेत्र के विभिन्न तालुकेदार तथा राजाओ ने अंग्रेज सत्ता के विरोध मे विद्रोह किया। विद्रोह आरम्भ होने के साथ ही देवरिया तहसील के पैना गांव के जमीदारो ने घाघरा नदी मे अनाजों से लदे हुए नावों को घेरना आरम्भ कर दिया। बरहज के थानेदार इसे रोकने मे असफल रहे। 5 जून को क्षेत्र मे जैसे ही सूचना मिली कि आजमगढ मे भारतीय फौजे स्वाधीनता सेनानियो के साथ मिल गयी है गोरखपुर के फौजी जवानों ने आजमगढ़ विद्रोह को दबाने के लिए जाने से इंकार कर दिया। इस दौरान सतासी और नरहरपुर के राजाओं ने विद्रोह का नेतृत्व किया। पैना एव घाघरा के तटवर्ती गाँवों के जमीदार, नरहरपुर नगर और सतासी के राज्य एव पाण्डेयपुर के बाबू ने मिंटिग कर ब्रिटिश सेना के खिलाफ सहयोग का वचन लिया। इस बीच नेपाल के शासक जगबहादुर ने विद्रोह को दबाने के लिए अग्रेजी हुकूमत को अपनी गोरखा सेना उपलब्ध करा दीं। 29 जुलाई को 3000 गोरखा गोरखपुर में पहुँच गए। हालांकि अंग्रेजों ने विद्रोह को दबा दिया। पर इसके बाद अंग्रेज इस क्षेत्र पर पुन अपनी शक्ति और शासन नही स्थापित कर सके। गोरखा सेनाएं अनेक बिमारियों से ग्रसित होकर कमजोर होने लगी जिससे स्थानीय प्रतिरोध करने की क्षमता उनमें नहीं थी। जब गोरखा सेनाएँ वापस जाने लगी तो अग्रेजो ने शासन की बागडोर पुन मझौली, सतासी, बॉसी गोपालपुर, तमकुही के राजाओं को सुपूर्द कर दी और इन्ही के माध्यम से शासन चलाने लगे।नवाब शाहजहां बेगम का जीवन परिचय1887 ई के विद्रोह के पश्चात शासन की बागडोर ईस्ट इडिया कम्पनी के हाथ से ब्रिटिश क्राउन के हाथ मे चली गयी। इसी के साथ गोरखपुर के प्रशासित क्षेत्र को गोरखपुर-देवरिया समेत बनारस डिविजन मे शामिल कर दिया गया। 1871 ई मे पडरसौना के शहरी क्षेत्र की स्थापना की गयी तथा देवरिया शहर” की स्थापना 1892 ई मे की गयी। 1885 ई में भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस की स्थापना के साथ इस क्षेत्र मे भी राष्ट्रीय भावना जागृत होने लगी। देवरिया की जनता ने काग्रेस के आह्वान पर 1914–1918 ई के प्रथम विश्व युद्ध मे सरकार का भरपूर सहयोग किया।नवाब सुल्तान जहां बेगम भोपाल रियासत1920 ई मे जब महात्मा गांधी ने असहयोग आदोलन आरंभ किया। देवरिया की जनता ने इसे हृदय से समर्थन दिया। 8 फरवरी 1921 ई को महात्मा गांधी गोरखपुर आए। अगस्त 1921 ई को लार मे काग्रेस की एक बडी सभा आयोजित की गयी। 17 सितम्बर को जवाहरलाल नेहरु देवरिया पहुँचे जहां विशाल भीड ने उनका स्वागत किया। इस समय सरकार ने धारा 144 को पूरे क्षेत्र मे बढा दिया पर सब निस्प्रभावी रहा। इस दौरान विदेशी कपडो एव विदेशी सामानों का बहिष्कार होने लगा तथा खादी और गांधी टोपी लोकप्रिय होने लगा।13 अप्रैल 1924 ई को जवाहरलाल नेहरू दूसरी बार देवरिया आए और लोगो से काग्रेस के फंड में चंदा देने का आह्वान किया। 4 अक्टूबर, 1929 ई को महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी और जेबी कृपलानी श्री प्रकाश (बनारस) के साथ देवरिया आये और उन्होने नागपुर के झंडा सत्याग्रह (1923) मे लोगो के भारी सख्या मे भाग लेने पर उनका धन्यवाद किया।शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगम1930 ई के नमक सत्याग्रह के समय देवरिया जनपद मे भी गांधी जी के आहवान पर नमक कानून तोडा गया। 13 अप्रैल 1930 को बाबा राघवदास के नेतृत्व मे नमक कानून तोड़ा गया। 11 मई 1935 ई को राष्ट्रीय नेता रफ़ी अहमद किदवई देवरिया पहुँचे और काग्रेस की दो दिवसीय सम्मेलन की। 1935 ई के इडियन एक्ट के अनुसार जब काग्रेस ने विधान सभा के चुनाव मे भाग लेने का फैसला किया तब देवरिया के सभी सीटो पर काग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीत गये। इसी प्रकार 1940 ई में गांधी जी के व्यक्तिगत सत्याग्रह एव 1942 ई के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देवरिया की जनता ने खुलकर कांग्रेस का समर्थन किया। 21 अगस्त को गौरी बाजार सलेमपुर और देवरिया मे आन्दोलनकारियों ने टेलीफोन लाइनों को काटकर रेलों की पटरियो को उखाडकर सडको को क्षतिग्रस्त कर एव पुलो आदि को तोडकर अग्रेजो के पैर उखाड दिए। 1945 ई में जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने लगा। तब ब्रिटिश जनता का विचार भी भारत को पूर्ण स्वाधीनता प्रदान करने का बनने लगा। 1946 ई में देवरिया गोरखपुर से अलग होकर स्वतंत्र जनपद का अस्तित्व प्राप्त किया। 15 अगस्त 1947 को देश वर्षो की गुलामी से स्वतंत्र हो गया। पर इसी के साथ देश को विभाजन की पीडा भी झेलनी पडी। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:—[post_grid id=”6023″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized उत्तर प्रदेश के जिले