दुर्गा पूजा पर निबंध – दुर्गा पूजा त्योहार के बारें में जानकारी हिन्दी में Naeem Ahmad, February 18, 2019March 10, 2023 दुर्गा पूजा भारत का एक प्रमुख त्योहार है। जो भारत के राज्य पश्चिम बंगाल का मुख्य त्योहार होने के साथ साथ भारत के अन्य राज्यों में बडी धूम धाम से मनाया जाता है। यह त्योहार हिन्दू देवी माँ दुर्गा को समर्पित है।अपने इस लेख में हम दुर्गा पूजा का इतिहास, दुर्गा पूजा क्यों मनाते है। दुर्गा पूजा कैसे मनाते है। दुर्गा पूजा कब मनाते हैं। आदि के बारें में विस्तार से जानेगें। हमारा यह लेख उन विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है। जिनके प्रश्नपत्रों में दुर्गा पूजा पर निबंध लिखने को आता है। दुर्गा पूजा के बारें में जानकारी हिन्दी में जैसा की हमने ऊपर बताया दुर्गा पूजा बंगाल का सबसे बड़ा त्यौहार है। और बंगाल के साथ साथ यह अन्य राज्यों में भी बडी धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाल की राजधानी कोलकाता की दुर्गा पूजा तो विश्व भर में प्रसिद्ध है। बंगाल मे इस त्योहार की तैयारी दो महिने पहले से शुरु हो जाती है। और जगह जगह प्रत्येक मौहल्ले, गांव, बाजार तथा सार्वजनिक स्थानों पर बडे बड़े पंडाल बनाये जाते है। जिनमें माँ दुर्गा, गणेशजी, लक्ष्मी जी, कार्तिकेय तथा सरस्वती देवी की विशाल मूर्तियां सजाई जाती है। माँ दुर्गा के दस हाथ होते है। और वे शरीर र की सवारी पर राक्षस महिषासुर को मारते हुए विराजमान होती है। उनकी एक तरफ गणेशजी तथा लक्ष्मी जी और दूसरी तरफ कार्तिकेय तथा सरस्वती देवी विराजमान रहती है। एक एक पंडाल बनाने में कई कई लाख रुपए खर्च हो जाते है। जिसमें श्रृद्धालु लोग दिल खोलकर खर्च करते है। सृष्टि को बोधन होता है, अर्थात वन्दना होकर दुर्गा पूजा आरंभ हो जाती है। सप्तमी, अष्टमी, नवमीं और दसमी तक दूर्गा पूजा चलती है। इस अवसर पर 4-5 दिन का सार्वजनिक अवकाश होता है। जिससे की सब लोग दुर्गा पूजा का उत्सव आनंदपूर्वक मना सके। सारी रात स्त्री, पुरूष और बच्चे अपने नये नये और सबसे बढिय़ा कपडें पहनकर पंडालों में जाकर माँ दुर्गा की पूजा करते है। पंडालों मे सभी धर्मों, जातियों के लोग हिस्सा लेते है। और फिर एक निश्चित समय पर प्रसाद दिया जाता है। कलकत्ता का दुर्गा पूजा का त्यौहार साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक है। हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सब नये कपडें पहनते है, और सड़कें और गलियां मनुष्यों से भरी रहती है। लगभग प्रातःकाल माँ की आरती होती है। पांचों मूर्तियों की पूजा एक साथ होती है। अलग अलग नही होती। दुर्गा माँ के दो पुत्र तथा दो पुत्रियां मानी गई है। गणेश तथा कार्तिकेय जी पुत्र तथा लक्ष्मी जी और सरस्वती जी पुत्रियां मानी गई है। काली माता, दुर्गा माँँ का ही एक रूप माना गया है। दुर्गा पूजा का त्यौहार साल में दो बार आता है। एक चेत्र म़े और दूसरा अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक। अश्विन मास का दुर्गा पूजा का त्योहार बड़ा माना गया है। क्योंकि भगवान श्री रामचंद्र जी ने इसी मास में लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व माँ दुर्गा का आहवान किया था। पूजा दसमी को खत्म हो जाती है। और मूर्तियों को रथों, ट्रकों और टेम्पो में सजाकर बैंड बाजों तथा डी जे के साथ नाचते गाते मूर्तियों को जल में विसर्जित कर देते है।दुर्गा पूजा की कथा, दुर्गा पूजा का इतिहास, दुर्गा पूजा फेस्टिवल स्टोरी इन हिन्दी, मां दुर्गा का अवतार कैसे हुआ, माँ दुर्गा का अवतार क्यों हुआ Durga pooja history in hindi, Durga pooja story in hindi, Durga pooja festival history in hindi, Durga pooja festival story in hindi कहा जाता है कि राक्षस महिषासुर को मारने के लिए माँ ने दूर्गा का रूप धारण किया था। प्राचीन काल में देवता तथा दैत्यों में दो वर्ष तक युद्ध हुआ। दैत्यों का स्वामी महिषासुर था और देवताओं का स्वामी इंद्र देव था। युद्ध में देवता हार गए। और महिषासुर इंद्रलोक पर राज्य करने लगा। देवता सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी को अपने साथ लेकर भगवान विष्णु और भगवान शंकर जी के पास गए, और कहा कि महिषासुर ने स्वर्ग को जीत लिया है। और सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया है। अब हम आपकी शरण में आये है। आप महिषासुर के वध का उपाय किजिए। यह सुनकर भगवान विष्णु की की भौंहें क्रोध से तन गई, और एक उनके मुख से एक तेज निकला तथा ब्रह्मा जी तथा भगवान शंकर के मुख से भी तेज प्रकट हुआ। इंद्र देव और अन्य देवताओं के मुख से भी तेज प्रकट हुआ। सभी तेज मिलकर एक हो गए, और एक होने पर उस तेज से माँ दूर्गा का रूप प्रकट हुआ। माँ दूर्गा ने प्रकट होते ही शेर पर सवार होकर ऊंचे स्वर में गर्जना की। उनके इस भयानक नाद से सारा आकाश भर गया। देवतागण यह देखकर प्रसन्न होकर माँ दूर्गा की जय जयकार करने लगे। उन्होंने विनम्र होकर मां दूर्गा की स्तुति की। देवताओं को प्रसन्न देख तथा माँ दुर्गा का सिंहनाद सुनकर राक्षस महिषासुर अपनी सेना लेकर माँ दुर्गा से युद्ध करने आया। उसने अपने सेनापति चिक्षुर को मां दुर्गा के साथ युद्ध करने भेजा। दोनों का युद्ध होने लगा। चामर, उद्रग, महासनुदैत्य, असिलोमा, वाष्भकाल, पारिवरित, विडाल, आदि आदि अन्य दैत्य भी अपनी अपनी सेनाएँ लेकर आयें। माँ दुर्गा ने उन पर अस्त्रों शस्त्रों की वर्षा करके उन सबको हरा दिया। माँ दुर्गा जी का वाहन सिंह भी क्रोध में आ गया। और दैत्यों की सेना को मारने लगा। देवी जी ने युद्ध करते हुए जितने श्वांस छोडे वे सब सैकडों हजारों गणों के रूप में प्रकट हो गए। उन गणों ने नगाड़े, शंख, तथा मृदंग बजाए जिससे कि युद्ध का उत्साह बढ़े। देवी दुर्गा जी ने त्रिशूल, गदा, तथा शक्तियों की वर्षा करके हजारों दैत्यों को मार गिराया। महा असुर चिक्षुर के बाणों को काट कर उसका धनुष और ऊंची लहराती ध्वज काट डाली और उसके सारथी और घोडों को मार डाला। चिक्षुर पैदल ही तलवार और ढाल लेकर देवी की ओर दौडा और देवी के वाहन सिंह पर प्रहार किया। फिर देवी की बाईं भुजा पर प्रहार किया, लेकिन तलवार देवी जी की भुजा पर पहुंचते ही अपने आप टूट गई। तब चिक्षुर ने शूल चला दिया, देवी जी ने अपने शूल से उस शूल को तोड़कर टुकड़े टुकड़े कर दिये, और चिक्षुर महादैत्य को अपने शूल से मार दिया। चिक्षुर के मरने पर चामर राक्षस हाथी पर चढ़कर देवी जी से युद्ध करने आया। देवी जी ने उसे भी अपने शूल से मार डाला। इसी तरह देवी दुर्गा ने वाष्भकाल, अंधक, महाहनु, आदि दैत्यों को भी मौत के घाट उतार दिया। महिषासुर अपने सेनापति तथा अन्य महादैत्यो को देवी के हाथों मरता देख क्रोधित होकर भैंसे का रूप धारण कर उनसे युद्ध करने स्वयं आया। और अपने थुथनों, खुरों तथा पूंछ से देवी के गणो को मारने लगा। सींगो से बडें बडे पहाड़ उठाकर फेकने लगा। पूंछ से समुद्र पर प्रहार किया पर्वत टूटने लगे। पृथ्वी डूबने लगी बादल फटने लगे और फिर महिषासुर गरजता हुआ देवी के वाहन सिंह पर झपटा। महिषासुर का यह सब उत्पात देख कर माँ दुर्गा को बहुत क्रोध आया, उन्होंने क्रोध में भरकर उसकी ओर अपना पाशा फेका और उसे बांध लिया। महिषासुर ने देवी जी के पाशे में बंधने पर अपना भैंसे का रूप त्याग दिया और सिंह रूप धारण कर लिया। जैसे ही माँ दुर्गा उसका सिर काटने लगी तो उसने सिंह रूप त्याग कर पुरुष रूप बना लिया। और हाथ में तलवार लेकर माँ दुर्गा के सामने आया। मां दुर्गा ने उसे तीरों से बींध डाला तब उसने हाथी का रूप धारण कर लिया। देवी जी ने अपनी खडग से उसकी सूंड काट डाली तब फिर महिषासुर भैंसे के रूप में आ गया। तब माँ दुर्गा मधुपान करने लगी और लाल लाल नेत्र करके हंसने लगी, और क्रोध में भरकर अपनी तलवार से महिषासुर का सिर काटकर नीचे गिरा दिया। महिषासुर के मरने पर देवी जी ने उसकी सारी सेना को भी नष्ट कर दिया। महिषासुर के मरने पर सभी देवता देवी जी की जय जयकार करने लगे। और उन पर फूलों की वर्षा करने लगे। गंधर्व गाना गाने लगे और अप्सराएं नाचनें लगी। इस प्रकार माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया था। माँ दुर्गा का यही रूप दुर्गा पूजा में दर्शाया जाता है। जो सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है। माँ दुर्गा के नाम माँ दुर्गा के नौ नाम है। जो इस प्रकार है:— शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चन्द्रघटा कुष्मांडा स्कंदमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री माँ दुर्गा का अवतार कैसे और किन कारणों से हुआ यह हम ऊपर जान ही चुके है। आइये जानते है किस देवता के तेज से मां दुर्गा को क्या रूप मिला। महादेव जी के तेज से माँ का मुख बना यमराज के तेज से कैश विष्णु के तेज से भुजाएं चंद्रमा के तेज से दोनों स्तन इंद्र के तेज से कंठ वरूण के तेज से जंघा व आरूस्थल पृथ्वी के तेज से नितंब ब्रह्मा के तेज से दोनों चरण सूर्य के तेज से चरणों की उंगलियां वासु के तेज से हाथों की उंगलियां कुबेर के तेज से नासिका प्रजापति के तेज से दांत अग्नि के तेज से तीन नेत्र दोनों संध्याओं के तेज से दोनों भौंहे वायु के तेज से दोनों कान इस प्रकार माँ दुर्गा का प्रादुर्भाव होने पर देवताओं ने देवी को विभिन्न अस्त्रशस्त्र व शक्तियां प्रदान की। महादेव जी ने मां दुर्गा को अपने त्रिशूल से शूल दिया विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से चक्र वरूण ने शंख अग्नि ने शक्ति मारूति ने धनुष बाण और तरकश देवराज इंद्र ने वज्र सहस्त्र नेत्र इंद्र ने ऐरावत हाथी का घंटा यमराज ने लाल दंड सागर ने रूद्राक्ष माला ब्रह्मा ने कमंडल सूर्य ने किरण काल ने तलवार और ढाल क्षीर सागर ने हार, चूडामणी, दिव्य कुंडल, कभी पुराने न होने वाले दो वस्त्र, चमकता हुआ अर्धचंद्र, भुजाओं के लिए बाजूबंद, चरणो के लिए नूपुर, कंठ के लिए सर्वोत्तम कंठुला तथा उंगलियों के लिए रत्नजड़ित मुद्रिकाएं विश्वकर्मा ने निर्मल परशु तथा अनेक रूपों वाले अस्त्र दिये थे। दुर्गा पूजा का महत्व इतिहास और अन्य जानकारियों पर आधारित हमारा यह लेख आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है। भारत के प्रमुख त्योहारों पर आधारित हमारें यह लेख भी जरुर पढ़ें:— [post_grid id=”6671″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख त्यौहार पश्चिम बंगाल के त्योहार