दुख भंजनी बेरी साहिब – Gurudwara Dukhbhajni beri sahib Naeem Ahmad, May 22, 2019March 11, 2023 दुख भंजनी बेरी ट्री एक पुराना बेर का पेड़ है जिसे पवित्र माना जाता है और इसमें चमत्कारी शक्ति होती है। पेड़ अमृत सरोवर के पूर्वी तरफ स्वर्ण मंदिर परिसर में खड़ा है।किवदंती के अनुसार, पेड़ के पास तालाब में डुबकी लगाने से बीबी रजनी का कोढ़ी पति ठीक हो गया था। गुरु राम दास जी ने इस सरोवर को स्नान सरोवर में विकसित करने का निर्णय लिया। वृक्ष को दुग्ध भंजनी नाम दिया गया, जिसका अर्थ है दुखों को मिटाने वाला।दुख भंजनी बेरी साहिब स्टोरीसन् 1576 की बात है कि एक दिन सेठ दुनी चंद ने अहंकारवश अपनी पुत्रियों से यह पूछा कि तुम किस का दिया खाती हो। इस पर चार बड़ी पुत्रियों ने उत्तर दिया कि हम आप का दिया हुआ खाते है। परंतु सबसे छोटी बेटी रजनी ने बड़े आत्मविश्वास के साथ उत्तर दिया कि मै तो अपने भाग्य में जो लिखा हुआ है, ईश्वर का दिया हुआ उसे खाती हूँ।दुख भंजनी बेरी के सुंदर दृश्ययह सुनकर अहंकारी पिता ने रजनी को गुस्ताख़ समझकर तथा क्रुद्ध होकर कहा, देखता हूँ तेरा देने वाला तुझे किस तरह खाने को देता है। अहंकारी साहूकार ने जानबूझकर रजनी का विवाह एक कुष्ठ रोगी व्यक्ति से कर दिया और उसे घर से भी निकाल दिया, परंतु धैर्यशील रजनी ने इस घटना को अपने पूर्व जन्मों के कर्मों का फल तथा वाहिगुरू की आज्ञा समझकर परवान कर लिया।गुरूवाणी का आश्रय लेकर गुरू के चक्क एक बेरी के वृक्ष के नीचे अपने कुष्ठ पति की खारी एक कच्चे तालाब के किनारे टिका कर अपने तथा अपने पति के लिए भोजन क व्यवस्था के लिए चली गई। उसकी अनुपस्थिति में उसके कुष्ठ पति ने एक अद्भुत दृश्य देखा। एक काला कौआ तालाब में नहाकर सफेद हंस बनकर बाहर निकला। यह देखकर उसके मन में भी विचार आया और वह भी अपनी खारी की टोकरी में से निकलकर रेंगता हुआ तालाब में घुस गया, उसने अपने दाएँ हाथ के अंगुंठे से दबाकर घास के तिनके को पकड़ा हुआ था। अतः इस अंगूठे को छोड़कर उसके शरीर का सारा कुष्ठ रोग ठीक हो गया। रजनी लौटकर आयी तो इस सुंदर शरीर वाले पुरूष को देखकर बड़ी विस्मित हुई।उसने सारी घटना श्री गुरू रामदास जी को बताई और कुष्ठ व्यक्ति का अंगूठा भी तालाब में स्नान करने पर अरोग हो गया। इस स्थान की बेरी के वृक्ष का नाम उसी दिन से ही दुख भंजनी बेरी प्रसिद्ध हो गया।इस पवित्र स्थान पर सन् 1577 ईसवीं में श्री गुरू रामदास जी ने सरोवर की खुदाई कराते स्वंय एक टप्प लगवाया था। अब इस स्थान पर एक गुरूद्वारा है। जिसे गुरूद्वारा दुख भंजनी बेरी साहिब के नाम से जाना जाता है। और जिसमें निरंतर गुरूवाणी का प्रवाह चलता रहता है। दुख भंजनी बेरी साहिब का पाठ संगत लगन के साथ सुनती है।दुख भंजनी बेरी वाले चबूतरे पर एक बुंगा, भाई जस्सा सिंह ग्रंथी तथा भाग सिंह की ओर से तैयार कराया गया था, जिसे सन् 1824 में महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा सुनहरी करा दिया गया था।भारत के प्रमुख गुरूद्वारों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=’6818′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल पंजाब दर्शनप्रमुख गुरूद्वारे